भाभी ने अपने गहने बेचकर देवर को पढ़ाया,जब देवर कलेक्टर बनकर घर आया तो भाभी को

राधा की कहानी – त्याग, संघर्ष और परिवार की एकता की मिसाल

पंजाब के एक छोटे से गांव में राधा नाम की एक लड़की रहती थी। राधा पढ़ाई-लिखाई में बहुत होशियार थी। उसने 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की थी और अभी-अभी ग्रेजुएशन में एडमिशन लिया था। उसका सपना था कि वह पढ़-लिखकर एक बड़ी अधिकारी बने, लेकिन गरीबी उसके सपनों को कुचल रही थी। उसके पिता के पास ज्यादा पैसे नहीं थे, फिर भी वे जैसे-तैसे अपनी बेटी को सरकारी कॉलेज में पढ़ा रहे थे।

एक दिन कॉलेज जाते समय राधा को पास के गांव के एक जमींदार ने देख लिया। राधा बेहद सादगी से कॉलेज जाती थी, ना किसी से बात करती, ना इधर-उधर देखती, बस जमीन की ओर नजरें झुकाए चलती थी। जमींदार को राधा का यह स्वभाव बहुत पसंद आया। उसके पास काफी पुश्तैनी जमीन और संपत्ति थी, दो बेटे थे। जमींदार ने राधा के बारे में जानकारी इकट्ठा की और उसके घर का पता लगा लिया।

कुछ दिनों बाद जमींदार राधा के पिता के पास गया और अपनी बेटी का हाथ अपने बड़े बेटे के लिए मांगने लगा। राधा के पिता हैरान रह गए, उन्होंने कहा, “साहब, हम गरीब जरूर हैं, लेकिन हमसे मजाक मत कीजिए।” जमींदार ने कहा, “मैं मजाक नहीं कर रहा। मुझे तुम्हारी बेटी का स्वभाव पसंद है। मुझे अपने बेटे के लिए ऐसी ही बहू चाहिए। दहेज में कुछ नहीं चाहिए, शादी की सारी व्यवस्था मैं कर दूंगा, बस तुम हां कर दो।”

राधा के पिता सोच में पड़ गए। पैसे भी नहीं थे और बेटी की शादी भी आसानी से हो रही थी, तो उन्होंने रिश्ते के लिए हां कह दिया। शाम को जब राधा कॉलेज से लौटी, पिता ने उसे बताया, “बेटी, तुम्हारी शादी के लिए अच्छा रिश्ता आया है। बहुत बड़ा घराना है, ढेर सारी जमीन है, वहां तुम्हारी शादी हो जाएगी, तुम रानी बनकर रहोगी।” यह सुनकर राधा घबरा गई। उसने कहा, “पिताजी, मैं पढ़-लिखकर अधिकारी बनना चाहती हूं, कृपया मेरी शादी मत करवाइए।” लेकिन पिता ने मजबूरी जताई, “मेरे पास पैसे नहीं हैं कि तुम्हें पढ़ा सकूं। अगर पढ़ाई जारी भी रखूं तो क्या गारंटी है कि अधिकारी बन ही जाओगी? इससे अच्छा है कि शादी कर लो।”

राधा ने पिता की मजबूरी देखी, उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने धीमे स्वर में कहा, “ठीक है पिताजी, अगर आप ऐसा चाहते हैं तो ऐसा ही सही।” इसके बाद राधा के पिता ने जमींदार को खबर भिजवा दी और दोनों की शादी पक्की हो गई।

जमींदार के दो बेटे थे। बड़ा बेटा विनोद ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था, उसकी शादी नहीं हो रही थी और पैसे के कारण उसकी बदनामी भी हो चुकी थी। गांव में चर्चा थी कि ये लोग किसी की इज्जत नहीं करते, ना ही ढंग से बात करते हैं। इसी वजह से जमींदार ने राधा से अपने बड़े बेटे की शादी करवा दी।

कुछ दिनों बाद राधा की शादी हो गई और वह अपने ससुराल आ गई। वह सास-ससुर की सेवा करती, पति की इच्छाओं का सम्मान करती थी। एक दिन राधा ने पति से कहा, “मुझे पढ़ाई जारी रखनी है, यदि आप मेरी आगे की पढ़ाई करवा दें तो बहुत अच्छा होगा।” लेकिन उसका पति विनोद, जो दसवीं फेल था, गुस्से में बोला, “पढ़ाई करने की कोई जरूरत नहीं, हमारे पास पैसों की कमी नहीं है, तुम्हें आगे पढ़ने की जरूरत नहीं है। घर संभालो, बच्चे पालो।” उसने साफ मना कर दिया।

