“तू सिखाएगी कानून?” — इंस्पेक्टर को नहीं पता था सामने IPS खड़ी है! फिर जो हुआ दरोगा के साथ

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साहस की मिसाल: उपजिलाधिकारी अनीता शर्मा

शहर में सुबह का समय था। सड़कों पर हल्की धुंध छाई थी, लेकिन प्रशासनिक दफ्तरों में चहल-पहल शुरू हो चुकी थी। उपजिलाधिकारी अनीता शर्मा अपने दफ्तर में बैठी हुई थीं, सामने फाइलों का ढेर लगा था। उनके चेहरे पर गंभीरता थी, लेकिन आँखों में ईमानदारी की चमक साफ दिखती थी। तभी उनके मोबाइल पर एक कॉल आया। स्क्रीन पर नाम चमका—रूपपाली। कॉलेज की पुरानी दोस्त। चार दिन बाद उसकी शादी थी। रूपपाली ने हँसते हुए कहा, “अनीता, इस बार कोई बहाना नहीं चलेगा। तुझे मेरी शादी में आना ही है।” अनीता मुस्कुरा उठीं, “पक्का, इस बार जरूर आऊँगी।”

शादी के दिन अनीता ने कुछ अलग करने का सोचा। हर रोज सरकारी गाड़ी और सुरक्षा के बीच घूमना उनकी दिनचर्या थी। लेकिन आज उन्होंने तय किया कि वे एक आम लड़की की तरह जाएँगी, पुराने कॉलेज के दिनों की यादें ताजा करेंगी। उन्होंने अपनी सरकारी गाड़ी और सुरक्षा छोड़ दी। छोटे भाई की मोटरसाइकिल पर बैठकर वे सादी सलवार-कुर्ती में निकल पड़ीं।

राजमार्ग पर पहुँचते ही पुलिस की नाकेबंदी दिखी। सड़क पर कई पुलिसकर्मी खड़े थे। सबसे आगे दरोगा विक्रम सिंह, जिसकी अकड़ दूर से ही दिख रही थी। उसके खिलाफ रिश्वत और फर्जी चालान की कई शिकायतें दर्ज थीं, लेकिन उसके ससुर बड़े न्यायाधीश थे, इसलिए कभी कार्रवाई नहीं हुई। आज वह जिस महिला को रोकने जा रहा था, उसे यह अंदाज़ा नहीं था कि वह उसकी ज़िंदगी बदल सकती है।

विक्रम सिंह ने हाथ उठाकर अनीता को रुकने का इशारा किया। “अरे लड़की, मोटरसाइकिल साइड में लगा,” उसकी आवाज़ में रोब था। अनीता ने बिना कोई सवाल किए मोटरसाइकिल साइड में लगा दी। विक्रम ने सख्त लहजे में पूछा, “कहाँ जा रही हो?” अनीता ने शांत स्वर में उत्तर दिया, “दोस्त की शादी में जा रही हूँ।”

विक्रम सिंह ने उसे सिर से पाँव तक घूरा और बोला, “अच्छा, तो मोहतरमा दावत खाने जा रही हैं। हेलमेट कहाँ है? क्या तेरे पिताजी पहनाएंगे?” फिर मोटरसाइकिल तेज चलाने का आरोप लगाया। “तेरी खूबसूरती देख चालान काटने का मन तो नहीं कर रहा, मगर फर्ज है, मजबूरी है।” उसने चालान पुस्तिका निकाल ली।

अनीता समझ गई कि चालान बहाना है, मामला कुछ और है। उन्होंने शांति से कहा, “साहब, मैंने कोई नियम नहीं तोड़ा है।” विक्रम सिंह भड़क गया, “ओ मोहतरमा, हमें कानून मत सिखा। पुलिस हम हैं, तुम नहीं। कायदे कानून हमें अच्छी तरह पता है।”

