आईएएस प्रिया शर्मा की साहसी कहानी
एक आईएएस ऑफिसर, प्रिया शर्मा, अपनी सहेली की शादी में जा रही थी। उसने आम लड़की की तरह कपड़े पहने थे—ना कोई सरकारी गाड़ी, ना कोई सुरक्षा। वह बस एक साधारण लड़की की तरह मोटरसाइकिल चला रही थी। जब वह रणनगर शहर के पास पहुंची, तो एक पुलिस चेक पोस्ट दिखाई दिया। वहां तीन-चार पुलिसकर्मी खड़े थे। उनके बीच इंस्पेक्टर रुद्रभान सिंह अपनी वर्दी में खड़ा था। उसने हाथ में लाठी उठाकर प्रिया को रुकने का इशारा किया।
प्रिया ने मोटरसाइकिल सड़क के किनारे लगाई और खड़ी हो गई।
इंस्पेक्टर ने सख्त आवाज में पूछा, “कहां जा रही हो?”
प्रिया ने शांत स्वर में जवाब दिया, “एक सहेली की शादी में जा रही हूं।”
इंस्पेक्टर ने उसे सिर से पांव तक देखा और हंसते हुए बोला,
“अच्छा, सहेली की शादी में खाना खाने जा रही हो? लेकिन हेलमेट क्या तुम्हारे बाप ने पहनना है? क्यों नहीं पहना? और यह बाइक भी बहुत तेज चला रही थी। चलो अब चालान कटेगा।”
ऐसा कहते हुए उसने चालान की पर्ची निकालनी शुरू कर दी।
प्रिया समझ चुकी थी कि उसकी नियत ठीक नहीं है। उसने कहा,
“सर, मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा है।”
रुद्रभान सिंह झल्लाकर बोला,
“ओ मैडम, हमें कानून मत सिखाओ।”
फिर उसने पास खड़े कांस्टेबल को इशारा किया और कहा,
“इसे सबक सिखाना होगा।”
अचानक इंस्पेक्टर ने प्रिया के गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया।
“बहुत सवाल कर रही है। जब पुलिस कुछ कहे तो चुपचाप मान लेना चाहिए।”
प्रिया का सिर एक पल के लिए घूम गया, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। उसकी आंखों में गुस्सा साफ झलक रहा था।
इंस्पेक्टर हंसते हुए बोला, “अब भी इसकी आंखों में घमंड है। ऐसे कितनों को ठीक कर चुका हूं। इसे अच्छी तरह से सबक सिखाना होगा।”
एक कांस्टेबल आगे आया और बोला, “सर, इसे थाने ले चलते हैं। वहीं इसका इलाज होगा।”
फिर एक और कांस्टेबल ने प्रिया का हाथ पकड़कर खींचा, “चलो गाड़ी में बैठो।”
प्रिया ने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और गुस्से में बोली,
“हाथ लगाने की कोशिश मत करना वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा।”
इंस्पेक्टर और भड़क गया। उसने एक और कांस्टेबल से कहा,
“देखो इसका घमंड।”
कांस्टेबल आगे बढ़ा और प्रिया का बाल पकड़कर खींचने लगा।
प्रिया दर्द से कराह उठी, लेकिन उसने अब तक अपनी असली पहचान नहीं बताई थी। वह देखना चाहती थी कि ये लोग कितनी नीचता तक जा सकते हैं।
इसी बीच एक पुलिसकर्मी ने उसकी बाइक पर लाठी मार दी और ऊंची आवाज में बोला,
“बड़ी आई साधु बनने वाली। अब तुझे खिलौना बनाकर खेलेंगे।”
प्रिया अब पूरी तरह समझ चुकी थी कि उसके साथ क्या होने वाला है। इंस्पेक्टर की आंखों में गुस्सा भरा था।
वो जोर से चिल्लाया,
“तेरे जैसे कई होशियार देखे हैं। पुलिस से पंगा लेगी, आज मजा चखाएंगे। चलो इसे थाने ले चलते हैं। वहां समझ में आ जाएगा।”
इस समय भी प्रिया चुप थी। उसने अब भी अपनी पहचान उजागर करने की कोई कोशिश नहीं की।
वह देखना चाहती थी कि ये लोग प्रशासन की कितनी बदनामी कर सकते हैं और एक आम नागरिक पर किस हद तक जुल्म ढा सकते हैं।
इंस्पेक्टर रुद्रभान सिंह अब खींच चुका था। उसके सामने एक ऐसी महिला खड़ी थी जिसके कोमल गाल पर थप्पड़ पड़ा था, जिसके बाल खींचे गए थे, जिसे जबरन सड़क पर घसीटा गया था। फिर भी वह एक मूर्ति की तरह शांत खड़ी थी—ना कोई चीख, ना कोई आंसू।
थाने पहुंचते ही इंस्पेक्टर जोर से चिल्लाया,
“ओए कहां गए सब? चाय पानी लगाओ जल्दी। आज एक खास माल आया है।”
प्रिया अब भी कुछ नहीं बोली। बस थाने की दीवारों को देखती रही।
वो देख रही थी कि ये लोग उन निरीह लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं जो कभी आवाज नहीं उठाते।
तभी एक कांस्टेबल इंस्पेक्टर रुद्रभान सिंह की ओर झुककर फुसफुसाया,
“क्या केस है सर?”