उसी घर में उसका छोटा देवर राजेश था, जो बीए में पढ़ाई कर रहा था। राजेश का स्वभाव अपने बड़े भाई से बिल्कुल विपरीत था। वह भाभी का आदर करता, मां की नजरों से देखता था। राजेश के माता-पिता भी नेकदिल और समझदार थे, लेकिन विनोद पूरी तरह दौलत के घमंड में चूर था।

राधा अपने सपनों को राजेश के अंदर देखने लगी। वह राजेश को बड़ा अधिकारी बनने के लिए प्रेरित करती, लेकिन राजेश भाभी की बातों को मजाक में उड़ा देता था। उसे लगता था कि उनके पास काफी रुपया-पैसा है, तो उसे किसी बड़े अधिकारी बनने की जरूरत नहीं है। वैसे भी अगर जीवन भर कुछ भी ना करे तो भी दौलत काफी है।

लेकिन एक दिन होटल में राजेश ने कलेक्टर साहब को देखा। उनका रुतबा, सरकारी गाड़ी, सिक्योरिटी देखकर वह हैरान हो गया। उसने सोचा, अगर ऐसा रुतबा हो तो पैसा भी इसके सामने कुछ नहीं। इसके बाद वह भाभी की बातों को ध्यान से सुनने लगा। राधा उसे बार-बार प्रेरित करती रही।

धीरे-धीरे राजेश की ग्रेजुएशन पूरी हो गई, अब वह कोचिंग के लिए बाहर जाना चाहता था। विनोद ने पहले मना कर दिया, “भाई, तू क्या करेगा, घर में आराम से रह, कोई दिक्कत नहीं।” लेकिन राजेश के दिमाग में भाभी की बातें घूम रही थीं। उसने पढ़ाई के लिए जोर देना शुरू किया। विनोद ने देखा कि छोटा भाई उसकी इच्छा के विरुद्ध जा रहा है, तो कड़े शब्दों में मना कर दिया, “अगर तुम्हें आगे की पढ़ाई करनी है तो घर से एक भी पैसा नहीं मिलेगा।” माता-पिता ने समझाने की कोशिश की, लेकिन विनोद घमंड में चूर था।

राजेश को अपने सपने टूटते नजर आने लगे। एक शाम भाभी राधा से बात कर रहा था, विनोद घर पर नहीं था। राधा कुछ पैसे लाकर राजेश को देती है, “यह लो राजेश, इन पैसों से अपनी जिंदगी बनाओ और बड़ा अधिकारी बनकर दिखाओ। लेकिन यह बात तुम्हारे भाई को पता नहीं चलनी चाहिए।” राजेश को पैसे मिले, उसने माता-पिता की आज्ञा ली और बड़े शहर चला गया।

इधर विनोद को पता चला कि राजेश घर छोड़कर चला गया है, उसे गुस्सा आया लेकिन राजेश ने उससे पैसे नहीं लिए थे, इसलिए कुछ नहीं कह सका। समय बीतता गया, राजेश को और भी पैसों की जरूरत पड़ी। वह पिता से बात करता है, लेकिन पिता लाचार थे, घर का लेन-देन विनोद के हाथ में था। विनोद बिल्कुल नहीं चाहता था कि उसका छोटा भाई राजेश पढ़ाई करके कामयाब बने। यह बात राधा को पता चल गई। तब राधा ने अपने गहने निकालकर ससुर जी को दे दिए, “इन गहनों को बेचकर राजेश को दे दीजिए ताकि वह पढ़-लिखकर बड़ा अधिकारी बन सके।” सास-ससुर की आंखों में आंसू आ गए। वे अपनी बहू को पाकर धन्य मानते थे।

पिता ने गहनों को बेच दिया, पैसे राजेश तक पहुंचा दिए। सभी लोग यह बात विनोद से छुपा लेते हैं। धीरे-धीरे राजेश एक कलेक्टर बन जाता है। वह वहीं से आगे की ट्रेनिंग के लिए चला जाता है। उसने परिवार को नहीं बताया कि वह कलेक्टर बन चुका है। वह चुपके से ट्रेनिंग पूरी करके घर वालों को सरप्राइज देना चाहता था। माता-पिता से बातचीत होती रहती थी, लेकिन कभी महसूस नहीं होने दिया कि वह बड़ा अधिकारी बन चुका है। हमेशा यही कहता – “अभी तो मुझे लगभग दो साल और लगेंगे।”

