भाग 2: अंतिम विदाई में सबसे बड़ी नाइंसाफी: हेमा मालिनी और ईशा देओल केवल 2 मिनट में क्यों निकल गईं?

भाग 2: धर्मेंद्र की अंतिम विदाई और परिवार की खामोशी

एक नई सुबह

हेमा मालिनी और ईशा देओल के वहां से निकल जाने के बाद, धर्मेंद्र जी का अंतिम संस्कार जारी रहा। प्रकाश कौर और उनके बेटे, सनी और बॉबी, रिचुअल्स को पूरी श्रद्धा के साथ निभा रहे थे। लेकिन इस समय, पूरे माहौल में एक भारी सन्नाटा था। सभी की नजरें उस पल पर थीं जब धर्मेंद्र जी को अग्नि दी जाएगी।

सनी का संघर्ष

सनी देओल, जो अपने पिता के अंतिम संस्कार में पूरी तरह से समर्पित थे, के मन में कई भावनाएं चल रही थीं। वह अपनी मां प्रकाश कौर के साथ खड़े थे, लेकिन उनके दिल में हेमा के प्रति जो गुस्सा और नाराजगी थी, वह भी कहीं न कहीं उन्हें परेशान कर रही थी। सनी को यह समझना मुश्किल हो रहा था कि एक तरफ उनका प्यार और सम्मान है, और दूसरी तरफ उनके पिता के फैसले के कारण जो दर्द उनके परिवार ने झेला है।

ईशा का दर्द

ईशा देओल, जो अपनी मां के साथ थीं, ने भी इस दुखद पल को महसूस किया। वह चाहती थीं कि उनके परिवार में सब कुछ सामान्य हो जाए, लेकिन उस दिन की घटनाओं ने उन्हें यह अहसास दिला दिया कि चीजें इतनी सरल नहीं हैं। उन्होंने अपनी मां का हाथ थाम लिया और कहा, “मम्मी, हम सब एक साथ हैं। हमें एक-दूसरे का सहारा बनना होगा।” लेकिन ईशा भी जानती थीं कि यह सिर्फ एक शब्दों की बात नहीं है; उनके परिवार के भीतर का तनाव बहुत गहरा था।

प्रकाश कौर की मजबूरी

प्रकाश कौर, जो धर्मेंद्र जी की पहली पत्नी थीं, ने अपने पति के अंतिम संस्कार की सभी रस्में निभाते समय एक मजबूत façade बनाए रखा। लेकिन उनके दिल में एक गहरी चोट थी। उन्होंने अपने पति को हमेशा समर्थन दिया, लेकिन आज जब वह अपने बच्चों के साथ खड़ी थीं, तो उन्हें भी यह महसूस हुआ कि उनकी जिंदगी में एक बड़ा खालीपन आ गया है।

समाज की नजरें

जब धर्मेंद्र जी का पार्थिव शरीर अग्नि को समर्पित किया गया, तब वहां मौजूद लोग उस पल को देखकर भावुक हो गए। सभी की आंखों में आंसू थे और दिलों में एक ही सवाल था: “क्या यह सच में एक पत्नी का हक नहीं था?” समाज में महिलाओं की स्थिति को लेकर यह घटना एक बड़ा सवाल खड़ा करती है।

हेमा का दर्द

हेमा मालिनी, जो अपनी कार में बैठकर रो रही थीं, ने सोचा कि क्या वह कभी अपने पति का अंतिम संस्कार करने का हक नहीं पा सकेंगी। उन्हें यह भी एहसास हुआ कि वह हमेशा से एक बाहरी व्यक्ति की तरह महसूस करती थीं। उनका यह दर्द केवल व्यक्तिगत नहीं था, बल्कि यह समाज की उन धारणाओं का भी हिस्सा था, जो महिलाओं को उनके हक से वंचित करती हैं।

सनी का निर्णय

सनी देओल ने उस दिन अपने पिता के अंतिम संस्कार के बाद एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। उन्होंने ठान लिया कि वह अपने परिवार को एकजुट करने का प्रयास करेंगे। उन्होंने अपने पिता की डायरी में लिखी हुई अंतिम इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए, हेमा और प्रकाश के बीच की दूरी को खत्म करने का संकल्प लिया।

एक नई शुरुआत

सनी ने अपने परिवार के सभी सदस्यों को एकत्रित किया और कहा, “हमें अपने पिता की याद में एकजुट होना होगा। हमें उनके प्यार को आगे बढ़ाना है।” यह सुनकर प्रकाश कौर और हेमा मालिनी दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा। उस पल में एक नई शुरुआत की संभावना थी।

सामंजस्य की कोशिश

सनी ने कहा, “हम सब एक परिवार हैं। हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए।” उन्होंने यह भी कहा कि धर्मेंद्र जी की यादों को जिंदा रखने के लिए, उन्हें एकजुट होकर चलना होगा। यह सुनकर हेमा ने धीरे से कहा, “मैं हमेशा आपके साथ हूं, सनी।” यह सुनकर सनी को एक नई उम्मीद मिली।

अंत में

इस घटना ने यह साबित कर दिया कि रिश्तों में समय और दूरियां कभी-कभी मिट जाती हैं। धर्मेंद्र जी की अंतिम विदाई ने सभी को एकजुट कर दिया। अब जब धर्मेंद्र नहीं रहे, तो उनके जाने से जो खालीपन आया है, वह केवल बॉलीवुड में नहीं बल्कि हर आम आदमी के दिल में महसूस हो रहा है।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि हर व्यक्ति की कहानी महत्वपूर्ण है, और हमें एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सम्मान के साथ पेश आना चाहिए।

आपकी राय इस बारे में क्या है? क्या आप मानते हैं कि सच्चाई इंसान के दिल को बदल सकती है? अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर बताएं।