करीना देवी और डीएम बेटी सरिता की कहानी – न्याय की जीत

सड़क किनारे एक पुराने ठेले पर करीना देवी बड़े ध्यान से अंडों की ट्रे सजा रही थीं। चेहरे पर थकान थी, लेकिन रोज़ी-रोटी कमाने का हौसला उनकी आँखों में साफ़ झलक रहा था। करीना देवी की इकलौती बेटी उसी जिले में जिलाधिकारी (डीएम) के पद पर तैनात थी। सरकारी कामकाज की व्यस्तता में बेटी को यह अंदाज़ा भी नहीं था कि उसकी मां किन हालात में अपना जीवन गुजार रही है।

एक दिन, करीना देवी चुपचाप अंडे बेच रही थीं, तभी एक इंस्पेक्टर राकेश वर्मा मोटरसाइकिल से आया। उसने गुस्से में बाइक सड़क किनारे रोकी और बोला, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई सड़क किनारे अंडे का ठेला लगाने की? तुम्हारे चलते यहाँ जाम लग सकता है। जल्दी से अपना ठेला हटाओ!” इतना कहकर इंस्पेक्टर ने ठेले पर जोर से लात मार दी और अंडों की ट्रे उठाकर जमीन पर फेंक दी। दर्जनों अंडे फुटकर इधर-उधर बिखर गए। टूटे अंडों की गंध हवा में फैल गई, लोग रुककर तमाशा देखने लगे।

इंस्पेक्टर और भड़क कर चिल्लाया, “यह तुम्हारे बाप की सड़क है क्या? जहाँ मन किया खड़ी हो गई बेचने! अगर बेचना है तो अपनी जगह पर बेचो!” करीना देवी चुपचाप अपमान सहती रहीं। उनकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उन्होंने बिना कुछ कहे जमीन पर गिरे कुछ बचे अंडे उठाने शुरू कर दिए। भीड़ में खड़े लोग सिर्फ तमाशा देख रहे थे, किसी ने मदद नहीं की। भीड़ में एक लड़की थी, जो सोशल मीडिया पर मशहूर थी। उसने मोबाइल निकाली और पूरा वाकया रिकॉर्ड करने लगी।

करीना देवी मन ही मन सोच रही थीं, “अगर बेटी को यह सब पता चल गया तो ना जाने क्या हो जाएगा।” आँसू लिए कुछ बचे अंडे वापस ठेले पर रखकर वह धीरे-धीरे घर की ओर चल पड़ीं। उधर जिस लड़की ने वीडियो बनाई थी, उसने उसे घर पहुंचकर सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। कैप्शन में लिखा, “इस बूढ़ी औरत की कोई गलती नहीं थी, लेकिन इंस्पेक्टर ने इसकी अंडे से भरी ट्रे उठाकर जमीन पर फेंक दी और सड़क पर लोगों के बीच बेइज्जत किया। क्या यह सही है?”

वीडियो तेजी से वायरल हो गया। लोग शेयर करने लगे, कमेंट करने लगे। हर कोई इस घटना को गलत बता रहा था। कुछ देर बाद यह वीडियो डीएम सरिता के मोबाइल में पहुंचा। वीडियो देखते ही उसका खून खौल उठा। वह सोच भी नहीं सकती थी कि उसकी मां के साथ ऐसा बर्ताव हुआ है। लोगों के सामने बेइज्जत किया गया, थप्पड़ तक मारा गया।

सरिता ने तुरंत वीडियो अपनी फोन में सेव की और मन में संकल्प लिया, “मां के साथ जो हुआ, वो मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। उसे उसकी औकात दिखानी ही पड़ेगी।”
सरिता ने अपनी वर्दी उतारी और पीले रंग का सलवार सूट पहन लिया। अब वह एक साधारण गांव की लड़की लग रही थी। अपनी कार में बैठकर कुछ ही घंटों में घर पहुंच गई। घर पहुंचते ही दरवाजा खटखटाया। करीना देवी किचन में सब्जियां काट रही थीं। आवाज सुनकर उन्होंने पुकारा, “कौन है?”
“मैं हूं मां, सरिता लौट आई हूं आपसे मिलने।”

