बच्चे के पास फीस भरने के पैसे नहीं थे, टीचर ने जो किया… इंसानियत रो पड़ी | Heart touching story

पूरी कहानी – समीर, उसकी मां और जया मैडम का त्याग

बिहार की राजधानी पटना के एक प्राइवेट स्कूल में सुबह की चहचहाहट थी। सभी बच्चे अपनी-अपनी किताबों में खोए थे, लेकिन एक कोने में बैठा 13 साल का समीर उदास था। उसके हाथ में फीस का नोटिस था, जिस पर लिखा था – “आखिरी चेतावनी, फीस जमा करो वरना नाम काट दिया जाएगा।” समीर कई बार नोटिस छिपाने की कोशिश कर चुका था, लेकिन चिंता उसकी आंखों में साफ झलक रही थी।

क्लास टीचर जया मैडम जैसे ही अंदर आईं, उनकी नजर समीर पर पड़ी। उन्होंने देखा कि बाकी बच्चे पढ़ाई में ध्यान दे रहे हैं, लेकिन समीर बुझा-बुझा सा था। जया मैडम उसके पास आईं, “समीर बेटा, तुम इतने उदास क्यों हो? पिछले कई दिनों से पढ़ाई में ध्यान भी नहीं दे रहे। सब ठीक तो है?”

समीर ने चुपचाप सिर झुका लिया। जया मैडम को चिंता हुई, उन्होंने उसके हाथ से वो कागज ले लिया। नोटिस पढ़ते ही वे गंभीर हो गईं। वे समीर को लेकर तुरंत प्रिंसिपल के ऑफिस पहुंचीं। प्रिंसिपल ने कड़क आवाज में कहा, “मैम, यह कोई नया मामला नहीं है। हमने इसे कई बार नोटिस दिया है। फीस नहीं भरेगा तो स्कूल में नहीं पढ़ पाएगा। और हां, अगर आपको इतनी सहानुभूति है तो आप ही इसकी फीस भर दीजिए।”

ये शब्द सुनकर समीर टूट गया। उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। ऑफिस से बाहर निकलते ही वह फूट-फूट कर रो पड़ा और जया मैडम से लिपट गया, “मैडम, मैं क्या करूं? मेरे पिताजी अब इस दुनिया में नहीं हैं। मां मजदूरी करके किसी तरह दो वक्त की रोटी जुटाती है। फीस के पैसे कहां से आएंगे मैडम? क्या अब मुझे स्कूल छोड़ना पड़ेगा?”

जया मैडम उसकी हालत देखकर खुद को रोक नहीं पाईं। उन्होंने समीर को सीने से लगा लिया, “बेटा, अब बस रो मत। तुम्हारी आंखों में आंसू मुझे अच्छे नहीं लगते। मैं समझ गई हूं कि तुम्हारे साथ कितनी बड़ी मुश्किल आ खड़ी हुई है। लेकिन घबराओ मत, कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा।”

समीर बोला, “मैडम, पिताजी के जाने के बाद घर वैसे ही बिखर गया है। मां मजदूरी करके खाना जुटा लेती है, लेकिन फीस के पैसे कहां से लाएं? अगर मुझे स्कूल से निकाल दिया गया तो मेरे सपने भी टूट जाएंगे।”

उसकी मासूमियत और दर्द ने जया मैडम को भीतर तक झकझोर दिया। उन्होंने तय कर लिया कि इस बच्चे को यूं टूटने नहीं देंगी। “चलो बेटा, आज मैं तुम्हारे घर चलती हूं। तुम्हारी मां से बात करनी होगी।”

समीर ने हैरानी से पूछा, “आप मेरे घर चलेंगी?”
“हां बेटा, अगर मां से बात करूंगी तो शायद कोई रास्ता निकल आए।”

कक्षा खत्म होते ही जया मैडम ने बैग उठाया और समीर को साथ लेकर स्कूल से बाहर निकलीं। संकरी गलियों और टूटी सड़कों से होते हुए वे एक पुराने जर्जर मकान के सामने पहुंचे। दीवारों पर सीलन, छत से टपकते पानी के निशान, दरवाजे पर टूटा ताला – सब कुछ उस घर की हालत बयान कर रहा था।

समीर ने दरवाजा खोला, “मां देखो, मैं आ गया।”
अंदर से एक कमजोर महिला बाहर आईं – कमला देवी, समीर की मां। चेहरे पर थकान की गहरी लकीरें, आंखों के नीचे काले घेरे। उन्होंने बेटे के साथ मैडम को देखा तो हड़बड़ा गईं, “अरे बेटा, यह कौन है? आप कौन सी मैडम हैं?”

