भागलपुर का खौफनाक राज़: इंसानी मांस से मछली पालन और रोंगटे खड़े कर देने वाला सच

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भागलपुर का खौफनाक राज़: इंसानी मांस से मछली पालन – एक सच्ची कहानी

भागलपुर, बिहार का एक छोटा सा गांव, जहां कभी शांति और सरलता की मिसाल दी जाती थी। लोग खेतों में काम करते, तालाबों में मछली पालते और शाम को चौपाल पर बैठकर पुरानी कहानियां सुनते। लेकिन एक बरसाती शाम ने इस गांव की तस्वीर बदल दी। बादलों की गड़गड़ाहट, मिट्टी की गंध और अजीब सी बेचैनी ने पूरे गांव को घेर लिया।

गांव के बीचोंबीच रघुनाथ सिंह का बड़ा सा मछली का तालाब था। ऊपर से देखने पर यह किसी आम तालाब जैसा ही लगता था—साफ पानी, कूदती मछलियां, किनारे पर बंधे जाल। लेकिन धीरे-धीरे लोगों को इसमें कुछ अजीब लगने लगा। गांव की औरतें अक्सर कहतीं, “देखो ना, रघुनाथ के तालाब की मछलियां कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हैं। हमारे तालाब में महीनों में जो आकार आता है, वहां हफ्तों में ही मछली तगड़ी हो जाती है।”

शुरुआत में सब ने इसे किस्मत या अच्छे चारे का असर माना। लेकिन जब गांव से लोग गुम होने लगे, तो शक की सुई तालाब की ओर घूमने लगी। मीना शर्मा, जिसका पति दो महीने पहले अचानक लापता हो गया था, तालाब के पास खड़ी होकर पानी को टकटकी से देखती और अपने पति का चेहरा ढूंढ़ती। पुलिस ने मामला दर्ज किया, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला।

बरसात के मौसम में तालाब से उठने वाली दुर्गंध ने पूरे गांव को परेशान करना शुरू कर दिया। वह गंध सिर्फ सड़न की नहीं थी, उसमें खून और रहस्य की मिली-जुली बू थी। बच्चे तालाब के पास जाने से डरने लगे। बुजुर्ग भी कहते, “यह सामान्य नहीं है।”

एक दिन गांव का नौजवान अजय प्रताप, जो कभी रघुनाथ के यहां काम करता था, चौपाल पर बोला, “मैं अब और चुप नहीं रह सकता। मैंने अपनी आंखों से देखा है कि इस तालाब में कुछ ऐसा डाला जाता है जो मछलियों के खाने लायक नहीं है।” उसकी आवाज कांप रही थी, चेहरा पीला पड़ चुका था। उसकी बात ने पूरे गांव को हिला दिया।

अगले ही दिन लोगों ने शिकायत दर्ज कराई। इंस्पेक्टर देवराज कुमार अपनी टीम के साथ तालाब पहुंचे। गांव के सैकड़ों लोग तालाब के किनारे जमा हो गए। जब पुलिस ने जाल डाला और उसे खींचना शुरू किया, तो भीड़ एकदम खामोश हो गई। जाल बाहर आया, उसमें मछलियां थीं, लेकिन साथ ही हड्डियों के टुकड़े, कपड़ों की फटी हुई धारियां और लाल धब्बे थे जो पानी में फैलते ही खून जैसी लकीरें बना रहे थे। औरतें चीख उठीं, बच्चे मां-बाप से लिपट गए। मीना शर्मा वहीं खड़ी थी, उसकी आंखें चौड़ी हो गईं, होठ कांपने लगे। उसे समझ आ गया कि उसका डर बेकार नहीं था। उसका पति शायद इसी तालाब की गहराई में समा गया था।