आवाज़ सुनते ही करीना देवी के हाथ रुक गए। आँखों में नमी आ गई। उनके मन में डर भी था कि कहीं सरिता को इस घटना का पता तो नहीं चल गया। उन्होंने जल्दी से दरवाजा खोला। बेटी को देखते ही मां-बेटी गले लग गईं। जैसे सालों की दूरी एक पल में मिट गई हो।

सरिता ने पूछा, “मां, आपके साथ जो हुआ आपने मुझे क्यों नहीं बताया? यह बहुत गलत है। मैं उस इंस्पेक्टर को सस्पेंड करवा कर ही मानूंगी। उसने कानून के खिलाफ किया है और मैं उसे दिखाऊंगी कि कानून की ताकत क्या होती है।”
करीना देवी ने डरते-डरते कहा, “बेटा छोड़ो, पुलिस वाले हैं। क्या हो गया अगर उसने ऐसी बातें कर दी? जाने दो।”
सरिता ने सख्ती से कहा, “नहीं मां, आप चुप रहिए। मैं जानती हूं मुझे क्या करना है। उसने जो किया उसकी सजा उसे जरूर मिलेगी।”

इतना कहकर सरिता ने लाल रंग की सलवार सूट पहनी, साधारण गांव की लड़की की तरह तैयार हुई और सीधे थाने की ओर निकल पड़ी। यह वहीं थाना था जहां इंस्पेक्टर राकेश वर्मा तैनात था।
थाने पहुंचकर देखा, राकेश वहाँ मौजूद नहीं था। केवल कुछ हवलदार और एसएओ संदीप सिंह बैठे थे।
सरिता सीधे संदीप सिंह के पास गई और बोली, “मुझे इंस्पेक्टर राकेश वर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवानी है। उन्होंने मेरी मां के साथ सड़क पर बदतमीजी की, अंडे के ठेले को तोड़ डाला, सारे अंडे जमीन पर फेंक दिए, थप्पड़ मारा और लोगों के सामने अपमानित किया। मैं चाहती हूं कि उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।”

संदीप सिंह चौंक कर बोला, “क्या इंस्पेक्टर राकेश वर्मा के खिलाफ रिपोर्ट? और तुम कौन होती हो रिपोर्ट लिखवाने वाली? क्या तुम उस बूढ़ी औरत की बेटी हो? तुम्हें लगता है कि मैं अपने इंस्पेक्टर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर लूंगा? उन्होंने कोई गलत नहीं किया और अगर थप्पड़ मार भी दिया तो क्या हुआ? वह सड़क पर ठेले लगाकर अंडे बेच रही थी, गलत तो वहीं थी।”

सरिता की आंखों में गुस्सा भड़क उठा। “हमें कानून मत सिखाइए। हमने कानून पढ़ा है और अच्छी तरह जानते हैं कि इसमें क्या लिखा है। मैं उसी कानून की मदद से उसे सजा दिलवाऊंगी। अगर आपने रिपोर्ट नहीं लिखी तो मैं आपके खिलाफ भी एक्शन लूंगी।”

संदीप सिंह हैरान रह गया। यह साधारण सी गांव की लड़की इतनी आत्मविश्वास से और बिना डरे बात कर रही थी जैसे कोई बड़ी ताकत उसके पीछे हो।
वो बोला, “तुम कौन हो? और तुम्हारी इतनी औकात कि हमें सस्पेंड करवाओगी। हम चाहे तो अभी तुम्हें अंदर करवा सकते हैं।”
सरिता उसकी आंखों में सीधा देखते हुए कोई जवाब नहीं दिया, बस हल्की मुस्कान के साथ कुर्सी पर बैठी रही। उसकी चुप्पी ने माहौल को और भारी कर दिया।