जया मैडम ने मुस्कुरा कर हाथ जोड़ दिए, “नमस्ते बहन जी, मैं समीर की क्लास टीचर हूं। आज कुछ जरूरी बात करनी थी, इसलिए आपके घर चली आई।”

कमला देवी ने टूटी फूटी कुर्सी खींच दी, “अरे मैडम जी, घर तो बहुत साधारण है। मगर आप बैठिए।” थोड़ी देर बाद पानी और चाय रख दी। घर में ज्यादा कुछ नहीं था, लेकिन मेहमानबाजी में कोई कमी नहीं छोड़ी।

जया मैडम ने उनकी हालत गौर से देखी, “बहन जी, आप अकेली ही सब संभाल रही हैं?”
कमला देवी की आंखें भर आईं, “हां मैडम जी, जब तक मेरे पति थे सब ठीक था। वो एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। तभी समीर को इस अच्छे स्कूल में पढ़ा सके। पर किस्मत ने सब छीन लिया। उनके गुजर जाने के बाद मैं अकेली रह गई। अब मजदूरी करके दो वक्त की रोटी तो जुटा लेती हूं, लेकिन फीस और बाकी खर्च उठाना मेरे बस में नहीं। कभी-कभी सोचती हूं कि बेटे को स्कूल से निकाल लूं, लेकिन उसका मासूम चेहरा देखकर हिम्मत नहीं होती।”

जया मैडम का दिल पसीज गया। उन्होंने अपने कंगन उतारकर कमला देवी के हाथों में रख दिए, “इन्हें रख लीजिए, कल जाकर समीर की फीस भर दीजिए। बाकी जरूरतों में भी काम आ जाएंगे। यह बच्चा बहुत होशियार है, इसे पढ़ने से मत रोकिए।”

कमला देवी ने हाथ पीछे खींचते हुए कहा, “मैडम, मैं आपका गहना कैसे ले सकती हूं? यह तो आपके अपने परिवार का सहारा है।”
जया मैडम ने जिद की, “मेरे अपने बच्चे नहीं हैं, लेकिन समीर में मुझे अपना बेटा दिखाई देता है। अगर यह बच्चा पढ़ाई से वंचित हो गया, तो मेरा शिक्षक होना ही बेकार हो जाएगा।”

कमला देवी भींगी आंखों से कंगन थाम लिए। उन्हें लगा जैसे भगवान ने उनकी पुकार सुन ली हो। उन्होंने कंगन को आंखों से लगाया, “मैडम, मैं नहीं जानती इस एहसान का बदला कैसे चुकाऊंगी। आपने तो मुझे बहन का दर्जा दे दिया। भगवान आपको कभी दुख ना दे।”

जया मैडम ने हाथ पकड़ कर कहा, “बहन जी, इसे एहसान मत समझो। यह मेरा कर्तव्य है। समीर में मुझे अपना बेटा दिखाई देता है। इस बच्चे की पढ़ाई कभी रुकनी नहीं चाहिए।”

समीर दरवाजे पर खड़ा यह सब देख रहा था। उसकी आंखों में पहली बार उम्मीद की नई रोशनी चमकी। उसने मन ही मन ठान लिया – एक दिन बड़ा होकर मैं जरूर अपनी मैडम का ऋण चुकाऊंगा।

अगले ही दिन कमला देवी ने उन कंगनों को गिरवी रखकर समीर की फीस जमा कर दी। फीस की पर्ची हाथ में लेते ही जैसे उनकी आंखों से बोझ उतर गया। समीर का नाम काटे जाने का डर टल गया। यह केवल फीस भरने का मामला नहीं था, बल्कि उसके सपनों को फिर से जिंदा करने का पल था।

अब जया मैडम ने समीर पर और ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया। हर रोज उसकी कॉपी चेक करतीं, सवाल पूछतीं, हर छोटी-बड़ी गलती पर सुधारतीं। जब भी क्लास में कोई मुश्किल सवाल आता, समीर सबसे पहले खड़ा होता और सही जवाब देता। मैडम की आंखों में गर्व की चमक देख वो और भी मेहनत करता।