अनीता चुपचाप सब देखती रहीं। तभी विक्रम सिंह ने गुस्से में ऊँची आवाज़ में कहा, “तू ऐसे नहीं मानेगी। तुझे कानून सिखाना पड़ेगा।” अगले ही पल उसने अनीता के गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया। “बहुत सवाल पूछती है। पुलिस जो कहे, उसे चुपचाप सुनना चाहिए।” अनीता का सिर झटका, लेकिन उन्होंने खुद को तुरंत संभाल लिया। उनकी आँखों में गुस्से की लपटें साफ नजर आ रही थीं।

विक्रम सिंह ठहाका मारकर हँसा, “अभी भी अकड़ बाकी है। लगता है सबक सिखाना पड़ेगा।” सिपाही आगे बढ़ा, “साहब, इसे थाने ले चलते हैं।” विक्रम ने हामी भरी। सिपाही और दरोगा ने अनीता का हाथ पकड़कर खींचने की कोशिश की। अनीता ने गुस्से से अपना हाथ झटक दिया, “यह सब करने की हिम्मत भी मत करना।” उनकी आवाज़ में ऐसी दृढ़ता थी कि सिपाही सहम गया, लेकिन विक्रम सिंह का पारा और चढ़ गया।

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सिपाही बेरहमी से अनीता के बाल पकड़कर घसीटने लगा। दर्द से अनीता कराह उठीं, लेकिन फिर भी अपनी असली पहचान छुपाए रखी। वे देखना चाहती थीं कि ये लोग कितनी दूर जा सकते हैं। एक सिपाही ने उनकी मोटरसाइकिल पर लात मारकर गिरा दी। “बड़ी आई शरीफ बनने। अब तेरा खेल खत्म।”

अब अनीता पूरी तरह समझ चुकी थीं कि ये लोग वर्दी में छिपे गुंडे हैं। विक्रम सिंह बोला, “बहुत देखी हैं तेरी जैसी पापा की परियां। दिन में 50 आते हैं तेरे जैसे। तू पुलिस से भिड़ेगी, अभी तेरी औकात दिखाता हूँ। चलो रे, ले चलो इसे थाने।”

अनीता अब भी चुप थीं। वे देखना चाहती थीं कि प्रशासन किस हद तक गिर चुका है। विक्रम सिंह झुंझला चुका था। उसके सामने एक लड़की खड़ी थी, जिसने थप्पड़ खाए, बाल खिंचवाए, हाथ पकड़कर घसीटी गई, लेकिन फिर भी एक शब्द नहीं बोला। उसकी चुप्पी दरोगा के अहंकार को और भड़का रही थी।

दो सिपाहियों ने अनीता के दोनों हाथ पकड़ लिए और घसीटने लगे। पहली बार अनीता ने जोर से कहा, “छोड़ो मुझे!” दरोगा हँस पड़ा, “ओहो, अब जुबान खुली है तेरी। चल, थाने में देखेंगे कितना बोलती है।”

थाने पहुँचते ही विक्रम सिंह ने चिल्लाया, “अरे कोई चाय-पानी और समोसे लाओ। आज एक खास मामला आया है।” अनीता अब भी शांत खड़ी थीं। वे गौर से देख रही थीं कि आम जनता के साथ पुलिस कैसा व्यवहार करती है।

कुछ देर बाद विक्रम ने अपने अधीनस्थ को बुलाया, “सुन, किसी तरह इस पर कोई फर्जी मुकदमा बनाकर डाल दे।” सिपाही चौंक गया, “क्या मुकदमा साहब?” “कोई भी चोरी, लूट, डकैती—बस इसे अंदर डालना है। इसकी अक्ल ठिकाने लगानी है।”

अनीता सब सुन रही थीं, लेकिन अब भी चुप थीं। दरोगा ने नाम और पता पूछा, अनीता चुप रहीं। गुस्से में विक्रम सिंह ने मेज पर हाथ मारते हुए कहा, “नाम बता, वरना अंजाम बुरा होगा।” कुछ पल बाद अनीता ने धीमे स्वर में कहा, “अनीता।” दरोगा बोला, “बहुत चालाक है तू, लेकिन ज्यादा होशियारी मत दिखाना।”

सिपाही ने जबरन अनीता को हवालात में डाल दिया। हवालात गंदा और बदबूदार था। भीतर एक महिला पहले से बैठी थी। अनीता ने पूछा, “तुम्हें किस जुर्म में डाला है?” महिला बोली, “झूठे मुकदमे में फंसाया गया है।” “और तुझे?” “कुछ नहीं।”

अनीता सोचने लगीं, अगर एक उपजिलाधिकारी को बिना सबूत अंदर किया जा सकता है, तो आम जनता का क्या हाल होता होगा?

