गरीब लड़के ने बनाया हवा से चलने वाला अगले जनरेटर, मज़ाक उड़ाने वालों को जवाब मिला

“हवा से रोशनी: आरव यादव की उड़ान”
उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव बलरामपुर में एक धूल भरी दोपहर थी। गली के कोने पर बच्चे खेल रहे थे और पास की झोपड़ी से लोहे की आवाज बार-बार सुनाई दे रही थी। लोग आपस में कह रहे थे, “फिर वही लड़का कुछ जोड़तोड़ रहा है। पता नहीं क्या बनाता रहता है दिनभर।” वह लड़का था आरव यादव। उम्र सिर्फ 19 साल, पतला सा शरीर, लेकिन आंखों में अजीब सी चमक थी। घर की हालत ऐसी थी कि दीवारें ईंटों से ज्यादा उम्मीदों पर टिकी थीं। पिता रामेश्वर यादव खेतों में मजदूरी करते थे और मां लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा लगाती थीं। लेकिन आरव को किताबों और मशीनों का नशा था। जहां बाकी बच्चे मोबाइल पर गाने सुनते थे, वहीं वह पुराना रेडियो खोलकर उसके तार और पेंच निकाल लेता था। लोग उसे “पागल इंजीनियर” कहकर चिढ़ाते थे, मगर उसके भीतर कुछ ऐसा था जो बाकी नहीं देख पा रहे थे।
एक दिन गांव के स्कूल में बिजली चली गई। गर्मियों का दिन था, सब बच्चे पसीने में भीग रहे थे। टीचर बोले, “आरव, जा तो जरा देख कि ट्रांसफार्मर में क्या हुआ है?” वह गया। कुछ देर बाद लौटा और बोला, “सर, वायर जल गया है। लेकिन अगर हवा चले तो पंखा घूम सकता है।” टीचर हंस पड़े, “अरे हवा से बिजली बनती है क्या? तू भी ना?” आरव ने जवाब दिया, “बनती है सर, बस कोई कोशिश करे।” सारे बच्चे हंसने लगे, लेकिन उसी दिन उसने ठान लिया कि वह हवा से बिजली बनाएगा, चाहे लोग मजाक उड़ाए या उसे पागल कहें।
उसने अपने घर की पुरानी छत पर काम शुरू किया। कबाड़ से एक पुराना साइकिल का पहिया, एक टूटा फैन मोटर और कुछ तारें जुटाईं, जो उसने गांव के मेले में कबाड़ वाले से खरीदी थी। रात-दिन लगकर वह प्रयोग करता रहा। कभी-कभी तार जल जाते, कभी ब्लेड टूट जाते। पड़ोसी चिल्लाते, “आरव, यह सब छोड़ पढ़ाई कर, वरना जिंदगी भर यही कबाड़ जोड़ेगा।” लेकिन वह चुपचाप अपने काम में लगा रहा। हर असफल प्रयोग उसके अंदर कुछ नया सीखा जाता था। वह अक्सर कहता, “जब तक हवा चलती है, उम्मीद भी चलेगी।”
तीसरे महीने की एक रात, जब सब सो चुके थे, आरव अपनी झोपड़ी के ऊपर चढ़ा। वह थका हुआ था, लेकिन उसकी आंखों में उम्मीद थी। उसने अपनी बनाई हुई हवा से चलने वाली मशीन की ब्लेड को हल्का धक्का दिया। पहिए ने घूमना शुरू किया, धीरे-धीरे फिर तेजी से। उसने वोल्टमीटर लगाया। नीडल थोड़ी हिली और फिर स्थिर हो गई। 0.5 वोल्ट। फिर एक वोल्ट, फिर दो। उसका दिल धड़क उठा। उसने जल्दी से नीचे आकर अपनी बहन सिया से कहा, “दीदी, बल्ब दो।” सिया ने हंसते हुए पूछा, “क्या अब आसमान में बिजली जलाएगा?” आरव बोला, “नहीं, अपने घर में।” उसने पुराना बल्ब जोड़ा और पहली बार उनकी झोपड़ी में एक पीली रोशनी चमकी। मां रसोई से दौड़ी आई, पिता खेत से लौट रहे थे। आरव चिल्लाया, “देखो मां, हवा से बिजली आई है।” मां ने हाथ जोड़े, आंसू बह निकले। पिता ने बस एक शब्द कहा, “तू कर दिखाया बेटा।”
लेकिन कहानी यही खत्म नहीं हुई। अगले दिन जब उसने अपने स्कूल में यह मॉडल दिखाया, टीचर ने उसे देखकर हंसते हुए कहा, “अच्छा खिलौना बनाया है तूने।” आरव ने कहा, “यह खिलौना नहीं सर, सपना है।” टीचर ने मजाक में कहा, “तो फिर नासा को भेज दे, वहां शायद काम आ जाए।” क्लास में सब हंस पड़े। लेकिन किसी को क्या पता था कि यह मजाक कुछ ही महीनों बाद हकीकत बन जाएगा।