धीरे-धीरे वक्त बीता। समीर ने आठवीं, फिर नवीं और फिर दसवीं पास की। घर की जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं। पिता की कमी ने उसे उम्र से पहले बड़ा कर दिया था। उसने समझ लिया कि सिर्फ मां के भरोसे घर नहीं चल सकता। दसवीं के बाद उसने मोहल्ले के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। शाम को घर के बाहर चार-पांच बच्चे बैठ जाते, समीर उन्हें पढ़ाता। बदले में मिलने वाले पैसों से घर के खर्च में थोड़ी राहत मिलने लगी।

कमला देवी बेटे की जिम्मेदारी देखकर भावुक हो जातीं। कभी सिर पर हाथ फेरतीं, कभी भगवान से कहतीं, “हे प्रभु, मेरे बेटे के पसीने की हर बूंद को सफलता में बदल देना।”

जया मैडम भी अक्सर उनके घर आतीं, कभी किताबें लाकर देतीं, कभी सिर्फ अपने शब्दों से हौसला बढ़ातीं, “समीर बेटा, तुम बहुत होशियार हो। याद रखो, कठिनाइयां हमेशा इंसान को मजबूत बनाती हैं।” उनके शब्द समीर के लिए दुआ से कम नहीं थे।

इंटर तक पहुंचते-पहुंचते समीर का आत्मविश्वास और बढ़ गया। एक दिन उसने मां से कहा, “मां, मैं वकील बनना चाहता हूं। मुझे लोगों की मदद करनी है, जैसे जया मैडम ने हमारी मदद की। वैसे ही मैं भी दूसरों का सहारा बनना चाहता हूं।”

कमला देवी ने बेटे की आंखों में चमक देखी, “बेटा, मैं गरीब हूं लेकिन तेरा सपना कभी अधूरा नहीं रहने दूंगी। जितना कर सकती हूं करूंगी, बाकी भगवान और तेरी मेहनत तेरा साथ देंगे।”

समीर ने कॉलेज में दाखिला लिया। अब जिंदगी और कठिन हो गई – दिन में कॉलेज, रात में ट्यूशन, कभी-कभी छोटे-मोटे काम करके पैसे जुटाना। उसकी दिनचर्या संघर्ष का दूसरा नाम बन चुकी थी। लेकिन उसके भीतर हौसले की आग जल रही थी। वो बार-बार खुद से कहता, “मुझे बड़ा बनना है ताकि अपनी मैडम और मां दोनों का सिर ऊंचा कर सकूं।”

कॉलेज में उसकी गिनती सबसे होशियार छात्रों में होने लगी। बहस प्रतियोगिताएं हो या मूडकोट, हर जगह उसका नाम चमकने लगा। धीरे-धीरे उसकी पहचान बनने लगी। और फिर वह दिन भी आया जब समीर ने लॉ की पढ़ाई पूरी की और पहली बार वकील का काला कोट पहना। आईने के सामने खड़े होकर उसने खुद को देखा। उसकी आंखों में आंसू भर आए। उसने धीमी आवाज में कहा, “मैडम, आज आपका त्याग सफल हुआ है।”

वकील का काला कोट पहनने के बाद समीर की जिंदगी सचमुच बदलने लगी। शुरुआती कुछ साल कठिनाई से गुजरे, लेकिन उसकी मेहनत और लगन ने धीरे-धीरे उसे एक जाना माना वकील बना दिया। कोर्ट में उसके तर्क इतने सटीक होते कि जज भी उसकी दलीलों की सराहना करते। लोग दूर-दूर से उसके पास अपने केस लेकर आने लगे। घर की हालत अब वैसी नहीं रही थी। टूटी दीवारों और सीलन भरे कमरों की जगह अब उन्होंने एक छोटा सा पक्का मकान बना लिया था।

कमला देवी की आंखों में अब संतोष की चमक थी। वे अक्सर आस-पड़ोस की औरतों से कहतीं, “मेरा बेटा अब बड़ा वकील बन गया है। उसके नाम से लोग हमें पहचानते हैं।” समीर ने मां के चेहरे पर यह गर्व देखा तो खुद को और भी भाग्यशाली समझा। उसके मन में हमेशा यही रहता कि यह सब सिर्फ मां और जया मैडम की बदौलत है।

