करोड़पति की बेटी ने झोपड़ी में बिताई रात, सुबह जो सच सामने आया उसने सबको हैरान कर दिया!
एक रात की मेहमान – भावुक हिंदी कहानी
शांतिनगर एक छोटा सा शहर था। उसी शहर की एक तंग गली के किनारे एक पुरानी सी झोपड़ी थी, जिसमें रहती थीं माया देवी – एक बूढ़ी और बीमार मां, अपने दो बेटों अर्जुन और विक्रम के साथ। दोनों बेटे अपनी मां से बेइंतहा प्यार करते थे। दिन-रात मेहनत मजदूरी करके जो भी कमाते, वह मां के इलाज में खर्च कर देते। पहले उनका एक छोटा सा घर था, लेकिन माया देवी की बीमारी ने उनकी सारी जमा-पूंजी निगल ली थी और अब वे इस छोटी सी झोपड़ी में रहने को मजबूर थे।
उनकी झोपड़ी के पास गली के लोग बड़े दिल वाले थे। कोई माया देवी के लिए खाना ले आता, कोई चाय का पैकेट दे जाता। बारिश में जब उनकी झोपड़ी टपकने लगती, तो गली वाले मिलकर उसे ठीक कर देते। इसी तरह उनकी जिंदगी चल रही थी।
झोपड़ी से थोड़ी दूर एक चमचमाता फाइव स्टार होटल था, जहां शहर के अमीर लोग खाने-पीने का मजा लेने आया करते थे। एक दिन एक बड़े बिजनेसमैन राजेश मेहता अपनी पत्नी और 25 साल की बेटी अनन्या के साथ इस होटल में आए। अनन्या बेहद खूबसूरत थी, लेकिन उसकी मानसिक हालत ठीक नहीं थी। भीड़-भाड़ और तेज आवाज से उसकी तबीयत बिगड़ जाती थी। इसलिए उसके माता-पिता उसे गाड़ी में ही छोड़कर होटल के अंदर चले गए। राजेश ने थोड़ी देर बाद अनन्या के लिए खाना गाड़ी तक पहुंचाया और वापस लौट गए।
लेकिन तभी होटल में दो लोगों के बीच जोरदार झगड़ा शुरू हो गया। लोग तमाशा देखने लगे और अफरातफरी में अनन्या ने गाड़ी का दरवाजा खोला और बाहर निकल गई। जब राजेश ने देखा कि अनन्या गाड़ी में नहीं है, तो उनके होश उड़ गए। वे चारों तरफ उसे ढूंढने लगे, लेकिन अनन्या कहीं नहीं थी।
अनन्या अपनी बीमारी की वजह से बिना किसी दिशा के शहर की गलियों में भटकने लगी। उसे नहीं पता था कि वह कहां जा रही है। उसकी बीमारी ऐसी थी कि तेज आवाज या भीड़ उसे परेशान कर देती थी। उसके माता-पिता ने उसका बहुत इलाज करवाया था, लेकिन डॉक्टरों ने साफ कह दिया था कि यह बीमारी पूरी तरह ठीक नहीं हो सकती।
भटकते-भटकते अनन्या उसी गली में पहुंच गई, जहां अर्जुन और विक्रम की झोपड़ी थी। एक खूबसूरत लड़की को इस तरह अकेले गली में देखकर लोग हैरान रह गए। अनन्या ने एक-एक करके हर घर का दरवाजा खटखटाया और धीमी आवाज में कहा, “मुझे बस एक रात के लिए अपने घर में जगह दे दो। मैं कुछ गलत नहीं करूंगी।” लेकिन उसकी बातों में चोरी शब्द सुनकर लोग डर गए। कुछ ने उसे पागल समझा, तो कुछ ने चोर। एक-एक करके सभी ने उसे अपने घर में रखने से मना कर दिया।
