करोड़पति ने देखा बेघर लड़की उसकी बेटी को पढ़ा रही है – आगे जो हुआ सबको चौंका गया
शालिनी – फुटपाथ से सफलता तक की कहानी
शालिनी नाम की 12 साल की लड़की दिल्ली की गलियों में अपनी मानसिक रूप से बीमार मां के साथ भीख मांगती थी। उसके पिता का कोई अता-पता नहीं था, मां अक्सर कहती थी – “वो बारिश में आया था, फिर चला गया।” छोटी उम्र में ही शालिनी बड़ी हो गई थी। मां को खाना खिलाना, गालियां सहना, ठंडी सड़क पर मां को ढककर सो जाना – यही उसकी दिनचर्या थी।
शालिनी दो साल स्कूल जा चुकी थी, लेकिन फीस न दे पाने की वजह से उसे स्कूल से निकाल दिया गया। भले ही वह अक्सर भूखी सो जाती थी, लेकिन उसका सपना बड़ा था – पढ़ाई करके अपनी किस्मत बदलना।
लक्ष्मी आंटी से मुलाकात
एक दिन जब शालिनी अपनी मां के साथ सड़क किनारे बैठी थी, लोग आते-जाते कुछ सिक्के फेंक देते, कुछ बुरा भला कह जाते। तभी सामने की चाय की दुकान वाली लक्ष्मी आंटी ने उसे देखा। गोलमटोल शरीर, गोरा रंग, आंखों में दया।
“बेटी तेरा नाम क्या है?”
“शालिनी।”
“तेरी मां बीमार है ना?”
शालिनी ने सिर हिलाया।
आंटी ने अपनी दुकान से पराठा-सब्जी मंगवाई, “ले खा ले, भूखी होगी।”
शालिनी महीनों बाद इतना अच्छा खाना खा रही थी। धीरे-धीरे लक्ष्मी आंटी उससे बातें करने लगीं। एक दिन बोलीं, “कल मेरी दुकान पर आना, सफाई कर देगी, बदले में खाना मिलेगा।”
अगले दिन शालिनी पहुंची। उसने झाड़ू लगाई, बर्तन धोए, ग्राहकों को चाय दी। आंटी उसे सिखाती, “मुस्कुरा कर काम करो, लोग भी अच्छा बर्ताव करेंगे।”
शाम को जब दुकान खाली होती, शालिनी जमीन पर आड़ी-तिरछी संख्याएं लिखती।
“यह कहां से सीखा?”
“सड़क के पास वाले स्कूल की मैडम को देख-देख कर।”
लक्ष्मी आंटी ने उसे कॉपी-पेंसिल दी और पास के सरकारी स्कूल में दाखिले का इंतजाम कर दिया।
थ्रिफ्ट मार्केट से मिली पुरानी यूनिफार्म पहनाई गई। शालिनी को खुद पर राजकुमारी जैसा एहसास हुआ।
“अच्छे से पढ़ना, मुझे गर्व दिलाना।”
स्कूल में पहले दिन बच्चे उसे घूरते रहे, लेकिन जब टीचर ने सवाल पूछा और शालिनी ने तुरंत जवाब दिया, सबकी नजर बदल गई। वह बेहद होशियार थी।
हेडमिस्ट्रेस ने पूछा, “किसने सिखाया इसे?”
“लक्ष्मी आंटी ने।”
दिन बीतते गए, शालिनी सुबह स्कूल जाती, शाम को आंटी की दुकान पर काम करती।
आंटी का जाना, संघर्ष की वापसी
एक दिन आंटी ने उसे बुलाया, आंखों में आंसू थे।
“बेटा, मेरी बहन ने 7 साल बाद अमेरिका से बुलावा भेजा है। मुझे जाना पड़ेगा।”
शालिनी का दिल धड़कने लगा, “तो हम साथ जा रहे हैं?”
