“क्या आप अपना बचा हुआ खाना मुझे देंगे?” बेघर भूखे लड़के के इस सवाल ने करोड़पति महिला को रुला दिया

“कांच के पार – आर्यन और मीरा की कहानी”
शाही रेस्टोरेंट के बाहर एक भूखा सपना
शाम के ठीक 7:00 बजे थे। मुंबई के सबसे पौश इलाके में स्थित फाइव स्टार रेस्टोरेंट ‘द रॉयल हेरिटेज’ के बाहर एक अलग ही दुनिया थी। अंदर शाही माहौल, चांदी के चम्मचों की खनक, बटर नान की गर्माहट, दम बिरयानी की खुशबू और अमीरों की हंसी। लेकिन भारी कांच के दरवाजों के बाहर हकीकत बेहद क्रूर थी।
वहीं खड़ा था आठ साल का आर्यन – पतली हड्डियों वाला, फटे पुराने कपड़ों में लिपटा, नंगे पैर, भूख से तड़पता एक बच्चा। मुंबई की सड़कों पर अकेले रहते हुए उसने सिर्फ तिरस्कार, भूख और अपमान ही देखा था। उसका पेट गड़गड़ा रहा था, लेकिन वह अपनी भूख को अनदेखा करने की कोशिश कर रहा था।
पिछले एक घंटे से वह कांच की दीवार के उस पार देख रहा था। हर प्लेट पर उसकी आंखें टिकी थीं, इस उम्मीद में कि शायद कोई थोड़ा सा खाना छोड़ दे जिसे वह बाद में ले सके। लेकिन उसकी उम्मीदें बार-बार टूट जाती थीं। इसका कारण थी सिमरन – रेस्टोरेंट की एक वेटर, जिसकी जुबान कैंची की तरह तेज थी। उसने आर्यन को वहां से भगाना अपना मिशन बना लिया था। “ए गंदी मक्खी, यह रेस्टोरेंट तुम जैसे लोगों के लिए नहीं है,” सिमरन हर बार ताना मारती।
भूख, अपमान और एक नई उम्मीद
आर्यन दरवाजे के कोने में दुबक कर खड़ा था। तभी एक ग्राहक खाना छोड़कर उठा। मेज पर आधा खाया हुआ बर्गर और मैंगो लस्सी की बोतल थी। आर्यन का दिल जोर से धड़क उठा। वह आगे बढ़ा, लेकिन सिमरन उससे तेज निकली। उसने प्लेट उठाकर आर्यन की आंखों के सामने ही कूड़ेदान में डाल दी। आर्यन का दिल बैठ गया। भूख के आगे स्वाभिमान हार गया। वह दबे पांव कूड़ेदान की ओर बढ़ा, लेकिन सिमरन ने उसे फिर डांट दिया – “यह एक रईस जगह है, तुम जैसे सड़क के गंदे कीड़े यहां नहीं जचते।”
अपमान की चोट भूख से भी गहरी थी। आर्यन की आंखों में आंसू आ गए। वह मुख्य प्रवेश द्वार के पास जाकर अंधेरे में बैठ गया। उसका सिर झुका हुआ था, हाथ कांप रहे थे, लेकिन पेट अब भी चीख रहा था। तभी उसकी नजर एक खास मेज पर टिक गई। वहां बैठी थी मीरा – लगभग 28 साल की, खूबसूरत, बनारसी साड़ी में सजी, हाथ में हीरे की घड़ी, कानों में झुमके। लेकिन उसकी निगाहें फोन पर थीं, जैसे वह अपनी ही दुनिया की विलासिता से ऊब चुकी हो।
मीरा के सामने खाने की बड़ी थाली थी – मटन बिरयानी, चिकन टिक्का, सलाद, नान, रेड वाइन। लेकिन खाना untouched पड़ा था। बाहर बैठे आर्यन के मुंह में पानी आ गया। उसने सोचा, “बस एक बार कोशिश करके देखता हूं। अगर नहीं भी देती तो कम से कम मैंने कोशिश तो की होगी।”
हिम्मत की पहली सीढ़ी
आर्यन ने देखा कि वेटर व्यस्त हैं और सिमरन आसपास नहीं है। उसने अपनी हिम्मत जुटाई और रेस्टोरेंट के संगमरमर के फर्श पर नंगे पैर रख दिए। माहौल बदल गया। लोग घूरने लगे, घृणा से मुंह बनाने लगे। लेकिन आर्यन रुका नहीं। सिमरन ने उसे देख लिया और चिल्लाई, “तुम फिर आ गए! मैंने कहा था ना, यह जगह तुम्हारे लिए नहीं है!”
