नफ़रत और लालच में माँ-बाप ने बेटी की शादी पागल से कराई | लेकिन किस्मत ने ऐसा खेल खेला ….

बारिश की हल्की-हल्की बूंदें गांव की मिट्टी पर गिर रही थीं, जैसे हर कण दर्द की कोई दास्तां सुना रहा हो। उसी बरसाती रात गांव के छोटे से अस्पताल में एक बच्ची ने जन्म लिया। बच्ची का नाम रखा गया – रिया। लेकिन जिस क्षण उसने पहली बार आंखें खोलीं, उसी पल उसकी मां की सांसें हमेशा के लिए थम गईं।

पिता रामलाल ने मासूम को गले लगाने की बजाय उसे अभिशाप कहकर ठुकरा दिया। गांव में फुसफुसाहट थी – “यह बच्ची मां को खा गई, अशुभ है।” जन्म लेते ही रिया पर बदकिस्मती का ठप्पा लग गया। कुछ समय बाद रामलाल ने दूसरी शादी कर ली। नई पत्नी कमला ने आते ही रिया को अपने तानों और जंजीरों में जकड़ लिया।

पांच साल की मासूम रिया हाथों में झाड़ू और बर्तन पकड़ती, और छोटी-सी गलती पर सौतेली मां के ताने सुनती – “अभागी, तू ही सब दुखों की वजह है।” उसके सौतेले भाई-बहन राहुल और प्रिया को खिलौने, किताबें, अच्छे कपड़े और स्कूल सब कुछ मिला, लेकिन रिया के हिस्से में सिर्फ आंसू और थकान आई।

इस अंधेरे में एक ही रोशनी थी – पड़ोस में रहने वाला उसका बचपन का दोस्त आरव। वह रिया की हर चुप्पी समझ लेता। जब वह रोती तो कहता – “रिया, तू मजबूत है। एक दिन सब ठीक होगा।” वह उसके लिए फल चुराकर लाता, कहानियां सुनाता और वादा करता – “मैं बड़ा होकर तुझे खुश रखूंगा।” लेकिन किस्मत को यह भी मंजूर न था। अचानक आरव के पिता का ट्रांसफर हो गया और वह शहर चला गया। रिया अकेली रह गई। हर रात वह आंसुओं में उसका नाम पुकारती – “आरव, कहां हो तुम?” लेकिन जवाब सिर्फ सन्नाटा होता।

समय बीतता गया। रिया जवान हो गई, मगर उसका जीवन और कठिन हो गया। बीमार होने पर भी उसे काम करना पड़ता। गलती पर सजा मिलती और बार-बार वही ताना – “तेरे पैदा होते ही मां मर गई। अभागी कहीं की!”

उधर सौतेले भाई-बहन अपनी मनमानी करने लगे। राहुल पढ़ाई छोड़कर आवारा दोस्तों के साथ घूमता, शराब पीने लगा। प्रिया छुपकर फोन पर लड़कों से बात करती और घर के नियम तोड़ती। मगर घर में दोष हमेशा रिया के सिर मढ़ा जाता – “तू तो नौकरानी है, हम राजकुमार-राजकुमारी।”

फिर वक्त आया जब प्रिया की शादी एक अमीर परिवार में तय हुई। गांव वालों ने टोका – “पहले बड़ी बेटी रिया की शादी होनी चाहिए।” यह सुनकर कमला तड़प उठी और रिया पर बरसी – “तेरे कारण ही सब अशुभ है। तेरे बिना हम सुखी होते।” रिया का दिल चीर गया, लेकिन उसने चुपचाप सब सहा।

इसी बीच लालच ने नया खेल रचा। एक दिन गांव का एक अमीर आदमी आया। उसने कहा – “मेरा बेटा मानसिक रूप से कमजोर है। अगर आप अपनी बेटी रिया से उसकी शादी करा दें तो मैं अच्छा-खासा दहेज दूंगा।” रामलाल और कमला की आंखों में लालच चमक उठा। उन्होंने बिना रिया से पूछे तुरंत हां कर दी।

जब रिया को पता चला तो वह रोते-गिड़गिड़ाते बोली – “पापा, मां, ऐसा मत कीजिए। मेरी शादी एक पागल से मत कराइए। मैंने क्या अपराध किया है जो आप मेरी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं?” लेकिन उसकी पुकार अनसुनी रही। कमला ने डांटते हुए कहा – “चुप कर अभागी! तू तो वैसे भी बोझ है। अब हमारे लिए पैसा ही सुख लाएगा।”

रिया का दिल टूट गया। वह रात-रात भर रोई और सोचती रही – “क्या मेरी जिंदगी हमेशा अंधेरे में ही गुजरेगी?” लेकिन उसके पास कोई रास्ता नहीं था।