राजेश की ट्रेनिंग पूरी हो जाती है। इसी दौरान विनोद को पता चलता है कि उसकी पत्नी राधा ने अपने सारे गहने भी बेच दिए ताकि राजेश की पढ़ाई का खर्चा पूरा हो सके। विनोद को यह सब तब मालूम पड़ता है जब एक शाम माता-पिता चर्चा कर रहे होते हैं – “हमारी बहू कितनी नेक है, अगर वह ना होती तो राजेश की पढ़ाई कभी पूरी नहीं हो पाती।” विनोद क्रोध से उबल पड़ता है, ईर्ष्या और गुस्से का सैलाब उमड़ने लगता है। माता-पिता पर बरस पड़ता है, “आप सब ने मिलकर मुझे धोखा दिया, मेरे मना करने के बावजूद राजेश को पढ़ने भेजा।” गुस्से में राधा के पास जाता है, उस पर चीखने-चिल्लाने लगता है, “जब मैंने मना किया था तो तुमने पैसे क्यों दिए? मेरी कोई अहमियत नहीं है?”

राधा उसे समझाने की कोशिश करती है, “शिक्षा सबसे बड़ी दौलत है। अगर राजेश बड़ा अधिकारी बन जाएगा तो लोग तुम्हारी और भी ज्यादा इज्जत करेंगे।” लेकिन विनोद के मन में गुस्से और जलन की आग थी। ऊपर से खुद पढ़ाई में असफल रहा था, अहंकार उसे सही-गलत का फर्क समझने नहीं दे रहा था। आक्रोश में पागल होकर उसी रात राधा को बेरहमी से धक्के देकर घर से बाहर निकाल देता है, “अगर इतना ही शौक है दूसरों को पढ़ाने का तो जाओ, अब उसी के पास जाओ। इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है।” माता-पिता का दिल टूट जाता है, वे बेहद दुखी हो जाते हैं, लेकिन बड़े बेटे के क्रोध के आगे विवश होते हैं।

राधा अपने मायके चली जाती है। मायके में भी हालत ठीक नहीं थी, इसलिए उसने दूसरों के घरों में काम करना शुरू कर दिया ताकि माता-पिता पर बोझ ना बने। राधा को विश्वास था कि उसका देवर राजेश एक दिन जरूर आएगा और उसे इस स्थिति से बाहर निकालेगा। जब माता-पिता कहते हैं, “बेटी, हम विनोद से बात कर लेते हैं,” राधा दृढ़ता से मना कर देती है, “अभी सही समय नहीं है। जब सही वक्त आएगा तब बात करेंगे।”

समय बीतता है, राजेश की ट्रेनिंग पूरी हो जाती है। उसकी पोस्टिंग एक जिले में कलेक्टर के रूप में हो जाती है। उसे सरकारी आवास, गाड़ी, सुरक्षा गार्ड मिलते हैं। वह अपने परिवार को सरप्राइज देने के लिए सरकारी गाड़ी में बैठकर गांव की ओर रवाना हो जाता है।

गांव में जैसे ही राजेश की गाड़ी प्रवेश करती है, चारों ओर हलचल मच जाती है। लोग हैरानी से उसकी ओर देखने लगते हैं – “यह कोई बड़ा अधिकारी लग रहा है।” लोग कानाफूसी करने लगते हैं, धीरे-धीरे उसके पीछे-पीछे चलने लगते हैं। जैसे ही राजेश चमचमाती सरकारी गाड़ी से उतरता है, पूरे गांव में खलबली मच जाती है। लोग आश्चर्य से उसे देखते रह जाते हैं – “यह वही राजेश है जो कभी गांव की गलियों में साधारण कपड़े पहनकर घूमता था।”

राजेश बिना किसी दिखावे के सीधा अपने घर की ओर बढ़ता है। आंगन में माता-पिता, भाई विनोद खड़े थे। राजेश घर में प्रवेश करता है, सबसे पहले बड़े भाई विनोद के पैर छूता है, भावुक होकर कहता है, “भैया, आप चाहे मुझसे कितने भी नाराज हो, लेकिन मेरे लिए आप हमेशा पिता समान रहेंगे। अगर भाभी राधा नहीं होती, तो मैं यह मुकाम कभी हासिल नहीं कर पाता।” विनोद के चेहरे पर संकोच और ग्लानी के भाव आ जाते हैं, लेकिन वह कुछ नहीं बोल पाता।