इंस्पेक्टर ने हंसते हुए कहा,
“अरे कुछ भी नहीं। स्पीड ब्रेक करो या हेलमेट का बहाना मारो। जो मन हो लिख दो। बस अनवर करना है और इसका घमंड तोड़ना है। ज्यादा सवाल मत कर।”
प्रिया सब कुछ सुन रही थी। उसकी आंखें अब भी चुप थीं।
इंस्पेक्टर कुर्सी पर बैठा, हाथ में पेन लिया और टेबल पर घुमाने लगा।
फिर प्रिया की ओर देखकर पूछा,
“नाम क्या है? कहां रहती है? किसकी बेटी है?”
प्रिया चुप रही।
इंस्पेक्टर बोला,
“सुनाई नहीं देता। नाम क्या है तेरा?”
लेकिन प्रिया की चुप्पी अब भी पत्थर की दीवार जैसी अडिग थी।
तभी इंस्पेक्टर ने जोर से मेज पर हाथ मारा।
फिर गुस्से से चिल्लाया,
“सुनाई नहीं देता नाम बता जल्दी!”
प्रिया ने मुंह घुमाकर शांत स्वर में उत्तर दिया,
“जी, सुमिता शर्मा।”
इंस्पेक्टर उसके चेहरे की ओर देखकर हंसते हुए बोला,
“बड़ी चालाक लड़की है तू, झूठ बोलने में तुझे खासा तजुर्बा है। लेकिन याद रख, ज्यादा होशियारी महंगी पड़ती है।”
फिर प्रिया को जबरदस्ती उस सड़ी हुई हवालात में डाल दिया गया, जहां पहले से दो कैदी मौजूद थे।
उनमें से एक कैदी ने प्रिया की ओर देखते हुए पूछा,
“बहन, तूने क्या गुनाह किया है?”
प्रिया ने हल्की सी मुस्कान दी लेकिन कुछ नहीं बोली।
अब वह बस देख रही थी कि यह पूरा सिस्टम कितना सड़ चुका है।
अगर एक आईएएस को बिना वजह अंदर किया जा सकता है तो आम आदमी की हालत तो सोच पाना भी मुश्किल है।
अब वह उस कोठरी के कोने में बैठी थी, सब कुछ देख रही थी, सुन रही थी और हर एक हरकत को समझ रही थी।
उधर इंस्पेक्टर रुद्रभान सिंह एक झूठी रिपोर्ट बना रहा था।
उसने आदेश दिया,
“इसके ऊपर चोरी और ब्लैकमेलिंग का केस ठोक दो।”
एक कांस्टेबल ने हिचकते हुए पूछा,
“लेकिन सर, बिना सबूत?”
रुद्रभान सिंह हंसते हुए बोला,
“इस थाने में सबूत लाए नहीं जाते, बनाए जाते हैं।”
कुछ देर बाद एक कांस्टेबल कोठरी में आया और प्रिया के कंधे पर जोर से हाथ मारा।
तभी इंस्पेक्टर रुद्रभान सिंह ने भी हाथ उठाया ही था कि तभी दरवाजे पर एक भारी कड़क आवाज गूंजी,
“रुको!”
