भिखारी आदमी को अमीर लड़की ने कहा… मेरे साथ चलो, फिर उसके साथ जो हुआ इंसानियत रो पड़ी

पटना जंक्शन की भीड़ में एक युवक राजीव भीख मांगता था। उसकी आंखों में भूख और लाचारी साफ झलकती थी। एक दिन एक महिला निकिता वहां आई और बोली, “चलो मेरे साथ। तुम्हें पैसों की जरूरत है, है ना?” राजीव हैरान था, लेकिन निकिता की आवाज में ऐसा यकीन था कि वह उसके साथ चल दिया।

निकिता उसे अपने घर ले गई, जहां एक छोटा सा टिफिन सर्विस का बिजनेस था। उसने राजीव को काम सिखाया – बर्तन धोना, सब्जियां काटना, आटा गूंथना। राजीव के हाथ कांपते थे, लेकिन निकिता ने धैर्य से उसे सिखाया। वह कहती, “यह काम सिर्फ पैसे का नहीं है, इसमें इंसानियत का स्वाद भी है।”

धीरे-धीरे राजीव की मेहनत रंग लाने लगी। वह सब्जियां सलीके से काटने लगा, रोटियां बेलने लगा। निकिता उसे हर कदम पर समझाती और हौसला बढ़ाती। लेकिन समाज इतनी जल्दी नहीं बदलता। लोग उसे ताने कसते – “भिखारी था, भिखारी ही रहेगा।”

एक दिन अखबार में उनकी कहानी छपी – “पटना जंक्शन का पूर्व भिखारी अब बांट रहा है इज्जत के टिफिन।” राजीव की आंखें नम हो गईं। उसे याद आया कि कैसे निकिता ने उसका हाथ थामा और उसे नई जिंदगी दी।

निकिता ने कहा, “मैंने सिर्फ हाथ बढ़ाया था, असली सफर तुमने तय किया है।” राजीव ने कांपते स्वर में कहा, “अब हमारा सपना है कि इस शहर में कोई भूखा ना सोए।”

उनके टिफिन सर्विस का नाम रखा गया “अपना घर टिफिन सर्विस”। यह सिर्फ कारोबार नहीं था, बल्कि इंसानियत की मिसाल थी। एक दिन शहर के टाउन हॉल में उन्हें सम्मानित किया गया। राजीव ने माइक पर कहा, “मैंने जिंदगी में भूख भी देखी है और तिरस्कार भी। लेकिन निकिता जी ने मुझे दिखाया कि मेहनत से ही इज्जत मिलती है।”

तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूंज उठा। निकिता ने कहा, “अगर किसी इंसान को मौका दिया जाए, तो वह चमत्कार कर सकता है।”

आज राजीव की पहचान सिर्फ भिखारी नहीं, बल्कि मेहनत करने वाले इंसान की है। उसकी कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो हालात के आगे हार मान चुका हो।
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