इंस्पेक्टर देवराज ने कहा, “यह कोई साधारण तालाब नहीं है। यहां इंसानों की लाशें छिपाई गई हैं।” गांव में कोहराम मच गया। लोग एक-दूसरे से फुसफुसाने लगे, “क्या हम वही मछलियां खा रहे हैं जो इंसानी मांस पर पली हैं?” उस रात भागलपुर का यह शांत गांव नींद से कोसों दूर था।

देवराज ने गांव के मुखिया पंडित रामनारायण और कुछ युवाओं को इकट्ठा किया। उसने भरोसा दिलाया, “डरना मत। सच का रास्ता मुश्किल होता है, पर अंत में वही जीतता है। हम सब मिलकर यह राज खोलेंगे।” अजय प्रताप ने गवाही देने का वादा किया। रात को तालाब के चारों तरफ पहरा लगाया गया।

अगली सुबह देवराज रघुनाथ सिंह के घर पहुंचा। रघुनाथ ने सफाई दी, “मैं तो गरीब आदमी हूं, मछली पालता हूं। गांव के लोग मुझसे ईर्ष्या करते हैं, बड़ी-बड़ी बातें बना लेते हैं।” लेकिन देवराज ने उसकी आंखों में झांका, “निर्दोष लोग रात में बोरियों का खेल नहीं खेलते।”

जांच औपचारिक रूप से शुरू हुई। तालाब के किनारे मिट्टी की खुदाई, पानी के नमूने, जाल के धागों की जांच—सब चलता रहा। फॉरेंसिक टीम आई। मीना शर्मा ने अपने पति के कपड़ों का एक टुकड़ा दिया, “अगर तालाब से निकले कपड़ों में यही कपड़ा मिला तो मुझे यकीन हो जाएगा कि वह यहीं कहीं सो रहा है।”

गांव में अफवाहों का जाल और घना होने लगा। कोई कहता, “रघुनाथ के यहां शहर से ट्रक रात में आते हैं।” कोई जोड़ता, “पिछले साल जो ठेकेदार लापता हुआ था, उसकी बाइक तालाब के कच्चे रास्ते पर देखी गई थी।” हर कहानी में आधा सच, आधा डर घुला हुआ था।

शाम को गांव के मंदिर में दीपदान हुआ। लेकिन वही नदी, वही तालाब जो जीवन का प्रतीक थे, आज भय का चेहरा लिए खड़े थे। पंडित रामनारायण ने सबको समझाया, “धर्म का सार न्याय है। जब तक न्याय नहीं होगा, पूजा का फल भी अधूरा रहेगा। पुलिस का सहयोग करना ही हमारा धर्म है।”

रात को अजय प्रताप को उसके दरवाजे पर धमकी भरा कागज मिला। उसकी मां ने सिर पर हाथ रखा, “बेटा, डर से बड़ी कोई बीमारी नहीं। सत्य के साथ भगवान चलते हैं।” अगली सुबह अजय ने वह नोट देवराज को दिखाया। देवराज ने कहा, “धमकी देना उनके डर की निशानी है।”

जिला परिषद के सदस्य प्रकाश झा का आदमी थाने आया और देवराज से बोला, “गांव को बदनाम मत कीजिए। तालाब की जांच धीरे-धीरे कीजिए। रघुनाथ हमारा आदमी है। चुनाव नजदीक है।” देवराज ने जवाब दिया, “मामला फैल चुका है। कानून का हाथ धीमा नहीं पड़ता।”

रात को गोदाम की तलाशी ली गई। वहां लकड़ी के तख्तों के नीचे बोरियों में काले प्लास्टिक में लिपटे टुकड़े मिले—हड्डी जैसी चीजें, धातु का टुकड़ा। सब सील करवा दिया गया। सुबह खबर फैल गई कि पुलिस को गोदाम से कुछ मिला है। मीना ने कहा, “अगर मेरे पति नहीं भी मिले, तो भी दोषी का चेहरा खुलना चाहिए।”

