कैशियर लड़के ने साध्वी जी की मदद की, नौकरी गईलेकिन अगले ही दिन जो हुआ उसने सबको

“अच्छाई का फल”
कभी-कभी हमारी जिंदगी में…
कभी-कभी हमारी जिंदगी में कुछ ऐसा होता है जो हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या सच में इस दुनिया में अच्छाई की कोई कदर नहीं है। लेकिन किस्मत का खेल भी बड़ा अजीब होता है।
सुबह के 11 बजे थे। आदित्य वर्मा मुंबई के एक बड़े सुपर मार्केट में कैशियर के रूप में अपने काम पर पहुंच चुका था। उसकी मुस्कान के साथ ग्राहकों का स्वागत करना, बिलिंग करना और खुद को सबसे तेज और सटीक कैशियर साबित करना—यही उसकी रोजमर्रा की जिंदगी थी। आदित्य को यह नौकरी बहुत पसंद थी। वह साधारण परिवार से था और यह नौकरी उसके घर के लिए बहुत जरूरी थी। उसकी मां बीमार रहती थी और छोटे भाई की पढ़ाई का खर्च भी उसी के कंधों पर था।
लेकिन उसे क्या पता था कि आज की यह शिफ्ट उसकी जिंदगी को पूरी तरह बदल देगी।
साध्वी महिला और आदित्य का फैसला…
दोपहर के समय एक साध्वी महिला कांपते हुए हाथों से सामान की टोकरी काउंटर पर रखती है। आदित्य ने मुस्कान के साथ उनका स्वागत किया और बिलिंग करने लगा। “नमस्ते साध्वी महिला, कैसे हैं आप?” साध्वी महिला ने हल्की मुस्कान दी, “बेटा, बस किसी तरह गुजर-बसर कर रही हूं। दवाई भी लेनी थी, पर पहले राशन लेना जरूरी है।”
आदित्य ने सामान स्कैन किया—चावल, दाल, तेल, ब्रेड और कुछ सब्जियां। बिल हुआ 970 रुपये। साध्वी महिला ने अपनी जेब से कुछ सिक्के और मुड़े हुए नोट निकाले, लेकिन कुल मिलाकर पैसे कम पड़ गए। घबराकर उन्होंने तेल और ब्रेड वापस रखने की कोशिश की।
आदित्य के दिल में हलचल मच गई। एक साध्वी महिला, जो खुद के लिए दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पा रही, क्या उसे खाली हाथ भेजना सही है?
आदित्य ने इधर-उधर देखा। सुपरवाइजर दूर खड़ा था, सीसीटीवी कैमरा भी ठीक ऊपर था। लेकिन उसका दिल इस महिला को खाली हाथ नहीं जाने देना चाहता था। उसने अपनी जेब से 870 रुपये निकाले और चुपचाप काउंटर में डाल दिए। “साध्वी महिला, चिंता मत करिए। आपका बिल पूरा हो गया, सामान ले जाइए।”
साध्वी महिला की आंखें भर आईं। “बेटा, तुम बहुत नेक दिल हो। मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी।” आदित्य ने हंसते हुए कहा, “कोई एहसान नहीं, साध्वी महिला। बस यह समझिए कि आपकी पोती ने आपको उपहार दिया।”
साध्वी महिला ने उसे ढेर सारी दुआएं दीं और धीरे-धीरे बाहर चली गई। आदित्य को लगा कि उसने दिन का सबसे अच्छा काम किया था। लेकिन उसे नहीं पता था कि यही उसकी जिंदगी का सबसे मुश्किल दिन बनने वाला था।
सुपरवाइजर की सजा…
जैसे ही साध्वी महिला चली गई, सुपरवाइजर का चिल्लाना शुरू हो गया। “आदित्य, तुमने अभी क्या किया?” आदित्य घबरा गया। “सर, मैंने बस एक ग्राहक का बिल अपनी जेब से चुकाया।”
सुपरवाइजर गुस्से से लाल हो गया। “यह एक प्रोफेशनल जगह है, कोई चैरिटी सेंटर नहीं। हम यहां बिजनेस करने आए हैं, दान देने नहीं।” आदित्य ने समझाने की कोशिश की, लेकिन सुपरवाइजर ने हाथ उठा दिया। “कोई बहस नहीं। तुम अब और इस सुपर मार्केट में काम नहीं कर सकते। तुम्हें अभी और इसी वक्त नौकरी से निकाल दिया जाता है।”
आदित्य के पैरों तले जमीन खिसक गई। इतनी छोटी सी मदद और इतनी बड़ी सजा। उसकी आंखें छलक आईं, लेकिन वह खुद को संभालते हुए बोला, “ठीक है सर। अगर इंसानियत की कोई जगह नहीं है तो मैं भी यहां काम नहीं करना चाहूंगा।”
सिक्योरिटी गार्ड ने उसका बैज और यूनिफार्म ले लिया। आदित्य ने अपना छोटा सा बैग उठाया और बिना कुछ बोले सुपर मार्केट के दरवाजे से बाहर निकल गया। बाहर आते ही उसकी आंखों से आंसू गिर पड़े।
नया मोड़…
अब आगे क्या होगा? क्या उसने जो किया वह गलत था? क्या अब उसे कोई और नौकरी मिलेगी? लेकिन उसे क्या पता था कि यह सिर्फ एक नई शुरुआत थी।
शाम के 5 बजे थे। आदित्य एक पार्क के बेंच पर अकेला बैठा था। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन वह उन्हें गिरने नहीं दे रहा था। “एक छोटी सी मदद के बदले मेरी पूरी नौकरी चली गई,” वह खुद से ही सवाल कर रहा था।
तभी उसके फोन की घंटी बजी। स्क्रीन पर मां का नाम चमक रहा था। उसने कांपते हुए फोन उठाया। “हेलो मां।”
मां की आवाज आई, “बेटा, तू ठीक तो है? तेरा चेहरा बहुत बुझा हुआ लग रहा था। सब ठीक तो है?”
