कहानी: प्लेटफार्म की रात – रिश्ते, पछतावा और नई शुरुआत

रेलवे स्टेशन की ठंडी रात थी। प्लेटफार्म पर पीली रोशनी के नीचे ठंडी हवा और भी सर्द लग रही थी। लोग जल्दी-जल्दी ट्रेन पकड़ने में व्यस्त थे। कोई चाय की दुकान पर खड़ा था तो कोई अपने परिवार के साथ सामान ढो रहा था। भीड़ के बीच एक कोने में जमीन पर बिछे पुराने कंबल पर एक औरत सो रही थी। उसके चेहरे पर थकान की गहरी लकीरें थीं। कपड़े मैले-कुचैले और शरीर कपपा रहा था। राहगीरों की निगाहें उस पर कुछ पल टिकतीं और फिर आगे बढ़ जातीं।

इसी समय स्टेशन पर एक चमचमाती कार रुकी। उससे उतरा एक शख्स – महंगे कपड़े पहने, हाथ में सूटकेस और आंखों में जीत का भाव। वो सालों बाद विदेश से अपने शहर लौट रहा था। जैसे ही उसकी नजर उस सोती हुई औरत पर पड़ी, उसके कदम वही थम गए। दिल की धड़कन तेज हो गई। वो औरत कोई अजनबी नहीं थी बल्कि उसकी अपनी पत्नी थी। वही पत्नी जिसे उसने सालों पहले छोड़ दिया था। उसके होठ सूख गए। गला भारी हो गया और हाथ कांपने लगे।

लोग ट्रेन पकड़ने की जल्दी में थे। लेकिन इस आदमी की दुनिया जैसे रुक गई थी। सवाल उठ रहा था – आखिर एक पत्नी जो कभी उसके साथ सपनों का घर बसाना चाहती थी, अब इस हालात में रेलवे प्लेटफार्म पर क्यों सो रही थी? और क्या वो पति अब उसके पास जाएगा या चुपचाप भीड़ में गुम हो जाएगा?

उसका नाम था अर्जुन। छोटे शहर से निकला, बड़े सपनों का पीछा करता हुआ। बचपन से ही उसने गरीबी देखी थी। कभी किताबों की जगह ईंटें ढोनी पड़ीं, कभी पेट भरने के लिए मजदूरी करनी पड़ी। उसने कसम खाई थी कि वो बड़ा आदमी बनेगा और किसी के आगे हाथ नहीं फैलाएगा। कॉलेज खत्म होते ही उसे विदेश जाने का मौका मिला। यही सपना उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद बन गया।

शादी हुई थी सीमा से। सीमा साधारण घर की लड़की थी, लेकिन दिल बहुत बड़ा था। अर्जुन के संघर्ष में वो हर कदम साथ खड़ी रही। घर के खर्च चलाने के लिए ट्यूशन पढ़ाई, कभी कपड़े सिले तो कभी दूसरों के बच्चों की देखभाल की। उसकी आंखों में सिर्फ यही सपना था कि उसका पति लौटेगा और दोनों मिलकर एक नई जिंदगी शुरू करेंगे। लेकिन किस्मत ने अलग खेल खेला। विदेश पहुंचने के बाद अर्जुन धीरे-धीरे बदलने लगा। नए लोगों से मिला, ऊंचे सपनों और दौलत की चकाचौंध में उसका दिल फंस गया। उसने पत्नी को चिट्ठियों में कम लिखना शुरू किया। फोन पर बातें भी कम हो गईं। पैसा भेजना तो कभी-कभी कर देता, लेकिन रिश्ते में ठंडापन बढ़ता गया।

सीमा इंतजार करती रही। हर त्यौहार पर आंखें दरवाजे की ओर लगी रहतीं कि शायद आज पति आएगा। लेकिन साल गुजरते गए। मोहल्ले वाले बातें बनाने लगे – “तुम्हारा पति शायद अब लौटेगा नहीं।” मगर सीमा ने विश्वास नहीं छोड़ा। उसने उम्मीद की डोर पकड़े रखी। फिर एक दिन अचानक से अर्जुन ने आना बंद कर दिया। ना चिट्ठी, ना फोन, ना पैसे। सीमा टूट गई। धीरे-धीरे घर खर्च खत्म हो गया। रिश्तेदार भी मुंह मोड़ने लगे। मजबूरी में उसे छोटे-मोटे काम करने पड़े। लेकिन हालात बिगड़ते चले गए। आज उसी संघर्ष ने उसे इस रेलवे प्लेटफार्म तक पहुंचा दिया था। वही सीमा जो कभी घर सजाती थी, अब खुले आसमान के नीचे कंबल ओढ़कर सोने को मजबूर थी।

दूसरी ओर था अर्जुन। विदेश से लौटकर एक सफल बिजनेसमैन, जिसके पास सब कुछ था। लेकिन जब उसने अपनी पत्नी को इस हाल में देखा तो जिंदगी की असली जीत–हार का एहसास होने लगा। अर्जुन की आंखें बार-बार उस कंबल के नीचे सोई सीमा पर टिक रही थीं। मन में अपराध बोध का तूफान उठ रहा था। उसने सोचा – क्या लोग पहचान लेंगे? अगर किसी ने देख लिया कि उसकी पत्नी इस हालत में है, तो उसकी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। लेकिन फिर दिल ने कहा – इज्जत से बड़ी इंसानियत है।

