SP साहब त्यौहार मनाने गाँव जा रहे थे ; दरोगा ने रास्ते मे रोककर पैसे मांगे फिर जो हुआ ….

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त्यौहार, भ्रष्टाचार और एक सच्चे अफसर की जीत

गांव की मिट्टी की सौंधी खुशबू और रक्षाबंधन की हलचल ने वर्षों बाद एसपी रवि प्रताप सिंह को खींच ही लाया। वो वर्षों बाद छुट्टी लेकर अपने गांव लौट रहे थे – साधारण कपड़ों में, ताकि लोग उन्हें एक आम आदमी समझें, कोई अफसर नहीं। उनके मन में बस यही था कि आज का दिन बहन सीमा के साथ बिताएं, पुराने दोस्त कमल से मिलें और बचपन की यादों में खो जाएं।

रवि ने एक ऑटो किराए पर लिया, जिसमें ड्राइवर था रमेश – एक सीधा-सादा, मेहनती इंसान, जो त्योहार के दिन भी रोजी कमाने में जुटा था। रास्ते में एक बैरिकेड पर पुलिस चेकिंग हो रही थी। दरोगा ने ऑटो रोका, रमेश ने कागज दिखाए, जो पूरे थे। लेकिन फिर भी दरोगा ने फर्जी आरोप लगाकर चालान काटने की धमकी दी।

रमेश ने मिन्नत की, “साहब, आज राखी है, घर जल्दी जाना है…” लेकिन दरोगा ने झिड़कते हुए कहा, “नियम सब पर लागू होता है। पैसा निकालो वरना गाड़ी सीज होगी।”

यह अन्याय एसपी साहब से देखा नहीं गया। उन्होंने हस्तक्षेप करते हुए पूछा, “जब कागज पूरे हैं, तो चालान क्यों?” दरोगा ने उन्हें घूरा और बोला, “बहुत कानून की बातें कर रहे हो? चलो, तुम्हें भी थाने ले चलते हैं।”

रवि ने मुस्कुराकर कहा, “ठीक है, चलते हैं।”

थाने पहुंचते ही रवि और रमेश को एक बेंच पर बैठा दिया गया। वहां का माहौल बेहद भारी था – रोते हुए बच्चे, बेबस किसान, और रिश्वत मांगते पुलिसकर्मी। दरोगा आराम से चाय पी रहा था और अपने भ्रष्टाचार को अपनी ताकत समझता था। उसी बीच रवि को बुलाया गया। दरोगा ने दबाव बनाते हुए कहा, “5000 दो वरना झूठे केस में फंसा देंगे।”

रवि ने शांति से कहा, “अगर मैं बड़ा आदमी निकला तो?”

दरोगा हंसा, “बड़ा आदमी होता तो यहां बैठा होता?”

रवि को हवालात में बंद कर दिया गया। लेकिन उनकी आंखों में डर नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प था। वो सब कुछ ध्यान से देख रहे थे – कौन रिश्वत ले रहा है, कौन झूठा केस बना रहा है।

सुबह होते ही थाने में एक सरकारी जीप आई। उसमें उतरे जिले के वरिष्ठ अधिकारी। उन्होंने रवि प्रताप को देखते ही सलाम ठोका और कहा, “सलाखें खोलो, ये हमारे एसपी साहब हैं।”

पूरा थाना हिल गया। दरोगा के हाथ से चाय की प्याली छूट गई। उसके चेहरे पर भय, ग्लानि और हैरानी के भाव दौड़ने लगे।

रवि ने ठंडी लेकिन सख्त आवाज़ में कहा, “तो यही है तुम्हारा कानून? गरीबों से वसूली, फर्जी चालान, और रिश्वत के दम पर राज? अब तुम्हारे खिलाफ न सिर्फ निलंबन, बल्कि आपराधिक मुकदमा चलेगा।”

रमेश स्तब्ध था। वह समझ ही नहीं पा रहा था कि जिसे वह साधारण आदमी समझ रहा था, वही जिले का सबसे ईमानदार और ताकतवर अफसर निकला। थाने में अफरातफरी मच गई। सारे रिकॉर्ड जब्त किए गए। फोटो खींचे गए। और दरोगा को उसी दिन सस्पेंड कर दिया गया।

गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई – “एसपी साहब ने खुद आम आदमी बनकर पूरे थाने का पर्दाफाश किया।” लोग चौराहों पर जमा होकर कहने लगे, “आज तो न्याय ने वर्दी पहनी थी।”

रवि ने नया स्टाफ नियुक्त किया – ऐसा जो ईमानदारी से लोगों की शिकायतें दर्ज करे, बिना रिश्वत। रमेश की आंखों में अब आत्मविश्वास था। वह बार-बार कहता, “उस दिन अगर आप ना आते, तो मैं आज भी डर में जी रहा होता।”

बुजुर्ग किसान का झूठा चालान रद्द हुआ, पैसे वापस हुए। और अदालत में सबूतों और गवाहों के दम पर दरोगा को जेल भेजा गया।

जब सजा सुनाई गई, तो पहली बार दरोगा की आंखों में शर्म और पश्चाताप साफ झलक रहा था।

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