गांव का बेटा: अर्जुन वर्मा की कहानी
न्यूयॉर्क सिटी का एक चमचमाता कॉर्पोरेट ऑफिस। ऊँची कांच की दीवारें, बड़े-बड़े कंप्यूटर स्क्रीन, बिजनेस सूट पहने विदेशी लोग। हर कोई अपने-अपने काम में व्यस्त था। तभी अचानक सबकी नजर दरवाजे की ओर गई। दरवाजे से एक भारतीय युवक अंदर आया — अर्जुन वर्मा। उसने सादा सा, पुराना सूट पहना था और हाथ में एक पुराना बैग था।
ऑफिस के लोग उसे देखकर हंसने लगे। किसी ने धीरे से कहा, “लगता है सफाई वाला नया आया है।” दूसरे ने मजाक उड़ाया, “भाई, यह तो किसी गांव से आया है। इसे देखकर लगता नहीं कि यह यहां काम करने आया होगा।” अर्जुन चुप रहा। उसकी आंखों में मासूमियत थी, चेहरे पर थकान। वह धीरे-धीरे कमरे में आगे बढ़ा।
तभी पीछे से एक महिला मैनेजर गुस्से में बोली, “हे, व्हाट आर यू डूइंग हियर? दिस फ्लोर इज नॉट फॉर क्लीनिंग स्टाफ!” सब लोग हंस पड़े। किसी ने ताली बजाई, किसी ने मोबाइल से वीडियो बनाना शुरू कर दिया। अर्जुन समझ नहीं पा रहा था कि क्या कहे। वह खड़ा ही था कि उसी महिला ने गुस्से में पानी की बाल्टी उठाई और सीधा उसके ऊपर उड़ेल दी। छपाक! पानी में भीगते ही उसका सूट और भी बुरा लगने लगा। उसके बालों से पानी टपकने लगा। जूते में से आवाज आने लगी। ऑफिस के लोग तालियां बजा-बजा कर हंस रहे थे। एक आदमी बोला, “वेलकम टू अमेरिका, मिस्टर क्लीनर!” दूसरा बोला, “देखो, ऐसे लोग भी अब यहां नौकरी ढूंढने लग गए हैं!”
सभी के चेहरे पर हंसी थी, लेकिन अर्जुन की आंखों में सिर्फ खामोशी थी। वह कुछ नहीं बोला, सिर्फ झुककर अपने भीगे हुए कपड़े ठीक करने लगा। भीतर उसका दिल टूट चुका था। उसे उस पल में अपने गांव की मिट्टी, मां का चेहरा और वह दिन याद आया जब उसने सपना देखा था कि वह अमेरिका जाकर अपनी काबिलियत से दुनिया को दिखाएगा। उसे पता नहीं था कि इस सपने की शुरुआत इतनी कड़वी और अपमानजनक होगी।
अर्जुन भारत के एक छोटे से गांव से था। मिट्टी की खुशबू, खेतों में लहलहाती फसलें, सुबह-सुबह मंदिर की घंटियों की आवाज — यही था अर्जुन का बचपन। उसके पिता किसान थे, मां सिलाई का काम करती थी। पैसे कम थे, लेकिन सपने बड़े थे। पढ़ाई में अर्जुन हमेशा अव्वल रहा। गांव के मास्टर जी अक्सर कहते, “यह लड़का अगर गांव से निकल गया तो दुनिया बदल देगा।” अर्जुन ने दिन-रात मेहनत की — मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ा, खेतों में काम करने के बाद किताबें उठाई, कई बार भूखा भी रहा, लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी।
कई साल की मेहनत के बाद उसे मौका मिला — अमेरिका की एक टॉप टेक कंपनी में जॉब, जगह न्यूयॉर्क सिटी, पद — चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर (CTO)। यह सुनकर गांव में जैसे दिवाली मन गई। लोग कहते, “देखो, किसान का बेटा अब अमेरिका जाएगा!” मां रोते हुए बोली, “बेटा, वहां चाहे कितनी भी बड़ी कुर्सी मिले, हमेशा दिल से इंसान बने रहना।” अर्जुन ने प्रण लिया कि वह अमेरिका जाकर न सिर्फ अपने परिवार का नाम रोशन करेगा, बल्कि यह भी साबित करेगा कि गांव का बेटा दुनिया बदल सकता है।