अर्जुन का मन अतीत की गलियों में भटकने लगा। उसे याद आया जब शादी के कुछ महीने बाद उसने सीमा से कहा था – “बस कुछ साल रुक जाओ, मैं लौट कर सब बदल दूंगा।” लेकिन लौटने की बजाय उसने दूरी बना ली। विदेश में उसने पैसा कमाया, बड़े घर लिए, लेकिन अपने रिश्ते को दरकिनार कर दिया। वो सोच रहा था – क्या सीमा ने दूसरी शादी की? क्या उसके बच्चे हैं या उसने सारी जिंदगी अकेले ही गुजार दी? सवाल उसे अंदर तक तोड़ रहे थे।

अर्जुन प्लेटफार्म पर खड़ा रहा, लेकिन कदम आगे नहीं बढ़ा पा रहा था। तभी एक बुजुर्ग महिला आई और सोई हुई सीमा के पास बैठ गई। उसने अपना थैला खोला और आधी रोटी सीमा के सिरहाने रख दी। उस औरत की आंखों में दया थी। अर्जुन ने देखा, सीमा नींद से हिली। रोटी उठाई और अपने पास सोए एक छोटे से बच्चे को खिलाने लगी। अर्जुन की सांस रुक गई। बच्चे को देखते ही उसका दिल जोर से धड़क उठा। क्या यह उसका बच्चा है? क्या सीमा ने अकेले ही उसे पाला है? बच्चे के चेहरे में कहीं ना कहीं अर्जुन की झलक थी। आंखों का रंग, मासूम मुस्कान – सब उसी जैसा।

उस पल अर्जुन की पूरी दुनिया बदल गई। विदेश में कमाई हुई दौलत, महंगे कपड़े, बड़ा घर – सब बेईमानी लगने लगा। उसने सोचा – मैंने पैसे कमाने के लिए सब छोड़ा, लेकिन असली खुशी तो यही थी। भीड़ में खड़ा अर्जुन कांप रहा था। अब सवाल यह था – क्या वह आगे जाकर सीमा और बच्चे के सामने खड़ा होगा या अपनी गलती से भाग जाएगा?

अर्जुन ने कांपते हाथों से बैग जमीन पर रखा और धीरे-धीरे सीमा की ओर बढ़ा। दिल की धड़कन इतनी तेज थी जैसे अभी फट जाएगी। पास जाकर उसने देखा – सीमा बच्चे को गोद में लेकर लोरी गा रही थी। चेहरे पर थकान थी, लेकिन आंखों में ममता की चमक। अर्जुन की आंखों से आंसू निकल आए। वो और बर्दाश्त नहीं कर पाया। वो घुटनों पर गिर पड़ा। लोग हैरानी से देखने लगे – एक अमीर आदमी प्लेटफार्म पर एक औरत के पैरों में गिरा हुआ था।

सीमा ने चौंक कर ऊपर देखा। उसकी आंखों ने अर्जुन को पहचान लिया। एक पल के लिए जैसे समय थम गया। वही पति था जिसे उसने सालों तक याद किया था। वही चेहरा, लेकिन अब उसकी आंखों में पछतावे का सागर था। सीमा का दिल पिघल गया, लेकिन जख्म भी गहरे थे। उसने कुछ नहीं कहा, बस बच्चे को सीने से और कस लिया।

भीड़ खामोश खड़ी थी, मानो किसी फिल्म का सीन सामने हो। अर्जुन ने रोते हुए बच्चे की तरफ हाथ बढ़ाया। बच्चा मुस्कुराया, जैसे उसे अपने पिता की पहचान हो गई हो। वह पल इतना गहरा था कि प्लेटफार्म पर खड़े हर अजनबी की आंखें भर आईं।

अर्जुन ने उसी रात फैसला लिया कि अब वह अपनी गलती सुधारेगा। उसने सीमा और बच्चे को उठाया और होटल ले गया। पहली बार उसे एहसास हुआ कि जिंदगी की असली दौलत परिवार है, ना कि विदेश की चकाचौंध।

कुछ दिनों बाद अर्जुन ने पूरे मोहल्ले के सामने सीमा को अपने घर ले जाकर सम्मान दिया। उसने सबके सामने माना कि गलती उसी की थी। सीमा ने आसानी से माफ नहीं किया, लेकिन उसने देखा कि अर्जुन का पछतावा सच्चा है। धीरे-धीरे उनके रिश्ते में दरारें भरने लगीं। बच्चे ने पहली बार पिता का हाथ पकड़ा और मासूम आवाज में कहा, “पापा।” उस एक शब्द ने अर्जुन की आत्मा को झकझोर दिया।

यह कहानी सिर्फ एक औरत की मजबूरी या एक आदमी की गलती की नहीं थी। यह इंसानियत, रिश्तों और सच्चे पछतावे की कहानी थी। आज भी कई औरतें प्लेटफार्म पर, सड़कों पर, मंदिरों के बाहर संघर्ष कर रही हैं। कोई उनका साथ छोड़ गया, कोई समाज ने किनारा कर लिया। सवाल यह है – क्या हम उन्हें यूं ही अनदेखा कर देंगे या आगे बढ़कर इंसानियत का हाथ थामेंगे? क्योंकि अंत में जिंदगी की असली जीत दौलत से नहीं, बल्कि रिश्तों को संभालने से होती है।