Be Rehm Beta Aur Biwi😢Dhakay Maar Kar Baap Ko Ghar Se Nikal Diya

अब्दुल गफूर की कहानी, एक ऐसी दास्तान जो सब्र, कुर्बानी और अल्लाह की रहमत की मिसाल है। यह कहानी है एक ऐसे इंसान की जिसने अपने जीवन में हर तकलीफ को हंसकर झेला और अल्लाह पर अपना पूरा भरोसा रखा।

अब्दुल गफूर एक छोटे से गांव में रहते थे। उनकी जवानी में शादी हुई, लेकिन सालों तक उन्हें औलाद की खुशी नहीं मिली। गांव वाले ताने देते, रिश्तेदार तंज कसते। मगर अब्दुल गफूर ने कभी हार नहीं मानी। वह हर रात अल्लाह के हुजूर हाथ उठाकर दुआ करते, “या अल्लाह, मुझे एक ऐसा बेटा दे जिस पर मैं फख्र कर सकूं।”

30 साल के लंबे इंतजार के बाद अल्लाह ने उनकी दुआ कबूल की। एक बेटे की पैदाइश हुई, जिसका नाम उन्होंने शफीक रखा। लेकिन खुशी के साथ गम भी आया। शफीक की मां विलादत के फौरन बाद इस दुनिया से रुखसत हो गईं। अब्दुल गफूर की दुनिया जैसे टूट गई। मगर जब उन्होंने नवजात बेटे को देखा तो दिल में कहा, “बेटे, अब तुम्हारी मां भी मैं हूं और बाप भी मैं हूं। तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूंगा।”

उस दिन से अब्दुल गफूर ने अपनी जिंदगी के सारे ख्वाब, सारी ख्वाहिशें एक तरफ रख दीं। वह सुबह से शाम तक मेहनत-मजदूरी करते। खेतों में पसीना बहाते, भट्टों पर ईंटें ढोते, लकड़ियां काटते। हाथों की हड्डियां उभर आईं, पीठ झुक गई, जिस्म कमजोर हो गया, मगर दिल मजबूत रहा।

बेटे की परवरिश के लिए वह खुद भूखे रह लेते, लेकिन शफीक के लिए निवाला जरूर बचाकर रखते। जब बच्चा बीमार होता, तो रात-रात जागकर उसके सिरहाने बैठे रहते। कभी गांव के हकीम के पास दवा के लिए दौड़ते, कभी अल्लाह के हुजूर आंसू बहाते। लोग उन्हें पागल कहते, मगर वह मुस्कुराकर कहते, “मेरा बेटा ही मेरी दुनिया है। उसकी हंसी ही मेरी कमाई है।”

सालों की मेहनत और दुआओं के साये में शफीक जवान हुआ। अब्दुल गफूर ने बूढ़ापे के बावजूद उसके लिए हर कुर्बानी दी। जब शफीक की शादी का वक्त आया तो अब्दुल गफूर ने अपनी पूरी जिंदगी की कमाई, जेवरात और पसीने की बूंद-बूंद से जमा की हुई बचत सब बेटे के कदमों में रख दी। बेटे के खुशी से मुस्कुराते चेहरे को देखकर अब्दुल गफूर की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने दिल ही दिल में कहा, “या अल्लाह, अब मुझे जिंदगी से और कुछ नहीं चाहिए। बस इतना हो कि मेरा बेटा खुश रहे।”

लेकिन किस्मत ने अब्दुल गफूर के लिए वह राह लिखी थी जिसका तसव्वुर भी उन्होंने कभी नहीं किया था। वक्त गुजरता गया। शफीक अब शादी के बाद अपनी नई जिंदगी में मशगूल हो गया। घर में एक नई रौनक थी, लेकिन वह रौनक सिर्फ शफीक और उसकी बीवी तक महदूद थी।

अब्दुल गफूर के दिल में यह ख्वाहिश थी कि बहू उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगी, बेटे की तरह उन्हें भी इज्जत देगी। मगर हकीकत आहिस्ता-आहिस्ता उनकी आंखों से पर्दा उठाने लगी। शादी के शुरुआती दिनों में सब कुछ ठीक लगता रहा, लेकिन वक्त गुजरने के साथ बहू का रवैया बदलने लगा। वह अब्दुल गफूर की बातों को नजरअंदाज करती, उनकी मौजूदगी में मुंह फेर लेती। अगर वह किसी काम के लिए कहते तो चिढ़चिढ़ाकर जवाब देती।

अब्दुल गफूर ने सोचा, “शायद वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा।” मगर दिन महीनों में और महीने सालों में बदलने लगे। बहू की जुबान सख्त से सख्त होती गई। कभी खाने में नमक कम होता तो कहती, “यह सब आपकी
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