चौराहे पर सुनील और समोसे का ठेला – एक इंसानियत भरी कहानी (हिंदी में)
मुंबई के एक व्यस्त चौराहे पर सुनील रोज की तरह अपने छोटे से ठेले पर समोसे बेच रहा था। उस दिन मौसम कुछ बदला हुआ था – आसमान में काले बादल, तेज हवा और बारिश की टप-टप गिरती बूंदें। सुनील ने सोचा, आज दुकान जल्दी समेट दूं, वरना घर पहुंचना मुश्किल हो जाएगा। तभी उसकी नजर दूर से आते एक छोटे बच्चे पर पड़ी। करीब आठ साल का वह बच्चा नंगे पांव, फटे पुराने कपड़ों में बेहद थका और कमजोर लग रहा था। लेकिन उसकी आंखों में एक मासूमियत थी।
धीरे-धीरे वह बच्चा सुनील के ठेले तक पहुंचा और कांपती आवाज में बोला, “भैया, क्या आप मुझे कुछ खिलाएंगे? बहुत भूख लगी है।”
सुनील एक पल चुप रहा, फिर मुस्कुराकर बोला, “हां बेटा, क्यों नहीं, अभी देता हूं।”
उसने गरमागरम समोसा निकाला, हरी चटनी और प्याज के साथ प्लेट में सजाकर बच्चे के सामने रख दिया।
बच्चे ने समोसे की तरफ देखा, लेकिन तुरंत ही आंखें झुका ली। हिचकिचाते हुए बोला, “आप मुझे खिला तो देंगे, मगर मेरे पास पैसे नहीं हैं। कहीं बाद में आप पैसे मांग ना लें।”
सुनील का दिल भर आया। उसने प्यार से कहा, “नहीं बेटा, पैसे की चिंता मत करो। वैसे भी मैं दुकान समेट रहा हूं। ये समोसे अब बिकने वाले नहीं, वरना कल तक खराब हो जाएंगे। तुम बेफिक्र होकर खाओ।”
बच्चे की आंखों में चमक आ गई। उसने समोसा लिया, अपना छोटा सा झोला ठेले पर रखकर वहीं बैठ गया। खाने का अंदाज ऐसा था, जैसे कई दिनों से उसके पेट में दाना न गया हो। सुनील उसे देख रहा था, तभी उसकी नजर बच्चे के झोले पर गई। उसमें एक पुराना लिफाफा था। जिज्ञासा में उसने हल्के हाथ से झोला खोला – उसमें एक पुरानी तस्वीर थी। तस्वीर देखकर सुनील ठिठक गया – एक खूबसूरत औरत, महंगे कपड़े, कीमती गहने और गोद में वही बच्चा। साफ था कि वह किसी अमीर घर की थी।
सुनील ने तस्वीर बच्चे को दिखाते हुए पूछा, “बेटा, ये कौन है?”
बच्चे ने खाते-खाते रुक कर तस्वीर देखी, उसकी आंखों में नमी आ गई। कांपती आवाज में बोला, “ये मेरी मां है। बहुत दिनों से मुझे छोड़कर चली गई हैं। नाना जी ने बहुत खोजा, लेकिन वो कहीं नहीं मिली। जब भी मुझे उनकी याद आती है, मैं ये फोटो लेकर निकल पड़ता हूं। शायद कहीं रास्ते में मेरी मां मिल जाए।”
बच्चे की मासूमियत और दर्द ने सुनील का दिल छू लिया। उसने तस्वीर को वापस लिफाफे में रखा और बच्चे की पोटली में डाल दी। चंद मिनटों में बच्चा समोसा खाकर बिना कुछ कहे धीरे-धीरे वहां से चला गया। सुनील सामान समेटने लगा, तभी देखा – बच्चा अपना लिफाफा भूल गया था। बारिश तेज हो रही थी, दुकान छोड़कर जा भी नहीं सकता था। मजबूरन उसने लिफाफा अपने थैले में रख लिया और घर चला गया।
घर पहुंचकर उसने थैला अपनी छोटी बहन को पकड़ा दिया। बहन ने सामान निकालते-निकालते जैसे ही लिफाफा देखा, तुरंत खोल लिया। तस्वीर देखकर हैरान रह गई – “भैया, ये बच्चा कौन है? और ये औरत कितनी खूबसूरत और अमीर लग रही है।”
सुनील ने धीमे स्वर में कहा, “ये वही बच्चा है जो आज मेरे ठेले पर आया था। भूखा था, तो मैंने उसे समोसा खिलाया। जाते-जाते ये लिफाफा भूल गया। फोटो में उसकी मां है, वो बच्चा अपनी मां को ढूंढ रहा है।”
मां भी वहां आ गई। उन्होंने फोटो हाथ में ली और ध्यान से देखने लगी। कुछ देर सोचने के बाद बोली, “मुझे ये चेहरा कहीं देखा हुआ लगता है, जैसे मैं इसे जानती हूं।”
सुनील चौंक गया – “अम्मा, अगर आपने सच में इसे कहीं देखा है तो याद करने की कोशिश करो, हो सकता है हम उस बच्चे की मदद कर पाएं।”
मां ने तस्वीर लिफाफे में रख दी और कहा, “कल मैं इसे अपने साथ ले जाऊंगी, शायद बार-बार देखने से याद आ जाए।”
रातभर तीनों बिस्तर पर लेटे तो सही, मगर किसी की आंखों में नींद नहीं थी। सुनील के सामने बार-बार वही मासूम चेहरा घूमता रहा।
