करोड़पति माँ VIP कार में बैठकर जा रही थी; उन्हीं का बेटा फुटपाथ पर उनसे भीख माँगने आ गया और फिर…

एक मां और बेटे की भावुक कहानी – आंचल और दीपक

दिल्ली की भीड़भाड़ भरी सड़कों पर हर रोज़ एक कार रुकती थी, जिसमें पवन अपनी पत्नी आंचल के साथ बैठा होता था। नेहरू प्लेस की रेड लाइट पर जब भी ट्रैफिक रुकता, कई बच्चे उनकी कार को घेर लेते – कोई भीख मांगता, कोई सामान बेचता, कोई शीशा साफ करता। उन्हीं बच्चों में एक था – दीपू, लगभग 10-11 साल का मासूम बच्चा। कभी गुब्बारे बेचता, कभी पेन, कभी गुलाब का फूल।

धीरे-धीरे आंचल को वह बच्चा बेहद प्यारा लगने लगा। उसकी मासूम बातें, भोला चेहरा, छोटी-छोटी खुशियां आंचल का दिल जीत लेतीं। वह जब भी दीपू से कुछ खरीदती, चुपके से उसे पैसे भी दे देती। दोनों के बीच एक अनकही दोस्ती हो गई थी।

एक दिन दीपू गायब था।
आंचल ने उसे ढूंढा, लेकिन वह नहीं मिला। दूसरे बच्चों से पूछा तो पता चला – दीपू का एक्सीडेंट हो गया है, हालत बहुत खराब है। वह संगम विहार की झुग्गियों में रहता था। आंचल का दिल बैठ गया। उसने पवन से कहा – मुझे दीपू के घर ले चलो। पवन ने उसे वहीं उतार दिया, और आंचल एक बच्चे के साथ दीपू के घर पहुंची।

वहां एक बुजुर्ग महिला बैठी थी – दीपू की दादी। जैसे ही आंचल ने उसे देखा, पहचान गई। दादी भी आंचल को पहचान गईं। दोनों फूट-फूट कर रोने लगीं। दादी बोली – “मैं तेरे बेटे को नहीं बचा सकी…”
आंचल हैरान – “क्या वह मेरा बेटा दीपक था?”
दादी ने सिर हिलाया – “हां, यही तेरा दीपक है।”

अब कहानी फ्लैशबैक में जाती है।
आंचल लखनऊ की रहने वाली थी। 18-19 साल की उम्र में उसे दीपक नाम के लड़के से प्यार हो गया। घर वालों की मर्जी के खिलाफ शादी कर ली। एक साल बाद बेटा हुआ – नाम रखा दीपक। लेकिन शादी का फैसला गलत था। दीपक गैंगस्टर था, हिस्ट्रीशीटर, एक दिन दुश्मनों ने मार दिया।
आंचल ने बेटे को पालने का फैसला किया। लेकिन उसके माता-पिता लौट आए – “बेटी, दूसरी शादी कर लो, लेकिन बच्चे को भूलना पड़ेगा।”
दीपक के दादा-दादी बोले – “यह हमारा खून है, हम इसे पालेंगे।”
आंचल मजबूरी में बेटे को छोड़कर अपने माता-पिता के घर चली गई। बहुत रोई, लेकिन नई जिंदगी शुरू करनी पड़ी। माता-पिता ने पवन के साथ उसकी शादी तय कर दी। सब कुछ छुपा लिया – न पहली शादी का जिक्र, न बेटे का।

पवन दिल्ली में रहता था – पढ़ा-लिखा, अच्छा परिवार। आंचल से शादी करके बहुत खुश था। दोनों मिलकर कंप्यूटर की दुकान चलाते थे। आंचल फिर से मां बनने वाली थी – 6 महीने की प्रेग्नेंट थी।

उधर दीपू की जिंदगी संघर्षों से भरी थी।
दादी ने उसे पाला, लेकिन परिवार में झगड़े होते रहे। बुआ दिल्ली ले आई, संगम विहार की झुग्गियों में रहने लगी। दादी मजदूरी करती, दीपू ने दोस्तों से सीखा – पैसे कमाने के लिए रेड लाइट पर सामान बेचना।
गुब्बारे, पेन, फूल – जो मिलता, बेचता।
यहीं उसकी मुलाकात अपनी मां आंचल से हुई – लेकिन मां-बेटा एक-दूसरे को पहचान नहीं पाए।

एक्सीडेंट के बाद अस्पताल में…
आंचल दीपू के पास पहुंची। उसकी दादी, बुआ, पड़ोसी – सब दुख में डूबे थे। डॉक्टर बोले – हालत गंभीर है, बचने की उम्मीद कम है।
आंचल ने पवन को फोन किया – “माफ करना, मैं आज नहीं आ पाऊंगी।”
पवन नाराज हुआ – “इतना इमोशनल मत बनो, किसी अनजान बच्चे के लिए इतना क्यों परेशान हो रही हो?”
आंचल कैसे बताती – वह बच्चा उसका अपना खून है!

तीसरे दिन दीपू को होश आ गया। आंचल दौड़ती हुई उसके पास गई। दीपू बोला – “आंटी, आप आ गईं?”
आंचल ने उसे सीने से लगा लिया – “बेटा, मैं आंटी नहीं, तुम्हारी मां हूं।”
दोनों फूट-फूट कर रोने लगे। डॉक्टर ने ज्यादा बात करने से मना किया, लेकिन मां-बेटे की मिलन की घड़ी थी।

पवन को सच्चाई पता चली।
वह संगम विहार आया, वहां से अस्पताल पहुंचा। सारा सच जानकर वह गुस्से में था – “तुम लोगों ने धोखा दिया, अब हमारा रिश्ता खत्म!”
आंचल चुप रही, बस दीपू की जान बच जाने का सुकून था।

एक हफ्ते बाद दीपू ठीक होकर घर लौट आया। आंचल ने पवन को फोन किया – नंबर ब्लॉक था। पवन के परिवार ने भी बात बंद कर दी थी।
10 दिन बाद पवन, उसकी मां और बहन संगम विहार आए। आंचल बेटे को सीने से लगाकर फूट-फूट कर रोने लगी। सास बोली – “चलो घर चलो, मां-बेटे को अलग करके पाप नहीं लेना चाहते। दीपू को भी साथ ले चलो, उसकी दादी को भी।”

पवन भी पिघल गया – “मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।”
सब मिलकर बदरपुर लौट आए। आंचल, दीपू, दादी, पवन – पूरा परिवार फिर से एक हो गया।

आज 6 साल बाद…
आंचल के दो और बच्चे हैं – एक बेटा, एक बेटी। दीपू उर्फ दीपक अब अपने छोटे भाई-बहन के साथ शानदार जिंदगी जी रहा है। बुआ भी आती-जाती है, पूरा परिवार खुश है।

सीख:
मां-बेटे का रिश्ता दुनिया का सबसे मजबूत रिश्ता है। हालात चाहे जैसे हों, एक बच्चे को उसकी मां से जुदा नहीं करना चाहिए।

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जय हिंद, जय भारत।