आखिरकार शादी का दिन आ गया। गांव में ढोल-नगाड़े बजने लगे, रंग-बिरंगी झालरों से गली सज गई। पर रिया का दिल अंदर से बिखरा हुआ था। लाल जोड़े में सजी उसकी आंखें सुर्ख थीं, जैसे सारी रात रोती रही हो। हथेलियों पर मेहंदी थी, मगर खुशी की लकीरें नहीं थीं, सिर्फ मजबूरी की छाप थी।

मंडप में बैठा दूल्हा सबको अजीब लगा। कभी बेवजह जोर से ठहाका मारता, कभी बच्चों की तरह ताली बजाता, अचानक मिट्टी से खेलने लगता। गांव वाले फुसफुसाने लगे – “अरे यह तो सचमुच पागल है। हाय री रिया की किस्मत!”

रिया की आंखों से आंसू बहने लगे। उसने मन ही मन पुकारा – “मां, काश आप होतीं। कोई मुझे बचा लेता।”

तभी अचानक सब थम गया। मंडप के बीच बैठे दूल्हे का चेहरा बदलने लगा। उसकी आंखें गंभीर हो गईं, शरीर सीधा हो गया। फिर वह ऊंची आवाज में बोला – “बस! अब और नाटक नहीं। सच जानने का समय आ गया है।”

पूरा मंडप सन्न रह गया। रिया ने चौंककर उसकी ओर देखा। दूल्हे ने धीरे-धीरे अपनी पगड़ी उतारी और उसकी आंखों में सीधे देखा। फिर मुस्कुराया – वही मुस्कान जो रिया ने बचपन में हजार बार देखी थी।

उसने कहा – “रिया, यह मैं हूं… आरव। तुम्हारा बचपन का दोस्त।”

रिया की सांसें थम गईं। होंठ कांपते हुए उससे बस एक शब्द निकला – “आरव…” और आंखों से आंसू बह निकले।

आरव ने सबके सामने सच उजागर किया – “मैंने पागलपन का नाटक इसलिए किया, क्योंकि मुझे पता था कि रिया के मां-बाप को बेटी की खुशी से ज्यादा पैसा प्यारा है। अगर मैं सीधे शादी का प्रस्ताव रखता तो ये ठुकरा देते। लेकिन जब मैंने पागल बेटे और दहेज का लालच दिखाया, तभी इनकी असलियत सामने आई। इनके लिए रिया हमेशा बोझ रही, और आज ये उसकी जिंदगी बेचने को तैयार थे। मैंने यह सब इसलिए किया ताकि पूरे गांव को सच्चाई दिखा सकूं।”

गांव में कानाफूसी होने लगी – “वाह! यह लड़का हीरा है। पागलपन का नाटक करके लड़की को नरक से बचा लिया।”

तभी आरव के माता-पिता आगे आए। उन्होंने रिया को गले लगाया और कहा – “बेटी, हम तेरी कहानी जानते हैं। तूने बहुत दुख सहा है। लेकिन अब हमारे घर में सिर्फ प्यार और सम्मान है। तू हमारी बेटी बनकर रहेगी।”

रामलाल और कमला स्तब्ध रह गए। उनके चेहरों से लालच की चमक मिट चुकी थी, उसकी जगह शर्म और पछतावे ने ले ली।

आरव ने रिया की आंखों में देखते हुए कहा – “रिया, मैंने तुझसे वादा किया था कि एक दिन तुझे इस अंधेरे से निकालूंगा। आज मैं वह वादा निभा रहा हूं। अब तू किसी की मजबूरी नहीं होगी। अब यह शादी तेरी खुशी के लिए होगी, किसी लालच के लिए नहीं।”

रिया फूट-फूटकर रो पड़ी। लेकिन इस बार उसके आंसू डर के नहीं, बल्कि राहत और सुकून के थे। उसने कांपते हाथों से आरव का हाथ थाम लिया। गांव वाले तालियां बजाने लगे – “वाह! ऐसा बेटा सबको मिले।”

शादी पूरी हुई, लेकिन इस बार रिया की मर्जी से। वह आरव के साथ अपने नए घर गई जहां उसे प्यार, सम्मान और अपनापन मिला।

रिया की शादी के बाद रामलाल और कमला के घर की हालत बिगड़ने लगी। राहुल का बिगड़ापन बढ़ता गया और एक दिन चोरी के आरोप में जेल चला गया। प्रिया की अमीर ससुराल भी टूट गया और उसका तलाक हो गया। रामलाल और कमला पछताते रहे – “हमने क्या किया?” लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।

रिया ने उन्हें माफ तो कर दिया, मगर अपने दिल के दरवाजे फिर से कभी पूरी तरह नहीं खोले।

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