इस बार आर्यन ने भागने के बजाय मीरा की मेज के पास जाकर घुटनों के बल बैठ गया। “मैडम, क्या आप अपना बचा हुआ खाना मुझे देंगी?” उसकी मासूम आंखों में आंसू थे। “माफ कीजिए, मैंने तीन दिन से कुछ नहीं खाया है।” मीरा का दिल पिघल गया।
सिमरन ने आर्यन का हाथ पकड़ लिया, बाहर फेंकने के लिए तैयार थी। लेकिन मीरा ने अपनी उंगली उठाई – “रुको। उसे छोड़ दो।” सिमरन ठिठक गई, मीरा की आवाज में ऐसा अधिकार था जिसे टाला नहीं जा सकता था। “एक और प्लेट लाओ,” मीरा ने कहा, “जो सबसे बेहतरीन खाना है, वही लाना।”
दया की ताकत
आर्यन की आंखें आश्चर्य से फैल गईं। मीरा ने मुस्कुराकर पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
“आर्यन,” उसने धीमे से जवाब दिया।
“बहुत प्यारा नाम है। आओ मेरे पास बैठो।”
आर्यन हिचकिचाया – गंदे कपड़े, साफ सुथरी कुर्सी। “क्या आप मजाक तो नहीं कर रही?”
मीरा ने मां जैसी ममता से मुस्कुराया। “नहीं बेटा, आज तुम्हारी बारी है।”
सिमरन तिलमिलाकर बोली, “एक करोड़पति महिला एक भिखारी के साथ खाना खाएगी? यह शर्मनाक है!”
मीरा ने सख्ती से कहा, “अगर तुमने एक और अपमानजनक शब्द कहा, तो मैं तुम्हें नौकरी से निकलवा दूंगी।” सिमरन डर के मारे चुप हो गई।
मीरा ने पूरे रेस्टोरेंट में गूंजती आवाज में कहा, “आप सब ऐसे घूर रहे हैं। आपको खुद से पूछना चाहिए कि क्यों एक बच्चा रोज यहां खाना मांगने आता है। असली गंदगी उसके कपड़ों में नहीं, हमारी सोच में है!”
एक नई शुरुआत
आर्यन ने कांपते हाथों से चांदी का चम्मच उठाया। मटन बिरयानी और चिकन की प्लेट किसी सपने जैसी लग रही थी। वह जल्दी-जल्दी खाने लगा, डर था कि कहीं कोई छीन ना ले। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। “धन्यवाद मैडम, मुझे लगा था कि अब कोई परवाह नहीं करता।”
मीरा खामोशी से उसे देख रही थी। उसके हर निवाले में मीरा के भीतर टूटी चीजें जुड़ रही थीं। जल्दी खाने के चक्कर में आर्यन को ठसका लग गया। मीरा ने ममता से कहा, “धीरे-धीरे बेटा, कोई जल्दबाजी नहीं है।” सिमरन संतरे का जूस लेकर आई, शर्म से सिर झुका हुआ था।
आर्यन ने मीरा से पूछा, “आप नहीं पिएंगी?” मीरा की आंखें भर आईं। “नहीं मेरे बच्चे, आज तुम्हारी बारी है।”
मीरा के मन में अतीत की गलियां घूमने लगीं – वह खुद कभी ऐसी ही बच्ची थी, मुंबई की सर्द रातों में भूखी, बेकरियों के बाहर बासी पांव मांगती थी। उसने मन ही मन कसम खाई – अब और किसी बच्चे को तड़पने नहीं देगी।
मां की ममता और समाज की परीक्षा
आर्यन ने कहा, “मेरी मां भी मुझे ऐसा ही खाना देती थी, लेकिन अब वह भगवान के पास चली गई। पापा भी चले गए, मुझे सड़क पर छोड़ दिया। ना घर, ना खाना, ना स्कूल। मैं कंस्ट्रक्शन साइट्स पर जाता हूं, भीख मांगता हूं, लेकिन कहते हैं कि मैं बहुत छोटा हूं।”
मीरा की आंखों से आंसू छलक पड़े। वह उठी, आर्यन को गले लगा लिया। “बस, अब और नहीं। तुम्हें अब कभी भीख नहीं मांगनी पड़ेगी। मैं वादा करती हूं।”
आर्यन ने अविश्वास से पूछा, “मतलब आप मुझे वापस नहीं भेजेंगी?”
