कहानी: इज्जत, इंसानियत और किस्मत की सच्ची जीत

दिल्ली के एक पौश इलाके में राजीव मल्होत्रा का आलीशान बंगला था। महंगी गाड़ियाँ, जगमगाती पार्टियाँ और अखबारों में छपता नाम—यह थी उसकी दुनिया। लेकिन इस चमक-धमक के पीछे उसकी पत्नी सुनीता की आँखों में एक गहरा दर्द छिपा था।

सुनीता सात साल पहले इस घर में आई थी—सीधी-सादी, संस्कारी लड़की। उसके लिए शादी प्यार, साथ और परिवार की खुशियों का नाम था। वह हर सुबह घर संभालती, राजीव के लिए चाय बनाती, रात को उसके लौटने का इंतजार करती। लेकिन राजीव के लिए शादी सिर्फ एक वारिस पैदा करने का सौदा थी। साल दर साल बीतते गए, लेकिन सुनीता मां नहीं बन सकी। राजीव का व्यवहार बदलने लगा—पहले ताने, फिर गुस्सा, आखिर में तिरस्कार।

सुनीता हर रात चुपके से रोती। डॉक्टरों के पास जाती, दवाइयाँ खाती, पर रिपोर्ट्स हमेशा कहती सब ठीक है। फिर भी राजीव उसे ही दोष देता। एक पार्टी में, सबके सामने उसने सुनीता को बांझ कहकर अपमानित कर दिया। सुनीता पत्थर की मूर्ति बन गई, आँखों से आँसू बहने लगे। रात को उसने कांपती आवाज में कहा, “राजीव, मैं भी मां बनने का सपना देखती हूँ। डॉक्टर कहते हैं, सब ठीक है। कमी शायद हम दोनों में हो सकती है।” राजीव ने गुस्से में चिल्लाया, “बस बहाने मत बनाओ! 7 साल हो गए, तुम मुझे एक वारिस भी नहीं दे पाई।” और उसने सुनीता को घर से निकाल दिया।

सुनीता ने आँसू पोंछे, आखिरी बार उस घर को देखा और बाहर निकल गई। उसका मन टूटा था, लेकिन कहीं एक छोटी सी उम्मीद थी। थक हारकर वह अपनी बचपन की सहेली अनीता के घर पहुँची। अनीता ने उसे गले लगाया, सुनीता फूट-फूटकर रो पड़ी। अगले दिन अनीता उसे अस्पताल ले गई। डॉक्टर ने सारे टेस्ट कराए। दो दिन बाद रिपोर्ट आई—”समस्या आपके पति की तरफ से है, सुनीता जी। आप माँ बन सकती हैं।” सुनीता की आँखों में राहत के आँसू थे। उसने ठान लिया—अब मैं किसी पर निर्भर नहीं रहूँगी।

अनीता की मदद से सुनीता ने एक छोटा सा ढाबा शुरू किया। शुरू में मुश्किलें आईं, लेकिन उसकी मेहनत और सच्चाई ने लोगों का दिल जीत लिया। ढाबा चल निकला, सुनीता अपने पैरों पर खड़ी हो गई। लेकिन रात को अकेलापन उसे कचोटता। एक दिन ढाबे पर अजय नाम का युवक आया। उसकी सादगी और विनम्रता ने सुनीता का दिल छू लिया। धीरे-धीरे अजय रोज आने लगा, मदद करने लगा। एक दिन उसने कहा, “मैं तुम्हारा बोझ बाँटना चाहता हूँ।” सुनीता ने डरते-डरते उसका हाथ थामा। कुछ महीनों बाद दोनों ने सादगी से शादी कर ली।

शादी के बाद सुनीता ने अपने शरीर में बदलाव महसूस किया। डॉक्टर ने बताया—वह गर्भवती है। असली चमत्कार तब हुआ, जब सुनीता को पता चला कि वह तीन बच्चों की माँ बनने जा रही है। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जिस औरत को कभी बांझ कहा गया था, वही अब तीन बच्चों की माँ थी।

दूसरी ओर, राजीव ने अपनी इज्जत वापस पाने के लिए भव्य शादी करने का फैसला किया। उसने अपनी पूर्व पत्नी सुनीता को भी बुलाया, ताकि सबके सामने उसे शर्मिंदा कर सके। शादी के दिन, सबकी निगाहें उस पर थीं। तभी एक चमचमाती रोल्स रॉयस से सुनीता उतरी—गोद में तीन बच्चे और साथ में अजय। उसकी साड़ी में शालीनता, चेहरे पर आत्मविश्वास। मेहमान हैरान रह गए—जिसे कभी बांझ कहकर निकाला गया था, वही तीन बच्चों की माँ बनकर सामने थी।

नेहा, जो राजीव से शादी करने वाली थी, गुस्से से बोली, “असली कमी तो तुम में थी!” और मंडप छोड़कर चली गई। हॉल में तालियाँ गूँज उठीं। राजीव शर्म से सिर झुकाए खड़ा रह गया। उसने सुनीता से माफी माँगी। सुनीता ने मुस्कुराकर कहा, “मैंने तुम्हें बहुत पहले माफ कर दिया, लेकिन इज्जत और प्यार पैसों से नहीं खरीदे जा सकते।”

कुछ ही समय में राजीव का कारोबार भी गिरने लगा, लोग उससे दूर होने लगे। वह करोड़पति था, लेकिन भीतर से पूरी तरह टूट चुका था। दूसरी ओर, सुनीता और अजय के घर में बच्चों की किलकारियाँ गूँजतीं, ढाबा फलता-फूलता। सुनीता आसमान की ओर देखकर कहती, “भगवान ने मुझे हर परीक्षा दी, लेकिन एक सच्चा साथी और माँ बनने का सुख देकर मेरा हर घाव भर दिया।”