इंस्पेक्टर ने सोचा, यह लड़की डरी क्यों नहीं? वह फिर गरजा, “चुप क्यों हो? जवाब दो!”
सरिता ने शांत लेकिन ठंडी आवाज में कहा, “समय आने पर सब पता चल जाएगा। और जब पता चलेगा तब तुम्हें माफी मांगने का भी मौका नहीं मिलेगा।”
उसकी दृढ़ता देखकर इंस्पेक्टर पल भर को सकपका गया। लेकिन अपनी अकड़ बनाए रखने के लिए हंसी उड़ाते हुए बोला, “अरे, बड़ी फिल्मी डायलॉग मारती हो? निकलो यहाँ से।”

इतनी बात हो रही थी कि तभी इंस्पेक्टर राकेश वर्मा अंदर आया। लड़की को देखकर उसने हल्की मुस्कान के साथ पूछा, “क्या बात है? क्या करने आई हो?”
वह सीधे सरिता के सामने खड़ा हो गया। सरिता के मन में गुस्से का तूफान था, लेकिन वह कानून की इज्जत करती थी, इसलिए सिर्फ बोली, “याद रखना, मैं तुम्हें सस्पेंड करवा कर रहूंगी। तुम्हें कानून में रहने का कोई हक नहीं। मेरे शब्द तुम्हारे लिए बहुत भारी पड़ेंगे।”
इतना सुनते ही इंस्पेक्टर राकेश गुस्से से आग बबूला हो गया और सरिता को एक थप्पड़ जड़ दिया, बोला, “आखिर तू होती कौन है मुझे सस्पेंड करने वाली?”
उसको धक्का देकर थाने से निकाल दिया।
यह सब देखकर अंदर खड़े सभी सिपाही सरिता पर हंसने लगे, बोले, “बड़ी आई थी अंडे बेचने वाली भिखारिन की बेटी इंस्पेक्टर को सस्पेंड करने! देखो कैसे सिर झुका कर जा रही है!”

सरिता अपने आप से संकल्प करती है कि वह इन्हें छोड़ेगी नहीं।

**अगली सुबह का नजारा पूरे शहर के लिए हैरान कर देने वाला था।**
सड़क पर सायरनों की गूंज फैल गई। पुलिस जीपें सबसे आगे रास्ता साफ करती हुई चल रही थीं। उनके पीछे डीएम की शाही गाड़ी और सुरक्षा घेरे में अन्य वाहन थे।
जैसे ही काफिला थाने के मुख्य दरवाजे पर रुका, गाड़ियों के दरवाजे खुले। डीएम सरिता अपनी चमकदार आधिकारिक वर्दी पहने, टोपी सिर पर सटी हुई गाड़ी से उतरी।
उनके साथ बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी दोनों ओर खड़े हो गए।
थाने के बरामदे में खड़े वही सिपाही जो कल तक उस पर हंस रहे थे, अब पत्थर के बुत बन गए।
इंस्पेक्टर राकेश अपने डेस्क पर बैठा था, संदीप सिंह उसके बगल में खड़ा था।
उनको अंदाजा नहीं था कि आज उनका सबसे बुरा दिन आने वाला है।

सरिता ने ठंडी लेकिन बेहद सख्त आवाज में कहा, “क्या हुआ, चेहरे का रंग क्यों उतर गया? तुम दोनों को याद है, कुछ दिन पहले मेरी मां के साथ भरे बाजार में बदसलूकी और जब मैं रिपोर्ट लिखवाने आई तो तुमने यहीं से धक्के मारकर निकाला था मुझे। आज उसी दरवाजे से वापस आई हूं। फर्क बस इतना है कि अब मैं इस थाने में डीएम की वर्दी में आई हूं और कल मैं सादे कपड़े में आई थी।”

