मामूली लड़का समझकर घर लाई, कुछ दिन बाद बन गया उसके जीवन का मालिक

पटना की बारिश: इंसानियत से शुरू हुई मोहब्बत – अनामिका और आदित्य की कहानी
एक रात पटना शहर की सड़कों पर झमाझम बारिश हो रही थी। अंधेरा इतना गहरा था कि जैसे पूरी दुनिया नींद में डूबी हो। लेकिन उसी अंधेरे में एक मुलाकात होने वाली थी, जो दो जिंदगियों का रास्ता हमेशा के लिए बदल देगी।
सुबह की ड्यूटी खत्म करके अनामिका नाम की नर्स अपनी स्कूटी पर घर लौट रही थी। चेहरे पर थकान, आंखों में अकेलापन और मन में वही सवाल – घर पहुंचने पर किससे बातें करूंगी? अनामिका के मां-बाप नहीं थे, एक छोटा सा घर था, लेकिन उसमें सन्नाटा बहुत बड़ा था।
बारिश और तेज हो गई तो उसने स्कूटी एक सुनसान गली में रोक दी। तभी उसकी नजर स्ट्रीट लाइट के नीचे पड़ी – एक लड़का सड़क पर पड़ा था, शरीर खून से लथपथ, कपड़े भीगे और फटे हुए। अनामिका के दिल की धड़कन तेज हो गई। पहले तो लगा, शायद कोई नशेड़ी होगा। लेकिन पास जाकर देखा तो उसकी सांसें रुक गईं। वह लड़का कांपते होठों से बुदबुदा रहा था – “बचाओ… मुझे बचा लो।”
उस पल अनामिका के सामने सबसे बड़ा सवाल था – आधी रात, सुनसान गली, अकेली लड़की और एक अजनबी को घर ले जाना। अगर मोहल्ले वालों ने देख लिया तो लोग क्या कहेंगे? लेकिन उसके पेशे और इंसानियत ने उसे हिला दिया। उसने सोचा, अगर इसे छोड़ दूं तो यह यहीं मर जाएगा और मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी।
अनामिका ने हिम्मत की, लड़के को सहारा देकर स्कूटी पर बिठाया और अपने छोटे से घर की ओर निकल पड़ी। बारिश अब तूफान बन चुकी थी, लेकिन अनामिका के मन में बस एक ही ख्याल था – इसकी सांसें बची रहनी चाहिए।
घर पहुंचकर उसने दरवाजा खोला, भीगे हुए लड़के को बिस्तर पर लिटाया, फर्स्ट एड बॉक्स निकाला और उसके घाव साफ करने लगी। धीरे-धीरे उसकी सांसें सामान्य होने लगीं। लेकिन कमरे में अजीब सी खामोशी छा गई थी। अनामिका सोच रही थी – मैंने सही किया या गलत? अगर मोहल्ले वालों को पता चल गया तो?
पर तभी उसने खिड़की से बाहर देखा – बारिश अब भी रुक नहीं रही थी। और उसके अंदर एक अजीब सी जिम्मेदारी जाग चुकी थी। रात के 2:30 बज रहे थे। वह अजनबी अब गहरी बेहोशी में था। अनामिका ने उसकी भीगी शर्ट हटाकर तौलिए से उसका शरीर सुखाया। जैसे ही उसने उसके हाथों पर पड़े नीले निशान देखे, उसका दिल कांप गया – यह कोई हादसा नहीं था, इसे बुरी तरह पीटा गया था।
अनामिका की आंखों में आंसू थे, लेकिन होठों पर बस एक ही शब्द – “तुम अकेले नहीं हो, अब मैं हूं।”
नई सुबह, नई शुरुआत
सुबह की पहली किरण खिड़की से भीतर आई तो अनामिका की आंख खुली। उसने सबसे पहले उस लड़के की ओर देखा – अब उसकी सांसें शांत थीं, लेकिन चेहरे पर दर्द की लकीरें साफ झलक रही थीं। अनामिका धीरे से उठी, रसोई में गई, चाय बनाई। उसके मन में यही ख्याल था – अब यह होश में आएगा तो सवाल पूछेगा और मुझे भी जवाब देना होगा कि मैं इसे घर क्यों लाई?
