कहानी: “सौम्या – उम्मीद की नई सुबह”
जब रात का अंधेरा धीरे-धीरे अपने सिर से उतरकर सुबह के उजास में बदलने लगा, शहर की सड़कें हल्की-हल्की चहल-पहल से भरने लगी थीं। हर कोई अपने-अपने सपनों के पीछे भाग रहा था। इन्हीं दौड़ती-भागती आवाज़ों और रंगीन भीड़ में कई अधूरी कहानियां भी खो जाती हैं। ऐसी ही भीड़ का एक हिस्सा था—तेजस, 30 साल का युवा, जिसकी आंखों में सपनों की चमक थी, पर दिल पर ज़िम्मेदारियों का बोझ। उसके पास बहुत कुछ था—अच्छी नौकरी, आरामदायक जीवन, समाज में इज़्ज़त। लेकिन उसे अपनी जिंदगी में कुछ अधूरा सा लगता था—क्या मैं सिर्फ ऑफिस, घर, और पैसों तक ही सीमित रह जाऊंगा? क्या कभी किसी की मदद करके उसकी दुनिया बदलने का मौका मिलेगा?
वह दिन भी आम था, तेजस रोज़ की तरह गाड़ी से ऑफिस निकल पड़ा। उसे मॉल से थोड़ा सामान लेना था, इसलिए उसने गाड़ी रोकी। बाहर आते हुए उसकी नजर बस स्टैंड पर बैठी एक युवती पर पड़ी। वह लड़की मासूम थी पर चेहरे पर उदासी की परछाई थी। उसकी आंखें कुछ कहना चाहती थी, पर पता नहीं क्यों, सबसे छुपा रही थी। उसके हाथ में एक पुराना बैग था, मानो सारी दुनिया उस बैग में समाई हो। तेजस के भीतर के संवेदनशील इंसान ने उसे पास जाने के लिए विवश कर दिया।
तेजस ने सहजता से पूछा—”मैडम, सब ठीक है, इतनी उदास क्यों हैं?” लड़की ने चौंक कर उसे देखा, और पहली बार किसी ने उसकी व्यथा को महसूस किया हो वैसा लगा। कुछ देर चुप रही, फिर बोली—”कुछ नहीं सर, बस यूं ही।”
लेकिन तेजस जान गया था कि यूं ही के पीछे कोई कहानी है। उसने फिर धैर्य से पूछा—”अगर कोई परेशानी हो तो बताइए, क्या पता मैं आपकी मदद कर सकूं।” लड़की ने थोड़ी झिझक के बाद अपना नाम बताया—”मैं सौम्या हूं।” उसकी आवाज में मासूमियत के साथ निश्छलता थी। धीरे-धीरे बात बढ़ी और सौम्या ने अपनी अधूरी कहानी सुनाई।
उसका परिवार गांव में रहता था, पिता दिहाड़ी मजदूर, माँ दूसरों के घरों में बर्तन मांजती थी। बचपन से ही गरीबी उसकी परछाईं थी। फिर भी पढ़ाई में वह हमेशा आगे रही, कॉलेज में मेरिट लिस्ट में नाम रहा। लेकिन बेहतर डिग्रियों के बावजूद, नौकरी नहीं मिली। परिवार की मजबूरी ने उसे शहर की ओर भेजा—आशा थी कि कोई छोटी-मोटी नौकरी मिल जाएगी, जिससे घरवालों का सहारा बन सके।
तेजस उसकी संघर्ष कथा सुनकर भीतर तक द्रवित हो गया। उसने पूछा—”क्या आपके पास सर्टिफिकेट हैं?” सौम्या ने तुरंत बैग से प्रमाणपत्र, मार्कशीट्स, और मेरिट लिस्ट निकालकर दिखाया। तेजस हैरान था—इतनी मेहनती लड़की और उतनी ही संघर्षमय किस्मत!