वो रात जब सब सो रहे थे, आरव अपने पुराने मोबाइल से वीडियो बना रहा था। उसने मशीन का डेमो रिकॉर्ड किया, कैसे बिना बिजली, बिना फ्यूल, सिर्फ हवा से बल्ब जल रहा था। उसने वो वीडियो YouTube पर अपलोड कर दिया। नाम रखा “माय विंड जनरेटर मेड फ्रॉम स्क्रैप”। उसे लगा कोई नहीं देखेगा। पर 10 दिन बाद जब वो खेत में था, मां ने दौड़कर कहा, “आरव, कोई अमेरिका से कॉल आया है।” वो हैरान रह गया। फोन उठाया। उधर से आवाज आई, “हेलो, इसी आरव यादव फ्रॉम इंडिया? दिस इज डेनियल फ्रॉम नासा रिन्यूएबल डिवीजन।” आरव के हाथ कांप गए। फोन पर आई अंग्रेजी आवाज सुनकर आरव कुछ पल के लिए सन्न रह गया। उसने झिझकते हुए कहा, “जी, मैं ही आरव बोल रहा हूं।” उधर से जवाब आया, “हमने आपका विंड जनरेटर वीडियो देखा। क्या आपने यह खुद बनाया है?” आरव की सांसें तेज हो गईं। उसने कांपती आवाज में कहा, “जी, मैंने कबाड़ के पुरजों से बनाया है, बस प्रयोग के लिए।” फोन पर कुछ सेकंड की खामोशी रही। फिर आवाज आई, “हम आपके काम में बहुत रुचि रखते हैं। हम इसे नासा इनोवेशन आउटरीच प्रोग्राम में शामिल करना चाहते हैं। क्या हम आपसे मिलने भारत आ सकते हैं?” आरव की आंखों से आंसू छलक पड़े। उसने कहा, “जी, मेरे गांव में आइए। यहां हवा हमेशा चलती है।”
उस शाम जब उसने पिता को यह बताया, रामेश्वर यादव कुछ देर तक चुप बैठे रहे। फिर बोले, “बेटा, लोग हंसते थे ना तुझ पर? अब तू सबको जवाब देगा।” मां ने उसे गले लगा लिया, “देख भगवान मेरे बेटे को उड़ान दे, बस पैर जमीन पर रखना।” पर गांव में जब यह बात फैली कि नासा वाला लड़का तो लोगों ने फिर मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। “अरे भाई, नासा तू टीवी पर आता है, यह गांव में क्या करेगा?” लड़का झूठ बोल रहा है। YouTube वाला नाटक है। कोई हंस रहा था, कोई शक कर रहा था। लेकिन आरव शांत था। वह जानता था जवाब बोलकर नहीं, काम करके देना है।
तीन हफ्ते बाद गांव की गलियों में पहली बार एक सफेद SUV और विदेशी लोग दिखाई दिए। लोग चौक से लेकर तालाब तक निकल आए देखने। गाड़ियों से उतरे तीन लोग, एक महिला वैज्ञानिक, एक कैमरा टीम और एक दुभाषिया। “आर यू आरव यादव?” “जी मैं ही हूं।” महिला मुस्कुराई, “मैं सारा हूं, नासा के रिन्यूएबल एनर्जी रिसर्च से। वी केम टू सी योर मॉडल।” भीड़ में सन्नाटा फैल गया। वो “पागल इंजीनियर” अब वैज्ञानिकों के बीच खड़ा था। आरव उन्हें अपनी झोपड़ी की छत पर ले गया, जहां वह साइकिल के पहिए वाला जनरेटर लगाया हुआ था। धूप में ब्लेड धीरे-धीरे घूम रहे थे और नीचे एक छोटा बल्ब लगातार चल रहा था। सारा ने अपने नोटपैड में कुछ लिखा, फिर बोली, “दिस इज रिमार्केबल। यू यूज्ड मिनिमल रिसोर्सेज बट अचीव्ड एफिशिएंसी।” आरव समझ नहीं पाया तो दुभाषिया ने कहा, “वह कह रही हैं कि आपने कम साधनों में बड़ा काम कर दिखाया।” गांव के बच्चे खड़े होकर ताली बजाने लगे। वह वही बच्चे थे जो कभी उसका मजाक उड़ाते थे। सारा ने कहा, “आरव, वी वांट टू टेक योर डिजाइन फॉर टेस्टिंग इन आवर लैब्स इन द यूएस। वी विल मेंशन योर नेम ऐज द इन्वेंटर।”
आरव की आंखों से आंसू निकल आए। उसने बस एक वाक्य कहा, “मैडम, मैं सिर्फ चाहता हूं कि मेरे गांव में भी कभी बिजली पूरी रात रहे।” सारा ने मुस्कुरा कर कहा, “एंड इट विल। यू मेड इट पॉसिबल।” नासा टीम के जाने के बाद गांव में माहौल बदल गया। वही लोग जो कहते थे, “यह लड़का कुछ नहीं कर सकता।” अब उसी के घर आकर कहते, “आरव, हमें भी सिखा दे बेटा। बच्चों को यह मशीन दिखानी है।” किसी ने उसके पिता से कहा, “भैया अब तो तुम्हारा बेटा गांव का गौरव है।” पिता ने गर्व से कहा, “मेरा बेटा तो पहले भी था, बस अब दुनिया ने देख लिया।”