वह कप लेकर लौटी, उसके माथे पर हाथ रखा – हल्का बुखार था। तभी लड़के ने कराहते हुए आंखें खोली। उसने चारों ओर नजर दौड़ाई और डरते-डरते पूछा, “मैं… मैं यहां कैसे?”
अनामिका बोली, “कल रात तुम बारिश में सड़क पर पड़े मिले थे। अगर वहीं छोड़ देती तो शायद अब तक…” उसने बात पूरी नहीं की, लेकिन लड़के ने समझ लिया। उसकी आंखों में आंसू आ गए। धीरे से बोला, “मेरा नाम आदित्य है। कल रात मेरे अपने ही दोस्तों ने मुझे पीटा, जिन्हें मैं भाई समझता था। उन्होंने मुझसे पैसे उधार लिए थे। जब हिसाब मांगने गया तो उल्टा मेरी जान लेने पर उतर आए। मेरा फोन, पर्स सब छीन लिया और मुझे सड़क पर फेंक दिया।”
इतना कहते-कहते उसकी आवाज टूट गई। आदित्य ने कांपते हाथों से अपनी फटी बाजू उठाई। नीले-काले निशान देखकर अनामिका का दिल भर आया। वह सोचने लगी – दोस्ती जब दुश्मनी में बदल जाए तो इंसान कहां जाए?
आदित्य की आंखों से आंसू बह रहे थे। उसने धीमी आवाज में कहा, “उस रात मुझे लगा अब जीने का कोई मतलब नहीं है। लेकिन शायद ऊपरवाले ने ही आपको भेजा। वरना आज…”
अनामिका ने उसकी ओर देखा और बोली, “आदित्य, जिंदगी हमें बहुत बार हमारी सोच से ज्यादा मारती है, लेकिन यही चोट हमें मजबूत भी बनाती है। तुम अकेले नहीं हो।”
आदित्य ने उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों में पहली बार हल्की सी उम्मीद चमकी, “क्यों? तुम मुझे क्यों संभाल रही हो? तुम तो मुझे जानती तक नहीं।”
अनामिका ने गहरी सांस ली और बोली, “मैं नर्स हूं। मेरा काम ही यही है – गिरते को उठाना, टूटे को जोड़ना और सबसे बड़ी बात इंसानियत निभाना।”
आदित्य की आंखों से आंसू निकल पड़े। उसने कांपती आवाज में कहा, “शायद पहली बार मुझे लग रहा है कि कोई मेरी बात सुन रहा है, बिना मुझे जज किए।”
कमरे में कुछ देर खामोशी छा गई। बाहर बारिश की बूंदें अब भी छत पर गिर रही थीं। लेकिन अंदर एक अजनबी और एक अजनबी के बीच भरोसे की पहली डोर बंध चुकी थी।
भरोसे से मोहब्बत तक
दिन बीतने लगे। अनामिका सुबह अस्पताल जाती, रात को थक कर लौटती और अब घर का दरवाजा खोलते ही सन्नाटा नहीं बल्कि किसी की मौजूदगी महसूस होती। आदित्य धीरे-धीरे संभल रहा था, उसके जख्म भर रहे थे, लेकिन दिल के घाव अभी भी ताजा थे। फिर भी उसने छोटी-छोटी बातों से अनामिका की मदद करना शुरू कर दिया – कभी चाय बना देता, कभी कपड़े सुखा देता, कभी बस रसोई में खड़ा होकर उसका साथ देता।
अनामिका के लिए यह सब नया था। उसका घर जो अब तक सिर्फ चार दीवारों का बोझ लगता था, अब घर जैसा लगने लगा। दीवारों पर बच्चों की हंसी तो नहीं, लेकिन आदित्य की मासूम मुस्कान जरूर गूंजने लगी थी।
एक शाम अनामिका अस्पताल से लौटी तो देखा कि आदित्य आंगन में कपड़े सुखा रहा है। बारिश रुक चुकी थी और हल्की धूप कपड़ों पर पड़ रही थी। उसने अनजाने में कह दिया, “तुम्हें देखकर लगता है कि यह घर अब सचमुच घर जैसा लगने लगा है।”
आदित्य ने उसकी ओर देखा, फिर हल्की आवाज में बोला, “अनामिका, तुम्हें पता है जिस दिन उन्होंने मुझे मारा था, उसी दिन मैंने जीने की उम्मीद छोड़ दी थी। लेकिन तुम्हें देखकर लगा कि शायद मैं अभी भी इंसान हूं, सिर्फ बोझ नहीं।”