आखिरकार अनन्या उस आखिरी घर तक पहुंची, जहां रमेश रहता था। उसने वही बात दोहराई, लेकिन रमेश ने भी डर के मारे मना कर दिया। अनन्या चुपचाप सिर झुकाकर आगे बढ़ गई। रमेश को अंदर ही अंदर एक अजीब सी बेचैनी होने लगी। उसने बाहर देखा तो गली के सारे लोग अपने घरों से निकल आए थे। सबके मन में एक ही सवाल था – यह लड़की कौन थी, इतनी रात को यहां क्या कर रही थी? लोग आपस में बातें करने लगे। कुछ को शक हुआ कि शायद यह लड़की किसी गलत इरादे से आई हो।
आखिरकार सब ने फैसला किया कि इसे अपने हाल पर छोड़ देना ही बेहतर है। यह कहकर सभी अपने-अपने घर लौट गए और दरवाजे बंद कर लिए। अब अनन्या बिल्कुल अकेली थी। ठंडी रात में डरते-डरते वह आगे बढ़ती रही। भटकते-भटकते वह उस झोपड़ी के पास पहुंच गई, जहां माया देवी और उनके बेटे रहते थे। झोपड़ी के अंदर हल्की सी रोशनी जल रही थी। अनन्या ने सोचा शायद यह भी किसी का घर है।
उसने हिम्मत जुटाई और झोपड़ी के पास जाकर आवाज लगाई। झोपड़ी का दरवाजा कोई मजबूत लकड़ी का नहीं था, बस एक पुराना सा पर्दा था, जो ठंडी हवा को रोकने के लिए दबाया गया था। अर्जुन ने पर्दा हटाया और पूछा, “हां, क्या बात है?” अनन्या ने कांपती आवाज में कहा, “मुझे बस एक रात के लिए अपने घर में जगह दे दो, मैं कुछ गलत नहीं करूंगी।”
अर्जुन उसकी बात सुनकर हैरान रह गया। उसने अपनी मां की तरफ देखा, जो झोपड़ी के कोने में लेटी थी। माया देवी ने भी यह सुना और तुरंत पूछा, “बेटी, तुम कौन हो? कहां से आए हो? क्या परेशानी है?” लेकिन अनन्या कुछ नहीं बता पाई। वह बार-बार वही बात दोहराती रही, “मुझे बस रात भर के लिए जगह दे दो।”
माया देवी उलझन में पड़ गईं। उन्होंने कहा, “बेटी, हमारा खुद का गुजारा मुश्किल से हो रहा है, हम तुम्हें कहां सुलाएं?” यह सुनकर अनन्या चुपचाप जाने लगी। लेकिन तभी अर्जुन ने उसे रोक लिया। उसने अपनी मां की तरफ देखा और कहा, “मां, कोई बात नहीं, यह ठंड में कहां भटकेगी? इसे अंदर आने दो। मैं बाहर अलाव के पास बैठ जाऊंगा।”
माया देवी पहले तो हिचकिचाई, लेकिन फिर मान गईं। अर्जुन ने अनन्या को झोपड़ी में बुलाया और अपने बिस्तर पर लेटने को कहा। उसका छोटा भाई विक्रम गहरी नींद में सो रहा था। रात भर अर्जुन बाहर अलाव के पास बैठकर आग तापता रहा। अंदर माया देवी अनन्या से कई सवाल पूछती रही, लेकिन अनन्या कोई जवाब नहीं दे पाई। माया देवी समझ गईं कि यह लड़की मानसिक रूप से ठीक नहीं है। लेकिन उसके कपड़े देखकर लग रहा था कि वह किसी अच्छे घर से है।
सुबह हुई, विक्रम जल्दी उठ गया। उसने बाहर देखा तो अर्जुन अलाव के पास बैठा था, लेकिन उसका बिस्तर खाली नहीं था। वो हैरान होकर बोला, “भैया, अगर तू यहां है तो तेरे बिस्तर पर कौन सो रहा है?” अर्जुन ने उसे रात की पूरी कहानी सुनाई। विक्रम भी सोच में पड़ गया। दोनों भाई अब समझ नहीं पा रहे थे कि आगे क्या करें।