राकेश वर्मा और संदीप सिंह के पास कोई जवाब नहीं था।
सरिता ने कहा, “आपने एक पुलिस अधिकारी की गरिमा को ठेस पहुंचाई है। आपने जिस तरह से मेरी मां के साथ व्यवहार किया, वह अमानवीय और अक्षम्य है। तुम्हारे खिलाफ विभागीय जांच की जाएगी और मैं सुनिश्चित करूंगी कि तुम्हें कड़ी से कड़ी सजा मिले।”

राकेश वर्मा गिड़गिड़ाते हुए बोला, “मैडम, प्लीज मुझे माफ कर दीजिए। मेरी नौकरी चली जाएगी, मैं गरीब आदमी हूं।”
सरिता ने उसकी एक ना सुनी, “जब आप मेरी मां को पीट रहे थे तब आपको याद नहीं आया कि वे गरीब हैं? जब आप उनकी मेहनत को रौंद रहे थे तब आपको दया नहीं आई?”

सरिता ने अपने बगल में खड़े एएसपी से सख्त लहजे में कहा, “एसपी साहब, अभी के अभी इंस्पेक्टर राकेश वर्मा और संदीप सिंह को निलंबन के आदेश जारी करें।”
एसपी ने तुरंत आदेश लिखे और साइन कर दिए।
आदेश सुनते ही राकेश और संदीप का चेहरा सफेद पड़ गया।
सरिता ने आगे कहा, “वर्दी उतारो और अपनी सर्विस रिवाल्वर जमा करो।”
भारी कदमों से दोनों ने वर्दी के सितारे खोले, बेल्ट उतारी और रिवाल्वर मेज पर रख दी। उसी वक्त उन्हें थाने से बाहर कर दिया गया।

यह खबर आग की तरह पूरे शहर में फैल गई।
बाजार के दुकानदार, मोहल्ले के लोग सबको पता चला कि वही इंस्पेक्टर राकेश, जिसने सड़क किनारे अंडे बेच रही करीना देवी को बेइज्जत किया था, आज निलंबित हो गया है।
लोगों के चेहरों पर संतोष और खुशी साफ झलक रही थी।
सब ने डीएम सरिता की हिम्मत और न्याय के लिए उनकी लड़ाई की जमकर सराहना की।

करीना देवी की आँखों में भी चमक आ गई। उन्हें लगा जैसे उनके साथ हुए अपमान का बदला मिल गया हो।
सरिता ने मां के साथ कुछ दिन बिताए और अपनी मां को अपने साथ लेकर अपने पोस्टिंग पर चली गई।
सरिता ने स्थानीय पुलिस को सख्त आदेश दिए कि पूरे इलाके में छोटे दुकानदारों और रेहड़ी-ठेले वालों को सुरक्षा दी जाए और कोई भी अधिकारी या कर्मचारी उनके साथ दुर्व्यवहार करने की हिम्मत ना करे।

इंस्पेक्टर राकेश वर्मा के खिलाफ विभागीय जांच शुरू हुई। जांच में उसके खिलाफ ठोस सबूत मिले। नतीजतन, उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया और उस पर आपराधिक मामला भी दर्ज कर दिया गया। उसने अपनी गलती मान ली, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

यह कहानी सिर्फ एक इंस्पेक्टर के निलंबन की नहीं थी, यह न्याय की जीत की कहानी थी।
एक बेटी के अपने माता के प्रति अटूट प्रेम, साहस और सच्चाई के लिए डटकर लड़ने का प्रमाण थी।
यह घटना पूरे शहर के लिए एक सीख बन गई कि वर्दी का असली सम्मान तभी है जब उसे ईमानदारी और जनता की सेवा के लिए पहना जाए।
सत्ता का दुरुपयोग कभी सफल नहीं होता और अंत में सच्चाई और न्याय की ही जीत होती है।

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