होटल का बचा हुआ खाना गरीबों को खिलाती थी वेटर लड़की , एक दिन एक करोड़पति सरदार जी ने उसे देखा

कहानी – हरलीन की नेकी और सरदार मनजीत सिंह का चमत्कार

क्या होता है जब एक छोटी सी नेकी अंधेरे में दिए की तरह जलती है? क्या सेवा का असली मतलब बड़े भंडारे करवाना है या अपनी थाली का एक निवाला किसी भूखे को देना?
यह कहानी है हरलीन कौर की, जो चंडीगढ़ के एक पांच सितारा होटल ‘द रॉयल पैलेस’ में वेटर थी। उसके लिए होटल में फेंका जाने वाला खाना सिर्फ कचरा नहीं, बल्कि किसी की भूख मिटाने का जरिया था। दूसरी तरफ हैं करोड़पति उद्योगपति सरदार मनजीत सिंह रंधावा, जिन्होंने दौलत तो खूब कमाई, लेकिन उनकी आत्मा सच्ची सेवा की तलाश में थी।

हरलीन रोज रात होटल में बचे हुए खाने को छुपकर गरीबों को बांट देती थी। सरदार जी ने जब यह देखा तो हैरान रह गए। उन्हें उसमें गुरु नानक देव जी के लंगर की सच्ची झलक दिखी। उन्होंने हरलीन के लिए ऐसा किया कि उसकी नेकी पर खुदा की नजर पड़ गई और चमत्कार हो गया।

चंडीगढ़ का खूबसूरत शहर, सेक्टर 17 के पॉश इलाके में ‘द रॉयल पैलेस’ होटल था। यहां की चमक-दमक के पीछे हरलीन की साधारण सी दुनिया थी। वह अपने बूढ़े माता-पिता के साथ रहती थी। उसके पिता गुरबचन सिंह कभी रोडवेज में ड्राइवर थे, लेकिन दुर्घटना के बाद काम नहीं कर सकते थे। घर की जिम्मेदारी हरलीन के कंधों पर थी।
हरलीन की सुबह गुरुद्वारे में माथा टेकने और बापू के लिए चाय बनाने से शुरू होती थी, और रातें अमीर ग्राहकों की प्लेटें उठाते हुए खत्म होती थीं। वह देखती थी कि कैसे हजारों रुपये की डिश दो चम्मच खाकर छोड़ दी जाती है और वह खाना कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है। उसे अपने गुरुओं की सीख याद आती – मिल बांट कर खाओ। उसे लगता था कि यह सिर्फ खाने की बर्बादी नहीं, बल्कि उस अन्न का अपमान है।

सरदार मनजीत सिंह रंधावा – रंधावा स्टील्स के मालिक, करोड़पति, समाजसेवी, कई स्कूल, अस्पताल और धर्मशालाएं चलाने वाले, हर साल लाखों का दान देने वाले। लेकिन उन्हें अपने बड़े-बड़े दान और लंगरों में रूहानी सुकून नहीं मिलता था। वह अपनी पत्नी से कहते, “मुझे लगता है मैं सिर्फ पैसा दान कर रहा हूं, अपनी आत्मा का हिस्सा नहीं।”

सरदार जी ‘द रॉयल पैलेस’ के पुराने ग्राहक थे। एक सर्द रात वे वहां अपने विदेशी मेहमानों के साथ डिनर पर आए। हरलीन अपनी ड्यूटी पर थी, ग्राहकों की सेवा में लगी थी। सरदार जी ने देखा, हरलीन बाकी वेटरों से अलग है। उसके चेहरे पर शांति और आंखों में गहराई थी।
डिनर के बाद टेबल पर ढेर सारा खाना बच गया। होटल के नियम के मुताबिक, एक बार टेबल पर रखा खाना वापस किचन नहीं जा सकता, फेंकना पड़ता है। हरलीन ने प्लेटें उठाईं और किचन की बजाय एक कोने में जाकर बचे हुए खाने को साफ-सुथरी थैलियों में पैक करना शुरू कर दिया। सरदार जी ने देखा, वह खाना एक थैली में नहीं, अलग-अलग थैलियों में पैक कर रही है। उन्होंने जिज्ञासा में उसका पीछा करने का फैसला किया।

