अमीर बाप की बेटी एक गरीब लड़के के साथ खिलौना समझकर खेलती रही.. फिर जो हुआ?
राजस्थान के उदयपुर ज़िले के पास एक छोटे से गांव में 22 वर्षीय विक्रम अपने परिवार के साथ रहता था। पिता की मौत कैंसर से हो चुकी थी, माँ बीमार रहती थीं और बहन रिया की शादी की उम्र हो रही थी। घर में दो वक्त की रोटी का इंतज़ाम करना भी कठिन था। मजबूरी में विक्रम ने पढ़ाई छोड़ दी और रोज़गार की तलाश में दिल्ली आ गया।
दिल्ली की हकीकत
दिल्ली की चकाचौंध भरी सड़कों पर उसने सैकड़ों जगह नौकरी माँगी लेकिन उसके कपड़े, चेहरे और हालत देखकर हर जगह उसे ठुकरा दिया गया। उसके दिल में आग थी, लेकिन आँखों में माँ की दुआएँ और बहन की उम्मीदें थीं।
प्रिया कैफ़े में मुलाक़ात
एक शाम थककर वह प्रिया कैफ़े ज़ोन के सामने रुक गया। कैफ़े की मालकिन थी प्रिया शर्मा—अमीर बाप की इकलौती बेटी। उसने विक्रम की हालत देखकर उसे एक छोटा-सा टेस्ट दिया। ईमानदारी से पास होने के बाद उसे नौकरी मिल गई—₹15,000 वेतन और रहने-खाने की सुविधा। विक्रम ने राहत की साँस ली और हर महीने घर पैसे भेजने लगा।
प्यार का जाल
धीरे-धीरे प्रिया उसके करीब आने लगी। पहले दोस्ती, फिर महंगे कपड़े, फिर पार्टियाँ। विक्रम को यक़ीन हुआ कि यह प्यार है। एक रात प्रिया ने नशे में अपने दिल की बात कही और जल्द ही मंदिर में गुपचुप शादी भी कर ली। लेकिन शादी उसके लिए सिर्फ़ एक खेल थी। वह अपने पिता के सामने किसी और से शादी के लिए तैयार हो गई।
खिलौना बना दिया गया
विक्रम विरोध करता तो प्रिया धमकाती—“अगर ज़ुबान खोली तो तुम्हें बदनाम कर दूँगी।” विक्रम चुप रहा, दर्द सहता रहा। लेकिन भीतर-ही-भीतर टूट गया। एक दिन दिल्ली की सड़क पर बैठा वह रो रहा था।
अनन्या से मुलाक़ात
वहीं से गुज़र रही थीं आईएएस अधिकारी अनन्या वर्मा। वही अनन्या जिससे पार्टी में कभी मुलाक़ात हुई थी। उसने विक्रम को टूटे हाल में देखा और मदद की। विक्रम ने अपना पूरा सच बता दिया। अनन्या ने वादा किया कि अब वह अकेला नहीं है।
आज़ादी की लड़ाई
अनन्या ने प्रिया को कोर्ट तक घसीटा। सबूत, मैसेज और कॉल रिकॉर्डिंग सामने आए। विक्रम ने तलाक़ के पेपर थामे और आखिरकार आज़ाद हो गया। वह अपने गांव लौटा—माँ-बेटी ने गले लगाकर उसका दर्द पिघला दिया।
नई शुरुआत
लेकिन किस्मत यहीं नहीं रुकी। अनन्या को विक्रम की सादगी और ईमानदारी पसंद आई। उसने अपने परिवार से साफ़ कहा—“मैं विक्रम से शादी करूंगी।” परिवार पहले चौंका, पर अंततः मान गए। गांव के मंदिर में पूरे सम्मान के साथ शादी हुई। इस बार कोई राज़ नहीं, कोई डर नहीं—सिर्फ़ सच्चा साथ।
आगे की ज़िंदगी
अनन्या के साथ विक्रम ने नई ज़िंदगी शुरू की। उसने पढ़ाई दोबारा शुरू की, नौकरी पाई और फिर अपना काम भी खड़ा किया। बहन की शादी अच्छे घर में हुई। माँ की तबीयत सुधरी। अनन्या के साथ उसका घर हँसी से भर गया। कुछ सालों बाद उनका बेटा हुआ—आरव।
इंसाफ़ और सबक
जब प्रिया के और धोखे उजागर हुए, विक्रम ने हिम्मत कर कोर्ट में गवाही दी। प्रिया को सज़ा मिली और विक्रम को सुकून। उसे एहसास हुआ—सच्चाई और ईमानदारी कभी हारती नहीं।
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मेरे जीवन की शुरुआत बहुत साधारण थी। पढ़ाई ख़त्म करने के बाद मैं एक निर्माण कंपनी में काम करने लगा। शुरू-शुरू में मेरा काम सिर्फ़ मजदूरों और कर्मचारियों की टीम का प्रबंधन करना था। धीरे-धीरे मुझे काम की आदत हो गई, और जब लोगों से अच्छे रिश्ते बन गए तो मैंने हिम्मत जुटाई और अलग होकर अपनी एक छोटी सी कंपनी खड़ी कर दी। मेरी कंपनी देहरादून में थी, लेकिन काम पूरे उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में मिलता था। इसलिए मैं हमेशा यात्रा करता रहता था। जब भी घर लौटता, मेरी पत्नी सुनीता अपने चेहरे पर वही संतोष और अपनापन लिए मेरा इंतज़ार करती। उसने तीन बच्चों—दो बेटे और एक बेटी—को जन्म दिया। मैंने उससे कहा कि अब खेती-बाड़ी छोड़कर सिर्फ़ बच्चों और घर पर ध्यान दे। आर्थिक बोझ मैं उठा लूँगा। सुनीता ने मेरी बात मान ली।
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