Choty Bachy Ny Zakhmi Businessman Ki Help Ki Fir Jo Howa Sb Hairan Reh Gy -Islamic Moral Story Hindi

समोसे वाले बच्चे की कहानी: आरव शर्मा की बहादुरी और सच्चाई की जंग

भारत के एक छोटे कस्बे में सुबहें अक्सर धुंध, आलूद और परसुकून होती थीं। लेकिन 11 साल का आरव शर्मा हर दिन एक नई जद्दोजहद का आगाज करता था। उसकी उम्र तो खेलकूद और दोस्तों के साथ हंसी-खुशी बिताने की थी, मगर उसके कंधों पर गरीबी और जिम्मेदारियों का बोझ था।
पिता कई साल पहले बीमारी के कारण दुनिया छोड़ गए थे। मां संतोष देवी ने बेटे के साथ मिलकर जिंदगी की गाड़ी खींचने का बीड़ा उठाया था। उनका सहारा बस एक पुरानी रेहड़ी थी, जिस पर वे समोसे, पकोड़े और कचौड़ियां बेचते थे।

सुबह जब गांव के बाकी बच्चे स्कूल जाने की तैयारी करते, आरव अपनी मां के साथ रसोई में होता। छोटा सा कमरा, जिसकी छत पर जगह-जगह बारिश के निशान थे। धुएं और तेल की खुशबू से भरा रहता। संतोष देवी अपने पुराने कढ़ाहे में गर्म तेल डालकर समोसे और पकोड़े तलती और आरव उन्हें अखबार में लपेटता।
मां के चेहरे पर थकन के बावजूद एक हौसला था कि बेटे को भूखा न सुलाए। आरव उम्र में छोटा मगर दिल बड़ा था। वह मां की आंखों में छुपी तकलीफ पहचान लेता और तसल्ली देता, “मां, फिक्र मत करो। एक दिन हमारी किस्मत जरूर बदलेगी।”

घर के हालात ऐसे थे कि कभी-कभी रात को चिराग जलाने के लिए भी पैसे कम पड़ जाते। पड़ोसी कभी हंसी उड़ाते, कभी तरस खाते। मगर आरव ने दिल में फैसला कर लिया था कि वह अपनी मां को कभी हारने नहीं देगा।
स्कूल के बाद रेहड़ी धकेल कर बाजार जाता और ग्राहकों को आवाजें लगाता, “गरमगरम समोसे, कचौड़ियां ले लो, करारी पकौड़ियां ले लो!”
यह कस्बा बेरुखी भी था और हमदर्दी भी। लोग अपनी भागदौड़ में दूसरों की परेशानियों पर कम ही ध्यान देते थे। मगर आरव के दिल में एक अनोखा एहसास था, जैसे वह दुनिया के हर दुख को अपना समझता हो।

एक अजनबी से मुलाकात

एक दिन की बात है। धुंधली सुबह के बाद जब सूरज की हल्की रोशनी बाजार की दुकानों पर पड़ी, आरव ने अपनी रेहड़ी स्टेशन के करीब लगाई। पास ही एक पुराना बेंच था, जिस पर एक अजनबी बैठा नजर आया। उसकी हालत बेहद खस्ता थी—बाल बिखरे, कपड़े मैले, चेहरा जर्द और आंखें जैसे बरसों की थकन लिए बैठी हों।
लोग गुजर रहे थे, लेकिन कोई पूछने वाला नहीं था कि वह आदमी कौन है और किस हाल में है।
आरव ने एक लम्हे के लिए रेहड़ी से नजरें हटाई और उस आदमी को गौर से देखने लगा। दिल में अजीब सी खिंचाव महसूस हुई। उसने सोचा, “यह शख्स तो भूखा लगता है, क्या मैं इसकी मदद कर सकता हूं?”
फिर उसने थैले से एक समोसा निकाला और उसके पास जाकर बोला, “अंकल, आप भूखे हैं ना? यह लीजिए, आपके लिए है।”
आदमी ने थके हुए हाथ से समोसा थामा। आंखों में नमी तैरने लगी। चंद निवाले खाते ही उसके चेहरे पर सुकून सा आ गया।
धीमी, कांपती आवाज निकली, “शुक्रिया बेटा, तुम बहुत अच्छे हो।”
आरव ने मुस्कुरा कर कहा, “अगर प्यास लगी है, तो मस्जिद के पास नलका है, वहां से पानी पी लीजिए।”
यह पहला लम्हा था जब आरव को लगा कि उसकी छोटी सी नेकी किसी के लिए कितनी बड़ी नेमत बन सकती है।