“कभी नहीं। आज से मैं तुम्हारी देखभाल करूंगी। तुम्हें नए कपड़े मिलेंगे, स्कूल जाओगे, रोज गर्म पराठे और दूध मिलेगा।”
समाज की सोच बदलने का पल
तभी किचन से मैनेजर मिस्टर खन्ना बाहर आए। “यह क्या तमाशा है? किसने इसे अंदर आने दिया?”
मीरा ने शेर की तरह दहाड़ा, “अपनी जुबान पर लगाम लगाइए। वह एक बच्चा है, उसका नाम आर्यन है।”
मीरा ने सबको संबोधित किया – “यह बच्चा सड़कों पर अकेला भटक रहा था। जब हम ₹100 का खाना ऑर्डर करते हैं और आधा प्लेट में छोड़ देते हैं, तब हमें बाहर खड़े प्यासे बच्चे का ख्याल नहीं आता। असली गंदगी उसकी हालत में नहीं, हमारी सोच में है।”
रेस्टोरेंट में बैठे रईस लोग अपराधबोध से सिकुड़ गए। सिमरन का सिर शर्म से झुक गया। पूरा रेस्टोरेंट शांत था, करुणा के सच्चे कार्य के सामने नतमस्तक।
सम्मान और नई जिंदगी
मीरा ने आर्यन का हाथ पकड़ा और बाहर जाने लगी। तभी एक बुजुर्ग उद्योगपति आगे आए – “मैं तुम्हारे इस नेक काम में मदद करना चाहता हूं।” उन्होंने मीरा को एक लिफाफा दिया – आर्यन की नई शुरुआत के लिए।
मीरा आर्यन को लेकर बाहर आई, चमचमाती कार में बैठाया। आर्यन ने रेस्टोरेंट की कांच की दीवार को देखा – जहां उसने सबसे बुरे और सबसे अच्छे पल बिताए थे। कार में बैठते हुए उसकी आंखें नम थीं, लेकिन चेहरा उम्मीद से भरा था।
जैसे ही कार मुंबई की रात में आगे बढ़ी, पीछे छूटता रेस्टोरेंट धुंधला होता गया। आर्यन अब एक सुरक्षित भविष्य की ओर बढ़ रहा था – क्योंकि एक इंसान ने रुकने का फैसला किया, एक इंसान ने कहा, “तुम इससे बेहतर के हकदार हो।”
कहानी की सीख
कभी-कभी सबसे बड़ा उपहार पैसा नहीं, दयालुता होती है। एक छोटा सा करुणा का कार्य, किसी की पूरी जिंदगी बदल सकता है। आर्यन मीरा के कंधे पर सिर रखकर सो गया – जैसे उसे आखिरकार अपना घर मिल गया हो। मीरा मुस्कुराते हुए बाहर शहर की रोशनी देख रही थी, जानती थी कि आज की रात सिर्फ आर्यन की नहीं, उसकी अपनी आत्मा भी भूख से मुक्त हो गई थी।
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जय हिंद।
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