अनामिका की आंखें भर आईं। धीरे से बोली, “आदित्य, इंसान का सबसे बड़ा जख्म तब लगता है जब अपने ही छोड़ देते हैं। लेकिन याद रखो – किसी एक का भरोसा पूरी दुनिया के जख्म भर सकता है।”
दुनिया की नजरें और अनामिका का फैसला
धीरे-धीरे मोहल्ले में फुसफुसाहट शुरू हो गई। लोग कहने लगे – वो नर्स रात-रात अस्पताल जाती है और घर में एक लड़का भी रहने लगा है। पता नहीं क्या चक्कर है।
एक दिन पड़ोस की औरत ने सड़क पर रोककर ताना मार दिया, “बेटी, यह अच्छा नहीं लगता। लोग बातें बना रहे हैं। गली का नाम खराब हो रहा है।” अनामिका का चेहरा लाल पड़ गया। उसने कुछ नहीं कहा, बस तेज कदमों से आगे बढ़ गई। लेकिन घर पहुंचते ही उसके आंसू फूट पड़े।
आदित्य ने देखा और बोला, “क्या हुआ? तुम इतनी चुप क्यों हो?” पहले तो अनामिका ने टालना चाहा, फिर टूटते हुए बोली, “लोग सवाल पूछ रहे हैं। उन्हें लगता है कि मैंने गलत किया तुम्हें घर लाकर।”
आदित्य का चेहरा अपराध-बोध से भर गया। उसने सिर झुका लिया, “मैं बोझ बन गया हूं तुम्हारे लिए। कल सुबह ही चला जाऊंगा।”
अनामिका जैसे बिजली सी कांप उठी। उसने तुरंत कहा, “नहीं आदित्य! अगर तुम चले गए तो यह लोग जीत जाएंगे। मैं जानती हूं कि मैंने कुछ गलत नहीं किया। हां, यह रास्ता आसान नहीं है, लेकिन सही है।”
आदित्य ने उसकी आंखों में देखा। वहां डर नहीं था, सिर्फ सच्चाई थी। लेकिन उसने धीमी आवाज में कहा, “अनामिका, तुम्हें बदनाम कर देंगे। तुम्हारे लिए अच्छा होगा कि मैं चला जाऊं।”
अनामिका ने दृढ़ स्वर में जवाब दिया, “अगर मेरे घर में तुम्हारा रहना गलत है तो मैं इसे सही बनाने का रास्ता ढूंढूंगी। लेकिन तुम्हें अकेला छोड़ना अब मुमकिन नहीं है।”
एक इंसानियत भरा फैसला
शाम को जब वह अस्पताल से लौटी तो देखा, घर के बाहर कुछ लोग जमा थे। पड़ोसी और मोहल्ले की औरतें बातें कर रही थीं। जैसे ही अनामिका पहुंची, एक ने ऊंची आवाज में कहा, “हम तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। घर में मर्द रखकर गली का नाम खराब कर रही हो।”
अनामिका ने गहरी सांस ली, कुछ कहने ही वाली थी कि दरवाजा खुला और आदित्य बाहर आ गया। उसने सब सुन लिया था, चेहरा शर्म और ग्लानी से झुका हुआ था। धीरे से बोला, “अनामिका, अब मैं और नहीं रुकूंगा। तुम्हारी इज्जत पर उंगली उठ रही है, मैं चला जाता हूं।”
अनामिका के दिल पर जैसे किसी ने वार किया हो। उसने तुरंत कहा, “नहीं आदित्य! अगर तुम चले गए तो यह लोग सच मान लेंगे कि हमने गलत किया। और मैं जानती हूं कि मैंने इंसानियत निभाई है, गलत नहीं।”
पड़ोस की औरतें अब भी खड़ी थीं, आंखों में ताने और चेहरों पर तिरस्कार। अनामिका ने दृढ़ स्वर में सबकी ओर देखा और बोली, “अगर मेरे घर में आदित्य का रहना गलत है तो मैं इसे सही बना दूंगी। और सही रास्ता है… शादी।”
सब चौंक गए, यहां तक कि आदित्य भी। उसने कांपती आवाज में पूछा, “अनामिका, क्या तुम सच कह रही हो? लेकिन यह सब मजबूरी में क्यों?”