रात में होटल बंद हुआ, हरलीन बैग लेकर निकली। वह बस में बैठकर शहर के पुराने इलाके में उतर गई – मजदूरों की बस्ती, फ्लाईओवर के नीचे। वहां कुछ बूढ़े और लाचार लोग फटे कम्बलों में सो रहे थे। हरलीन को देखकर उनके चेहरे खिल उठे।
“आ गई मेरी बच्ची, आज दिनभर कुछ नहीं खाया,” एक मांजी ने कहा।
हरलीन ने थैली दी – “आज ईरानी बिरयानी है, जल्दी खा लो।”
वह सबको खाना बांटती, हालचाल पूछती, सिर पर हाथ फेरती, आंसू पोंछती। वह उनके लिए सिर्फ खाना लाने वाली नहीं, बेटी थी।
सरदार जी एक कोने में खड़े, आंखों में आंसू लिए यह सब देख रहे थे। उन्होंने हजारों लोगों के लंगर देखे थे, लेकिन ऐसी निस्वार्थ सेवा पहली बार देखी।
फिर हरलीन अस्पताल के बाहर पहुंची, वहां भी कुछ जरूरतमंदों को खाना बांटा। एक आदमी ने हाथ जोड़कर कहा, “बेटी भगवान तुम्हारा भला करे, तुम ना होती तो हमारे बच्चे भूखे सो जाते।”
हरलीन बोली, “शुक्रिया मेरा नहीं, उस वाहेगुरु का करो जो किसी को जरिया बना देता है, मैं तो बस डाकिया हूं।”

जब उसका बैग खाली हुआ, उसके चेहरे पर सुकून था जो करोड़ों खर्च करके भी नहीं मिलता।
अगले दिन सरदार जी ने हरलीन को अपने ऑफिस बुलाया।
“कल रात मैं तुम्हारे पीछे था, सब देखा। होटल का खाना बाहर ले जाना गुनाह है, लेकिन मैं उसे फेंकते नहीं देख सकती थी। आप मुझे नौकरी से मत निकालिएगा,” हरलीन ने डरते हुए कहा।
सरदार जी बोले, “बेटी, मैं तुम्हें नौकरी से निकालने नहीं, बल्कि तुम्हें दुनिया की सबसे बड़ी सेवा का मौका देने आया हूं। तुम अकेले ही सच्चा लंगर चला रही हो। मैं चाहता हूं कि तुम यह काम बड़े स्तर पर करो, ताजे और पौष्टिक खाने से, हजारों लोगों के लिए।”

उन्होंने अपने ट्रस्ट ‘सरबत दा भला चैरिटेबल ट्रस्ट’ के कागजात दिए – “आज से इसकी डायरेक्टर तुम हो। करोड़ों का बजट, हजारों लोगों की टीम, तुम्हारा काम एक ही – कोई भी भूखा ना सोए।”

हरलीन को विश्वास नहीं हुआ। “सर, मैं तो सिर्फ एक वेटर हूं, इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे?”
सरदार जी ने सिर पर हाथ रखा, “जिसके पास इतना बड़ा दिल हो, उसके लिए कोई जिम्मेदारी बड़ी नहीं होती। आज से तुम मेरी बेटी हो।”

हरलीन फूट-फूट कर रोने लगी, खुशी के आंसू थे।
होटल का स्टाफ हैरान रह गया – जो लड़की कल तक वेटर थी, आज सबसे बड़े ट्रस्ट की डायरेक्टर बन गई थी।
सरदार जी ने उसके माता-पिता से मुलाकात की, “मैं आपकी बेटी को लोगों की सेवा के रास्ते पर आगे बढ़ाना चाहता हूं।”
माता-पिता की आंखों में गर्व के आंसू थे।

हरलीन ने नई जिम्मेदारी को दिल से निभाया – शहर के कोनों में मुफ्त रसोइयां, हजारों लोगों को सम्मान के साथ खाना, प्यार से सेवा।
सरदार जी अक्सर उसकी सेवा देखने आते, वह गर्व से भर जाते। उन्हें लगता – यह उनकी जिंदगी की सबसे सच्ची डील है। उन्होंने दौलत की नहीं, रूह की वारिस पाई।

सीख:
नेकी और सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती। हरलीन ने बिना स्वार्थ के अपना फर्ज निभाया, और रब ने उसे उसकी सोच से भी ज्यादा दिया।
सेवा के लिए अमीर होना जरूरी नहीं, अमीर दिल होना जरूरी है।
सरदार जी ने साबित किया – सच्ची नजर हीरे को कचरे में भी पहचान लेती है। उन्होंने हरलीन को उसकी नेकी का आसमान दिया।

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