दोस्ती की शुरुआत

दिन ढल गया। आरव अपनी रेहड़ी संभालता हुआ वापस लौटा। उसने मां को उस अजनबी के बारे में कुछ नहीं बताया। दिल ही दिल में सोचा, शायद कल फिर मिले और वह उसकी मदद कर सके।
अगले दिन आरव दोबारा वहीं गया। हैरत की बात थी कि वह अजनबी फिर उसी बेंच पर बैठा था। इस बार उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट थी।
आरव ने आगे बढ़कर कहा, “गुड मॉर्निंग अंकल, आप फिर यहां?”
आदमी ने सिर हिलाया, “हां बेटे, तुमने कल जो दिया था, उससे जान बच गई।”
आरव ने एक और समोसा उसके हाथ में दिया और उसके साथ बैठ गया।
बातों-बातों में अजनबी ने कहा, “मुझे अपना नाम भी याद नहीं। सब कुछ जैसे धुंध में छुप गया है। बस इतना याद है कि किसी ने मेरा पीछा किया और फिर अंधेरा छा गया।”
यह सुनकर आरव का दिल भर आया। उसने सोचा, “यह शख्स कोई पागल नहीं, बल्कि हादसे का शिकार है।”
उस दिन से उनके दरमियान एक खामोश दोस्ती शुरू हो गई।
आरव के दिन अब मामूल के साथ मगर एक नए रंग में गुजरने लगे। सुबह सवेरे वह मां के साथ समोसे और कचौड़ियों का सामान तैयार करता, फिर रेहड़ी धकेल कर बाजार की ओर चल देता।
अब उसके दिल में नया जोश था, क्योंकि उसे मालूम था कि स्टेशन के करीब वह अजनबी उसका इंतजार कर रहा होगा।

अजनबी का नाम—विवेक

अजनबी अब उसके लिए ‘अंकल विवेक’ बन चुका था। यह नाम आरव ने खुद रखा ताकि आसानी से पुकार सके।
विवेक की हालत दिन-ब-दिन थोड़ी बेहतर होने लगी। आरव की मोहब्बत और रोजाना के खाने से वह कमजोर जरूर था, मगर अब पहले जैसा निढाल नहीं दिखता था।
अक्सर वह घंटों चुप बैठा आसमान को देखता रहता, जैसे कोई भूला हुआ मंजर याद करने की कोशिश कर रहा हो। कभी अचानक उसकी आंखों में नमी आ जाती, कभी लबों पर हल्की मुस्कुराहट।
आरव यह सब देखता और सोचता, आखिर यह शख्स कौन है? कहां से आया है? इसके पीछे कौन लोग हैं?

साजिश का पता

एक शाम जब आरव रेहड़ी समेट कर लौट रहा था, उसने गली के कोने पर दो अजनबियों को देखा। दोनों काले कपड़ों में थे और हाथ में किसी शख्स की तस्वीर पकड़े लोगों से पूछताछ कर रहे थे।
उनकी बातें आरव के कानों में पड़ी, “यह आदमी पागलखाने से भागा है, खतरनाक है। अगर किसी ने देखा तो फौरन इत्तला दे।”
आरव का दिल धक से रह गया। तस्वीर में चेहरा धुंधला था, मगर नक्श निगार विवेक से मिलते थे।
उसने नजरें झुकाई और तेजी से घर की ओर भाग गया।
रात को मां के सोने के बाद वह खामोशी से पीछे वाले कमरे में गया, जहां विवेक बैठा था।
अंधेरी रात, टिमटिमाती लालटेन और बाहर से आती हवा माहौल को और संजीदा बना रही थी।
आरव ने धीमी आवाज में कहा, “अंकल, लोग आपको ढूंढ रहे हैं। कहते हैं कि आप पागलखाने से भागे हैं। मुझे डर लग रहा है।”
विवेक ने कुछ लम्हे खामोश रहने के बाद जवाब दिया, “बेटे, मैं पागल नहीं हूं। मुझे लगता है किसी ने जानबूझकर मुझे भुलाया है। कुछ ऐसा है जो मैं जानता हूं, इसीलिए लोग मुझे खत्म करना चाहते हैं।”
आरव के नन्हे दिल पर यह अल्फाज बिजली बनकर गिरे। मगर उसने डर को पीछे धकेल दिया।
वह जानता था कि बेसहारा इंसान को तन्हा छोड़ देना बुजदिली होगी।
उसने हौसला पकड़ा और कहा, “अंकल, आप फिक्र मत करें। जब तक मैं हूं, कोई आपको कुछ नहीं कह सकता।”