अनामिका ने उसकी आंखों में सीधा देखा, “यह मजबूरी नहीं है, आदित्य। यह मेरा फैसला है। जिस रात तुम्हें सड़क से उठाया था, उसी पल तुम मेरी जिम्मेदारी बन गए थे। और अब यह सिर्फ जिम्मेदारी नहीं, भरोसा है।”
एक नई शुरुआत
अगले ही दिन अनामिका ने अपनी छोटी बहन को सब बताया। पहले वह चौंकी, लेकिन जब उसने अनामिका की आवाज में दृढ़ता और आदित्य के लिए अपनापन सुना तो साथ देने का वादा किया। शाम होते-होते घर में बस कुछ करीबी लोग मौजूद थे। ना कोई शोर, ना कोई दिखावा। सिर्फ एक दीपक की लौ और इंसानियत से भरे कुछ चेहरे।
पंडित ने मंत्र पढ़ना शुरू किया। आदित्य सादे कपड़ों में था, अनामिका ने हल्की सी साड़ी पहनी थी, माथे पर छोटी सी बिंदी और आंखों में गहरी शांति। जब आदित्य ने कांपते हाथों से उसकी मांग में सिंदूर भरा तो कमरे में सन्नाटा छा गया। अनामिका की आंखें नम हो गईं। यह शादी परंपरा का दिखावा नहीं थी, ना मजबूरी का बोझ। यह सिर्फ एक वादा था – दो टूटे हुए दिलों का एक-दूसरे का सहारा बनने का वादा।
इंसानियत से मोहब्बत तक
उस रात दोनों चुपचाप बैठे थे। आदित्य ने धीरे से कहा, “अनामिका, मुझे अब भी लगता है कि यह सब तुम्हारी मजबूरी थी।”
अनामिका मुस्कुराई, उसकी आंखों में देखते हुए बोली, “नहीं आदित्य, मजबूरी होती तो मैं तुम्हें उस रात सड़क पर छोड़ देती। इंसानियत ने मुझे तुम तक खींचा था, और भरोसे ने यह कदम उठाने की ताकत दी है। यह शादी मेरी मजबूरी नहीं, मेरा फैसला है।”
आदित्य की आंखों में आंसू छलक आए। उसने धीमी आवाज में कहा, “तुमने मुझे सिर्फ जीना नहीं सिखाया, अनामिका, बल्कि यह भी दिखाया कि इंसानियत ही सबसे बड़ी मोहब्बत होती है।”
दिन बीतते गए। अब अनामिका का घर सन्नाटे से नहीं, बल्कि चाय की महक और आदित्य की हंसी से भर जाता था। मोहल्ले वाले जो पहले ताने मारते थे, अब धीरे-धीरे चुप हो गए। क्योंकि उन्हें भी समझ आने लगा था कि यह रिश्ता मजबूरी का नहीं, भरोसे और इंसानियत का है।
बारिश में फिर एक नई शुरुआत
एक शाम दोनों बाजार से लौट रहे थे। अचानक बारिश शुरू हो गई। दोनों एक छतरी के नीचे खड़े हो गए। आदित्य ने आसमान की ओर देखा और बोला, “याद है अनामिका, उसी बारिश की रात हमारी मुलाकात हुई थी। तब लगा था सब खत्म हो गया। लेकिन देखो, उसी बारिश ने मुझे नई जिंदगी दे दी।”
अनामिका मुस्कुराई और बोली, “कभी-कभी सबसे बड़ा तूफान ही इंसान के लिए सबसे बड़ी पनाह बन जाता है।”
दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थामा। आसमान से गिरती बूंदें अब किसी टूटे दिल के आंसू नहीं थीं, बल्कि दो आत्माओं की नई मोहब्बत का आशीर्वाद बन चुकी थीं। और लोगों ने कहना शुरू कर दिया – यह रिश्ता इत्तेफाक से नहीं, इंसानियत से शुरू हुआ था। और वही इंसानियत अब इनकी सबसे सच्ची मोहब्बत बन गई है।
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