न्यूयॉर्क का ऑफिस, ऊंची-ऊंची बिल्डिंग्स, चमकते शीशे और अंदर काम करते सैकड़ों लोग। हर कोई अंग्रेजी में बातें करता, फाइलें पलटता, कॉफी पीता। अर्जुन उसी ऑफिस में पहुंचा, लेकिन उसका पहनावा बहुत साधारण था। सूट पुराना था, बैग छोटा, चेहरा थका हुआ था क्योंकि वह सीधे फ्लाइट से आया था।
लोगों ने उसे देखा और हंसने लगे, “यह सफाई वाला लगता है, इतने बड़े ऑफिस में क्या कर रहा है?” एक महिला मैनेजर आगे बढ़ी, बोली, “हे, व्हाट आर यू डूइंग हियर? यू डोंट बिलोंग हियर!” अर्जुन कुछ बोल पाता, उससे पहले ही उसने पास रखी पानी की बाल्टी उठाई और जोर से उसके ऊपर उड़ेल दी। छपाक! पानी से भीगे हुए कपड़े और भी गंदे लगने लगे। ऑफिस के लोग ताली बजाने लगे, कोई वीडियो बनाने लगा, किसी ने मजाक उड़ाया, “वेलकम, मिस्टर क्लीनर!”
अर्जुन चुपचाप खड़ा रहा। चेहरे पर अपमान की चोट थी, आंखों में आंसू थे। वो सोच रहा था, “क्या यही है मेरा सपना? क्या मैं सच में सिर्फ एक सफाई वाला ही देखता हूं उन्हें?” उस रात अर्जुन अपने छोटे से रूम में अकेला बैठा था। भीगे कपड़े सुखा रहा था, लेकिन उसका दिल भीगा ही हुआ था। उसने मोबाइल निकाला और मां की तस्वीर देखी। मां की आवाज कानों में गूंजी, “बेटा, चाहे कुछ भी हो, हमेशा इंसानियत और धैर्य बनाए रखना।” अर्जुन की आंखों से आंसू बह निकले। वो सोच रहा था, “काश मां यहां होती। काश मैं सबको बता पाता कि मैं कौन हूं। लेकिन नहीं, मैं जल्द ही सच्चाई दिखाऊंगा।”
उसने आईने में खुद को देखा — भीगा हुआ चेहरा, थकी हुई आंखें। लेकिन भीतर कहीं आग जल रही थी। वह आग थी — अपने अपमान को ताकत में बदलने की। अर्जुन ने ठान लिया कि अगली सुबह वह उस ऑफिस में फिर जाएगा। लेकिन इस बार वह चुप नहीं रहेगा। इस बार वह सबको दिखाएगा कि असली पहचान कपड़ों से नहीं, काबिलियत से होती है।
अगली सुबह ऑफिस में हलचल थी। हर कोई इस चर्चा में था, “कल वाले नए सफाई वाले का क्या हाल हुआ था देखा? हां, उस पर पानी डालकर बहुत मजा आया!” लोग हंस-हंस कर बातें कर रहे थे। तभी ऑफिस के हॉल में बड़ी मीटिंग का ऐलान हुआ। सीईओ खुद आने वाले थे। कांच की दीवारों वाले कॉन्फ्रेंस रूम में सभी कर्मचारी इकट्ठा हो गए। लंबी-लंबी टेबल, सामने बड़ी स्क्रीन, और बीच में सीईओ मिस्टर एडवर्ड्स बैठे थे।
सीईओ ने खड़े होकर कहा, “आज मैं आपको हमारी कंपनी के नए चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर (CTO) से मिलवाने जा रहा हूं। यह व्यक्ति भारत से आए हैं। टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इनकी पहचान दुनिया भर में है। इनका काम हमारी कंपनी को अगले स्तर तक ले जाएगा।” सब लोग कान खड़े कर सुनने लगे, कमरा खामोश हो गया।