फिर तेजस ने ठान लिया—अब सौम्या अकेली नहीं रहेगी। “आइए, मेरे ऑफिस चलिए, वहां आपको अवसर मिलेगा,” तेजस ने आत्मीयता से कहा। पहले तो सौम्या को डर लगा, लेकिन तेजस की सच्चाई ने उसे आश्वस्त कर दिया। वह तेजस के साथ चली गई। तेजस का ऑफिस बहुत बड़ा नहीं था, बल्कि एक छोटा-सा सामाजिक-सांस्कृतिक केंद्र था, जहां युवा प्रशिक्षण पाते और समाजोपयोगी प्रोजेक्ट्स पर काम करते। वहां कई लड़के-लड़कियां कंप्यूटर चलाना, खाता-बही संभालना जैसे काम सीख रहे थे।
तेजस ने सबके सामने सौम्या का परिचय कराया, “यह हैं सौम्या, कठिन हालात में भी पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं, अब यहां काम और प्रशिक्षण लेंगी।” सौम्या पहले संकोच में थी, लेकिन तेजस के प्रोत्साहन और टीम के साथ वह धीरे-धीरे तैयार हो गई। कंप्यूटर, ऑफिस के छोटे-बड़े काम उसने लगन से सीखे। कुछ हफ्तों में ही अपनी मेहनत से वह सबकी चहेती बन गई।
कुछ माह बाद तेजस ने कहा, “अब तुम हमारे साथ काफी आगे बढ़ चुकी हो, मैं चाहता हूं कि तुम शहर के बड़े अस्पताल के अकाउंट डिपार्टमेंट में ट्राय दो।” सौम्या को विश्वास नहीं हुआ कि उसके लिए ऐसा मौका आएगा। उसने डर के साथ पूछा, “क्या मैं यह कर पाऊंगी?” तेजस ने कहा, “तुम्हारी मेहनत और प्रतिभा तुम्हारे असली ताकत हैं। विश्वास रखो।”
जल्द ही सौम्या को लाइफ केयर हॉस्पिटल में बिल काउंटिंग विभाग में काम मिल गया। वहां माहौल पूरी तरह नया था—कुछ लोग उसके साधारण पहनावे का मजाक भी उड़ाते, लेकिन सौम्या ने कभी हार नहीं मानी—उसकी ईमानदारी और मेहनत से सभी प्रभावित होते गए। पहली तनख्वाह में उसने मां को फोन किया—”अब तुमको दूसरों के घर काम करने की ज़रूरत नहीं।” मां की आंखें नम थीं, बेटी की सफलता का गर्व झलक रहा था।
एक दिन अस्पताल में सड़क हादसे का शिकार युवक आया, उसके साथ आई गरीब मां दवाईयों और इलाज के लिए बिलखती रही। अस्पताल का नियम था—पैसा जमा बिना इलाज शुरू नहीं होगा। भीड़ में किसी ने उसे नहीं सुना। उसी समय सौम्या के भीतर अपनी मां के पुराने संघर्षों की यादें जाग उठीं। उसने अपनी पूरी तनख्वाह उस महिला की मदद में दे दी—”जीवन सबसे बड़ा खर्च है, बाकी सब इंतजार कर सकते हैं।”
इस कदम ने पूरे अस्पताल में उसे नायक बना दिया। स्टाफ, मरीज, डॉक्टर—सभी उसकी इंसानियत के कायल हो गए। उसके माता-पिता को जब खबर मिली कि बेटी ने अपनी कमाई किसी अजनबी की जान बचाने में लगा दी, तो पिता ने कहा—”गरीबी सोच को नहीं, सिर्फ जेब को छोटा करती है, बेटी… तू हमारी शान है।”
समय बीतता गया। सौम्या की पदोन्नति हुई, तनख्वाह बढ़ी, परिवार शहर आ गया। फिर अचानक किस्मत ने परीक्षा ली—पिता की तबीयत बहुत बिगड़ गई, महंगा ऑपरेशन अनिवार्य था। पहले की ज्यादातर कमाई दूसरों की मदद में जा चुकी थी। लेकिन इस बार अस्पताल और सारे सहकर्मी उसकी मदद के लिए खुद आगे आए—कई लोगों ने अपना वेतन दिया, डॉक्टर्स ने फीस कम की, तेजस साथ खड़ा रहा। ऑपरेशन सफल रहा—परिवार में फिर हंसी और उम्मीद लौट आई।
अब सौम्या ने प्रण किया—जैसे तेजस ने उसे सहारा दिया, वह भी समाज के हर जरूरतमंद को सहारा देगी। तेजस के साथ उसने एक छोटा सा संगठन शुरू किया, जहां गरीब और संघर्षरत नौजवानों को मुफ्त प्रशिक्षण दिया जाने लगा। कंप्यूटर, खाता-बही, संवाद कलाओं की ट्रेनिंग और हौसला—हर कोने में उम्मीद के नए दीप जलने लगे।
पांच साल बाद, संस्थान की सालगिरह पर, मंच से सौम्या ने कहा— “हमारी असली जीत तब होती है जब हमारी उपलब्धियां किसी और की ज़िंदगी में रोशनी भर दें। अगर मेरी मेहनत और छोटे-छोटे कदम किसी को आगे बढ़ा सकें, तो उससे बड़ी उपलब्धि कोई नहीं।”
सभागार तालियों से गूंजा, तेजस की आंखें गीली थीं। उसे गर्व था कि वह लड़की, जिसे कभी बस स्टैंड पर अकेले देखा था, आज समाज के लिए नज़ीर बन गई है।
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