गरीब लड़का करोड़पति की बेटी के सामने हस रहा था फिर जो हुआ…

.

.

“एक मुस्कान की कीमत”
– एक अपाहिज लड़की, एक गरीब लड़का और एक बदलता दिल

लोनावला के हरे-भरे एक पहाड़ी इलाके में बसा था मल्होत्रा विला — एक ऐसा आलीशान बंगला जो बाहर से तो ऐश्वर्य की मिसाल था, पर भीतर एक गहरे सन्नाटे में डूबा हुआ। यह बंगला करोड़पति उद्योगपति राजीव मल्होत्रा का था, जिनके पास सब कुछ था—शानो-शौकत, दौलत, रुतबा—सिवाय एक चीज के: खुशी

राजीव की एकमात्र संतान थी सोनाली—एक बेहद सुंदर, नर्मदिल लेकिन जन्म से अपाहिज लड़की। वह व्हीलचेयर पर चलती थी, और उसकी आँखों में हमेशा एक गहरी उदासी बसी रहती थी। महंगे कपड़े, बेहतरीन ट्यूटर, हर सुख-सुविधा होने के बावजूद उसके दिल में खालीपन था। उसे लगता था, जैसे ज़िंदगी उसके साथ कोई अधूरी किताब बन गई है।

हर दिन जब बगीचे में बच्चे खेलते, दौड़ते, हँसते—वह खिड़की से बस देखती रहती। कोई खिलखिलाहट उसके भीतर तक नहीं पहुँचती थी।

एक दिन, सोनाली बगीचे में अकेली बैठी थी। उसकी व्हीलचेयर एक पेड़ के नीचे खड़ी थी, और आँखों में आँसू थे। वह बुदबुदाई, “काश मैं भी… बस एक दिन दौड़ पाती, कूद पाती…”

उसी वक्त वहाँ से गुज़रा अजय, एक गरीब अखबार बेचने वाला लड़का। झोले में अखबारों का बंडल, मैले-कुचैले कपड़े, पसीने से तर चेहरा—मगर आंखों में मासूम चमक और होठों पर मुस्कान।

उसने देखा, एक लड़की रो रही है। वह ठिठका। फिर डरते-डरते पास आया।

“अरे दीदी, रो क्यों रही हो? कोई छीना क्या तुमसे?”

सोनाली ने चौंककर उसकी ओर देखा और धीरे से कहा, “नहीं… कोई नहीं… बस ऐसे ही।”

अजय ने हँसते हुए कहा, “अगर सिर्फ पैर नहीं चलते तो इसमें उदासी कैसी? देखो, मैं बिना दौड़े भी दौड़ सकता हूँ।”

वह बच्चे जैसी शरारत करने लगा—अजीब-सी चाल में इधर-उधर भागने का नाटक, मजेदार चेहरे बनाना, और हाथ-पांव को अजीब तरीके से हिलाना।

सोनाली पहले चौंकी, फिर मुस्कुराई… और फिर बरसों बाद, उसके चेहरे पर एक खिलखिलाती हँसी दौड़ पड़ी। वह इतनी जोर से हँसी कि हवेली के नौकर तक चौंक गए—क्योंकि उन्होंने सोनाली को कभी इतना खुलकर हँसते नहीं देखा था

लेकिन यह खुशगवार पल ज़्यादा देर नहीं ठहरा।

बगीचे में टहलते हुए आए राजीव मल्होत्रा। उन्होंने देखा—उनकी अपाहिज बेटी हँस रही थी, और सामने एक गरीब लड़का बेहूदा हरकतें कर रहा था।

गुस्से से तमतमाए राजीव चीख पड़े, “तेरी इतनी हिम्मत कि तू मेरी बेटी पर हँसे! क्या मेरी अपाहिज बच्ची का मज़ाक बना रहा है?”

अजय सहम गया। “नहीं साहब, मैं तो बस—”

“चुप! अभी गार्ड्स तुझे बाहर फेंक देंगे!” राजीव गरजे।

लेकिन तभी सोनाली ने तेज़ आवाज़ में कहा, “पापा, रुको! आप गलत समझ रहे हैं।

राजीव ठिठक गए।

सोनाली ने कांपती आवाज़ में कहा, “इसने मेरा मज़ाक नहीं उड़ाया… इसने मुझे हँसाया। कई सालों बाद मुझे लगा कि मैं भी ज़िंदा हूँ। मैंने हँसने का हक खोया नहीं है…”

राजीव की आंखें नम हो गईं। उन्होंने अजय की ओर देखा—उस गरीब लड़के ने जो बेटी के चेहरे पर फिर से मुस्कान लौटा लाया।

धीरे से बोले, “बेटा… माफ कर दो। मैंने तुझे गलत समझा।”

उन्होंने गार्ड्स को इशारा किया—“हट जाओ।”

फिर अजय से पूछा, “तुम्हारा नाम?”

“अजय, साहब। पास की झुग्गी में रहता हूँ। पापा मज़दूरी करते हैं, माँ बर्तन माँजती हैं। मैं पढ़ाई के साथ-साथ अखबार बेचता हूँ।”

राजीव और सोनाली दोनों चुप हो गए।

राजीव सोचने लगे—“इतनी कम उम्र, इतनी जिम्मेदारी… फिर भी ये लड़का हँसना जानता है। यही तो असली दौलत है!”

उन्होंने अजय का हाथ पकड़ा और कहा, “आज से तुम्हारी पढ़ाई का पूरा ज़िम्मा मेरा। स्कूल से कॉलेज तक, जो भी चाहिए, मैं देखूँगा। तुम्हें सिर्फ मेहनत करनी है।”

अजय की आंखों में आँसू आ गए। वह बोला, “साहब, आपने मुझ पर इतना बड़ा भरोसा किया, मैं ज़िंदगी भर इसे निभाऊँगा।”

सोनाली भी मुस्कुरा रही थी।

समय बीतता गया।

अजय रोज़ सुबह अखबार बाँटता, फिर स्कूल जाता। रात को स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई करता। राजीव हर महीने उसका खर्च उठाते। सोनाली उसका हौसला बढ़ाती।

धीरे-धीरे अजय और सोनाली के बीच एक प्यारा रिश्ता बन गया—भाई-बहन जैसा। जब भी सोनाली उदास होती, अजय कोई मज़ेदार हरकत कर उसे हँसा देता।

राजीव अक्सर सोचते—“अगर उस दिन मैंने अजय को निकाल दिया होता, तो बेटी की मुस्कान और इस लड़के का भविष्य दोनों छिन जाते।”

सालों बाद, अजय ने UPSC पास किया। एक बड़ा अधिकारी बन गया। एक भव्य समारोह में उसे सम्मानित किया गया। पुलिस बैंड, कैमरे, पत्रकार—सब उसके इर्द-गिर्द थे।

एक पत्रकार ने पूछा, “सर, आपकी सफलता का राज क्या है?”

अजय ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “सिर्फ दो चीज़ें: एक अपाहिज लड़की की मुस्कान… और उसके पिता का भरोसा।”

पूरी सभा तालियों से गूंज उठी।

पीछे सोनाली व्हीलचेयर में बैठी थी, चेहरे पर गर्व और आँखों में चमक।

राजीव मल्होत्रा—जो कभी सिर्फ अमीर थे—अब एक सच्चे पिता और एक बेहतर इंसान बन चुके थे। उन्होंने अजय की पीठ थपथपाई और कहा, “बेटा, तुझमें वो रोशनी है जो पूरे घर को जगमग कर गई।”

.

play video: