विनोद सिंह: बिहार का बाहुबली, आतंक की कहानी

दोस्तों, बिहार के पलामू जिले की एक ऐसी कहानी, जिसमें एक नाम था – विनोद सिंह। उसके नाम से न सिर्फ अपने गांव, बल्कि आसपास के गांवों के लोग भी थर-थर कांपते थे। जो चीज उसे पसंद आ जाती, चाहे जमीन हो, घर हो, या किसी की बेटी-बहू, वह उसे जबरदस्ती हासिल कर लेता। शुरुआत में वह एक आम गुंडा था, लेकिन बाद में विधायक बन गया। पुलिस भी उसके खिलाफ कार्रवाई करने से डरती थी।

आतंक की शुरुआत

एक बार विश्रामपुर के थानेदार दयाशंकर मिश्रा ने उसकी बदमाशी रोकने की कोशिश की और एक थप्पड़ मार दिया। बस, यही थप्पड़ विनोद सिंह के आतंक की शुरुआत बन गया। कुछ दिनों बाद सब-इंस्पेक्टर की हत्या कर दी गई, उसकी गर्दन काटकर फेंक दी गई। इलाके में खबर फैल गई कि जिसने पुलिस अफसर को मार दिया, उससे आम आदमी क्या मुकाबला करेगा।

 की बेटियों का डर

विनोद सिंह को जो लड़की पसंद आ जाती, उसका अपहरण कर लेता। एक बार मेघना नाम की लड़की का अपहरण हुआ। उसका छोटा भाई नंदू अपनी बहन को ढूंढता रहा, लेकिन गांववालों ने कहा – वो विनोद सिंह के पास है। नंदू थाने जाने की सोचता है, लेकिन विनोद सिंह उसे धमका देता है – थाने मत जाना, बहन खुद लौट आएगी। डर के मारे नंदू चुप रह जाता है। मेघना कुछ दिनों बाद घर लौट आती है, लेकिन जो उसने सहा, वह परिवार को बता देती है।

आतंक का विस्तार

अब गांव की कोई लड़की या महिला खुलेआम नहीं घूमती थी। सब घूंघट में रहती थीं। विरोध करने पर विनोद सिंह और उसके साथियों ने एक लड़की का सरेआम बलात्कार किया। गांववालों ने विरोध करने की हिम्मत खो दी। गरीब, कम पढ़े-लिखे आदिवासी इलाके में विनोद सिंह का खौफ बढ़ता गया। जमीनों पर कब्जा, लोगों की पिटाई, कोड़ों से मारना – ये आम बात हो गई थी।

विधायक बनना और सत्ता का रस

1980 में विनोद सिंह ने मिश्रामपुर से चुनाव लड़ा। उसके आतंक के कारण पहली बार में ही विधायक बन गया। सरकार और कानून तक उसकी खबरें पहुंचती थीं, लेकिन कोई उसके खिलाफ कुछ नहीं कर पाता था। उसके खिलाफ 80 से ज्यादा मुकदमे थे – हत्या, लूट, जमीन कब्जा, महिलाओं के साथ अपराध।

आईपीएस कुणाल किशोर की एंट्री

एक दिन पलामू में आईपीएस कुणाल किशोर की नियुक्ति हुई। वे बिना किसी लाव-लश्कर के थाने पहुंचे। उसी समय विनोद सिंह वहां आया और धमकी भरे अंदाज में बोला – इस इलाके में मेरी मर्जी के बिना कुछ नहीं होता। आईपीएस ने उसका परिचय पूछा, तो विनोद सिंह ने अपना नाम बताया। आईपीएस ने कहा – तुम्हारे खिलाफ 80 मुकदमे हैं, आज तुम्हारी गाड़ी तो निकल जाएगी, लेकिन तुम जेल जाओगे। विनोद सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया।

मंत्री की सिफारिश और जनता का डर

अगले दिन मंत्री रमेश झा की मीटिंग थी। मंत्री के साथ विनोद सिंह भी आया, जिसे रात में गिरफ्तार किया गया था। मंत्री ने आईपीएस से कहा – गिरफ्तार मत करो, मेरी बदनामी होगी। लेकिन आईपीएस ने तय किया – कानून सबके लिए बराबर है। गेस्ट हाउस को पुलिस ने घेर लिया, विनोद सिंह को गाड़ी से खींचकर गिरफ्तार कर लिया गया। हजारों लोगों ने देखा कि जिस नाम से सब डरते थे, वह पुलिस की गिरफ्त में था।

आतंक का अंत

जेल जाने के बाद विनोद सिंह का खौफ धीरे-धीरे कम होने लगा। 1985 में चुनाव हार गया। राजनीति में टिकने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। 1987 में डाल्टनगंज के पास बिरला गेस्ट हाउस में रात के अंधेरे में कुछ लोग आए, गोलियां चलीं, और विनोद सिंह मारा गया। उसका चैप्टर हमेशा के लिए बंद हो गया।

पुलिस ने जांच की, तो पता चला – गांव के लोगों ने ही उसकी हत्या की थी, जिन्होंने अपनी बहन-बेटियों की इज्जत का बदला लिया। विनोद सिंह का आतंक खत्म हो गया।

सीख

बुराई चाहे कितनी भी बड़ी हो, उसका अंत जरूर होता है। विनोद सिंह की कहानी यह सिखाती है कि जब अत्याचार अपनी हदें पार कर जाता है, तो जनता एकजुट होकर उसका अंत कर देती है। दोस्तों, सजग रहें, सुरक्षित रहें। जय हिंद!