बारिश में लड़की ने सिर्फ मदद की थी… करोड़पति लड़के ने उस रात जो किया, इंसानियत रो पड़ी
बरसात की वह रात इंदौर शहर पर जैसे किसी इम्तहान की तरह उतरी थी। सड़कें खाली, बादलों की गरज और पानी की बौछारें हर किसी को घरों में कैद कर चुकी थीं। मगर अरमान—एक युवा करोड़पति उद्यमी—अपनी लंबी मीटिंग के बाद लौट रहा था। वह जानता था कि उसकी मां दरवाजे पर बैठी होंगी और छोटी बहन रात का खाना उसी के साथ खाने का इंतजार कर रही होगी। घड़ी की सुइयां रात के साढ़े दस को पार कर चुकी थीं। तभी अचानक उसकी कार झटके से रुक गई।
बोनट खोला तो भाप का गुबार उसके चेहरे पर पड़ा। मोबाइल भी बंद हो चुका था। अंधेरे और बरसात के बीच वह असहाय सा बैठा था कि अचानक खिड़की पर दस्तक हुई। बाहर खड़ी थी एक लड़की—भीगी साड़ी, कांपती उंगलियां और आंखों में एक अजीब सा भरोसा। उसने कहा,
“डरिए मत, मेरा घर पास में है। रात यही गुजार लीजिए। सुबह मैकेनिक बुला दूंगी।”
अरमान पल भर को झिझका। अजनबी लड़की, सुनसान रास्ता—पर मां की चिंता और बरसात की निर्दयी बौछारें देखकर उसने विवेक का रास्ता चुना। लड़की ने अपना नाम काव्या बताया और आगे-आगे चल दी। कीचड़ में उसके पांव के निशान पड़ते और बारिश उन्हें तुरंत मिटा देती। थोड़ी दूर चलकर दोनों एक छोटे से घर में पहुंचे।
टिन की छत पर बारिश की लय बज रही थी। बरामदे में पुरानी कुर्सी और दरवाजे पर रखा दीपक अभी भी धधक रहा था। काव्या ने मुस्कुराकर दरवाजा खोला। अंदर सूखे कपड़े, तौलिए और रसोई से आती अदरक-तुलसी वाली चाय की खुशबू—जैसे किसी अनदेखे मेहमान के लिए पहले से इंतजाम हो।
अरमान सतर्क था, पर काव्या की आंखों का अपनापन उसे भरोसा दिला रहा था। उसने कपड़े बदल लिए और चाय का प्याला हाथ में लिया। उसने हल्के स्वर में पूछा,
“क्या आप हर रात किसी अनजान को यूं घर में जगह देती हैं?”
काव्या ने भाप उठते प्याले को देखा और शांत स्वर में बोली,
“हर रात नहीं। पर जब भी कोई मुसीबत में दिखता है, मैं ठहरना सीख चुकी हूं।”
उसके शब्दों ने अरमान को भीतर तक झकझोर दिया। जैसे इन वाक्यों के पीछे कोई गहरा तूफान हो। उसने धीरे से पूछा,
“आप अकेली इस सुनसान जगह पर रहती हैं? डर नहीं लगता?”
काव्या हल्की मुस्कान के साथ बोली,
“डर तो उन लोगों को लगता है जिनके पास खोने को कुछ हो। मेरा तो सब पहले ही छिन चुका है।”
यह सुनकर अरमान चौंका। उसकी आंखों में अनगिनत अनकहे किस्से झलक रहे थे। उसने कहा,
“काव्या, अगर चाहो तो मुझे अपनी कहानी बता सकती हो।”
काव्या ने गहरी सांस ली और कहना शुरू किया।
“मैं सिर्फ दस साल की थी जब मेरी मासूमियत छिन गई। मिठाई की दुकान वाला, जो पिता की उम्र का था, ने मिठाई का लालच देकर मेरे साथ ऐसा घिनौना काम किया जिसे सोचकर आज भी रूह कांप जाती है। मैंने मां को सब बताया, पर उन्होंने ही कहा—चुप रहो। वे लोग पैसे वाले हैं, हमारी आवाज कौन सुनेगा?”