सभी लोग घूम कर दरवाजे की ओर देखने लगे।
वहां सीनियर इंस्पेक्टर यशवंत वर्मा खड़ा था।
उसकी छवि बाकी अफसरों से बेहतर मानी जाती थी।
वह अंदर झांका और महिला की हालत देखकर उसके माथे पर बल पड़ गया।
उसने सख्त स्वर में पूछा,
“यह सब क्या हो रहा है?”
रुद्रभान सिंह हंसते हुए बोला,
“कुछ नहीं सर, एक सड़क की औरत ज्यादा अकड़ दिखा रही थी। सबक सिखा रहा हूं।”
यशवंत ने प्रिया को ध्यान से देखा।
उसका व्यवहार किसी आम महिला जैसा नहीं लग रहा था।
उसने पूछा,
“इसका अपराध क्या है?”
रुद्रभान सिंह थोड़ा घबरा गया,
“अब सर, चेकिंग में बदतमीजी कर रही थी।”
अब यशवंत को शक होने लगा।
उसने प्रिया से सीधे पूछा,
“तुम्हारा नाम क्या है?”
प्रिया फिर भी चुप रही।
रुद्रभान सिंह हंसते हुए बोला,
“देखिए सर, नाम भी नहीं बता रही है।”
अब यशवंत पूरी तरह सतर्क हो गया।
उसने सख्त आदेश दिया,
“इसे अलग कोठरी में रखो। अकेले।”
रुद्रभान सिंह चौंक गया।
लेकिन यशवंत ने कठोरता से कहा,
“मैं खुद इसके पास रहूंगा।”
उसके आदेश पर प्रिया को एक और अलग कोठरी में ले जाकर बंद किया गया।
वह कोठरी पहले वाली से भी ज्यादा बदबूदार और अंधेरी थी।
प्रिया ने चारों ओर नजर दौड़ाई।
अब वह इस सड़े-गले सिस्टम का असली चेहरा और भी करीब से देख रही थी।
हर एक पल उसकी आंखें यह समझ रही थी कि कानून अब सिर्फ फाइलों तक सीमित रह गया है।
इसी बीच एक कांस्टेबल दौड़ते हुए आया और बोला,
“सर, बाहर एक बड़ी गाड़ी खड़ी है।”
रुद्रभान सिंह चौंक गया,
“कौन सी गाड़ी?”
कांस्टेबल घबराते हुए बोला,
“सर, सरकारी गाड़ी!”
रुद्रभान सिंह तुरंत बाहर गया।
गाड़ी के अंदर झांकते ही उसके होश उड़ गए।
वो भाग कर वापस आया और धीमी आवाज में बोला,
“सर, कमिश्नर साहब आए हैं।”
सीनियर इंस्पेक्टर यशवंत वर्मा भी सतर्क हो गया।
अब मामला सीधे ऊपर तक पहुंच चुका था।
कमिश्नर साहब थाने में दाखिल हुए।
उनकी आंखों में गुस्सा साफ झलक रहा था।
उन्होंने रुद्रभान सिंह की ओर देखकर सख्त स्वर में पूछा,
“इंस्पेक्टर रुद्रभान सिंह, यह क्या तमाशा चल रहा है यहां?”
रुद्रभान सिंह घबरा गया और बोला,
“कुछ नहीं सर, एक छोटा सा केस है बस।”
कमिश्नर साहब ने टेबल से फाइल उठाई और ध्यान से पढ़ने लगे।
उनके माथे पर शिकन आ गई।
फिर वह कोठरी की तरफ झांके और बोले,
“यह कौन है?”
रुद्रभान सिंह तुरंत बोला,
“सर, इस महिला पर 420 और धोखाधड़ी का केस है।”
कमिश्नर ने सीधा सवाल किया,
“तुम्हारे पास सबूत है? कोई भी सबूत है तुम्हारे पास?”
अब रुद्रभान सिंह पूरी तरह फंस चुका था।
कमिश्नर साहब ने सीधे महिला की ओर देखा और पूछा,
“तुम्हारा नाम क्या है?”
