कहानी: किस्मत के धागे – एक होटल, एक परिवार, और इंसानियत की जीत

मुंबई का बांद्रा इलाका, समंदर के किनारे खड़ा “द ग्रैंड ओरिएंटल होटल”। यह होटल सिर्फ पत्थरों, शीशों और चकाचौंध का महल नहीं था, बल्कि कामयाबी और विलासिता का प्रतीक था। इस होटल का मालिक आरव खन्ना, 35 साल का नौजवान, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ा हुआ, बिजनेस की दुनिया का चमकता सितारा। उसके पास सब कुछ था – दौलत, शोहरत, इज्जत। लेकिन उसकी जिंदगी की ऊपरी मंजिल पर अकेलापन एक साया बनकर मंडराता रहता था।

आरव के माता-पिता दिल्ली में रहते थे, लेकिन उनके और आरव के बीच एक अनकहा फासला था। इस दूरी की वजह थी 15 साल पुराना एक पारिवारिक हादसा। आरव का बड़ा भाई समीर, जो कला और संगीत में जीता था, बिजनेस की दुनिया से दूर, अपने दिल की आवाज सुनता था। समीर ने अपने घर में काम करने वाली गरीब लेकिन संस्कारी लड़की शांति से प्यार कर लिया और शादी की जिद पकड़ ली। पिता राजेश्वर खन्ना को यह रिश्ता मंजूर नहीं था। उन्होंने समीर के सामने शर्त रखी – या तो दौलत, या प्यार। समीर ने प्यार चुना और एक रात हमेशा के लिए घर छोड़ दिया।

उसके बाद समीर का नाम लेना भी घर में मना हो गया। आरव उस वक्त 20 साल का था। भाई के जाने का दर्द उसके दिल में छुप गया। उसने अपने जज्बातों को दबाकर खुद को बिजनेस में झोंक दिया। वह पिता की उम्मीदों पर खरा उतरना चाहता था, ताकि उनके दिल में बड़े बेटे की कमी न रहे। साल दर साल, आरव ने होटल और बिजनेस को बुलंदियों तक पहुंचा दिया, लेकिन उसका अपना दिल सूना ही रहा। उसे प्यार करने वाला कोई नहीं था, बस इज्जत और डर था।

मुंबई के दूसरे छोर पर धारावी की तंग गलियों में, शांति की दुनिया बसती थी। अब 40 साल की शांति एक थकी हुई लेकिन गरिमापूर्ण महिला थी। समीर के साथ बिताए 10 साल उसकी जिंदगी का सबसे खूबसूरत दौर थे। गरीबी में भी उन्होंने बहुत प्यार और इज्जत के साथ जिंदगी गुजारी। समीर एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करता था। उनका बेटा रोहन जन्मा तो खुशियों के रंग और गहरे हो गए। लेकिन किस्मत को उनकी खुशी मंजूर नहीं थी। एक रात समीर की लोकल ट्रेन हादसे में मौत हो गई। शांति टूट गई, लेकिन अपने पांच साल के बेटे रोहन के लिए उसने जीने का फैसला किया।

शांति ने कभी अपने ससुराल वालों को ढूंढने की कोशिश नहीं की, क्योंकि समीर ने वादा लिया था कि वह कभी उस घर में नहीं जाएगी जिसने उसके प्यार का अपमान किया था। शांति घरों में काम करती, कपड़े सिलती, जो भी काम मिलता करती ताकि बेटे को अच्छी परवरिश दे सके। रोहन अब 10 साल का था, सरकारी स्कूल में पढ़ता था, अपनी मां की तरह शांत और समझदार।

कुछ महीने पहले शांति की किस्मत और बिगड़ गई। उसकी नौकरी चली गई, घर का किराया सिर पर था, रोहन की फीस देनी थी। पड़ोसन ने द ग्रैंड ओरिएंटल होटल में सफाई कर्मचारी की नौकरी के बारे में बताया। शांति ने कभी बड़े होटल में काम नहीं किया था, लेकिन बेटे के लिए सब कुछ करने को तैयार थी। उसे नौकरी मिल गई। रोज सुबह धारावी से निकलकर लोकल ट्रेन से बांड्रा की चमकदमक वाली दुनिया में पहुंचती, होटल के फर्श और कमरों को चमकाती, शाम को अंधेरी खोली में लौट आती। उसका दिल हमेशा डर और उदासी से भरा रहता था।

एक दिन सुबह, रोहन स्कूल के लिए तैयार हो रहा था, अचानक चक्कर खाकर गिर पड़ा। उसका चेहरा पीला पड़ गया। शांति घबरा गई, उसे पास के क्लीनिक ले गई। डॉक्टर ने बताया – रोहन के दिल में जन्म से ही एक छोटा सा छेद है, अब वह बड़ा हो गया है, ओपन हार्ट सर्जरी जरूरी है। खर्च – पांच लाख रुपये। शांति के लिए यह आसमान गिरने जैसा था। वह रोती-बिलखती घर लौटी, कोई रास्ता नहीं था। लेकिन काम पर जाना जरूरी था, वरना दिहाड़ी कट जाती। वह बेटे को पड़ोसन के भरोसे छोड़कर भारी दिल के साथ होटल पहुंची।

आज उसका मन कहीं और था, आंखों के सामने बेटे का पीला चेहरा घूम रहा था। उसे लॉबी के पास बने गेस्ट वाशरूम की सफाई का काम दिया गया। अंदर जाकर दरवाजा बंद किया, जमीन पर बैठकर साड़ी का पल्लू मुंह में ठूसकर फूट-फूट कर रोने लगी। उसे लगा कोई उसकी सिसकियां न सुने।