एक दिन उसकी मां ने कहा, “बेटा, अब तू जम गया है तो अब घर में बहू भी आ जानी चाहिए। मैं चाहती हूं कि तेरी जिंदगी पूरी हो।”
समीर ने पहले हंसकर टाल दिया, लेकिन आखिरकार मां की जिद के आगे झुकना पड़ा। परिवार और रिश्तेदारों की मदद से उसकी शादी एक सुशील और शिक्षित लड़की सीमा से तय हो गई। शादी बड़े धूमधाम से हुई। बारात निकली, ढोल बजे और मां के आंगन में फिर से रौनक लौट आई।

सीमा स्वभाव से सरल और समझदार थी। उसने शादी के बाद न केवल घर संभाला बल्कि कमला देवी की सेवा को भी अपना कर्तव्य मान लिया। धीरे-धीरे घर में खुशियों की बौछार होने लगी। कुछ सालों बाद समीर और सीमा के यहां एक बेटे का जन्म हुआ। उस छोटे बच्चे ने मानो घर में चिराग जला दिया। कमला देवी उसे गोद में लेकर घंटों खेलतीं और भगवान को धन्यवाद देतीं कि उन्होंने उनके बुढ़ापे में यह सुख भी दे दिया।

जिंदगी अब पटरी पर थी। समीर का नाम चारों तरफ गूंज रहा था। उसके पास पैसा था, इज्जत थी और खुशहाल परिवार भी। लेकिन इस चमक-धमक के बीच कहीं जया मैडम का नाम पीछे छूटता जा रहा था।

फिर एक शाम जब समीर ऑफिस से लौटा तो उसने मां को आंगन में अकेले बैठे देखा। उनकी आंखों में हल्की नमी थी, “मां, आप रो क्यों रही हैं? क्या तकलीफ है?”

कमला देवी ने धीमी आवाज में कहा, “नहीं बेटा, कोई तकलीफ नहीं, बस एक बात मन में अटकी है। तुझे याद है जब तेरा नाम स्कूल से काटने वाला था, तब कौन सी महिला तेरे लिए अपने गहने गिरवी रखकर खड़ी हुई थी? वही जया मैडम, जिनकी वजह से तू आज इस मुकाम पर है।”

समीर चौक गया। इतने सालों की भागदौड़ में उसने सचमुच जया मैडम को याद ही नहीं किया था। मां की आवाज में कंपन था, “बेटा, मैं तो अब बूढ़ी हो गई हूं। मेरी आखिरी इच्छा यही है कि तू एक बार अपनी जया मैडम से मिल ले। उन्हें दिखा कि उनका समीर कितना बड़ा हो गया है। तेरी सफलता का सबसे बड़ा हिस्सा उनका भी है।”

समीर चुप हो गया। उसकी आंखें भर आईं। वो मां के पैरों में बैठ गया, “मां, आपने सच कहा। मैं तो भूल ही गया था, लेकिन अब और देर नहीं होगी। कल से ही मैं उन्हें ढूंढना शुरू करूंगा।”

मां ने बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा, यही मेरी सबसे बड़ी खुशी होगी। जिस औरत ने तुझे बेटा समझा, उसे आज बेटा बनकर तू गले लगा लेगा, तो मेरा दिल तसल्ली पा जाएगा।”

उस रात समीर देर तक सो नहीं पाया। अतीत की सारी यादें आंखों के सामने घूमती रहीं। कक्षा का कोना, हाथ में मरोड़ा हुआ फीस नोटिस, प्रिंसिपल का कठोर व्यवहार और फिर जया मैडम की ममता से भरी आंखें। उसके दिल में कृतज्ञता का सैलाब उमड़ पड़ा।

अगली सुबह उसने सबसे पहले मां का आशीर्वाद लिया, “मां, मैं अब अपनी मैडम को जरूर खोजूंगा। चाहे जहां हूं, उन्हें ढूंढकर आपके सामने लाऊंगा।”

समीर ने मां से वादा तो कर लिया था, लेकिन यह इतना आसान नहीं था। इतने साल गुजर चुके थे। स्कूल बंद हो चुका था। पुराने रिकॉर्ड धूल में दबे पड़े थे। फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी। वो सबसे पहले उसी स्कूल पहुंचा, जहां कभी उसका बचपन बीता था। गेट टूटा हुआ था, दीवारों पर बेले चढ़ी थीं और क्लासरूम वीराने में तब्दील हो गए थे।