“काश ऐसा हो पाता, लेकिन वहां सिर्फ मुझे ही जगह मिली है। मैंने तेरी स्कूल फीस इस टर्म तक भर दी है, आगे भगवान जरूर रास्ता निकालेगा।”
कुछ हफ्तों बाद आंटी चली गई। दुकान किसी और के हाथ में चली गई। टर्म पूरा होने पर स्कूल ने फीस मांगी।
“सॉरी, बिना फीस के हम तुझे नहीं रख सकते।”
शालिनी घंटों गेट पर खड़ी रही, चाहती थी कि आंटी लौट आए – लेकिन कोई नहीं आया।
अब पुराना फुटपाथ भी छिन चुका था, वहां एक शराबी ने कब्जा कर लिया था।
शालिनी मां के साथ नई जगह ढूंढती रही। मां की हालत और बिगड़ती गई। कभी खुद से बातें करती, कभी शालिनी पर बरस जाती।
सपनों की जिद
एक रात उसने मां को मरे कबूतर को रोटी खिलाते देखा।
“मां चलो सुरक्षित जगह चलते हैं।”
आरती ने उसे धक्का दे दिया।
शालिनी चुपचाप पास बैठ गई।
अगली सुबह उसने फिर वही बड़ी यूनिफार्म पहनी और स्कूल के गेट पर पहुंची।
“मैं पढ़ना चाहती हूं, फीस मैं दूंगी।”
“कैसे? तू और तेरी मां तो खुद खाती नहीं ठीक से।”
शब्द तीर की तरह लगे।
शालिनी बाहर बैठी रही।
दिन हफ्तों में बदले।
शालिनी ने छोटे-मोटे काम करके कुछ पैसे कमाए – कभी जूते पॉलिश, कभी सामान ढोना।
उन पैसों से मां और खुद का पेट भरती।
यूनिफार्म फीकी पड़ चुकी थी, लेकिन आंखों की चमक अभी भी जिंदा थी।
हर रात आंसू उसके गाल भिगोते, लेकिन दिल से वह यही कहती, “एक दिन सब बदल जाएगा, बस पढ़ाई नहीं छोड़नी है।”
सड़कों पर पढ़ाई
हर सुबह वह मां को संभाल कर निकलती और किसी ना किसी स्कूल की दीवार के पास जाकर बैठ जाती।
खिड़की से झांककर बच्चों को पढ़ते देखती, मिट्टी में उंगली से वही अक्षर लिखती – ए, बी, सी।
लेकिन बच्चे उसे देखकर हंसते, “पागल लड़की फिर आ गई।”
टीचर बाहर आई, “यह स्कूल है, चैरिटी नहीं, जा यहां से।”
शालिनी ने हाथ जोड़कर कहा, “मैम मैं सिर्फ सुनना चाहती हूं, पढ़ना चाहती हूं।”
लेकिन उसे डांटकर भगा दिया गया।
नई दोस्ती की शुरुआत
एक दिन वह एक प्राइवेट स्कूल ‘सिटी हाइट्स एकेडमी’ की दीवार के पास बैठी थी।
बच्चों को टाइम टेबल दोहराते सुन रही थी।
अचानक किसी बच्चे ने पत्थर फेंका, “चुड़ैल भाग यहां से।”
पत्थर उसके कंधे पर लगा, दर्द हुआ लेकिन शालिनी नहीं हिली।
अगले दिन सिक्योरिटी गार्ड ने पकड़ लिया, “चोरी करने आई है क्या?”
“नहीं सर, मैं बस पढ़ना चाहती हूं।”
गार्ड ने धक्का दिया, “दोबारा आई तो पीटूंगा।”
शालिनी लंगड़ाती हुई लौटी।
लेकिन उसी रात मिट्टी में बैठकर उसने फिर गुणा-भाग लिखना शुरू किया – छह को तीन से भाग दो, दो।
दुनिया उसे तोड़ने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसका दिमाग अब भी तेज था।
जिया – अमीर दोस्त
एक दिन शालिनी ‘रॉयल क्रस्ट इंटरनेशनल’ स्कूल के गेट के पास पहुंची।
झाड़ियों से छिपकर कक्षा की खिड़की से झांकने लगी, शब्द कॉपी करने लगी।
तभी पीछे से आवाज आई, “तू वही है ना जिसे हमेशा भगाते हैं?”
शालिनी ने देखा – एक लड़की, चमकदार यूनिफार्म में, नाम – जिया गुप्ता।
“मैं कोई नुकसान नहीं करूंगी, बस सुन रही थी।”
“क्यों?”
“क्योंकि मैं पढ़ना चाहती हूं।”
जिया चुप हो गई, फिर बोली, “क्या तुम मुझे पढ़ा सकती हो?”
शालिनी ने किताब उठाई और समझाने लगी।
कुछ ही मिनट में जिया ने सवाल हल कर लिया।
“वाह, मैं समझ गई!”