छुपने की जद्दोजहद

उस दिन के बाद आरव ने विवेक को कस्बे के किनारे पड़े एक पुराने गोदाम में पहुंचा दिया।
दीवारें जर्जर और छत टपकती थी, मगर यह जगह पहले से ज्यादा महफूज़ थी।
वहां बिस्तर, चटाई और पानी का मटका रख दिया और वक्त मिलने पर खाना भी पहुंचाता।
अब आरव की जिंदगी दो हिस्सों में बंट गई थी—एक तरफ मां के साथ रेहड़ी लगाकर ग्राहकों को बुलाता और पुलिस की बदतमीजी सहता, दूसरी तरफ उस अजनबी की हिफाजत करता जो उसके लिए खोए हुए पिता की तरह बन गया था।
विवेक अक्सर कहता, “बेटे, तुम बहुत छोटे हो, मगर दिल बड़ा है।”
यह सुनकर आरव फक्र महसूस करता।

मगर खतरा बढ़ रहा था।
एक दिन जब वह बाजार में समोसे बेच रहा था, दो पुलिस वाले आ पहुंचे।
रेहड़ी उलटने लगे और बोले, “छोटू, यहां जगह घेर ली है, भाग जा वरना जेल में डाल देंगे।”
मां संतोष देवी दौड़ती आई और हाथ जोड़कर बोली, “साहब, गरीब का रोजगार है, रेहड़ी मत उलटाइए।”
मगर पुलिस ने ना सुनी।
उसी वक्त एक सफेद जीप रुकी और दबंग डीएसपी आदित्य शर्मा उतरे—आरव का सगा भाई।
उसे देखकर पुलिस वाले चुप हो गए।
आदित्य ने कहा, “यह मेरा भाई है, इसकी रेहड़ी को हाथ लगाया तो अच्छा नहीं होगा।”
पुलिस फौरन माफी मांगने लगे।
आरव हैरान और खुश था। पहली बार उसे लगा कि उसका सहारा है।
मां की आंखों में खुशी के आंसू आ गए।
मगर आरव के दिल में एक कैफियत थी—भाई की ताकत पर खुशी भी थी, मगर विवेक का राज छुपाने की फिक्र भी।

विवेक की याददाश्त और सच्चाई

रात को मां के सोने के बाद आरव गोदाम गया।
विवेक कुर्सी पर बैठा बारिश की बूंदों में भीगा था।
आरव ने खाना दिया।
विवेक ने पूछा, “बेटे, बाहर शोर सुन रहा था, क्या हुआ था?”
आरव ने बताया कि पुलिस रेहड़ी उलटाना चाह रही थी, मगर डीएसपी भाई ने बचा लिया।
विवेक ने कहा, “खुशकिस्मत हो, तुम्हारे पास भाई है। ताकत के बिना गरीबों को कोई नहीं पूछता।”
आरव ने मासूमियत से पूछा, “अंकल, लगता है आप भी कोई बड़े आदमी थे ना?”
विवेक के होंठ कांपे, फिर बोला, “कभी ख्वाब आता है कि मैं दफ्तर में बैठा हूं। लोग फाइलें लाते हैं। फिर अचानक गोलियां चलती हैं, चीखें आती हैं और अंधेरा छा जाता है। तब से कुछ याद नहीं।”
आरव को यकीन हो गया कि यह आम आदमी नहीं, जरूर किसी साजिश का शिकार है।