सीईओ ने मुस्कुराते हुए कहा, “कृपया स्वागत कीजिए — मिस्टर अर्जुन वर्मा!” दरवाजा खुला। अंदर वही शख्स आया — अर्जुन! वही, जिस पर कल पानी डाला गया था, जिसे सबने सफाई वाला समझकर हंसी उड़ाई थी। अब वो साफ-सुथरे फॉर्मल सूट में था, उसकी चाल में आत्मविश्वास था, चेहरे पर हल्की मुस्कान थी।
पूरा ऑफिस सन्नाटे में डूब गया, किसी के मुंह से आवाज तक नहीं निकली। वही महिला मैनेजर जिसकी आंखें झुक गई, बाकी कर्मचारी जो वीडियो बना रहे थे, सब शर्मिंदा होकर इधर-उधर देखने लगे।
सीईओ ने आगे कहा, “मिस्टर वर्मा कल ही भारत से यहां पहुंचे हैं। यह वही व्यक्ति हैं जिनकी वजह से कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने नई ऊंचाइयां छुई हैं। इनका रिसर्च पूरी दुनिया पढ़ती है।”
अब सबको समझ आया कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है। अर्जुन कॉन्फ्रेंस टेबल के पास पहुंचे। उन्होंने माइक उठाया, “कल जो कुछ हुआ, वो मैंने खुद महसूस किया। मुझे सफाई वाला समझकर अपमानित किया गया, मुझ पर पानी फेंका गया। लेकिन सच बताऊं, उस पल ने मुझे मेरी जड़ों की याद दिला दी।”
कमरे में हर कोई झुककर सुन रहा था। “मैं भारत के एक छोटे गांव से हूं। वहां मेरे पिता खेतों में काम करते थे। मैंने खुद खेतों में मजदूरी की है। मेरी मां ने दूसरों के कपड़े सीए ताकि मैं पढ़ सकूं। इसलिए जब आप मुझे सफाई वाला कहकर हंसे तो मुझे बुरा नहीं लगा। क्योंकि सफाई करने वाला, किसान, मजदूर — यह सब सम्मान के हकदार हैं।”
पूरा हॉल ताली की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। लोगों की आंखें नम हो गईं। वही लोग जो कल उस पर हंस रहे थे, आज गर्व से उसे देख रहे थे। महिला मैनेजर कांपते हुए खड़ी हुई, बोली, “मिस्टर वर्मा, मैं बहुत शर्मिंदा हूं। मैंने जो किया उसके लिए माफी मांगती हूं।” अर्जुन मुस्कुराए और बोले, “कोई बात नहीं। इंसान की पहचान उसकी गलती से नहीं, बल्कि गलती सुधारने से होती है।”
अर्जुन ने CTO का पद संभालने के बाद कंपनी में एक नई पहल शुरू की। उसने कहा, “इस ऑफिस में अब कोई छोटा या बड़ा काम नहीं होगा। सफाई कर्मचारी से लेकर सीईओ तक हर किसी को बराबर इज्जत मिलेगी।” उसने कंपनी में एक नया नियम लागू करवाया — “रिस्पेक्ट पॉलिसी”। अब हर कर्मचारी, चाहे वह किसी भी पद पर हो, उसे सम्मान के साथ संबोधित किया जाएगा।
धीरे-धीरे पूरा ऑफिस बदल गया। लोग अब सफाई कर्मचारियों को नमस्ते कहते, उनके साथ बैठकर खाना खाते। कंपनी का माहौल इंसानियत और सम्मान से भर गया। भारतीय CTO ने अमेरिका की कॉर्पोरेट दुनिया को बदल डाला।
गांव में लोग गर्व से कहते — “वह देखो, वही अर्जुन है, हमारा गांव का बेटा!”
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