अगली सुबह अम्मा रोज की तरह दूसरों के घर काम करने निकलीं, लिफाफा साथ ले गईं। काम करते-करते कई बार तस्वीर देखी, सोचती रही – कहां देखा है इसे? तभी अचानक उनकी नजर रसोई के कोने में रखी मालकिन की सैंडल पर पड़ी – वही ऊंची हील वाली सैंडल, जैसी उन्होंने एक औरत के पांव में देखी थी। अचानक याद आया – जब वे दूसरे मोहल्ले के अमीर घर में काम करती थीं, वहां एक औरत को कई बार देखा था, जो हमेशा चुपचाप रहती थी और ऐसी ही सैंडल पहनती थी।
मां का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा – यही है! उन्होंने तुरंत काम खत्म किया और उसी पुराने पते की ओर निकल पड़ी। हवेली जैसे मकान के बाहर पहुंची, दरवाजा खटखटाया। थोड़ी देर बाद बुजुर्ग मालकिन बाहर आईं। मां ने हाथ जोड़कर विनम्रता से कहा, “मालकिन, मुझे आपसे बहुत जरूरी बात करनी है। आपके घर में जो औरत रहती थी, ऊंची हील पहनती थी, क्या मैं उससे मिल सकती हूं?”
मालकिन ने शक भरी नजर से पूछा, “क्यों?”
मां ने तस्वीर दिखाते हुए कहा, “देखिए, यही वही औरत है ना? ये उसका बच्चा है, जो मां को ढूंढते-ढूंढते आज भिखारियों जैसी हालत में सड़कों पर घूम रहा है।”
मालकिन गंभीर हो गईं – “हां, तुम ठीक कह रही हो, यही है।”
वे भीतर गईं और कुछ ही पलों बाद उस औरत को लेकर बाहर आईं। मां ने तस्वीर उसके चेहरे से मिलाई – हां, यही है वही औरत। लेकिन वह औरत बेहद गुमसुम थी, आंखें खाली, चेहरा शून्य।
उधर उसी दिन सुनील अपने ठेले पर उस बच्चे की राह देख रहा था। बच्चा वापस नहीं आया। शाम को एक बड़ी सी काली कार उसके ठेले के सामने आकर रुकी। बुजुर्ग आदमी बाहर उतरे – गंभीर चेहरा। सुनील ने सोचा, नया ग्राहक है। लेकिन बुजुर्ग बोले, “मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं यहां इसलिए आया हूं क्योंकि कल तुमने मेरे नाती को खाना खिलाया था। उसने बताया था कि अपनी मां की तस्वीर तुम्हारे पास भूल गया है। मैं वही लेने आया हूं।”
सुनील चौंक गया – “अंकल जी, सच में वो बच्चा आपका नाती है?”
बुजुर्ग की आंखें भीग गईं – “हां बेटा, वही मेरा नाती है और उसकी मां मेरी इकलौती बेटी अंजलि। बचपन से बहुत हंसमुख थी, लेकिन कॉलेज में एक लड़के से प्यार कर बैठी। हमने समझाया, डांटा, लेकिन वह अड़ी रही। एक रात घर छोड़कर चली गई। गुस्से में हमने सारे रिश्ते तोड़ लिए।”
कुछ साल बाद पता चला – उसके पति की मौत हो गई। अंजलि सदमे में टूट गई। मजबूरी में उसे और बेटे को घर ले आए। लेकिन धीरे-धीरे उसकी हालत बिगड़ने लगी, और एक दिन अचानक कहीं चली गई। हमने बहुत खोजा, लेकिन वह नहीं मिली। मेरा नाती अपनी मां की तलाश में फोटो लेकर हर जगह भटकता है।”
सुनील ने कहा, “अंकल जी, वो फोटो अभी मेरी मां के पास है। उन्होंने कहा था, शायद ये औरत उन्होंने कहीं देखी है।”
बुजुर्ग की आंखों में उम्मीद चमक उठी – “अगर तुम्हारी मां ने सच में उसे देखा है, तो शायद अब मेरी बेटी मिल जाए।”
सुनील ने भरोसा दिलाया – “जैसे ही मां लौटेंगी, मैं आपको खबर दूंगा।”
शाम को मां घर लौटीं, चेहरे पर मुस्कान थी – “बेटा, मुझे सब याद आ गया। हां, मैंने उसे देखा था। वो पास के गांव के बड़े घर में रहती थी, जहां मैं काम करती थी। वहां एक बुजुर्ग बिजनेसमैन उसे अपने घर में रखते थे। बहुत टूटी सी गुमसुम।”
सुनील की आंखें चमक उठीं – “अम्मा, वही उस मासूम की मां है। आज उसके पिता मेरे पास आए थे, उन्होंने पूरी कहानी बताई।”
मां ने तुरंत फोन उठाकर उन्हें खबर दी। रात के अंधेरे में झोपड़ी के बाहर कार आकर रुकी। बुजुर्ग, उनका नाती और परिवार आए। मोहल्ले के लोग इकट्ठा हो गए। सुनील ने उन्हें पास के बड़े घर तक पहुंचाया। दरवाजा खुला – सामने वही औरत थी। जैसे ही बच्चे ने देखा, वह दौड़कर मां की गोद में लिपट गया। बच्चे की आंखों से आंसू बहने लगे। बुजुर्ग पिता भी बेटी को देखकर सिसक पड़े – “अंजलि, मेरी बच्ची, तू कहां चली गई थी?”
