वह लड़की एक अमीर, कठिन बॉस के लिए काम करती थी, एक दिन अचानक बॉस ने उसे पियानो बजाते हुए सुना और चौंकाने वाली सच्चाई जानकर वह हैरान रह गया।
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“आख़िरी धुन” – संगीत में बसी एक अमर प्रेम कहानी
लोनावला की हरियाली में छिपा एक पुराना बंगला था, ऊँची दीवारों और घने पेड़ों के पीछे—जहाँ रहते थे राजन कपूर, एक प्रसिद्ध लेकिन एकाकी बिजनेसमैन। न कोई परिवार, न दोस्त। बस, बदलती रहती थीं कुछ घरेलू नौकरानियाँ जो ज़्यादा दिन कभी नहीं टिकतीं। क्योंकि राजन कपूर के साथ रहना आसान नहीं था।
एक दिन उसी बंगले के दरवाज़े पर दस्तक दी एक सीधी-सादी, बीस साल की लड़की ने—अनन्या। न सुंदरता का घमंड, न बड़ी डिग्री का दावा, बस गहरी, मासूम आँखें और एक सादगीभरा आत्मविश्वास।
राजन के पुराने मैनेजर मीना जी ने उसे देखा और कहा, “शायद यह टिक सके…”
सख़्त नियम, बंद दरवाज़े
पहले ही दिन, तीन आदेश मिले:
लाइब्रेरी में मत जाना।
पियानो को हाथ मत लगाना।
निजी सवाल मत पूछना।
अनन्या ने सिर झुकाया, “जी सर।”
राजन कपूर अजीब आदतों वाले थे—न मसाले, न लहसुन, न शोरगुल। वे जैसे अपने ही अतीत की परछाइयों से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे।
भीगी शाम, खुला पियानो
एक बरसाती शाम, अनन्या सफ़ाई करते-करते उस पियानो तक पहुँच गई, जिस पर मखमल का कपड़ा पड़ा था। वह दिल्लीत स्कूल ऑफ म्यूज़िक में प्रशिक्षित थी। कभी कलाकार बनने का सपना था, लेकिन हालातों ने उसे घर की नौकरानी बना दिया।
उस दिन कुछ था जो उसे रोक न सका। उसने धीरे से पियानो का कपड़ा हटाया और उंगलियाँ एक धुन पर चला दीं।
ऊपर की रेलिंग से राजन कपूर उसे देख रहे थे… चुपचाप, लेकिन भीतर से हिल चुके थे।
बदला मौसम, बदली दूरी
उस दिन के बाद कुछ बदला। राजन अब लाइब्रेरी में अक्सर वहीं बैठते जहाँ से पियानो की आवाज़ सुनाई दे। अनन्या रोज़ नई रचनाएँ बजाती—“क्लेयर डे लून”, “चोपिन”, और एक दिन “लग जा गले”।
वो संगीत उनके भीतर सोए प्यार और दर्द को जगा रहा था।
पहली बार उन्होंने पूछा, “कल जो बजाया था, उसका नाम?”
“‘पुकारता चला हूँ मैं’, सर,” अनन्या ने धीमे से कहा।
राजन की आँखें कुछ क्षण नम हो गईं—“मेरी पत्नी को वह गाना बहुत पसंद था…”
वह पहली बार था जब उन्होंने अपने अतीत का ज़िक्र किया।
अँधेरा और इज़हार
एक रात बिजली चली गई। मोमबत्ती की रौशनी में राजन ने कहा, “कुछ सुनाओ… दिल से।”
अनन्या ने “लीबेस्ट्राउम” बजाना शुरू किया। धुन के अंत में, राजन फफक पड़े।
“वह मेरी पत्नी थी… कार एक्सीडेंट में मेरी गोद में मरी थी। मैं गाड़ी चला रहा था… लेकिन मैं नशे में था।”
वह टूट चुके थे। अनन्या बस उनके पास बैठी रही, बिना कुछ कहे।
वसीयत और विदाई
कुछ महीनों बाद, राजन को कैंसर निकला—अंतिम स्टेज। उन्होंने ज़्यादातर संपत्ति दान कर दी। लेकिन एक चीज़ अनन्या के नाम की—फ्लोरेंस (इटली) में एक छोटा सा विला, जहाँ उनकी पत्नी जाना चाहती थी।
“जाओ, वहाँ रहो। मेरी तरह मत बनो…” उन्होंने कहा।
आखिरी रात, उन्होंने फोन पर कहा, “मुझे अपना पसंदीदा गाना सुनाओ।”
अनन्या ने कंपकंपाते हाथों से चोपिन का “बैलेड इन जी माइनर” बजाया।
जब गाना खत्म हुआ, दूसरी ओर सन्नाटा था। राजन कपूर, हमेशा के लिए सो चुके थे।
दो महीने बाद – एक नई सुबह
फ्लोरेंस के उस विला में, अनन्या ने पियानो की दराज़ खोली। एक चिट्ठी मिली:
“अगर मेरी कोई बेटी होती, तो शायद तुम जैसी होती। तुमने मुझे फिर से इंसान बनाया… संगीत सिखाया… माफ़ करना सिखाया।”
उसके साथ एक पुरानी टेप भी थी—राजन और उनकी पत्नी की साथ में रिकॉर्ड की गई आखिरी धुन। नाम था—“द लास्ट मेलोडी।”
दिल्ली में संगीत समारोह
अनन्या ने दिल्ली के म्यूज़िक स्कूल से संपर्क किया। शीतकालीन संगीत समारोह में “द लास्ट मेलोडी” बजाने का प्रस्ताव मंज़ूर हुआ।
हज़ारों की भीड़ थी। जब मंच पर अनन्या पहुंची—सफ़ेद साड़ी में, गंभीर आँखों के साथ—और उसने पहला सुर छेड़ा, पूरा हॉल शांत हो गया।
हर धुन में दर्द, प्यार और पछतावा था।
जब वह टेप का वोकल्स साथ बजा रही थी, पूरा हॉल नम हो चुका था।
प्रेम की धुन अमर हुई
अगले दिन सभी अख़बारों में यही छपा:
“एक नौकरानी ने अपने संगीत से एक अमर प्रेम कहानी को जगा दिया।”
वीडियो वायरल हो गया। अनगिनत लोग बोले—”यह सिर्फ़ संगीत नहीं, आत्मा की पुकार है।”
और आज भी…
अनन्या ने कभी इसे करियर नहीं बनाया। हर बार जब वह बजाती है, तो लगता है—कहीं, कोई राजन कपूर और उनकी पत्नी अब भी मुस्कुरा रहे हैं।
उनकी कहानी अब सिर्फ़ बंगले की दीवारों में नहीं, सुरों में बसी है।
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