अरमान का दिल गुस्से से भर गया। लेकिन काव्या आगे बोली,
“कुछ साल बाद पिता ने मेरी शादी कर दी। मैं चौदह की थी और वह आदमी उम्र में बहुत बड़ा था। पहले से दो बच्चों का बाप। उसने मुझे दासी की तरह रखा, पीटा, औरत होने का हर दर्द दिया। फिर कुछ महीनों में मर गया और उसकी मौत का दोष भी मुझ पर आ गया। लोग कहने लगे मैं मनहूस हूं, डायन हूं।”
अरमान की आंखों में आंसू आ गए। पर काव्या के शब्द रुके नहीं।
“गांव वालों ने मुझे पत्थर मारे, चौपाल पर जिंदा जलाने की कोशिश की। फिर मेरा सिर मुंडवाया, कालिख पोती और जूतों की माला पहनाकर गांव से निकाल दिया। मां-बाप ने भी मुझे मरा हुआ मान लिया। तब समझ गई कि मेरा कोई नहीं है।”
कमरे में सन्नाटा फैल गया। बाहर बारिश थम चुकी थी, लेकिन अंदर काव्या की आंखों से बरसात जारी थी।
उसने आगे कहा,
“बहुत मेहनत से यह छोटा सा घर बनाया। अब जो भी जरूरतमंद मिलता है, उसकी मदद करने की कोशिश करती हूं। शायद इसी से मेरे जख्म हल्के हो जाते हैं। वरना हर रात अतीत की चीखें सुनाई देती हैं।”
अरमान ने दृढ़ स्वर में कहा,
“काव्या, तुम्हारी उम्र अभी ज्यादा नहीं है। तुम्हें अपने लिए जीना होगा। तुम अबला नहीं हो। मैं वादा करता हूं तुम्हें तुम्हारा हक दिलाऊंगा।”
काव्या की आंखों में पहली बार हल्की चमक आई।
अगले दिन अरमान ने एनजीओ से संपर्क किया। वहां की महिलाएं काव्या से मिलीं, उसकी कहानी सुनी और उसे अपने संस्थान में ले गईं। वहां पढ़ाई और छोटे-छोटे काम सिखाए गए। धीरे-धीरे काव्या का डर आत्मविश्वास में बदल गया।
छह महीने बाद अरमान उसे देखने आया। अब वह आत्मनिर्भर हो चुकी थी। अरमान उसे उसके गांव ले गया। वही मिठाई वाला दुकानदार पुलिस के शिकंजे में था—बेईमानी और मिलावट के आरोप में। काव्या ने आंसू पोंछते हुए महसूस किया कि अन्याय कितना भी बड़ा क्यों न हो, सच एक दिन सामने आ ही जाता है।
लेकिन जब वह अपने घर पहुंची तो पिता ने कहा,
“हमारी तीन संतानें हैं। चौथी तो मर चुकी है।”
काव्या का दिल फिर टूट गया। मां की आंखों से आंसू बहे, लेकिन पिता का दिल नहीं पसीजा।
अरमान ने उसका हाथ थामा और कहा,
“काव्या, जो लोग तुम्हें भूल चुके हैं, उन्हें भूलना ही तुम्हारी जीत है। अब तुम्हें अपने लिए जीना होगा।”
फिर वह उसे अपने घर ले आया। उसकी मां और बहन ने खुले दिल से अपनाया। अरमान की मां ने सिर पर हाथ रखकर कहा,
“बेटा, तुम्हारे अतीत में गलती तुम्हारी नहीं थी। अब यह घर तुम्हारा है।”
अरमान ने कहा,
“काव्या, मैं तुम्हें वही दूंगा जो हर औरत चाहती है—इज्जत और प्यार। क्या तुम मेरी पत्नी बनोगी?”
काव्या की आंखों से आंसू बहे—मगर इस बार दर्द के नहीं, सुकून और खुशी के। उसने हामी भर दी।
दोस्तों, यह कहानी सिर्फ काव्या की नहीं है। यह उन तमाम औरतों की कहानी है जिन पर समाज ने बिना गलती के बोझ डाला। पर इंसानियत अब भी जिंदा है—बस एक सच्चा हाथ थामने वाला चाहिए।
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मेरे जीवन की शुरुआत बहुत साधारण थी। पढ़ाई ख़त्म करने के बाद मैं एक निर्माण कंपनी में काम करने लगा। शुरू-शुरू में मेरा काम सिर्फ़ मजदूरों और कर्मचारियों की टीम का प्रबंधन करना था। धीरे-धीरे मुझे काम की आदत हो गई, और जब लोगों से अच्छे रिश्ते बन गए तो मैंने हिम्मत जुटाई और अलग होकर अपनी एक छोटी सी कंपनी खड़ी कर दी। मेरी कंपनी देहरादून में थी, लेकिन काम पूरे उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में मिलता था। इसलिए मैं हमेशा यात्रा करता रहता था। जब भी घर लौटता, मेरी पत्नी सुनीता अपने चेहरे पर वही संतोष और अपनापन लिए मेरा इंतज़ार करती। उसने तीन बच्चों—दो बेटे और एक बेटी—को जन्म दिया। मैंने उससे कहा कि अब खेती-बाड़ी छोड़कर सिर्फ़ बच्चों और घर पर ध्यान दे। आर्थिक बोझ मैं उठा लूँगा। सुनीता ने मेरी बात मान ली।
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