तभी उन्हें गली में रहने वाला उनका पड़ोसी कमल आता दिखा। अर्जुन ने उसे रोका और कहा, “कमल भैया, क्या आपके पास फोन है? हमें पुलिस को खबर करनी है।” कमल ने हैरानी से पूछा, “क्यों, क्या हुआ?” अर्जुन ने पूरी कहानी बताई। कमल ने झोपड़ी में झांक कर अनन्या को देखा और चौंक गया, “अरे, यह तो वही लड़की है जो रात भर गली में दरवाजे खटखटा रही थी। मैं भी डर गया था और इसे अंदर नहीं आने दिया।”
कमल को अब अपनी गलती का एहसास हुआ। उसे अफसोस हुआ कि उसने एक लाचार लड़की की मदद नहीं की। लेकिन फिर उसने सोचा, अगर वह उसे अपने घर में रख लेता और कुछ गलत हो जाता तो लोग उसे ही दोषी ठहराते। अर्जुन ने कमल के फोन से पुलिस को खबर की और बताया कि एक लड़की रात भर गली में भटक रही थी और अब वह उनकी झोपड़ी में सुरक्षित है।
उधर अनन्या के माता-पिता ने भी रात में ही थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। वे एक होटल में ठहरे थे, इस उम्मीद में कि सुबह तक कोई खबर मिल जाएगी। जैसे ही पुलिस को अर्जुन का फोन आया, उन्होंने तुरंत अनन्या के माता-पिता को खबर की और लोकेशन भेज दी।
कुछ ही देर में पुलिस की गाड़ी वहां पहुंच गई। अनन्या के माता-पिता भी भागते हुए आए। गली के कुछ लोग भी यह तमाशा देखने इकट्ठा हो गए। अनन्या के पिता राजेश ने जैसे ही अपनी बेटी को देखा, उनकी आंखों में आंसू छलक आए। अनन्या भी उन्हें देखते ही दौड़कर उनके गले लग गई और फूट-फूट कर रोने लगी, “पापा, आप कहां चले गए थे? मुझे बहुत डर लग रहा था। सबने मुझे अपने घर से भगा दिया, सिर्फ इन्होंने मुझे पनाह दी।”
उसकी बातें सुनकर राजेश की आंखों से भी आंसू बहने लगे। अनन्या की मां ने उसे गले से लगा लिया और रोते हुए उसे चुप कराने लगीं। राजेश ने अर्जुन और माया देवी को दिल से धन्यवाद दिया। लेकिन जब उन्होंने उनकी झोपड़ी और उनकी हालत देखी, तो वे चुप हो गए। उन्हें एहसास हुआ कि ये लोग कितनी मुश्किल में जी रहे हैं।
राजेश ने अर्जुन से पूछा, “बेटा, अगर मैं तुम्हें एक अच्छा काम दूं, जिससे तुम्हारी मां का इलाज हो सके, तो क्या तुम करोगे?” अर्जुन थोड़ी देर चुप रहा, फिर धीरे से बोला, “साहब, जो भी काम होगा मैं कर लूंगा, बस मेरी मां ठीक हो जाए।”
राजेश ने कहा, “तुम्हें और तुम्हारी मां को मेरे साथ चलना होगा। तुमने मेरी बेटी की मदद की, अब मैं तुम्हारी मां का इलाज करवाऊंगा। बदले में तुम्हें बस अनन्या का ख्याल रखना होगा।”
अर्जुन कुछ सोचने लगा, लेकिन माया देवी ने उसकी आंखों में झांक कर सच्चाई समझ ली। उन्होंने धीरे से सिर हिलाया। गली के लोग भी कहने लगे, “अर्जुन, जब अच्छा मौका मिल रहा है और तुम्हारी मां भी ठीक हो जाएगी, तो इसमें क्या हर्ज है। चले जाओ।”
इसके बाद राजेश, अर्जुन और माया देवी को अपने घर ले गए। उनके बड़े से बंगले में उन्होंने मां-बेटे को रहने की जगह दी। राजेश ने कहा, “देखो बेटा, बस मेरी बेटी का ख्याल रखना, यह कहीं इधर-उधर ना भटके, यही मेरी इच्छा है। बदले में मैं तुम्हारी मां का पूरा इलाज करवाऊंगा।”