बाहर विक्रम सिंह ने सिपाहियों से कहा, “इस पर चोरी और धमकाने का मुकदमा डाल दो।” सिपाही हिचकिचाया, “साहब, बिना सबूत के?” “सबूत इस थाने में बनाए जाते हैं।”

कुछ देर बाद विक्रम सिंह खुद हवालात में पहुँचा। वह गुस्से में हाथ उठाकर अनीता को थप्पड़ मारने ही वाला था कि तभी दरवाजे से आवाज आई, “रुक जाओ!” सबकी नजरें दरवाजे की ओर घूमीं। वहाँ पुलिस अफसर रोहन लाल खड़ा था। उसकी छवि ईमानदार अधिकारी की थी।

रोहन ने हवालात में बंद महिलाओं की हालत देखी, चेहरे पर शिकन उभर आई। “यह सब क्या हो रहा है?” विक्रम सिंह बोला, “कुछ नहीं साहब, बस सड़क छाप लड़की ज्यादा होशियारी दिखा रही थी।” रोहन ने अनीता की तरफ गौर से देखा, उसके हावभाव साधारण नहीं थे। “इस महिला का जुर्म क्या है?” विक्रम सिंह हड़बड़ा गया, “जांच के दौरान बदतमीजी की थी।”

रोहन को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने सीधे अनीता से पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?” अनीता चुप रहीं। विक्रम सिंह बोला, “देखिए साहब, यह तो अपना नाम नहीं बता रही है।” रोहन समझ गया कि मामला गंभीर है। उसने आदेश दिया, “इसे दूसरे हवालात में डालो।”

अब अनीता और गहराई से सोच रही थीं। दीवारों पर मोटी नमी जमी थी। हर बीतते पल के साथ उनका यकीन पक्का हो रहा था कि कानून अब सिर्फ कागजों पर रह गया है।

इत्तेफाक से उसी दिन जिलाधिकारी राजेश वर्मा पुलिस थानों का दौरा कर रहे थे। अचानक एक सिपाही बोला, “साहब, बाहर सरकारी गाड़ी आई है।” दरोगा चौंक गया। जिलाधिकारी राजेश वर्मा ने थाने में कदम रखा। उनकी आँखों में गुस्से की चमक थी। उन्होंने सीधा दरोगा विक्रम सिंह की ओर देखा, “यहाँ क्या हो रहा है?”

विक्रम सिंह के पसीने छूट गए। “कुछ नहीं साहब, मामूली मुकदमा है।” जिलाधिकारी की नजर अनीता पर पड़ी। वे चौंक गए, “अरे मैडम, आप यहाँ इस हाल में?” उन्होंने मेज पर पड़ी फाइल उठाई—420 और ठगी का मुकदमा। “इस महिला पर 420 और ठगी का मुकदमा? सबूत क्या है?” विक्रम सिंह के पास कोई जवाब नहीं था।

जिलाधिकारी ने आदेश दिया, “इन्हें तुरंत हवालात से बाहर निकालो।” फिर विक्रम सिंह से बोले, “तुम्हें पता भी है यह महिला कौन है? यह इस जिले की नई उपजिलाधिकारी अनीता शर्मा हैं।” सुनते ही पूरे थाने में सन्नाटा छा गया। विक्रम सिंह के हाथ-पैर काँपने लगे।

अनीता ने जिलाधिकारी से कहा, “इस दरोगा ने मेरे ऊपर हाथ उठाया, बदतमीजी की और फर्जी मुकदमा डाला। हवालात में जो महिला बंद हैं, उन पर भी झूठा मुकदमा है।” जिलाधिकारी की आँखें गुस्से से लाल हो गईं। “क्यों दरोगा? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?”

