10 साल बाद DSP बनी संगीता ने महाकुंभ में भीख मांगते पति को देखा – दिल छू लेने वाली कहानी!

डीएसपी संगीता की प्रेरणादायक कहानी – महाकुंभ में मिला तलाकशुदा पति

बिहार के छोटे से गांव में जन्मी संगीता की कहानी आम लड़कियों जैसी थी – 12 साल की उम्र में बाल विवाह, सपनों को दबा देने वाली सामाजिक सोच, और परिवार का दबाव। लेकिन संगीता पढ़ाई में तेज थी, उसके शिक्षक कहते थे – “ये लड़की एक दिन बड़ा अधिकारी बनेगी।”
पर समाज और परिवार ने उसकी उड़ान रोक दी। 18 साल की उम्र में ससुराल भेज दिया गया, जहां पति रमेश ने वादा तो किया था कि आगे पढ़ने देगा, लेकिन शादी के बाद वही पुरानी सोच – “घर संभालो, पढ़ाई छोड़ो।”

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संगीता ने हिम्मत नहीं हारी। पति के अत्याचार और तानों के बावजूद उसने अपने सपनों को मरने नहीं दिया। एक रात, उसने एक नोट लिखा – “अब मैं अपने सपनों को जीना चाहती हूं, इस घर को छोड़ रही हूं। एक दिन डीएसपी बनकर लौटूंगी।”
दिल्ली आई, नौकरानी का काम किया, बीए की डिग्री ली, यूपीएसएससी की तैयारी की। पैसों की कमी, अकेलापन, असफलता – सबका सामना किया, लेकिन हार नहीं मानी। कोचिंग की फीस घरों में झाड़ू-पोंछा लगाकर जुटाई। पहली बार में परीक्षा नहीं निकली, लेकिन दूसरी बार पूरे देश में शानदार रैंक आई – और संगीता बन गई डीएसपी!

गांव लौटी तो लोग हैरान थे – जिस लड़की को छठी-सातवीं के आगे पढ़ने नहीं दिया जाता, वह डीएसपी बन गई। माता-पिता को अपनी सोच पर पछतावा हुआ। लेकिन पति रमेश और उसका परिवार कहीं गायब था।

कुछ साल बाद प्रयागराज महाकुंभ में संगीता की ड्यूटी लगी। लाखों श्रद्धालु, भीड़, सुरक्षा की जिम्मेदारी। संगीता खुद मेले का निरीक्षण कर रही थी – तभी उसकी नजर एक फटेहाल, भीख मांग रहे व्यक्ति पर पड़ी। हाथ पर नाम देखा – रमेश
वह चौंक गई। वही रमेश, उसका पति। वर्दी में संगीता को देख रमेश शर्म से कांप उठा, आंसू बहाने लगा। उसने संगीता से कहा – “तुमने जो कहा था, सच कर दिखाया। मुझे तुम पर गर्व है।”


रमेश ने अपनी कहानी बताई – संगीता के जाने के बाद घर उजड़ गया, माता-पिता का देहांत, अकेलापन, नशे की लत, सबकुछ बिक गया, सड़क पर आ गया। अब भीख मांग रहा था, महाकुंभ में आया था ताकि पापों से मुक्ति मिले।

संगीता की आंखों में आंसू थे। उसने रमेश का हाथ पकड़ा, कहा – “अगर सच में बदलना चाहते हो, तो एक नई शुरुआत करो। इंसान गलतियां करता है, लेकिन उनसे सीखना जरूरी है।”
धीरे-धीरे रमेश ने अपनी गलतियों को स्वीकार किया, संगीता ने उसे दोबारा जीने की उम्मीद दी। दोनों का जीवन फिर से सामान्य होने लगा। गांव वालों ने देखा – एक महिला ने न सिर्फ अपने सपनों को जिया, बल्कि अपने पति को भी सही राह दिखाई।

कहानी की सीख:

कभी हार मत मानो।
सपनों को पूरा करने के लिए समाज की दीवारें तोड़ो।
रिश्तों में माफ करना और नई शुरुआत करना जरूरी है।
लड़की हो या लड़का, उड़ान सबकी है।

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