IPS मैडम वृन्दावन से दर्शन करके लौट रही थीं, रास्ते में एक महात्मा गाड़ी रोककर बोला चल मेरे साथ!
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आईपीएस मैडम वृंदावन से दर्शन करके लौट रही थीं, रास्ते में एक महात्मा गाड़ी रोककर बोला चल मेरे साथ!
भाग 1: सुबह की शांति और सुजाता देवी का दर्शन
वृंदावन में सुबह का समय था। मंदिरों की घंटियां बज रही थीं, हवा में फूलों की खुशबू थी। भक्तों की भीड़ धीरे-धीरे चल रही थी। इसी माहौल में आईपीएस सुजाता देवी भी दर्शन करने आई थीं। सादा कपड़ों में, बिना वर्दी के, आम महिला की तरह।
भगवान से बस यही दुआ की कि उनके जिले में शांति रहे, लोगों की सुरक्षा बनी रहे। दर्शन के बाद पार्किंग की तरफ बढ़ीं, कार में बैठीं और कासगंज की ओर निकल पड़ीं। मंदिर का माहौल उनके मन को हल्का कर गया था।
भाग 2: सुनसान रास्ता और सतर्कता
सुबह का समय था, सड़क पर ज्यादा भीड़ नहीं थी। कुछ किसान, महिलाएं, बच्चे दिख रहे थे। लेकिन जैसे-जैसे कासगंज जिले की सीमा के पास पहुँची, सड़क सुनसान होती गई। दाएं-बाएं खेत, बीच-बीच में पेड़, पक्षियों की आवाज कम होती जा रही थी।
सुजाता की पुलिस ट्रेनिंग ने उन्हें हमेशा सतर्क रहना सिखाया था। उन्होंने सड़क को ध्यान से देखा। दूर तक कोई गाड़ी, आदमी या आवाज नहीं थी। बस हवा थी जो पेड़ों की पत्तियों को हिला रही थी।
भाग 3: साधु का सामना
एक मोड़ पर, सड़क के बीच सफेद कत्थई रंग के कपड़ों में एक साधु खड़ा था। उसकी दाढ़ी लंबी थी, कंधे पर झोली थी। लेकिन खड़े होने का तरीका सामान्य नहीं था। जैसे जानबूझकर गाड़ी रोकना चाहता हो।
सुजाता ने गाड़ी धीमी की। साधु ने हाथ फैलाकर रास्ता रोक दिया। सुजाता को गाड़ी रोकनी पड़ी। वह खिड़की के पास आया, मुस्कान अजीब थी। “बिटिया इतनी जल्दी में कहां जा रही हो?”
सुजाता ने शांत आवाज में कहा, “मैं आगे जा रही हूं। आपको कुछ चाहिए?” साधु ने गाड़ी के अंदर झांककर देखा। फिर बोला, “रास्ता आगे बड़ा सुनसान है। अकेली क्यों जा रही हो?”
भाग 4: खतरे की पहचान और सतर्कता
सुजाता को समझ आ गया कि यह सामान्य साधु नहीं है। उन्होंने खिड़की बंद की, गाड़ी आगे बढ़ाने लगी तो साधु ने गाड़ी का हैंडल पकड़ लिया। “रुक जाओ बिटिया, थोड़ी बात करनी है।”
सुजाता ने गाड़ी थोड़ा पीछे ली, कैमरा ऑन किया, रिकॉर्डर चालू किया। साधु ने खेत की तरफ चलने का इशारा किया। सुजाता सतर्क रहीं, आसपास नजर रखीं। खेत में कोई और आदमी नहीं था।
साधु बोला, “इस रास्ते पर कई बुरी घटनाएं होती हैं। लोग पुलिस में शिकायत करने से भी डरते हैं।” सुजाता ने पूछा, “कौन सी घटनाएं?” साधु घबराया, फिर बोला, “देखा भी है, किया भी है। यहां आने वाले लोग मुझे नहीं रोक पाते।”
भाग 5: अपराध का कबूलनामा और गिरफ्तारी
साधु ने कहा, “यहां मेरा ही कानून चलता है। पुलिस भी नहीं आती।” सुजाता ने और बातें निकलवाईं। “मैं कई लोगों को रोका हूं, कई को सबक सिखाया है।”
अब सुजाता ने सीधा कहा, “अब इस सड़क पर तुम्हारा नहीं, कानून का राज चलेगा।” साधु घबरा गया। “तुम कौन हो?” सुजाता ने दुपट्टा ठीक किया, “आईपीएस सुजाता देवी।”