राजीव वर्मा—असली पहचान

अगले दिन स्कूल के बाद उसने देखा कि कुछ लोग तस्वीर दिखाकर पूछताछ कर रहे हैं।
एक शख्स कह रहा था, “यह राजीव वर्मा है, बड़ा बिजनेसमैन, दो हफ्ते पहले अगवा हुआ। कंपनी के अंदर के लोग शामिल हैं।”
आरव के रोंगटे खड़े हो गए।
क्या विवेक ही राजीव वर्मा है?
रात को वह गोदाम पहुंचा और पूछा, “अंकल, आपका असली नाम क्या है? कहीं आप राजीव वर्मा तो नहीं?”
विवेक चौंक गया और आहिस्ता से बोला, “यह नाम मेरे दिल में हलचल मचाता है, शायद मैं वही हूं।”
आरव ने कहा, “लोग कह रहे हैं आपको कंपनी वालों ने अगवा किया।”
विवेक की आंखों में आंसू आ गए, “अगर यह सच है तो मेरा अपना कोई दुश्मन था। मेरे पास ऐसे सबूत थे जो बड़े लोगों को डूबाने के लिए काफी थे, इसीलिए मुझे खत्म करना चाहा।”
आरव ने कहा, “हम वह सबूत ढूंढ सकते हैं, आपके दफ्तर या घर में कुछ होगा।”
विवेक ने उसे देखा और कहा, “तुम बच्चे हो, यह तुम्हारे बस की बात नहीं। लेकिन तुमने मेरा जो साथ दिया है, वही मेरी सबसे बड़ी दौलत है।”
आरव ने मुस्कुरा कर कहा, “जब तक मैं हूं, आप अकेले नहीं हैं।”

सच्चाई की लड़ाई

इतने में बाहर कदमों की आहट सुनाई दी।
आरव ने देखा कि दो साए गोदाम के पास घूम रहे हैं।
वह बोला, “अंकल, यह जगह महफूज़ नहीं रही, हमें जाना होगा।”
वे पिछले दरवाजे से निकले और अंधेरी रात में एक पुराने खेत के कोठे में जा छुपे।
बारिश तेज थी, बिजली कड़क रही थी, मगर आरव के दिल में हिम्मत थी।
अब वह जानता था कि इस अजनबी की हिफाजत ही उसकी जिंदगी का मकसद है।

दफ्तर की ओर

रात कोठे में विवेक ने कहा, “ख्वाब में एक ऊंची इमारत याद आती है, जिस पर वर्मा ग्रुप लिखा होता है। वहां जरूर कोई सबूत होगा। अगर मैं दफ्तर पहुंच जाऊं तो सब कुछ वाजे हो जाएगा।”
अगले दिन दोनों एक पुराने ट्रक में छुपकर शहर निकले।
शहर पहुंचे तो सामने वही बिल्डिंग खड़ी थी।
आरव ने पिछले दरवाजे का रास्ता देखा और दबे कदमों से अंदर ले गया।
विवेक के कदम लड़खड़ा रहे थे।
उसने एक दरवाजे की तरफ इशारा किया, “यही मेरा कमरा था।”
जूते में छुपी पुरानी चाबी निकाली, दरवाजा खुला।
अंदर वसीया कमरा था।
विवेक ने दराज से फाइलें और एक पेनड्राइव निकाली, “यही वजह है कि मुझे मिटाने की कोशिश हुई। इसमें मेरे करीबी साथियों की बदनियती के सबूत हैं। अगर यह सामने आ गया, तो उनकी दुनिया हिल जाएगी।”

खतरे के बीच भागना

अचानक गार्ड्स करीब आ गए।
विवेक ने फाइलें बैग में डाली और कहा, “बेटे, फ़ौरन निकलना होगा।”
दोनों पिछले दरवाजे की तरफ भागे।
गार्ड्स शोर मचा रहे थे, “वह ऊपर हैं, पकड़ो!”
आरव और विवेक एक खाली हाल में घुस गए, बाहर बारिश बरस रही थी।
राजीव ने बैग सीने से लगा लिया, “यह सब मेरी जिंदगी से कीमती है। अगर यह दुश्मनों को मिला तो पूरा शहर उनके शिकंजे में होगा।”
आरव ने कहा, “हम इसे कभी उनके हाथ नहीं लगने देंगे। मगर अब अगला कदम सोचना होगा।”
राजीव बोला, “मेरा पुराना दोस्त बजरंग सिंह आजाद सहाफी है। अगर यह फाइलें उसे मिल गई, तो सच दुनिया के सामने होगा।”