अर्जुन ने सिर झुका कर कहा, “साहब, आप मेरी मां को ठीक करवा दीजिए, मैं आपकी बेटी का पूरा ध्यान रखूंगा।” समय बीतता गया। अनन्या की देखभाल करते-करते अर्जुन उसे अच्छे से समझने लगा। अनन्या भी अब पहले से बेहतर महसूस करने लगी थी। धीरे-धीरे अर्जुन को एहसास हुआ कि उसे अनन्या से लगाव हो गया है। उसकी मासूमियत, उसकी बातें सब उसे अच्छा लगने लगा। एक दिन उसे लगा कि वह अनन्या से प्यार करने लगा है।
उधर अनन्या की हालत में सुधार हो रहा था और उसे भी अर्जुन अच्छा लगने लगा था। लेकिन जैसे ही माया देवी की तबीयत पूरी तरह ठीक हुई, अर्जुन ने जाने की बात कही। यह सुनते ही अनन्या बेचैन हो गई। उसने अपने पिता से जिद की, “पापा, अर्जुन को यही रोक लीजिए।” अर्जुन के मन में भी अनन्या के लिए जगह बन चुकी थी, लेकिन वह कह नहीं पा रहा था। उसके चेहरे के हावभाव सब कुछ बयान कर रहे थे। राजेश यह सब समझ गए। उन्होंने मुस्कुराते हुए अर्जुन से पूछा, “बेटा, क्या तुम मेरी बेटी का जीवन भर ख्याल रख सकते हो?”
अर्जुन ने बिना हिचक कहा, “साहब, मैं अनन्या को हमेशा खुश रखूंगा और उसका पूरा ध्यान रखूंगा।”
बस फिर क्या था? राजेश ने धूमधाम से अर्जुन और अनन्या की शादी करवा दी। जब अनन्या की हालत ठीक नहीं थी, तब लाखों रुपए देने के बावजूद कोई उससे शादी को तैयार नहीं था। लेकिन अर्जुन ने बिना किसी स्वार्थ के उसकी मदद की थी। अब अर्जुन, अनन्या और माया देवी उसी बंगले में रहने लगे। अर्जुन पूरी ईमानदारी से अनन्या का ख्याल रखता और उनके बीच प्यार बढ़ता गया।
कुछ महीनों बाद अनन्या ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया। पूरे परिवार में खुशियां छा गईं। राजेश और उनकी पत्नी, माया देवी और विक्रम सब खुशी से झूम उठे। राजेश ने विक्रम के लिए भी एक अच्छा काम शुरू करवाया। विक्रम ने मेहनत की और जल्द ही आर्थिक रूप से मजबूत हो गया। माया देवी कभी अर्जुन के पास रहती तो कभी विक्रम के पास।
समय बीता और एक दिन अर्जुन, अनन्या और उनका बेटा एक बड़ी गाड़ी में उसी शांतिनगर की गली में लौटे, जहां कभी उनकी झोपड़ी थी। गली के लोग हैरान रह गए, “अरे, यह तो वही अर्जुन है जो कभी एक गरीब लड़का था। अब वो इतना सफल और खुशहाल कैसे?” अर्जुन ने उन सभी लोगों की मदद शुरू की, जिन्होंने कभी उनके बुरे वक्त में साथ दिया था।
दोस्तों, एक रात की मेहमान बनी अनन्या ने अर्जुन और उसके परिवार की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी।
सीख:
कभी-कभी किसी की छोटी सी मदद, किसी की पूरी दुनिया बदल सकती है।
रिश्तों का असली अर्थ है – इंसानियत, प्यार और भरोसा।
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राधे-राधे।
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