कुछ ही महीनों में नासा ने उसकी मशीन का मॉडल अपने न्यू जर्सी लैब में टेस्ट किया। और फिर एक दिन भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय से आरव को चिट्ठी मिली। “आपका आविष्कार भारत के ग्रामीण ऊर्जा मॉडल में शामिल किया जा रहा है।” गांव में पहली बार अखबार वाला खबर लेकर आया, “गांव के लड़के की खोज पर नासा की मुहर।” आरव का नाम अखबार के पहले पन्ने पर था। लेकिन आरव का सफर यहीं खत्म नहीं हुआ। उसने अपने जनरेटर को बड़ा रूप देने की ठानी ताकि हर गांव, हर झोपड़ी में बिना खर्च बिजली पहुंच सके। उसने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक नई मशीन बनाई, जो सिर्फ हवा नहीं बल्कि सांसों की तरह चलने वाली थी। बिना रुकावट, बिना फ्यूल। रात में जब वो छत पर बैठा तो उसकी छोटी बहन ने पूछा, “भैया, अब तो नासा ने तेरा नाम ले लिया। तू खुश है?” आरव मुस्कुराया, “खुश हूं दीदी, पर अब सपना और बड़ा है।” “कैसा सपना?” “अब मैं चाहता हूं कोई और गरीब बच्चा भी अपने घर की छत पर रोशनी जला सके, बिना किसी के मजाक के डर के।”
6 महीने बीत चुके थे। आरव अब भी उसी मिट्टी वाले आंगन में बैठकर अपने जनरेटर के नए मॉडल पर काम कर रहा था। लेकिन इस बार उसके पास पुराना कबाड़ नहीं, बल्कि एक सपोर्ट टीम और संसाधन थे। भारत सरकार और नासा दोनों ने उसके काम को फंड देने का ऐलान किया था। एक सुबह डाकिया फिर आया, हाथ में एक नीले रंग का लिफाफा था, जिस पर लिखा था “इनविटेशन ग्लोबल रिन्यूएबल एनर्जी कॉन्फ्रेंस, वाशिंगटन डीसी”। आरव ने कांपते हाथों से चिट्ठी खोली। लिखा था, “मिस्टर आरव यादव, आपको आमंत्रित किया जाता है कि आप अपना विंड पावर फ्रॉम स्क्रैप मॉडल नासा मुख्यालय में प्रस्तुत करें।” उसके हाथ कांप रहे थे, आंखें भर आईं। वह मां के पास भागा, चिट्ठी दिखाते हुए बोला, “मां, अब मैं सच में अमेरिका जा रहा हूं।” मां ने कहा, “मुझे तो पहले से पता था बेटा, हवा तेरे साथ है।”
गांव में फिर चहल-पहल मच गई। लोग अब फोटो खिंचवाने आने लगे। पंडिता जी ने कहा, “यह लड़का तो गांव का तारा है।” और जो कभी कहते थे “पागल है, दिन भर पेच कसता रहता है” वह अब गर्व से कहते, “वो मेरा पड़ोसी है।” आरव पहली बार हवाई जहाज में बैठा, दिल धड़क रहा था, पर आंखों में शांति थी। वो खिड़की से बादलों को देख रहा था, सोच रहा था, “कभी इन बादलों को देखकर सपने बनाता था, आज उन्हीं के ऊपर उड़ रहा हूं।”
वाशिंगटन डीसी में जब वह पहुंचा तो दर्जनों देशों के वैज्ञानिक पहले से मौजूद थे। जापान, जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका। सभी के पास महंगे उपकरण, कंप्यूटर और मॉडल, और आरव के पास एक पुराना साइकिल वाला जनरेटर, जो उसने अपने हाथों से बनाया था। सम्मेलन के दिन हॉल खचाखच भरा था। घोषक ने कहा, “नेक्स्ट फ्रॉम इंडिया, मिस्टर आरव यादव, द यंग इनोवेटर हू मेड विंड पावर पॉसिबल फ्रॉम वेस्ट।” स्पॉटलाइट आरव पर पड़ी। वो धीरे-धीरे मंच पर पहुंचा। शर्ट का कॉलर ठीक किया, मां का दिया ताबीज जेब में महसूस किया और बोला, “जब मेरे गांव में बिजली नहीं आती थी, तो मैंने सोचा क्यों ना हवा से रोशनी बनाई जाए। सब ने हंस दिया, कहा तू पागल है। पर मैंने सोचा, पागलपन ही तो दुनिया बदलता है।”
हॉल में खामोशी छा गई। हर आंख उस साधारण से लड़के पर टिकी थी। उसने अपना छोटा सा जनरेटर चालू किया। ब्लेड घूमे और स्क्रीन पर बल्ब जल उठा।
समाप्त
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