फॉरेंसिक जांच हुई। रघुनाथ सिंह गायब हो गया। उसके घर की औरतें कहतीं, “रात में यहीं था, सुबह कहां चला गया?” देवराज ने सभी चेक पोस्ट को अलर्ट कर दिया। गांव के लोग अब दूरी बना रहे थे। लेकिन कुछ चेहरे सच का उजाला लिए खड़े थे।

शाम को देवराज ने चौपाल पर कहा, “यह लड़ाई सिर्फ एक अपराधी के खिलाफ नहीं, उस सोच के खिलाफ है जो इंसान को मुनाफे की चीज बना देती है।” मीना ने आगे बढ़कर कहा, “मैं गवाही दूंगी कि मेरा पति इस तालाब के पास आखिरी बार देखा गया था।” गांव की औरतों ने उसके कंधे पर हाथ रखा।

मंच पर चुनावी सभा का दिन आया। प्रकाश झा सफेद कुर्ता, माथे पर तिलक और हाथ में माला लिए बोला, “मैं तुम्हारा सेवक हूं। कुछ लोग मेरी छवि खराब करने के लिए झूठ फैला रहे हैं।” अजय मंच की ओर बढ़ा, “प्रकाश झा, तू कहता है तू हमारा सेवक है, तो बता तेरे आदमी क्यों तालाब में लाशें फेंकते रहे?” मीना शर्मा ने भी गवाही दी।

देवराज ने सबूतों के डिब्बे मंच पर पेश किए—कपड़े, पहचान पत्र, हड्डियां, लैब रिपोर्ट। भीड़ में गुस्सा फूट पड़ा। पुलिस ने प्रकाश झा और उसके आदमियों को हिरासत में ले लिया।

लेकिन रघुनाथ सिंह जेल में मृत पाया गया। रिपोर्ट कहती आत्महत्या, लेकिन देवराज को शक था। डॉ नलिनी ने कहा, “यह हत्या है।” गांव में दहशत फैल गई। अजय और मीना ने कहा, “हम पीछे नहीं हटेंगे। हमारे अपनों की आत्मा तभी शांति पाएगी जब सच सामने आएगा।”

फॉरेंसिक रिपोर्ट से पता चला कि शक्ति लॉजिस्टिक्स नामक कंपनी दिल्ली से जुड़ी है। असली मालिक विक्रमादित्य कपूर है, जो बड़े उद्योगपति हैं। देवराज, अजय और नलिनी दिल्ली पहुंचे। वहां ट्रकों का पीछा किया, गोदाम में बोरियों से इंसानी हड्डी का टुकड़ा मिला। सबूत कैमरे में रिकॉर्ड किए गए।

अदालत में केस दर्ज हुआ। सरकारी वकील ने सबूत पेश किए। अजय, मीना और डॉ नलिनी ने गवाही दी। लेकिन बचाव पक्ष ने सवाल उठाए। कपूर जमानत पर बाहर आ गया। गांव में लोग टूट गए, पर देवराज ने कहा, “लड़ाई अभी बाकी है।”

देवराज ने ट्रक ड्राइवर का वीडियो बयान सोशल मीडिया पर वायरल किया। कपूर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, “यह सब झूठ है।” लेकिन गांव के लोग डगमगाए नहीं। पुरानी केस फाइलों से पता चला कि कपूर सालों से यह धंधा कर रहा था।

अंत में दिल्ली के रामलीला मैदान में जनता के सामने सबूत पेश किए गए। भीड़ ने न्याय की मांग की। पुलिस ने कपूर को गिरफ्तार कर लिया। अदालत ने विक्रमादित्य कपूर को उम्रकैद की सजा सुनाई। मीना ने कहा, “अब मेरे पति की आत्मा को शांति मिलेगी।” अजय की मां ने कहा, “तूने डर को हराया। यही असली जीत है।”

भागलपुर की धरती ने दिखा दिया—अंधेरा चाहे कितना भी गहरा हो, एक चिंगारी पूरी रात को रोशन कर सकती है।

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