उसी वक्त आरव खन्ना एक बड़ी मीटिंग खत्म करके लॉबी से गुजर रहा था। उसे अंदर से सिसकियों की आवाज सुनाई दी। वह रुका, माथे पर बल पड़ गए। उसके होटल में अनुशासन जरूरी था, कोई कर्मचारी रो रहा है – यह अव्यवस्था थी। उसने जनरल मैनेजर मिस्टर फर्नांडिस को बुलाया। फर्नांडिस ने दरवाजा खटखटाया, कोई जवाब नहीं आया। आरव ने खुद दरवाजा खोला – शांति बाहर निकली, आंखें लाल, डर के मारे कांप रही थी।

आरव गुस्से में था, डांटने ही वाला था, लेकिन उसकी नजर शांति की आंखों पर पड़ी। उसमें वही दर्द दिखा जो उसने अपनी मां की आंखों में देखा था जब समीर चला गया था। आरव का गुस्सा पिघल गया। उसने नरम आवाज में पूछा, “क्या हुआ? तुम रो क्यों रही हो?” शांति सिर झुकाए रही। आरव ने फिर पूछा, “कोई परेशानी है?” शांति ने सिर हिलाया। आरव ने कहा, “मैं मदद करना चाहता हूं, बताओ क्या हुआ?”

आरव की आवाज में नरमी और अपनापन था। शांति का सब्र टूट गया। वह वहीं बैठ गई, रोते-रोते अपनी पूरी कहानी कह सुनाई – बेटे की बीमारी, ऑपरेशन का खर्च, बेबसी। वह एक मालिक से नहीं, एक इंसान से अपने बच्चे की जिंदगी की भीख मांग रही थी। आरव खामोशी से सुनता रहा। एक मां का दर्द उसकी अपनी मां के दर्द से जुड़ गया। उसने बस इतना पूछा, “तुम्हारे बेटे का नाम क्या है, वह कहां है?” शांति ने बताया। आरव ने कहा, “आज काम मत करो, घर जाओ।”

शांति को लगा साहब ने बस हमदर्दी दिखाई है, इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा। वह भारी दिल से घर लौट गई। लेकिन आरव अपने ऑफिस नहीं गया। उसने अपने पुराने दोस्त, शहर के सबसे बड़े हार्ट हॉस्पिटल के चीफ कार्डियक सर्जन डॉक्टर मेहरा को फोन किया। केस की गंभीरता बताई, कहा – “पैसों की चिंता मत करो, बच्चा जिंदा चाहिए।” फिर अपनी गाड़ी निकालकर धारावी की गलियों में पहुंच गया। लोग हैरान थे – इतना अमीर आदमी झुग्गी में क्यों?

आरव ने शांति की खोली तक पहुंचकर देखा – शांति बेटे को गोद में लिए बैठी थी, रोहन दर्द से पीला पड़ा था। तभी एंबुलेंस आई, डॉक्टर-नर्स अंदर आए, रोहन को स्ट्रेचर पर लिटाकर ले जाने लगे। शांति रोती हुई पूछ रही थी – “मेरे पास पैसे नहीं हैं!” आरव ने कहा, “चिंता मत करो, इलाज की जिम्मेदारी मेरी है।”

अगले कुछ दिन शांति के लिए किसी सपने जैसे थे। रोहन अस्पताल के सबसे अच्छे कमरे में, बेहतरीन डॉक्टर देखभाल कर रहे थे। आरव एक पल के लिए भी उन्हें अकेला नहीं छोड़ता था। ऑपरेशन का दिन आया, शांति मंदिर में बैठकर दुआ कर रही थी, आरव भी उसके साथ। ऑपरेशन सफल रहा, रोहन खतरे से बाहर था।

जिस दिन रोहन को होश आया, आरव मिलने गया। रोहन ने उसकी कलाई पर बंधी चांदी की राखी देखी, बोला – “यह मेरे पापा की राखी जैसी है।” शांति ने एक पुरानी तस्वीर दिखाई – उसकी और समीर की शादी की तस्वीर। आरव ने तस्वीर देखी, हाथ कांपने लगे। दूल्हा कोई और नहीं, उसका अपना खोया हुआ भाई समीर था। आरव फूट-फूट कर रो पड़ा, शांति के पैर छूने की कोशिश की। “मैं आपका मालिक नहीं, देवर हूं। समीर भैया का छोटा भाई।”

कमरे में सन्नाटा छा गया। शांति पत्थर की हो गई। आरव ने सब बताया – अपने परिवार के बारे में, भाई के जाने का दर्द। उस दिन दो टूटे दिल आंसुओं में फिर से जुड़ गए।

उस शाम आरव, शांति और रोहन को लेकर दिल्ली गया। खन्ना मेंशन के दरवाजे पर पहुंचे – राजेश्वर और गायत्री खन्ना बेटे को देखकर हैरान थे। शांति और रोहन को देखकर सब समझ गए। राजेश्वर ने पोते को सीने से लगा लिया, गायत्री बहू से लिपटकर रो पड़ी। उस रात सालों बाद एक परिवार फिर से एक हो गया।

आरव ने शांति को उसका सम्मान, अधिकार और खन्ना ग्रुप में हिस्सा दिया। रोहन को बेहतरीन शिक्षा मिली, वह अपने ताऊ के नक्शे कदम पर चलकर बड़ा बिजनेसमैन बना। आरव को वह मिल गया जिसे वह सालों से ढूंढ रहा था – परिवार, भाभी का प्यार और भतीजे की हंसी।

यह कहानी हमें सिखाती है – किस्मत के धागे टूटते नहीं, खून के रिश्ते कभी नहीं मरते, और सच्ची नेकी कभी बेकार नहीं जाती।