राजस्थान की तपती गर्मी में पुलिस और सेना के बीच हुई घटना ने इंसानियत और अनुशासन की एक मिसाल कायम की।

राजस्थान के हाईवे नंबर 62 पर मई की गर्मी अपने चरम पर थी। सड़क पर तपता डामर और जलती हवा हर किसी को परेशान कर रही थी। इसी हाईवे पर सब इंस्पेक्टर बलवंत सिंह ने नाकाबंदी लगाई थी। उनकी अकड़ और घमंड के लिए वह पूरे थाने में मशहूर थे। उस दिन वह हर गाड़ी की सख्ती से चेकिंग कर रहे थे।

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दोपहर करीब 12:30 बजे, एक बड़ा हरा रंग का आर्मी ट्रक बैरिकेड्स के पास पहुंचा। ट्रक में करीब 15-20 जवान बैठे थे, जो बॉर्डर पर सप्लाई लेकर जा रहे थे। ट्रक को देखकर भीड़ में गर्व की लहर दौड़ गई। लेकिन बलवंत सिंह की आंखों में कुछ और ही चमक थी। उन्होंने ट्रक को रोकने का इशारा किया।

ट्रक से एक जूनियर कमिशंड ऑफिसर (जेसीओ) उतरे और बलवंत सिंह से विनम्रता से कहा, “साहब, यह सरकारी ट्रक है। हम बॉर्डर पर सप्लाई लेकर जा रहे हैं। कृपया इसे रोके बिना जाने दें।” लेकिन बलवंत सिंह के अहंकार को यह बात चुभ गई। उन्होंने आदेश दिया कि ट्रक की तलाशी होगी और जवानों को उतरना पड़ेगा।

जवानों ने संयम बनाए रखा, लेकिन उनकी आंखों में गुस्सा साफ झलक रहा था। भीड़ में खड़े लोग हैरान थे। एक बुजुर्ग किसान ने कहा, “यह जवान हमारी सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं। पुलिस को इन्हें अपमानित नहीं करना चाहिए।”

हालात बिगड़ते देख जेसीओ ने अपने उच्च अधिकारियों को फोन किया। कुछ ही देर में एक मेजर साहब जीप से वहां पहुंचे। उन्होंने बलवंत सिंह को सख्त लहजे में समझाया, “यह सेना का आधिकारिक वाहन है। इसमें संवेदनशील सामान है। इसे रोकना आपकी ड्यूटी का हिस्सा नहीं है। आप देश की सुरक्षा में बाधा डाल रहे हैं।”

भीड़ में तालियां गूंज उठीं। लोग सेना के समर्थन में नारे लगाने लगे। बलवंत सिंह ने जब देखा कि हालात उनके खिलाफ हो रहे हैं, तो उन्होंने माफी मांग ली। मेजर ने उन्हें चेतावनी दी कि आगे से ऐसी गलती न करें।

उस घटना ने बलवंत सिंह को बदल दिया। उन्होंने महसूस किया कि वर्दी का असली मतलब जनता और देश की सेवा है, न कि अपनी ताकत का दिखावा। इस घटना ने लोगों को सिखाया कि असली ताकत अनुशासन और एकता में होती है।

यह कहानी हमें याद दिलाती है कि घमंड चाहे किसी भी रूप में हो, टूटकर ही रहता है। असली सम्मान उसी को मिलता है जो देश के लिए बलिदान करता है।