और तभी पहली बार प्रिया शर्मा ने हल्की सी मुस्कान दी और कहा,
“आईएएस प्रिया शर्मा।”
थाने में एकदम सन्नाटा छा गया।
हर चेहरा पीला पड़ गया।
रुद्रभान सिंह के हाथ-पांव कांपने लगे।
बाकी सभी कांस्टेबल हैरान होकर एक-दूसरे की ओर देखने लगे।
जिस महिला को वह एक मामूली अपराधी समझ रहा था, वह थी वही अधिकारी जो पूरे जिले की प्रशासनिक व्यवस्था संभालती थी।
वह कोई आम औरत नहीं थी—वह थी स्वयं आईएएस प्रिया शर्मा।
जिस महिला को सड़क पर घसीटा गया था, जिसके बाल खींचे गए थे, जिसे थप्पड़ मारा गया था।
जब यह सच्चाई सबके सामने आई, पूरे थाने में हड़कंप मच गया।
कमिश्नर साहब ने तेज गुस्से से भरी नजर से इंस्पेक्टर रुद्रभान सिंह की ओर देखा और गरजते हुए बोले,
“रुद्रभान सिंह, तुझ में इतनी हिम्मत कैसे आई कि तू एक सीनियर ऑफिसर पर झूठा आरोप लगाने की जुर्रत कर बैठा?”
रुद्रभान सिंह कुछ बोलने की कोशिश कर ही रहा था कि पास में खड़े सीनियर इंस्पेक्टर यशवंत वर्मा जोर से बोले,
“सर, मैंने पहले ही कहा था कि यहां कुछ ना कुछ गड़बड़ है।”
अब रुद्रभान सिंह पूरी तरह अकेला पड़ चुका था।
तभी पहली बार प्रिया शर्मा ने अपनी शांत लेकिन दृढ़ आवाज में सीधा फैसला सुना दिया,
“रुद्रभान सिंह, अब तेरी नौकरी गई। तेरा सस्पेंशन पक्का और तेरे खिलाफ अब केस भी चलेगा।”
यह सुनते ही रुद्रभान सिंह का चेहरा सफेद पड़ गया।
बाकी पुलिसकर्मी भी उससे नजरें चुराने लगे।
यशवंत वर्मा ने तुरंत आदेश दिया,
“हवलदार साहब, इसे पकड़ो और लॉकअप में डालो।”
लेकिन तभी रुद्रभान सिंह ने अपनी जेब से एक मुड़ा हुआ कागज निकाला और मुस्कुराते हुए बोला,
“रुको मैडम, यह पहले देख लो फिर जो करना हो कर लेना।”
उसने कागज आगे बढ़ाया।
कमिश्नर और प्रिया दोनों की नजरें एक साथ उसकी ओर गईं।
रुद्रभान सिंह बोला,
“यह लो मेरा ट्रांसफर ऑर्डर। तीन दिन पहले ही मेरा तबादला हो चुका है। अब चाहे तुम जितना भी गुस्सा करो मुझे नौकरी से नहीं निकाल सकती।”
प्रिया ने वो कागज हाथ में लिया और ध्यान से पढ़ा।
कमिश्नर ने यशवंत वर्मा की ओर तीखी नजर डालते हुए कहा,
“जाओ देखो यह कागज असली है या सिर्फ दिखावा।”
यशवंत ने कंप्यूटर रिकॉर्ड खंगाला और फिर सिर उठाकर बोला,
“सर, यह असली है लेकिन अब तक इसने नए इंस्पेक्टर को चार्ज नहीं सौंपा है यानी अभी तक यहां का आधिकारिक इंस्पेक्टर यही है और सारे कुकर्म इसी के कार्यकाल में हुए हैं। अब इसे कोई नहीं बचा सकता।”
प्रिया शर्मा ने रुद्रभान सिंह की आंखों में आंखें डालकर कहा,
“अब तेरा नया ठिकाना वहीं होगा जहां तू दूसरों को डाला करता था।”
कमिश्नर ने भी सिर हिलाकर उसकी बात पर अपनी मोहर लगा दी।
जैसे ही दो कांस्टेबल उसे पकड़ने आगे बढ़े, रुद्रभान सिंह फिर से चाल चल गया और जोर से बोला,
“रुको मैडम। मैडम मैं अकेला नहीं हूं। क्या आपको लगता है कि सारा दोष सिर्फ मेरा है?”