इसके बाद राजेश माता-पिता के पैर छूता है, उनकी आंखों में आंसू थे, वे खुशी और गर्व से रो रहे थे। फिर राजेश घर में अपनी भाभी राधा को ढूंढने लगता है, लेकिन राधा कहीं नहीं दिखती। राजेश बेचैन हो जाता है, मां से पूछता है, “भाभी कहां है?” मां भारी मन से सारी सच्चाई बयान कर देती है – “विनोद ने क्रोध में आकर राधा को घर से बाहर निकाल दिया।”

यह सुनते ही राजेश का चेहरा गुस्से से भर उठता है। आंखों में क्रोध की ज्वाला थी। राजेश विनोद की ओर बढ़ता है, विनोद का हाथ पकड़ता है, उसे घर के बाहर घसीटते हुए ले जाता है। गुस्से और दर्द से भरी आवाज में चिल्लाकर कहता है, “देखो विनोद भैया, आज से पहले हमारे घर पर कभी इतनी भीड़ नहीं हुई थी। भले ही हमारे पास कितना भी पैसा हो, लेकिन यह इज्जत, यह मान-सम्मान क्या आपने कभी महसूस किया है?” राजेश के शब्दों में गूंजती सच्चाई ने विनोद को भीतर तक झकझोर दिया। उसका चेहरा शर्म से झुक गया, आंखों में पश्चाताप के आंसू छलक आए। विनोद भावुक होकर छोटे भाई और माता-पिता से माफी मांगने लगा – “मुझे माफ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।”

राजेश माता-पिता से कहता है, “बाबू जी, भैया ने भाभी को घर से निकाल दिया, लेकिन आपने मुझे क्यों नहीं बताया? क्या आपको मुझ पर भरोसा नहीं था?” पिता भारी मन से जवाब देते हैं, “बेटा, हम बता तो देते लेकिन हमें डर था कि तुम्हारी पढ़ाई में रुकावट आ जाएगी। हम नहीं चाहते थे कि पारिवारिक समस्याओं का असर तुम्हारे भविष्य पर पड़े।” राजेश गहरी सांस लेकर कहता है, “ठीक है, लेकिन अब इस गलती को सुधारना जरूरी है और भैया, यह गलती आपने की है, तो इसे सुधारने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है।”

इसके बाद राजेश विनोद को गाड़ी में बैठाता है, दृढ़ता से कहता है, “चलो, हम लोग भाभी के पास जा रहे हैं।” दोनों भाई सरकारी गाड़ी में बैठकर राधा के मायके की ओर रवाना हो जाते हैं। रास्ते भर विनोद सिर झुकाए चुपचाप बैठा रहता है, मन में पछतावे की लहरें हिलोरे मार रही थीं।

जैसे ही गाड़ी राधा के घर के बाहर रुकती है, वहां मौजूद लोग हैरानी से देखने लगते हैं। उसी वक्त राधा घर से बाहर निकल रही होती है। जैसे ही वह चमचमाती सरकारी गाड़ी देखती है, उसके कदम ठिठक जाते हैं। गाड़ी रुकते ही विनोद बाहर निकलता है – वही विनोद जिसने कभी पत्नी को घर लाने से इंकार कर दिया था, आज पश्चाताप के आंसू लिए सामने खड़ा था।

विनोद राधा के पास आता है, आंखों में गलानी, चेहरे पर पश्चाताप, कांपती आवाज में कहता है, “राधा, मुझे माफ कर दो। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैंने तुम्हारे साथ जो किया, उसके लिए शर्मिंदा हूं। तुम्हारे बिना मेरा घर सिर्फ एक मकान है। कृपया माफ कर दो और वापस चलो।” विनोद की आंखों से आंसू छलक पड़े, राधा की आंखें भी भर आईं। वह चुपचाप खड़ी रही, उसका दिल भी टूट चुका था, लेकिन विनोद के पश्चाताप में सच्चाई झलक रही थी।

राजेश दूर खड़ा यह सब देख रहा था, चेहरे पर संतोष था कि परिवार की टूटती कड़ियां फिर से जुड़ रही थीं। राधा यह सब देखकर हैरान रह जाती है – उसका वही अनपढ़ पति विनोद, जिसने पढ़ाई-लिखाई कब की बंद कर दी थी, आज कलेक्टर साहब की गाड़ी से उतरा है और उसके साथ एक पुलिस वाला भी खड़ा है। उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था।

