👉🏻 IPS मैडम साधारण कपड़ों में जा रही थी शादी में | दरोगा ने रोका और किया बदतमीजी आगे जो हुआ..

एसडीएम बरनाली सिंह की साहसिक लड़ाई

बरनाली सिंह एक एसडीएम अधिकारी थी, लेकिन आज वह अपनी सहेली की शादी में जा रही थी। उसने साधारण लड़की की तरह कपड़े पहने थे – न कोई सरकारी गाड़ी, न सुरक्षा, बस एक आम लड़की की तरह मोटरसाइकिल चला रही थी। जब वह हसनाबाद शहर के पास पहुंची तो आगे एक पुलिस चौकी दिखाई दी। वहां तीन-चार पुलिसकर्मी सड़क पर खड़े थे और उनके बीच में इंस्पेक्टर प्रसंजीत अपनी वर्दी में मौजूद था।

इंस्पेक्टर ने हाथ में लाठी उठाकर बरनाली को रुकने का इशारा किया। बरनाली ने बाइक सड़क के किनारे लगाई और खड़ी हो गई।
इंस्पेक्टर ने सख्त आवाज में पूछा,
“कहां जा रही हो?”
बरनाली ने बहुत शांत स्वर में जवाब दिया,
“एक सहेली की शादी है, वहीं जा रही हूं।”

प्रसंजीत ने उसे सिर से पांव तक देखा। वह 28 साल की एक खूबसूरत महिला थी। फिर वह हंसते हुए बोला,
“अच्छा, सहेली की शादी में खाना खाने जा रही हो। लेकिन हेलमेट क्या तुम्हारे बाप ने पहनना है? क्यों नहीं पहना? और यह बाइक भी बहुत तेज चला रही थी। चलो अब चालान कटेगा।”

ऐसा कहते हुए उसने चालान की पर्ची निकालनी शुरू कर दी। बरनाली समझ गई कि उसकी नियत ठीक नहीं है और यह सब एक बहाना है।
उसने कहा,
“सर, मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा है।”

प्रसंजीत झल्लाकर बोला,
“ओह मैडम, हमें कानून मत सिखाओ। इसे सबक सिखाना होगा।”

अचानक इंस्पेक्टर ने जोर से एक थप्पड़ मारा।
“बहुत सवाल कर रही है। जब पुलिस कुछ कहे तो चुपचाप मान लेना चाहिए।”

बरनाली का सिर एक पल के लिए घूम गया, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। उसकी आंखों में गुस्सा साफ झलक रहा था।
इंस्पेक्टर हंसते हुए बोला,
“अब भी इसकी आंखों में घमंड है। ऐसे कितनों को ठीक कर चुका हूं। इसे अच्छी तरह से सबक सिखाना होगा।”

एक कांस्टेबल आगे आया और बोला,
“सर, इसे थाने ले चलते हैं। वहीं इसका इलाज होगा। तब समझेगी कि पुलिस से कैसे बात की जाती है।”

फिर एक और कांस्टेबल ने बरनाली का हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा,
“चलो गाड़ी में बैठो।”

बरनाली ने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और गुस्से में बोली,
“हाथ लगाने की कोशिश मत करना वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा।”

इंस्पेक्टर और भड़क गया। उसने एक और कांस्टेबल से कहा,
“देखो इसका घमंड।”

कांस्टेबल आगे बढ़ा और बरनाली का बाल पकड़कर उसे खींचने लगा। बरनाली दर्द से कराह उठी। फिर भी उसने अब तक अपनी असली पहचान नहीं बताई थी। वह देखना चाहती थी कि ये लोग कितनी नीचता तक जा सकते हैं।

इसी बीच एक पुलिसकर्मी ने गुस्से में उसकी बाइक पर लाठी मार दी और ऊंची आवाज में बोला,
“बड़ी आई साधु बनने वाली। अब तुझे खिलौना बनाकर खेलेंगे।”

बरनाली अब अच्छे से समझ चुकी थी कि उसके साथ क्या होने वाला है और ये लोग कितना नीचे गिर सकते हैं। इंस्पेक्टर की आंखों में गुस्सा भरा था। वह जोर से चिल्लाया,
“तेरे जैसे कई होशियार देखे हैं। पुलिस से पंगा लेगी, आज मजा चखाएंगे। चलो इसे थाने ले चलते हैं।”

इस समय भी बरनाली सिंह चुप थी। उसने अब भी अपनी पहचान उजागर करने की कोई कोशिश नहीं की। वह देखना चाहती थी कि ये लोग प्रशासन की कितनी बदनामी कर सकते हैं और एक आम नागरिक पर किस हद तक जुल्म ढा सकते हैं।

इंस्पेक्टर प्रसंजीत अब खींच चुका था। उसके सामने एक ऐसी महिला खड़ी थी जिसके कोमल गाल पर थप्पड़ पड़ा था, जिसके बाल खींचे गए थे, जिसे जबरन सड़क पर घसीटा गया था। फिर भी वह एक मूर्ति की तरह शांत खड़ी थी। न कोई चीख, न कोई आंसू।

इंस्पेक्टर प्रसंजीत सोच रहा था,
“थाने पहुंचते ही देखता हूं इस जिद्दी और घमंडी औरत का इलाज कैसे किया जाए।”

यह सिर्फ गुस्सा नहीं था, यह वह गुस्सा था जो अंदर ही अंदर सुलग रहा था। चौकी इंचार्ज इंस्पेक्टर हंसते हुए बोला,
“अब इसकी जुबान भी चलने लगी है। चलो थाने देखेंगे कितनी चलती है।”

थाने में घुसते ही इंस्पेक्टर जोर से चिल्लाया,
“ओए कहां गए? सब चाय पानी लगाओ जल्दी। आज एक खास माल आया है।”

बरनाली सिंह अब भी कुछ नहीं बोली। बस थाने की दीवारों को देखती रही। वह देख रही थी कि ये लोग उन निरीह लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं जो कभी आवाज नहीं उठाते।

तभी एक कांस्टेबल इंस्पेक्टर प्रसंजीत की ओर झुक कर फुसफुसाया,
“क्या केस है सर?”