लेकिन अंजलि बिल्कुल गुमसुम खड़ी रही, पहचान की कोई चमक नहीं थी। सुनील की सांसें अटक गईं। उसने सोचा था, मां-बेटे का मिलन गले लगकर पूरा होगा, मगर अंजलि की खामोशी ने सबको पत्थर सा कर दिया।
बुजुर्ग ने सुनील की ओर देखा – “बेटा, तुम्हारा बहुत धन्यवाद। तुम्हारी वजह से आज हमें हमारी बेटी और उसके बेटे की झलक मिल सकी। अब हम इन्हें अपने साथ ले जाएंगे, इलाज कराएंगे, इनकी जिंदगी फिर से संवारेंगे।”
अगली सुबह वही कार सुनील की झोपड़ी के सामने आई। इस बार बुजुर्ग, उनकी पत्नी और अंजलि भी थी। अंजलि का चेहरा थोड़ा बेहतर लग रहा था। घर के अंदर बैठते ही बुजुर्ग बोले, “बेटा सुनील, तुमने हमारी बेटी से हमें मिलाया है। हम इस एहसान को कभी नहीं भूल सकते। अब हम तुम्हारे लिए कुछ करना चाहते हैं।”
सुनील ने हाथ जोड़ लिए – “अंकल जी, इसकी कोई जरूरत नहीं। मैंने जो किया, इंसानियत समझकर किया।”
बुजुर्ग मुस्कुराए – “नहीं बेटा, इंसानियत की ही कदर करनी चाहिए। हमें अपनी बेटी की देखभाल के लिए एक भरोसेमंद इंसान चाहिए, और हमें लगता है कि तुमसे बेहतर कोई नहीं हो सकता। तुम चाहो तो हमारे घर आकर काम करो, जितना आज कमाते हो उसका दो गुना मिलेगा। और तुम्हारी बहन की शादी हम अपने घर की बेटी की तरह कराएंगे।”
सुनील हक्का-बक्का रह गया। मां ने आंसू पोंछते हुए कहा – “बेटा, ये ऊपरवाले का दिया अवसर है, स्वीकार कर लो।”
कुछ ही दिनों में सुनील उस अमीर घर में काम करने लगा। वह सिर्फ अंजलि की देखभाल ही नहीं करता, बल्कि उस बच्चे के लिए पिता जैसा सहारा भी बन गया। डॉक्टरों की देखरेख और सुनील की सेवा से अंजलि की हालत सुधरने लगी। पांच महीने बाद वह दिन आया जब अंजलि ने पहली बार अपने बेटे को पहचान लिया। मुस्कान लौटी, पिता को गले लगाया। सबकुछ सामान्य लगने लगा।
एक दिन बुजुर्ग ने सुनील को बुलाया – “बेटा, हमारी बेटी अब ठीक है, मगर उसकी जिंदगी में स्थाई सहारा चाहिए। अगर तुम्हें मंजूर हो तो हमारी बेटी से विवाह कर लो। हम तुम्हें अपना बेटा मान चुके हैं।”
सुनील पहले चौंका, लेकिन जब अंजलि को बताया गया, उसने सिर झुका लिया। उसके मन में साफ था – जिसने मुश्किल वक्त में उसे सहारा दिया, वही उसका असली हमसफर है।
कुछ ही समय बाद धूमधाम से सुनील और अंजलि की शादी हुई। गरीब बस्ती का समोसा बेचने वाला लड़का अब अमीर घर का दामाद बन चुका था। उसकी मां और बहन भी उसी घर में रहने लगीं। बहन की शादी भी बड़े सम्मान और धूमधाम से हुई। सुनील की जिंदगी पूरी तरह बदल चुकी थी। जहां कभी उसके ठेले की खनक थी, अब वहां उसकी नई जिंदगी की गूंज थी।
तो यह कहानी हमें सिखाती है – इंसानियत, मदद और मेहनत का असली स्वाद सबसे बड़ा होता है।
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