दरार में छुपा सच: पाँच साल बाद मिली उम्मीद
दरार में छुपा सच: पाँच साल बाद मिली उम्मीद
दार्जिलिंग की पहाड़ियों में पतझड़ की हल्की धूप फैली थी। हवा में ठंडक और पेड़ों के बीच से छनकर आती रोशनी ने घाटियों को सुनहरा बना दिया था। उस दिन, दार्जिलिंग विश्वविद्यालय के छात्रों का एक समूह हँसी-ठिठोली करता, ट्रेकिंग के लिए निकला था। वे रोमांच के लिए नहीं, बल्कि प्रकृति का अनुभव लेने के लिए आए थे। दोपहर के करीब, वे एक गहरी खाई के पास रुके, जहाँ दो विशाल चट्टानों के बीच एक दरार थी।
अचानक, एक छात्रा की नज़र उस दरार में अटकी एक वस्तु पर पड़ी। उसकी चीख सुनकर सब दौड़ पड़े। एक लड़के ने छड़ी की मदद से उस वस्तु को बाहर निकाला—वह एक पुराना, कीचड़ और धूल से सना बैकपैक था। उसकी पट्टियाँ घिस चुकी थीं, रंग उड़ गया था। सभी के मन में एक अजीब सा डर समा गया।
बैकपैक खोलते ही, उसमें से एक छोटी गुलाबी जैकेट, पानी से भीगी डायरी, और कुछ धुंधली पारिवारिक तस्वीरें निकलीं। डायरी के पन्ने फटे-चिटके थे, पर कुछ शब्द अब भी पढ़े जा सकते थे—
“तीसरा दिन… भारी बारिश… भूस्खलन ने रास्ता रोक दिया… उम्मीद है कोई हमें ढूंढ लेगा…”
सभी सन्न रह गए। उन्हें तुरंत एहसास हुआ कि वे किसी भूली-बिसरी त्रासदी के साक्षी बन रहे हैं।
भूली-बिसरी त्रासदी
पाँच साल पहले, दार्जिलिंग के ही एक सिविल इंजीनियर अरुण मेहता ने अपनी आठ वर्षीय बेटी अनाया के साथ ट्रेकिंग पर जाने का फैसला किया था। अरुण को पहाड़ों से बेहद लगाव था, और वे चाहते थे कि उनकी बेटी भी प्रकृति की सुंदरता और संघर्ष को करीब से देखे। उनकी पत्नी मीरा, काम में व्यस्त थी, इसलिए वह घर पर रह गई।
अरुण और अनाया ने ट्रेक के लिए जरूरी सामान—खाना, पानी, टेंट, कंपास, नक्शा और एक डायरी—साथ रखा। अनाया ने पहली बार डायरी में लिखा,
“आज मैं पापा के साथ पहाड़ों पर जा रही हूँ। मुझे बहुत मज़ा आ रहा है!”
पहला दिन अच्छा बीता। दोनों ने जंगल में टेंट लगाया, झरने का पानी पिया, और रात को तारों की छाँव में बातें कीं। लेकिन दूसरे दिन मौसम ने करवट ली। अचानक बारिश शुरू हो गई, रास्ते फिसलन भरे हो गए, और पहाड़ों में छोटे-छोटे भूस्खलन होने लगे। नक्शा और कंपास बेकार हो गए, रास्ते पहचान में नहीं आ रहे थे।
अरुण ने अनाया को दिलासा दी,
“कल सूरज निकलेगा, हम रास्ता ढूंढ लेंगे।”
लेकिन सुबह तक वे पूरी तरह रास्ता भटक चुके थे। खाना कम होने लगा, पानी का भी संकट था। अरुण ने रास्ते में पेड़ों पर कपड़े के टुकड़े बाँध दिए, ताकि अगर कोई खोजी दल आए, तो उन्हें संकेत मिल सके।
तीसरे दिन, अनाया को हल्का बुखार आ गया। डायरी में अरुण ने लिखा—
“तीसरा दिन… अनाया को बुखार है… भूस्खलन के कारण रास्ता बंद… उम्मीद है कोई हमें ढूंढ लेगा।”
दरार में फँसी उम्मीद
बारिश लगातार जारी रही। ठंड बढ़ती गई। एक रात, अरुण ने अपनी जैकेट उतारकर अनाया को ओढ़ा दी। अगले दिन, वे एक गहरी दरार के पास पहुँचे। चढ़ाई करते वक्त, बैकपैक चट्टानों में फँस गया। थकान और कमजोरी के कारण, अरुण ने अनाया की डायरी और उसकी गुलाबी जैकेट बैग में रख दी, और उसे दरार में फँसा छोड़ दिया—शायद कोई कभी उसे ढूंढ ले।
उसके बाद, दोनों कहीं खो गए। खोजी दल हफ्तों तक जंगलों, घाटियों, और चट्टानों में तलाश करते रहे, लेकिन बस कुछ कपड़ों के टुकड़े और जूते ही मिले। मीरा हर रोज़ उम्मीद और निराशा के बीच झूलती रही। साल दर साल बीतते गए, लेकिन कोई खबर नहीं मिली।
पाँच साल बाद
अब, पाँच साल बाद, छात्रों द्वारा मिला बैकपैक पहली असली कड़ी था। उन्होंने बैग पुलिस को सौंप दिया। खबर जंगल में आग की तरह फैल गई। अधिकारियों ने डायरी के आखिरी पन्नों और बैकपैक की जगह के आधार पर फिर से खोज शुरू की।