मीडिया और हमला

दोनों स्टेशन की तरफ बढ़ने लगे।
प्लेटफार्म पर अखबार फरोशों के बीच बजरंग सिंह बैठा था।
राजीव ने बैग खोलकर फाइलें दिखाई, “यह वह सबूत हैं जिन पर मेरी जान खतरे में है।”
बजरंग ने फाइलें संभाली, “मैं कल ही मीडिया में सब कुछ लीक कर दूंगा। लेकिन दुश्मन अब और भी गजबनाक होंगे, तुम्हें छुपना होगा।”
इतने में शोर मचा, दो आदमी काले कपड़ों में आ गए।
आरव ने राजीव और बजरंग को खींचा और पिछले रास्ते से निकल भागा।
अंधेरी रात, बारिश, सुनसान गली।
दुश्मन करीब था।
अब भाई डीएसपी आदित्य को खबर देना जरूरी था।

डीएसपी आदित्य की मदद

अगली सुबह आरव राजीव को मोहल्ले के पुराने कमरे में ले आया।
दिन भर रेहड़ी चलाई, मां को बहलाया और शाम को भाई के पास पहुंचा।
“भैया, मुझे राज की बात करनी है।”
आरव ने सब कुछ बता दिया—अजनबी से मुलाकात, पनाह, उसका राजीव वर्मा निकलना, खतरे और हमले।
आदित्य ने पहले यकीन ना किया, मगर भाई की आंखों में सच्चाई देखकर खामोश हो गया।
उसने सख्त लहजे में कहा, “तुमने बहुत बड़ा खतरा मोल लिया है। उनके पीछे ताकतवर सियासतदान और बिजनेसमैन हैं। हमें सच आवाम तक पहुंचाना होगा, मगर पहले उसको तहफुज देना होगा।”
रात को आदित्य ने राजीव से मुलाकात की।
राजीव ने अपनी हालत और याददाश्त का हाल सुनाया।
फाइलें बजरंग के पास थीं, मगर मीडिया में जाने के बाद भी उसका बयान जरूरी था।

आखिरी जंग

मगर पुलिस में भी कुछ उन्हीं के आदमी थे।
अचानक मोटरसाइकिलों की आवाज आई।
छह गुंडे, डंडे और हथियार लिए आ रहे थे।
आदित्य ने पिस्तल निकाल ली, “आरव, अंदर रहो, मैं देखता हूं।”
राजीव घबरा गया, “वे मुझे लेने आए हैं।”
आदित्य ने दरवाजा खोला, “रुक जाओ, यह डीएसपी आदित्य शर्मा का घर है।”
गुंडे लम्हे भर रुके, फिर बोले, “हुक्म ऊपर से है, राजीव वर्मा हमारे हवाले करो।”
आदित्य ने बंदूक सीधी की।
गली में कशीदगी फैल गई।
मगर अचानक पुलिस की जीप आ गई।
अहलकार उतरते ही गुंडों को घेरने लगे।
कुछ गिरफ्तार हुए, कुछ भाग गए।
राजीव ने सुकून की सांस ली।
आरव ने भाई को गले लगाया, “अब हम सब साथ हैं। कोई हमें नहीं तोड़ सकता।”