उस दिन से दोनों के बीच अनोखा रिश्ता बन गया।
बेल बजी, जिया ने कहा, “कल फिर आएगी।”
शालिनी हिचकी, “मुझे भगाएंगे।”
जिया ने सिक्योरिटी गार्ड को बुलाया, “यह मेरी दोस्त है, इसका आना मना मत करना, मेरे पापा इस स्कूल के मालिक हैं।”
उस रात शालिनी ने तारों की ओर देखकर प्रार्थना की, “भगवान, आज पहली बार किसी ने मुझे देखा है, कृपया यह सपना ना टूटे।”
दोस्ती, सपोर्ट और बदलाव
अब शालिनी और जिया की दोस्ती गहरी हो गई थी।
हर दोपहर वे आम के पेड़ की छांव में मिलतीं।
जिया लंच बॉक्स और किताबें लाती, शालिनी नंगे पैर, फटे कपड़ों में लेकिन चमकती आंखों के साथ आती।
जिया की जिंदगी में पहली बार हंसी लौट आई थी।
क्लास में उसका ध्यान बढ़ने लगा।
“रोबोट की तरह मत पढ़, जैसे दोस्त से बात कर रही हो।”
शालिनी ताली बजाती, “कोई मेरे लिए कभी ताली नहीं बजाता।”
“लेकिन तुम तो अमीर हो!”
“बस पार्टी में डांस पर या पापा की बातों पर, क्लास में नहीं।”
शालिनी ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया, “तुझे और चाहिए – ताली, हंसी, दोस्ती सब।”
अब वे छोटी-छोटी खुशियां भी बांटने लगीं।
जिया कभी हेयर ब्रश, कॉपी या चप्पल देती, बदले में शालिनी कहानियां सुनाती – सड़क की बच्चियों की, बारिश से ठीक हो जाने वाली मांओं की।
दोस्ती गुप्त थी, जिया ने टीचर्स, क्लासमेट्स और पापा से छिपा रखा था।
क्योंकि उसके पिता – चीफ गुप्ता – दिल्ली के मशहूर बिजनेसमैन थे।
पिता का सामना
एक दिन स्कूल के गेट पर काला एसयूवी रुका, सूट पहने स्टाफ भागने लगे।
गाड़ी से उतरे चीफ गुप्ता।
शालिनी धूल से सनी, मुस्कुराती – “मैं आ गई।”
जिया ने सिर झुका लिया।
शालिनी फुसफुसाई, “मुझे जाना चाहिए…”
लेकिन अब देर हो चुकी थी।
चीफ गुप्ता ने दोनों को देखा, “जिया, यह सब क्या है?”
“पापा, यह मेरी दोस्त है शालिनी। यही मुझे पढ़ाती है, इसी की वजह से मैं क्लास समझ पाती हूं।”
चीफ ठिटक गए, उनकी नजरें शालिनी पर – फटे कपड़े, थका चेहरा, पुराना बैग।
“तेरे माता-पिता?”
“पिता नहीं जानते, मां बीमार है, हम सड़क पर रहते हैं।”
“और स्कूल क्यों नहीं जाती?”
“फीस देने वाला कोई नहीं…”
जिया ने उसका हाथ कसकर थाम लिया, “प्लीज पापा, प्रॉमिस कीजिए इसे मत भगाइए।”
चीफ ने दोनों को देखा – दो अलग दुनियाओं की लड़कियां, फिर भी एक दूसरे के लिए सच्ची।
धीरे से कहा, “प्रॉमिस।”
नई शुरुआत
उनका काफिला दिल्ली के मील 12 इलाके में पहुंचा।
शालिनी ने कांपते हाथ से इशारा किया, “वहीं मां रहती है।”
आरती सड़क किनारे बैठी थी, नंगे पैर, बोतल से बातें करते हुए।
चीफ गुप्ता झुककर बोले, “मैडम…”
आरती ने सिर उठाया, हंस पड़ी, “क्या लाए मेरे पंख?”
