शाम का वक्त था। दिल्ली की सड़कों पर गाड़ियों के हॉर्न, भागते लोग और ट्रैफिक की लंबी कतारें थीं। एक सरकारी जीप रेड लाइट पर रुकी। उसमें बैठा था अजय सिंह—एक आईपीएस अफसर। थका-हारा सा, लेकिन आँखों में एक अजीब तलाश। तभी उसकी नज़र सड़क किनारे एक छोटी-सी किताबों की दुकान पर पड़ी। किताबों के ढेर के बीच खड़ी एक लड़की ग्राहकों से बात कर रही थी। चेहरा थका हुआ, पर आँखों में वही जानी-पहचानी चमक। अजय का दिल जोर से धड़क उठा। नीला दुपट्टा… वो थी नेहा—वही नेहा जिसने सालों पहले एक ट्रेन के सफ़र में उसकी ज़िंदगी बदल दी थी।
अजय ने जीप रुकवाई और हिचकते हुए आवाज़ लगाई। नेहा चौंककर मुड़ी। कुछ पल के लिए समय ठहर गया। उसकी आँखों में हैरानी थी, होठ काँप रहे थे—“अजय… तुम वही ट्रेन वाले अजय?” अजय ने सिर हिलाया। दोनों की आँखों से आँसू छलक पड़े। भीड़-भाड़ के बीच जैसे दुनिया थम गई।
यादें लौट आईं।
कई साल पहले उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के रामपुर गाँव का दुबला-पतला लड़का अजय, अपने बूढ़े पिता की झुकी कमर और माँ के फटे आँचल के साथ एक बड़ा सपना लेकर दिल्ली जा रहा था—आईपीएस अफसर बनने का। गंगा एक्सप्रेस के भीड़भाड़ वाले डिब्बे में बैठा अजय अपनी शर्ट की जेब में यूपीएससी इंटरव्यू का कॉल लेटर छिपाए हुए था। वही उसका सबसे बड़ा ख़ज़ाना था।
रात गुज़र गई, सुबह जब टीटी ने टिकट माँगा तो अजय का दिल बैठ गया। उसका बैग चोरी हो चुका था। पैसे और टिकट दोनों गायब थे। उसने काँपते हाथों से कॉल लेटर दिखाया और कहा—“सर, मेरा इंटरव्यू है, कृपया…” लेकिन टीटी ने बेरुख़ी से जवाब दिया—“जुर्माना भरो या अगले स्टेशन पर उतर जाओ।”
अजय टूट चुका था। तभी भीड़ में से एक आत्मविश्वासी आवाज़ गूँजी—“रुकिए! ये लड़का सच कह रहा है।” सबकी नज़रें खिड़की के पास बैठी एक लड़की पर टिक गईं। साधारण सलवार-कमीज़, नीला दुपट्टा और आँखों में अजीब-सी दृढ़ता। वह थी नेहा। उसने बिना झिझक कहा—“जुर्माना और टिकट का पैसा मैं दूँगी।” और उसने अपने छोटे से पर्स से पैसे निकाल दिए।
अजय की आँखें कृतज्ञता से भर आईं। नेहा ने मुस्कुराकर कहा—“अब चैन से साँस लो। तुम्हारा टिकट सुरक्षित है।” आगरा स्टेशन पर उतरते वक्त उसने अजय को 500 रुपए का नोट पकड़ाते हुए कहा—“इसे कर्ज मत समझना। इसे दोस्त की दुआ मानो। और अगर कभी बड़े अफसर बनो तो किसी और के सपने बचाना। तब समझूँगी मेरा पैसा लौट आया।”
उस मुलाक़ात ने अजय की ज़िंदगी बदल दी। उसने दिल्ली में संघर्ष किया—भूखा रहा, प्रसाद खाकर गुज़ारा किया, लेकिन हार नहीं मानी। नेहा के शब्द हर कठिनाई में उसके कानों में गूंजते रहे। आख़िरकार उसने यूपीएससी पास की और पूरे देश में शानदार रैंक हासिल की। गाँव में जश्न था, माँ-बाप गर्व से रो रहे थे। अजय अफसर बना, पर उसके दिल में हमेशा एक खाली जगह रही—वो नीला दुपट्टा।
वक़्त गुज़रता गया। अजय एक ईमानदार, संवेदनशील आईपीएस बना। लेकिन नेहा कहाँ है, यह सवाल उसे हमेशा सताता रहा। और फिर किस्मत ने उसे दिल्ली की उसी सड़क पर खड़ा कर दिया।
नेहा अब किताबों की दुकान चलाती थी। पिता के गुज़रने और हालात बिगड़ने के कारण पढ़ाई छूट गई थी। अजय ने उसकी कहानी सुनी तो दिल भर आया। उसने ठान लिया कि जैसे नेहा ने उसका सपना बचाया था, वैसे ही वह अब नेहा की ज़िंदगी बदलेगा।
कुछ ही दिनों में उस छोटी दुकान की जगह आधुनिक “नेहा बुक हाउस” खड़ा था। रोशनी से जगमगाता, किताबों से सजा। नेहा की आँखों से आँसू बह निकले—“अजय, तुमने तो मेरी ज़िंदगी की किताब ही बदल दी।” अजय ने मुस्कुराकर कहा—“नेहा, तुम्हारी छोटी-सी मदद ने मेरी तक़दीर बदल दी थी। आज इसे लौटाना मेरा फ़र्ज़ है।”
उसने नेहा की अधूरी पढ़ाई फिर से शुरू करवाई। कॉलेज में दाखिला दिलवाया। नेहा झिझकी, बोली—“अब उम्र निकल रही है, पढ़ाई का क्या फ़ायदा?” अजय ने कहा—“सपनों की कोई उम्र नहीं होती। तुमने मुझे सपनों पर यक़ीन करना सिखाया है।” धीरे-धीरे नेहा की मुस्कान लौट आई। दोनों का रिश्ता गहराता चला गया।
फिर एक दिन अजय ने नेहा को उसी रेलवे स्टेशन बुलाया जहाँ उनकी कहानी शुरू हुई थी। उसने नेहा का हाथ थामा और कहा—“उस दिन मैंने तुमसे वादा किया था कि अफसर बनकर किसी की मदद करूँगा। पर सच्चाई ये है कि मेरी पहली मदद तुम्हारे लिए होनी चाहिए थी। आज मैं एक और वादा करना चाहता हूँ—ज़िंदगी भर का। क्या तुम मेरे साथ रहोगी?”
नेहा की आँखों से आँसू बह निकले—“अजय, मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक छोटी-सी मदद मुझे इतना बड़ा तोहफ़ा दे जाएगी। हाँ, मैं तुम्हारे साथ रहूँगी।”
कुछ ही समय बाद उनकी शादी हुई। गाँव से लेकर शहर तक लोग कहते रहे—“देखो, एक टिकट की मदद ने दो ज़िंदगियाँ जोड़ दीं।” नेहा की दुकान मशहूर हुई, पढ़ाई पूरी हुई और वह बच्चों को सपने देखने की हिम्मत सिखाने लगी। अजय अपने काम में और भी ईमानदार हो गया, हर किसी की मदद करता जिसे ज़रूरत होती। क्योंकि उसे नेहा की बात हमेशा याद रहती थी—“सपनों को बचाने के लिए हिम्मत चाहिए।”
यह कहानी सिर्फ़ एक प्रेम कथा नहीं, बल्कि इंसानियत और कृतज्ञता की मिसाल है। छोटी-सी मदद भी किसी की पूरी ज़िंदगी बदल सकती है।
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