वहां ड्यूटी कर रहे एक बूढ़े चौकीदार से उसने जया मैडम के बारे में पूछा। चौकीदार ने सिर खुजाते हुए कहा, “बेटा, मैं तो बाद में यहां आया हूं। लेकिन पुराने स्टाफ का रिकॉर्ड ऑफिस में पड़ा है। शायद तुम्हें वहीं से कुछ मिल जाए।”

समीर ने रिकॉर्ड रूम में जाकर पुरानी फाइलें खंगालीं। घंटों तलाशने के बाद उसे एक फाइल मिली, जिसमें शिक्षकों के पते दर्ज थे। उसमें जया मैडम का नाम देखकर उसकी सांसें थम गईं। वहां दो पते लिखे थे – एक पुराना, एक नया। वह तुरंत वहां पहुंचा। पहला पता अब खाली पड़ा था, लेकिन दूसरे पते पर जाकर उसने देखा कि एक छोटा सा टूटा हुआ घर है।

दरवाजा खटखटाने पर एक दुबली-पतली महिला ने दरवाजा खोला। बाल सफेद हो चुके थे, हाथों में लकड़ी का सहारा था, चेहरे पर झुर्रियां गहरी थीं। समीर ने एक नजर देखा और पहचान गया – वो उसकी जया मैडम ही थीं। वह तुरंत उनके पैर छूने झुक गया।

जया मैडम चौंक गईं, “बेटा, तुम कौन हो? मेरे पैर क्यों छू रहे हो?”
समीर की आंखों से आंसू बह निकले, “मैडम, आपने मुझे नहीं पहचाना? मैं वही समीर हूं, आपका छात्र, जिसे आपने कंगन देकर पढ़ाई का हक दिलाया था।”

जया मैडम ने गौर से देखा, उनकी आंखें भर आईं, “अरे, तू वही समीर है! भगवान, आज मेरी तपस्या पूरी हुई।” उन्होंने उसे गले लगा लिया। दोनों की आंखों से आंसू बह रहे थे।

समीर ने घर के भीतर कदम रखा, उसकी हालत देखकर दिल टूट गया – घर टूटा-फूटा था, फर्श उखड़ चुका था, अंदर बहुत साधारण सामान पड़ा था। उसने पूछा, “मैडम, आप यहां अकेली क्यों?”

जया मैडम ने धीमी आवाज में बताया, “पति के गुजर जाने के बाद देवरों ने सारी जमीन पर कब्जा कर लिया। पुलिस तक गई, लेकिन पैसे वालों ने सबको खरीद लिया। अब मैं अकेली यहीं रह रही हूं।”

समीर ने उनका हाथ पकड़ते हुए कहा, “मैडम, अब आपको और तकलीफ नहीं झेलनी पड़ेगी। अब आपका बेटा वकील है। मैं आपका केस लड़ूंगा और आपकी जमीन आपको वापस दिलाऊंगा।”

कुछ महीनों की मेहनत के बाद समीर ने कोर्ट में वह केस जीत लिया। जया मैडम की जमीन और हक वापस मिल गए। पर सबसे बड़ी जीत यह थी कि वह अकेली नहीं रहीं। समीर उन्हें अपने घर ले आया। मां कमला देवी ने बहन की तरह उन्हें गले लगाया। सीमा ने उनका ख्याल अपनी मां की तरह रखना शुरू किया और समीर के बच्चे उन्हें नानी कहकर बुलाने लगे।

अब जया मैडम फिर से हंसने लगीं। वह अक्सर समीर से कहतीं, “बेटा, मैंने तुम्हें बचपन में पढ़ाया था, लेकिन असली सबक तो तुमने मुझे दिया – अच्छे कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाते।”

सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि एक शिक्षक का त्याग, एक मां का संघर्ष और एक सच्चे शिष्य की कृतज्ञता मिलकर जिंदगी को नया अर्थ दे सकते हैं।
अगर आपको लगता है कि हम अपने जीवन में किसी के उपकार को याद रखें और सही समय पर उसका कर्ज चुकाएं, तो समाज और भी सुंदर हो सकता है।
कमेंट में जरूर बताइए।
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मिलते हैं अगली भावुक और प्रेरणादायक कहानी में।
तब तक अपनों का ख्याल रखिए, माता-पिता और गुरु का सम्मान कीजिए और हमेशा मुस्कुराते रहिए।
जय हिंद, जय भारत!