साधु का चेहरा बदल गया। डर साफ दिखने लगा। सुजाता ने वॉकी-टॉकी से कंट्रोल रूम को सूचना दी। “एक संदिग्ध व्यक्ति पकड़ा गया है।” पुलिस टीम आई, साधु को हिरासत में लिया।
भाग 6: इलाके की जांच और अपराध की जड़
सुजाता ने देखा कि आसपास के लोग डर के मारे सड़क पर नहीं आते थे। एक बुजुर्ग ने बताया, “वह कई बार राहगीरों को रोक लेता था। औरतें तो इधर से गुजरना ही छोड़ चुकी थीं।”
शिकायत इसलिए नहीं होती थी क्योंकि लोग पुलिस से भी डरते थे, बदनामी का डर था। दो महीने पहले एक लड़का गायब हुआ था। गांव वालों ने रात में इस रास्ते पर निकलना बंद कर दिया।
भाग 7: साधु का अड्डा और नेटवर्क
सुजाता ने साधु की झोपड़ी की जांच की। वहां कई बोतलें, पुराने कपड़े, कागज, रसीदें थीं। साफ था कि वह कई जगह घूमता था।
फिर पुलिस से सूचना मिली, “साधु कह रहा है कि वह अकेला नहीं है। उसका साथी बाहर है।” सुजाता ने इलाके की और गहन जांच की। पास ही एक पुरानी कोठी थी, जिस पर अफवाहें थी कि वहां भूत-प्रेत या बदमाश रहते हैं।
भाग 8: कोठी का रहस्य और दूसरा अपराधी
कोठी के अंदर ताजा पैरों के निशान, बोरी के ढेर, पुराने कपड़े, पर्स, टोपी, टूटा मोबाइल मिला। एक युवक छुपा हुआ मिला, उसने बताया कि साधु ने उसे धमकाया था, यहां बंद रखा था। कई राहगीरों को धमकाया, सामान छीना, विरोध करने पर बंद कर देता था।
फोन पर सूचना मिली, “साधु लगातार चिल्ला रहा है कि उसका साथी बाहर है।” कोठी के पीछे ताजा टायर के निशान थे। सुजाता ने समझ लिया कि दूसरा साथी अभी भाग रहा है।
भाग 9: पीछा और गिरफ्तारी
सुजाता ने टीम को तीन हिस्सों में बांटा—कोठी, पुल, खेत। खुद कोठी के पास गई। अचानक एक काली बाइक आई। बाइक वाला हेलमेट में था। उसने फोन किया, “दरवाजा खोलो, उसे आज ही लेकर जाना है।”
सुजाता ने उसे रोका। वह भागने की कोशिश में गिर पड़ा, झाड़ियों में घुसा। लेकिन पुलिस ने उसे पकड़ लिया। “तुम्हारा खेल खत्म। तुम्हारे साथी को पकड़ लिया गया है।”
भाग 10: समाज को संदेश
सुजाता ने आसमान की ओर देखा। सूरज ढल रहा था, दिन भर की मेहनत का नतीजा था। आज कासगंज की सड़कें थोड़ी और सुरक्षित हो गई थीं।
धर्म का वेश कभी चरित्र की गारंटी नहीं होता। असली साधु का चेहरा शांत होता है। वह किसी महिला से अकेले में बात करना पसंद नहीं करता। डराना या छूना नहीं। किसी का वेश देखकर तुरंत विश्वास करना सबसे बड़ी भूल है।
महिलाओं को चाहिए कि वे सतर्क रहें। अनजान आदमी बेवजह बात करे, रास्ता रोके, आशीर्वाद के नाम पर हाथ बढ़ाए, पीछा करे तो तुरंत दूरी बनाएं। आत्मविश्वास दिखाएं। चुप रहना अपराधी को हिम्मत देता है। सचेत रहना खुद को बचाता है और दूसरों को भी।
गलत को गलत कहना ही सबसे बड़ा धर्म है। पुलिस से तुरंत संपर्क करें। शिकायत आपका अधिकार है। ऐसे अपराधियों से धर्म को बचाना चाहिए। अच्छे और धार्मिक लोग चुप रहें तो धर्म की छवि खराब होती है। फर्जी साधुओं को उजागर करें। असली साधुओं की मर्यादा बचाएं।
समाप्त
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