शालिनी की आंखें भर आईं।
उन्होंने तुरंत आदेश दिया – “डॉक्टर अंजल को बुलाओ, इलाज शुरू करो।”
उस शाम शालिनी ने पहली बार साबुन से नहाया।
जिया ने उसे पजामा पहनाए, बाल संवारे गए।
आईने में खुद को देखकर शालिनी को यकीन ही नहीं हुआ – यह वही सड़क की बच्ची है।
चीफ गुप्ता ने कहा, “अब यह हमारे साथ रहेगी।”
स्कूल में नई पहचान
अगली सुबह शालिनी रॉयल क्रेस्ट की नई यूनिफार्म में खड़ी थी।
जिया ने ताली बजाई, “तू मेरे जैसी लग रही है।”
शालिनी मुस्कुराई, “मुझे सपना लग रहा है।”
“नहीं, पापा ने कहा है यह हकीकत है।”
स्कूल में टीचर्स हैरान थे – हर सवाल का जवाब शालिनी तुरंत देती।
प्रिंसिपल ने कहा, “यह सड़क से आई है, लेकिन अब परिवार का हिस्सा है।”
डॉक्टर अंजल ने बताया, “आरती का इलाज संभव है, लेकिन समय लगेगा।”
महीनों बाद जब शालिनी मां से मिली, आरती ने उसकी आंखों में पहचान भर दी, “मेरी बेटी…”
अब शालिनी की जिंदगी बदल चुकी थी – रॉयल क्रेस्ट की यूनिफार्म, क्लासरूम, लेकिन दिल के अंदर वही बच्ची थी जिसने फुटपाथ पर बैठकर किताबों का सपना देखा था।
सफलता की उड़ान
शुरुआती दिनों में बच्चे उसे अजीब नजरों से देखते – “यह वही है ना सड़क से आई हुई…”
कुछ फुसफुसाते, “भिखारन अब हमारे साथ पढ़ेगी…”
शालिनी चुप रहती।
लेकिन जब टीचर्स सवाल पूछते और वह तुरंत सही जवाब देती, वही बच्चे चुप हो जाते।
धीरे-धीरे टीचर्स भी कहने लगे, “यह बच्ची एक्स्ट्राऑर्डिनरी है।”
गुप्ता हाउस की चमकदमक के बीच भी शालिनी का दिल मां के पास ही अटका रहता।
रात को जब जिया सो जाती, वह खिड़की से आसमान देखती और सोचती – क्या मैं सचमुच इस दुनिया का हिस्सा हूं या यह सपना कभी टूट जाएगा?
डॉक्टर अंजल ने आरती का इलाज शुरू कर दिया था।
कभी वह पहचान लेती, “शालिनी मेरी बेटी…”
कभी फिर से चुप हो जाती या रोने लगती।
लेकिन इलाज असर दिखा रहा था।
दवाइयों और थेरेपी से धीरे-धीरे उसकी हालत सुधरने लगी।
एक दिन उसने शालिनी को गले लगाकर कहा, “तुम मेरी शालिनी हो, मैं जानती हूं।”
शालिनी के आंसू रुकते नहीं थे, लेकिन इस बार खुशी के थे।
दोस्ती की मिसाल
जिया और शालिनी की दोस्ती और गहरी हो चुकी थी।
लोग बातें बनाते, “जिया सिर्फ इसलिए पास होती है क्योंकि शालिनी उसे पढ़ाती है…”
जिया गर्व से कहती, “हां, पढ़ाती है, और इसी में मेरी सबसे बड़ी जीत है कि मेरी दोस्त इतनी होशियार है।”
उनकी दोस्ती अब मजाक नहीं, सबके लिए मिसाल बन रही थी।
एक दिन प्रिंसिपल ने कहा, “शालिनी, तुम्हें स्कॉलरशिप एग्जाम देना चाहिए। अगर पास हुई तो आगे की पढ़ाई मुफ्त होगी और तुम्हारे लिए नए दरवाजे खुलेंगे।”
शालिनी ने झिझक कर जिया की ओर देखा।
जिया ने उसका हाथ कस के पकड़ लिया, “तू जरूर पास होगी और मैं हर कदम पर तेरे साथ हूं।”
सपनों की जीत
एग्जाम का दिन आ गया।
शालिनी की आंखों में मां की तस्वीर थी, दिल में जिया का भरोसा, दिमाग में सारी मेहनत।
जब उसने आखिरी सवाल हल किया तो उसके होठों पर मुस्कान थी – “मैं कर सकती हूं।”
कुछ हफ्तों बाद रिजल्ट आया – “स्कॉलरशिप एग्जाम टॉपर शालिनी!”
बच्चों ने ताली बजाई, टीचर्स ने सराहा।
जिया सबसे ज्यादा खुश थी।
चीफ गुप्ता की आंखों में गर्व था।
लेकिन सबसे बड़ी जीत उस दिन मिली जब आरती इलाज के बाद पहली बार पूरी होश में अपनी बेटी को गले लगाकर बोली, “मेरी शालिनी, तूने कर दिखाया।”
अब शालिनी के पास सिर्फ स्कूल नहीं बल्कि पूरा भविष्य था।
मां का इलाज जारी था, दोस्ती पहले से मजबूत थी, पढ़ाई का रास्ता खुल चुका था।
उसने आकाश की ओर देखा और मन ही मन कहा, “भगवान, अब मैं सिर्फ सपने नहीं देखूंगी, उन्हें पूरा भी करूंगी।”
सीख
शालिनी की कहानी हमें सिखाती है कि कोई भी बच्चा बेकार या बेवजह पैदा नहीं होता। अगर उसे शिक्षा मिले और जरा सा प्यार तो वह अपनी किस्मत खुद लिख सकता है।
याद रखिए, इंसान की असली पहचान उसकी परिस्थितियों से नहीं, उसकी मेहनत और क्षमता से होती है।
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जय हिंद!
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