विक्रम कुछ बोलने ही वाला था कि पुलिस अफसर रोहन लाल बोला, “मुझे पहले से शक था कि यहाँ कुछ गड़बड़ है।” अब विक्रम सिंह पूरी तरह अकेला पड़ चुका था। अनीता ने अपना असली रूप दिखाया। “दरोगा विक्रम सिंह, तुम्हें इसी वक्त निलंबित किया जाता है। विभागीय जांच और आपराधिक मुकदमा दर्ज होगा। अब तुम्हारी असली जगह जेल है। गिरफ्तार करो इसे।”

जिलाधिकारी ने भी आदेश दिया, “दरोगा विक्रम सिंह को तुरंत हिरासत में लो।” सिपाही आगे बढ़े, विक्रम सिंह को पकड़ लिया। उसके चेहरे का रंग उड़ चुका था।

लेकिन विक्रम ने आखिरी दांव खेला, “रुकिए मैडम, क्या आपको लगता है कि सिर्फ मैं ही भ्रष्ट हूँ? पूरा तंत्र मेरे साथ है। ऊपर तक कड़ियाँ जुड़ी हैं।” कई पुलिसकर्मी घबरा गए। अनीता ने जिलाधिकारी से कहा, “यह सिर्फ एक अफसर का मामला नहीं है। पूरे थाने की गहन जांच जरूरी है।”

जिलाधिकारी ने तुरंत आदेश दिया, “भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को बुलाओ।” टीम पहुँची, पूछताछ शुरू हुई। कई के चेहरे का रंग उड़ गया। एक हवलदार कांपते हुए बोला, “मैडम, मुझे माफ कर दीजिए। मैं तो सिर्फ आदेशों का पालन कर रहा था।” एक सिपाही डरते-डरते फाइल लेकर आया, “मैडम, हमारे बड़े साहब भी इसमें शामिल हैं।”

अनीता ने चौंककर पूछा, “कौन बड़े साहब?” “वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक साहब।” अब मामला और गहरा हो गया। जिलाधिकारी ने सख्त लहजे में कहा, “पूरा कर्मचारी वर्ग तत्काल निलंबित किया जाता है। विभागीय जांच होगी।”

अनीता ने कहा, “हमें वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से भी पूछताछ करनी होगी।” जिलाधिकारी ने आदेश दिया, “वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को बुलाओ।” पत्रकारों को खबर मिल गई, मामला पूरे जिले में फैल गया।

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पहुंचे, “यह क्या नाटक चल रहा है?” अनीता ने ठंडी, लेकिन दृढ़ आवाज में कहा, “क्या आपको लगता है कि आप बच जाएंगे?” उन्होंने फाइल उनके हाथों में थमा दी, “यह देखिए आपके सारे काले कारनामों के सबूत।” वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के चेहरे का रंग उड़ गया। जिलाधिकारी ने आदेश दिया, “गिरफ्तार करो।”

इतने बड़े अधिकारी की गिरफ्तारी का आदेश सुनकर पूरा पुलिस महकमा हिल गया। पहली बार किसी ने इतनी ऊँची कुर्सी पर बैठे अधिकारी को बेनकाब किया था। मामला राज्य स्तर तक पहुँच गया। मुख्यमंत्री ने आदेश दिया, “सभी भ्रष्ट अधिकारियों की सूची बनाओ और उन्हें गिरफ्तार करो।” 40 से ज्यादा पुलिस अधिकारी, 20 प्रशासनिक अफसर और कई बड़े राजनेता गिरफ्तार हो गए।

उपजिलाधिकारी अनीता शर्मा की ईमानदारी और साहस ने पूरे तंत्र को हिला दिया। जिले में नई प्रशासनिक टीम नियुक्त हुई, भ्रष्टाचार पर सख्ती से निगरानी रखी जाने लगी। अनीता ने अपना कर्तव्य पूरा किया। उन्होंने साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों तो ईमानदारी से पूरा तंत्र बदला जा सकता है।

कहानी की सीख:
हिम्मत और ईमानदारी से बड़ी कोई ताकत नहीं होती। जब इंसान सच्चाई का रास्ता चुनता है, तो बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, अंत में उसे झुकना ही पड़ता है।