कुछ दिनों बाद, उसी दरार के पास, एक चट्टानी गड्ढे में, उन्हें छोटी हड्डियों के अवशेष और एक गुलाबी धागे का कंगन मिला—वही कंगन, जो अनाया की माँ ने उसकी कलाई पर बाँधा था। डीएनए टेस्ट से पुष्टि हुई कि वे अवशेष अनाया और अरुण के थे।
मीरा को जब यह खबर मिली, तो उसके आँसू सूख चुके थे। पाँच साल तक वह रोती रही थी, अब बस एक गहरी शांति थी—दर्द की जगह स्वीकार्यता ने ले ली थी। बैग लौटाया गया, जिसमें एक छुपी जेब में अरुण की लिखावट में एक नोट था—
“अगर किसी को यह मिले, कृपया मेरी बेटी को उसकी माँ के पास पहुँचा देना। मुझे माफ़ कर देना।”
स्मृति से सेवा तक
अरुण और अनाया की याद में गाँव के लोगों ने पहाड़ की तलहटी में एक स्मारक बनाया। मीरा ने अपने गहने और अरुण की बचत बेचकर “अनाया फाउंडेशन” की शुरुआत की—एक ट्रस्ट, जो उन बच्चों के लिए समर्पित था, जिन्होंने ट्रेकिंग या प्राकृतिक आपदाओं में अपने माता-पिता को खो दिया था।
मीरा ने ट्रेकिंग गाइड्स और मजदूरों के बच्चों को छात्रवृत्ति देना शुरू किया, शोक-सलाह और सुरक्षा शिक्षा के सत्र चलाए। दार्जिलिंग की छोटी सी पहल जल्द ही अखबारों और टीवी चैनलों की सुर्खियाँ बन गई।
एक पत्रकार ने लिखा—
“एक माँ जिसने अपनी बेटी को खो दिया, अब सैकड़ों बच्चों की माँ बन गई है।”
अंधेरे में रोशनी
पाँच साल बाद, उसी त्रासदी की बरसी पर, मीरा स्मारक के पास खड़ी थी। उसके आसपास दर्जनों बच्चे हँस रहे थे, खेल रहे थे, और अनाया फाउंडेशन की जैकेट पहने हुए थे।
एक बच्ची ने पूछा—
“मीरा आंटी, इसका नाम अनाया फाउंडेशन क्यों है?”
मीरा ने मुस्कुराकर जवाब दिया—
“क्योंकि अनाया नाम की एक बच्ची थी, जो पहाड़ों से प्यार करती थी। अब आप सब उसके सपनों को आगे बढ़ा रहे हो।”
उपसंहार
वह बैकपैक, जो कभी दर्द का बोझ था, अब आशा का प्रतीक बन गया। अरुण का अंतिम पत्र—“मेरी बेटी को उसकी माँ के पास पहुँचा देना”—इस तरह पूरा हुआ, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। अनाया अब सिर्फ मीरा की बेटी नहीं, सैकड़ों बच्चों की प्रेरणा बन गई थी।
जैसे ही पहाड़ों पर प्रार्थना के झंडे लहराए, मीरा ने ऊपर देखा। वे चोटियाँ अब उसे निर्दयी नहीं, बल्कि उसके पति और बेटी की स्मृति के संरक्षक लगीं।
उसने फुसफुसाकर कहा—
“तुम चले गए, लेकिन इस सेवा के ज़रिए, तुम ज़िंदा हो। दुःख को हमने उम्मीद में बदल दिया है।”
और इस तरह, एक भूली-बिसरी वस्तु ने एक पूरी कहानी को उजागर किया—दर्द, प्रेम, और सेवा के माध्यम से अमरता पाने की कहानी।
News
बहन प्रिया मराठे के कैंसर से निधन पर अंकिता लोखंडे का चौंकाने वाला बयान?
बहन प्रिया मराठे के कैंसर से निधन पर अंकिता लोखंडे का चौंकाने वाला बयान? भारतीय टेलीविज़न की दुनिया इन दिनों…
बेटा जब कलेक्टर बनकर घर पहुंचा तो मां टूटे फूटे घरें रह रही थी फिर बेटा ने जो किया
बेटा जब कलेक्टर बनकर घर पहुंचा तो मां टूटे फूटे घरें रह रही थी फिर बेटा ने जो किया ….
अपने सबसे अच्छे दोस्त को नौकरानी के रूप में रखना – अपने ही घर में त्रासदी
अपने सबसे अच्छे दोस्त को नौकरानी के रूप में रखना – अपने ही घर में त्रासदी एक करीबी दोस्त को…
Priya Marathe’s last emotional moments with her husband after cancer at her Final Days before Pass!
Priya Marathe’s last emotional moments with her husband after cancer at her Final Days before Pass! . . Priya Marathe’s…
बिजनेसमैन को प्लेन में आ गया था हार्ट अटैक , लड़के ने अपनी सूझ बूझ से उसकी जान बचाई ,उसके बाद जो हुआ
बिजनेसमैन को प्लेन में आ गया था हार्ट अटैक , लड़के ने अपनी सूझ बूझ से उसकी जान बचाई ,उसके…
दुखद समाचार: पवित्र रिश्ता की अभिनेत्री प्रिया मराठे का 38 साल की उम्र में कैंसर से निधन हो गया
दुखद समाचार: पवित्र रिश्ता की अभिनेत्री प्रिया मराठे का 38 साल की उम्र में कैंसर से निधन हो गया भारतीय…
End of content
No more pages to load