तभी गाड़ी से देवर राजेश निकलता है। वह बिना हिचकिचाहट के भाभी राधा के पैर छू लेता है। यह देखकर राधा की आंखें भर आती हैं – उसका वही देवर, जिसके लिए उसने अपने गहने तक बेच दिए थे, आज उसके सामने बड़ा अधिकारी बनकर खड़ा था। राधा की आंखों से खुशी और दुख के आंसू एक साथ बह रहे थे – खुशी इस बात की कि देवर उसकी मेहनत को सार्थक कर गया, दुख इस बात का कि उसने परिवार से दूरी का दर्द सहा।

इसके बाद विनोद धीरे-धीरे राधा के पास आता है, सिर शर्म से झुका हुआ, आंखों में पश्चाताप, कांपती आवाज में कहता है, “राधा, मुझे माफ कर दो। मैंने बहुत बड़ी गलती की। तेरे जैसी महान महिला को घर से निकाल दिया। मेरे गुस्से और अहंकार ने हमें अलग कर दिया। लेकिन अब मैं और यह दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकता। कृपया माफ कर दो और हमारे साथ घर चलो, हमें फिर से एक परिवार बनना है।” राधा कुछ देर तक चुपचाप देखती रही, विनोद की आंखों में सच्चाई और पश्चाताप देखकर उसका मन पिघल गया। उसने आंसू पोंछते हुए सिर हिला दिया – मानो माफ कर दिया हो।

राजेश मुस्कुराते हुए कहता है, “भाभी, चलिए अब आपको हमारे साथ घर चलना ही होगा, यह घर बिना आपके अधूरा है।” राधा की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। वह बिना कुछ कहे चुपचाप उनके साथ गाड़ी में बैठ जाती है। गांव वाले यह सब देख रहे थे, परिवार के प्रेम की मिसाल देखकर भावुक हो गए। वे सब साथ में घर लौट आए।

घर के दरवाजे पर कदम रखते ही राधा ने आंगन को देखा, उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आई। वह घर जो कभी पराया लगने लगा था, आज फिर से अपना लग रहा था। घर पहुंचकर राधा की खुशी का ठिकाना नहीं था। इधर विनोद का घमंड टूट चुका था। छोटे भाई राजेश की सफलता और रुतबे को देखकर अब वह गर्व महसूस करता था। जिस छोटे भाई को कभी ताने मारे थे, आज वही उसका आदर्श बन गया था। विनोद में भी बदलाव आ गया था – अब वह माता-पिता का सम्मान करता, पत्नी राधा की बातों को ध्यान से सुनता और समझता था।

पहले जब राधा समझाने की कोशिश करती थी, तो वह डांटकर चुप करा देता था – “तू औरत है, औरत की तरह ही रह।” लेकिन अब राधा की समझदारी और संयम ने उसे घर में नई इज्जत दिला दी थी। गांव वाले भी अब विनोद की इज्जत करते थे क्योंकि उसका छोटा भाई राजेश कलेक्टर बन गया था। वही लोग जो कभी विनोद को ताने मारते थे, आज उसके घर की मिसाल देते थे।

समय बीतता गया, जब कलेक्टर साहब राजेश की शादी हुई, तो उन्होंने अपनी पत्नी को पहले ही भाभी राधा के बलिदानों और त्याग के बारे में बता दिया था। यह सुनकर राजेश की पत्नी भी राधा की बहुत इज्जत करने लगी, उसे बड़ी बहन की तरह मानने लगी। पूरा परिवार अब एकजुट होकर रहने लगा, घर में फिर से खुशियां लौट आईं। माता-पिता बहुत खुश और गर्व महसूस करने लगे।

उन्हें इस बात की खुशी थी कि उनके दोनों बेटे अब समझदार हो गए हैं, और बहू राधा ने परिवार को टूटने से बचा लिया। इस तरह त्याग, संयम और समझदारी की मिसाल बनकर राधा ने अपने परिवार को फिर से जोड़ दिया।

कहानी का संदेश:
त्याग, संघर्ष, संयम और शिक्षा की शक्ति से परिवार की टूटती कड़ियां भी जुड़ सकती हैं। यदि आप भी कभी राधा जैसी स्थिति में हों, तो हार मत मानिए – वक्त बदलता जरूर है। परिवार, प्रेम और समझदारी ही असली दौलत है।

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