फिर वह थाने के बाकी पुलिस वालों की ओर इशारा करते हुए बोला,
“यह सब मेरे साथ थे। ऊपर तक सब शामिल है।”
इतना कहते ही कुछ पुलिसकर्मियों के चेहरों का रंग उड़ गया।
सीनियर इंस्पेक्टर यशवंत वर्मा हालात को भांप कर एक-एक करके सभी की ओर शक की नजरों से देखने लगे।
प्रिया शर्मा ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कमिश्नर की ओर देखते हुए कहा,
“अब इस पूरे थाने को साफ करना होगा। कोई नहीं बचेगा।”
कमिश्नर ने भी सिर हिलाते हुए कहा,
“जो हुक्म मैडम। अब एक-एक करके सबका हिसाब लिया जाएगा।”
यह बात मुंह से निकलते ही थाने के भीतर बिजली सी गिर गई।
थाने के बाहर कुछ पत्रकार पहले से खड़े थे।
उन्हें पहले से ही शक था कि थाने के अंदर कोई बड़ा घोटाला चल रहा है।
जैसे ही उन्हें खबर मिली कि पूरा थाना लाइन हाजिर किया गया है, उन्होंने तुरंत मोबाइल से ब्रेकिंग न्यूज़ वायरल करना शुरू कर दिया।
उसी वक्त एक चमचमाती गाड़ी थाने के सामने आकर रुकी।
दरवाजा खुला और स्वयं एसपी साहब बाहर आए।
चारों ओर नजर दौड़ाई। हर चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी।
थाने के सारे अफसर एक तरफ चुपचाप खड़े थे।
एसपी साहब ने तीखे स्वर में पूछा,
“यहां कब से तमाशा चल रहा है?”
लेकिन कमिश्नर और थाना इंचार्ज दोनों एकदम चुप थे।
तभी प्रिया शर्मा ने सीधे एसपी की आंखों में आंखें डालकर कहा,
“क्या तुम्हें लगता है तुम बच जाओगे?”
यशवंत वर्मा तुरंत एक फाइल निकालकर प्रिया शर्मा के हाथ में थमा दी।
यह वही फाइल थी जिसमें एसपी साहब के सारे काले कारनामों का पर्दाफाश था।
प्रिया ने वो फाइल एसपी साहब की ओर बढ़ाते हुए कहा,
“लो देखो, इसमें तुम्हारे हर गुनाह का किराया लिखा है।”
एसपी साहब के माथे से पसीना बहने लगा।
कमिश्नर ने बिना एक पल गवाए तेज आवाज में आदेश दिया,
“पकड़ो इसे, तुरंत गिरफ्तार करो!”
पूरा थाना स्तब्ध रह गया।
इतने बड़े अफसर को किसी ने पहली बार खुलेआम इस तरह चुनौती दी थी।
एसपी की गिरफ्तारी के साथ ही पूरे जिले में तूफान आ गया।
मामला दिल्ली तक पहुंच गया।
मुख्यमंत्री तक खबर पहुंच चुकी थी और वहां से सीधे आदेश आया कि जिले में जितने भी अफसर मिलकर गड़बड़ कर रहे थे, सबको गिरफ्तार करो।
अगले दो ही दिनों में पूरे जिले से 40 से ज्यादा पुलिस अफसर, 10 से ज्यादा बड़े अधिकारी और कुछ राजनीतिक नेता भी गिरफ्तार कर लिए गए।
रणनगर जिले की हवा ही बदल गई।
अब चारों तरफ सिर्फ एक ही नाम था—आईएएस प्रिया शर्मा।
उनकी ईमानदारी और साहस की चर्चा हर जुबान पर थी।
वह महिला जिसने पूरे सड़े-गले सिस्टम को हिला कर रख दिया था।
अब प्रशासन में एक नई गति, एक नई सोच और सबसे अहम, एक नया डर आ गया था।
अब कोई भी यह नहीं कह सकता था, “मुझे कुछ नहीं होगा।”
प्रिया शर्मा का काम पूरा हो चुका था।
उन्होंने साबित कर दिया था कि अगर मन साफ हो, नियत सच्ची हो तो पूरा देश भी सुधारा जा सकता है।
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