आदित्य ने एक गहरी सांस ली। “हां मां, सब ठीक है। बस आज का दिन थोड़ा अजीब था।” वह मां को सच बताना चाह रहा था, लेकिन नहीं चाहता था कि मां चिंता करें। “ठीक है बेटा, जल्दी घर आ जाना। मैंने तेरा पसंदीदा खाना बनाया है।”
फोन काटने के बाद उसकी आंखों से एक और आंसू टपक पड़ा। क्या सच में सब ठीक था?
असली पहचान…
अचानक एक महंगी गाड़ी उसके सामने रुकी। ड़डी से उतरते ही वही साध्वी महिला दिखीं, जिन्हें उसने सुबह मदद की थी। उन्होंने आदित्य को देखा और कहा, “बेटा, तू यहां इस तरह क्यों बैठा है, क्या हुआ?”
आदित्य हिचकिचाया, “कुछ नहीं साध्वी महिला, बस यूं ही।”
साध्वी महिला ने गहरी सांस ली और कहा, “बेटा, मुझे सब पता है। मैं सुबह से तुझे ढूंढ रही थी।”
आदित्य ने सिर झुका लिया और धीरे से बोला, “साध्वी महिला, आज मुझे मेरी नौकरी से निकाल दिया गया, सिर्फ इसलिए क्योंकि मैंने आपकी मदद की थी।”
साध्वी महिला के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं। “क्या सिर्फ मदद करने के लिए?”
आदित्य ने सिर हिलाया, “हां, मेरे सुपरवाइजर को यह पसंद नहीं आया।”
साध्वी महिला कुछ देर तक चुप रहीं, फिर हल्की मुस्कान आई। “बेटा, तुझे क्या लगता है, तूने जो किया वह गलत था?”
“नहीं साध्वी महिला, मुझे लगता है मैंने सही किया। लेकिन इस दुनिया में शायद अच्छाई की कोई कदर नहीं।”
साध्वी महिला ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, अच्छाई की कदर देर से होती है, पर होती जरूर है।”
तभी साध्वी महिला ने एक ऐसा खुलासा किया जिसे सुनकर आदित्य के पैरों तले जमीन खिसक गई। “जिस सुपर मार्केट ने तुझे निकाला, वह मेरा ही है।”
आदित्य के चेहरे पर हैरानी थी। “तो आप इस पूरे सुपर मार्केट की मालिक हैं?”
साध्वी महिला हंस पड़ीं। “हां बेटा, और तूने जिस इंसान की मदद की, वह कोई आम आदमी नहीं बल्कि उसी कंपनी का मालिक है।”
आदित्य की आंखों में आंसू आ गए। “मुझे नहीं पता था, मैंने बस यह सोचकर मदद की थी कि आपको जरूरत है।”
साध्वी महिला ने प्यार से उसके सिर पर हाथ रखा। “यही तो तेरा सबसे बड़ा गुण है बेटा। तूने बिना किसी लालच के मेरी मदद की और अब मैं तुझे इसका इनाम देना चाहती हूं। अब से तू इसी सुपर मार्केट का नया मैनेजर होगा।”
आदित्य को लगा कि उसके कानों ने कुछ गलत सुना है। साध्वी महिला ने सिर हिलाया, “हां बेटा, मैंने फैसला कर लिया है। जिस लड़के को मैंने आज मदद करते देखा, वही इस सुपर मार्केट का असली लायक मैनेजर बन सकता है।”
“लेकिन मेरा तो कोई अनुभव भी नहीं है।”
साध्वी महिला मुस्कुराई, “तेरे पास दिल है, ईमानदारी है और लोगों की मदद करने का जज्बा है। एक अच्छे लीडर में यही गुण होने चाहिए।”
अच्छाई का फल…
आदित्य की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए। उसकी जिंदगी में एक ही दिन में कितना कुछ बदल गया था। सुबह उसे नौकरी से निकाल दिया गया था और अब वही कंपनी उसे मैनेजर बना रही थी।
अगले दिन आदित्य उसी सुपर मार्केट में फिर से पहुंचा, लेकिन इस बार वह कैशियर नहीं था। वह सुपर मार्केट का नया मैनेजर था। जब उसके सुपरवाइजर ने उसे देखा तो हैरान रह गया। “तुम यहां क्या कर रहे हो?”
आदित्य मुस्कुराया, “अब से मैं यहां का नया मैनेजर हूं और सबसे पहले मैं यहां की पॉलिसी बदलने जा रहा हूं।”
साध्वी महिला ने आगे बढ़कर कहा, “अब से इस सुपर मार्केट में इंसानियत की भी जगह होगी। अगर कोई जरूरतमंद आता है तो उसे इज्जत दी जाएगी, ना कि धक्के मारकर निकाला जाएगा।”
आदित्य ने गहरी सांस ली और कहा, “यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा सबक था कि अच्छाई कभी बेकार नहीं जाती। अच्छाई का फल देर से मिलता है, लेकिन जरूर मिलता है।”
आदित्य की मेहनत और ईमानदारी ने उसे एक नई पहचान दिलाई। जो लड़का कल तक नौकरी के लिए परेशान था, वह आज पूरे सुपर मार्केट की मालिक की सबसे बड़ी भरोसेमंद बन गया।
सीख:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अगर आप दिल से अच्छे हैं और सही काम करते हैं तो दुनिया आपको जरूर पहचानती है। अच्छाई का फल देर से मिलता है, लेकिन जरूर मिलता है।
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