कहानी: डीएम की मां का अपमान और न्याय की जीत

बिहार के एक जिले में डीएम नंदिनी अपनी ईमानदारी और सख्त प्रशासन के लिए जानी जाती थीं। लेकिन एक दिन उनकी मां साधारण कपड़ों में एक बड़े सरकारी बैंक में पैसे निकालने पहुंचीं। गरीब सी दिखती मां को वहां मौजूद बैंक अधिकारी और सुरक्षा गार्ड कविता ने भिखारी समझकर बुरी तरह अपमानित किया। किसी ने उनकी बात नहीं सुनी, उल्टा तिरस्कार किया और धक्का देकर बाहर निकाल दिया। सबको यही लगा कि ये महिला गरीब है, यहां क्या कर रही है?

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मां रोती-बिलखती घर लौटी और बेटी नंदिनी को फोन पर सब बता दिया। नंदिनी के दिल में आग सी लग गई। उन्होंने मां से कहा, “कल मैं खुद चलूंगी, और तुम्हारे साथ बैंक से पैसे निकालूंगी।”

अगले दिन नंदिनी ने भी साधारण साड़ी पहनकर मां के साथ बैंक जाने की तैयारी की। दोनों बैंक पहुंचे, वहां भी वही तिरस्कार, वही उपेक्षा। कविता ने फिर उन्हें बैठा दिया, बार-बार ताने मारे। नंदिनी ने शांति से सब सहा, लेकिन जब मैनेजर भी तिरस्कार करने लगा, तो उन्होंने अपना असली रूप दिखाया।

नंदिनी ने अपना परिचय नहीं दिया, बस एक लिफाफा टेबल पर रखकर बोली, “इसमें जो जानकारी है, एक बार जरूर पढ़ लें।” और मां का हाथ पकड़कर बाहर जाने लगीं। जाते-जाते उन्होंने चेतावनी दी, “इस व्यवहार का परिणाम तुम्हें भुगतना होगा। समय सब समझा देगा।”

अगले दिन वही मां बैंक आई, लेकिन अब अकेली नहीं थीं। उनके साथ सूट-बूट में चमकता अधिकारी था। पूरे बैंक की नजरें उन्हीं पर टिक गईं। महिला ने सीधा मैनेजर के सामने खड़े होकर कहा, “तुमने सिर्फ मुझे नहीं, मेरी तरह हजारों साधारण नागरिकों का अपमान किया है। अब समय है सजा भुगतने का।”

मैनेजर घबराया, पूछा — “तुम कौन हो?”
महिला मुस्कुराई, अधिकारी की ओर इशारा किया — “ये मेरे कानूनी सलाहकार हैं। और मैं नंदिनी, इस जिले की डीएम और इस बैंक की 8% शेयर धारक हूं। ये मेरी मां हैं, जिनके साथ तुमने बुरा व्यवहार किया।”

पूरा बैंक सन्नाटे में डूब गया। मैनेजर का चेहरा पीला पड़ गया। नंदिनी ने तबादले का आदेश और कारण बताओ नोटिस सामने रख दिया। “अब तुम्हारी पोस्टिंग फील्ड में होगी, जहां रोज साधारण लोगों से मिलकर रिपोर्ट बनानी होगी।”

कविता गार्ड भी डरते-डरते माफी मांगने आई। नंदिनी ने कहा, “कपड़ों से किसी को छोटा मत समझो। आज जो शिक्षा मिली, उसे जीवन भर याद रखना।”
बैंक के सारे कर्मचारी सिर झुकाए खड़े थे। नंदिनी ने कहा, “रास्ते से नहीं, सोच से इंसान बड़ा होता है। जो मानवता समझता है, वही सच्चा अधिकारी।”
फिर वे मां के साथ बैंक से बाहर चली गईं।

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