सच्चाई की जीत

अगली सुबह कम्युनिटी हॉल में प्रेस कांफ्रेंस रखी गई।
मीडिया, पुलिस, राजीव, बजरंग और आरव सब मौजूद थे।
राजीव ने माइक के सामने कहा, “मेरा नाम राजीव वर्मा है। मुझे अपने करीबी लोगों ने धोखा देकर मारने की कोशिश की। मगर मैं जिंदा हूं और आज सच सामने लाने आया हूं।”
हॉल में खलबली मच गई।
रिपोर्टरों ने सवालों की बौछार कर दी।
राजीव ने जवाब दिया, “यह सबूत आजाद सफियों के पास है, यह आवाम की अमानत है।”
अचानक दरवाजा धमाके से खुला।
तीन मुसल्लाह आदमी अंदर घुस आए।
रिपोर्टर भागने लगे।
आदित्य ने पिस्तल निकाल ली, “कोई हरकत ना करे, यह सरकारी कॉन्फ्रेंस है।”
हमलावर बोले, “राजीव वर्मा हमारे साथ चलो, यह ड्रामा खत्म करो।”
आरव चीखा, “अंकल को कोई हाथ नहीं लगाएगा।”
आदित्य ने इशारा किया।
पुलिस अहलकार अंदर घुसे और हमलावरों को काबू कर लिया।
राजीव ने कहा, “देख लो, यह किसी भी हद तक जा सकते हैं। लेकिन सच अब नहीं दबेगा।”

अदालत का फैसला

अगले दिन अदालत में समात हुई।
राजीव ने हलफ लेकर बयान दिया, “बिजनेस पार्टनर्स ने अगवा की साजिश की, वजीरों ने रास्ते से हटाने की कोशिश की, मीडिया खरीदा गया।”
सबूत पेश किए गए, वीडियोस चली, दस्तावेज दिखाए गए।
वकील ने कहा, “यह मामला एक शख्स का नहीं, बल्कि करोड़ों आवाम के एतमाद का है।”
अदालत के बाहर हजारों लोग नारे लगा रहे थे, “सच को सामने लाओ, करप्शन खत्म करो।”
आरव खिड़की से यह मंजर देखकर खुश हुआ कि उसकी नेकी अब रोशनी बन गई है।

अंतिम हमला और जीत

जैसे ही समात खत्म हुई, एक नकाबपोश ने हुजूम से फायर किया।
आदित्य ने अपने जिस्म को राजीव के आगे कर दिया।
गोली कंधे को छूकर निकल गई।
पुलिस ने हमलावर को दबोच लिया।
आरव चीख उठा, “भैया!”
आदित्य ने दर्द के बावजूद कहा, “चोट मामूली है, मगर देख लिया ना, यह लोग आखिरी हद तक जाएंगे।”
इस वाक्य ने आवाम को मजीद भड़का दिया।
सोशल मीडिया पर गुस्सा बढ़ा।
अपोजिशन ने जलसे बुलाए।

सच्चाई की रोशनी

कुछ हफ्तों बाद हुकूमत ने ऐलान किया कि राजीव वर्मा के नाम पर एक नई अमानत कायम होगी, जो गरीब बच्चों की तालीम और रोजगार के लिए काम करेगी।
आरव को उसका पहला ब्रांड एंबेसडर बनाया गया।
स्कूलों में उसकी कहानी सुनाई जाने लगी।
अखबारों ने लिखा, “समोसे वाले बच्चे ने बदामिनी और करप्शन के खिलाफ जंग जीत ली।”
डीएसपी आदित्य की इज्जत में भी इजाफा हुआ।
संतोष देवी को पहली बार सुकून की नींद नसीब हुई।

अब भी शाम को आरव अपनी रेहड़ी लगाता था, मगर उसके सामने पुलिस वाले भी अदब से खड़े होते और लोग एहतराम से सलाम करते।
एक शाम जब सूरज ढल रहा था, आरव अपनी रेहड़ी पर बैठा था। पास ही राजीव वर्मा और आदित्य खड़े थे।
राजीव ने कहा, “यह सब तुम्हारी वजह से मुमकिन हुआ है। याद रखो, एक नेकी दुनिया बदल सकती है।”
आरव ने आसमान की तरफ देखा, जहां सूरज की किरणें बादलों को चीर कर निकल रही थीं।
“जी अंकल, सच्चाई कभी नहीं हारती।”
और यूं एक बच्चे की मासूम नेकी पूरे समाज के लिए रोशनी बन गई।

सीख:
एक छोटी-सी नेकी, एक समोसा, किसी की जिंदगी बदल सकता है।
सच्चाई, हिम्मत और इंसानियत की जंग हमेशा जीती जा सकती है, अगर दिल में उजाला और साथ में भरोसा हो।

धन्यवाद!