तलाक के बाद सब्जी बेचने को मजबूर|मंगलसूत्र ने जोड़ा टूटा रिश्ता

राहुल और रानी की पूरी कहानी – एक टूटा रिश्ता, एक नई शुरुआत

राहुल फल खरीदने मंडी गया था। मगर सब्जी मंडी में उसने जो देखा, उससे उसके कदम ठिटक गए। उसकी तलाकशुदा पत्नी रानी सड़क के किनारे एक चादर बिछाकर सब्जी बेच रही थी। सामने थोड़ी सी सब्जी रखी थी—कुछ आलू, ताजे टमाटर, थोड़ी सी हरी मिर्च, चार नींबू और धब्बेदार फूलगोभी। एक लकड़ी की कैरेट में कुछ आम भी थे, जिनके ऊपर सूखी घास रखी थी। रानी चुपचाप बैठी थी, आंखों में इंतजार था, लेकिन चेहरा थका हुआ और बुझा-बुझा लग रहा था।

राहुल को याद आया, रानी अक्सर कहा करती थी—“तुमसे सौ गुना अच्छा पति मिलेगा मुझे।” मगर आज वह अकेली सब्जी बेच रही थी। मन ही मन राहुल को एक अजीब-सी खुशी हुई, लेकिन तुरंत ही दूसरा ख्याल आया—क्या सच में उसकी जिंदगी खराब हो गई है? राहुल अनजाने में उसकी तरफ बढ़ा, लेकिन अचानक रुमाल से अपना चेहरा ढक लिया। आठ सालों में वह काफी बदल चुका था—थोड़ा मोटा, रंग साफ, सूट-बूट में कोई भी उसे साहब समझ लेता। ऊपर से चेहरा ढका होने के कारण पहचान पाना नामुमकिन था।

वह धीरे-धीरे उसके पास पहुंचा। अब वह साफ देख सकता था—रानी बहुत दुबली हो गई थी, चेहरा मुरझाया हुआ, रंग भी पहले से ज्यादा सांवला। राहुल को शक हुआ कि शायद वो कोई और हो, मगर फिर उसकी नजर रानी के माथे के बड़े तिल पर पड़ी, जिससे उसकी पहचान कभी नहीं बदली थी। रानी ने उम्मीद भरी आंखों से उसकी तरफ देखा और जल्दी से बोली, “क्या चाहिए साहब?” पास ही सब्जी बेच रही एक दूसरी महिला ने टोका, “इसके पास तो बासी सब्जी है। साहब ताजा चाहिए तो इधर आ जाइए।”
रानी झट से बोली, “बासी नहीं है साहब, बस धूप में थोड़ी मुरझा गई है, वरना आज सुबह ही खरीदी थी।”

राहुल को उसके चेहरे पर बेबसी और लाचारी साफ दिख रही थी। छः साल उसने इसी औरत के साथ गुजारे थे। तलाक जरूर हुआ था, लेकिन उन छः सालों में कुछ खूबसूरत लम्हे भी थे। वह बिना कुछ बोले आमों की कैरेट की ओर झुका और ऊपर से घास हटाकर आम देखने लगा।
“यह तो सच में खराब हो चुके हैं,” उसने आमों को गौर से देखते हुए कहा।
रानी अधीर होकर बोली, “नहीं साहब, खराब नहीं हुए हैं, बस थोड़े से अलसाए हुए लग रहे हैं। एक खाकर देख लीजिए, अगर पसंद ना आए तो मत लीजिए।”
राहुल जाने लगा, मगर रानी की आवाज फिर आई, “ले लो ना साहब, शाम का वक्त हो गया है, सस्ते लगा दूंगी।”
तभी रानी की जुबान से निकला, “दो दिन से बेटी की तबीयत खराब है, दुकान ठीक से नहीं लगा पा रही।”

राहुल का दिल धक से रह गया। उसकी प्यारी बेटी प्रीति उसे आखिरी बार तलाक के वक्त देखी थी। तब सिर्फ चार साल की थी, अब तो दस साल की हो गई होगी। रानी ने आम उठाकर उसकी तरफ बढ़ाया, मगर राहुल तो बेटी के ख्यालों में खो चुका था। वो जल्दी से बोला, “सारे आम तोल दो।”
“सारे?”
“हां, सारे।”
वो खुशी-खुशी आम तोलने लगी। आठ किलो निकले। ₹100 किलो बेच रही थी, मगर आप पूरे ले रहे हैं तो ₹80 किलो में दे दूंगी।
₹640 हुए। राहुल ने 500 के दो नोट पकड़ाए और जाने लगा।
रानी पीछे से पुकार उठी, “साहब, ₹100 किलो के हिसाब से जोड़े तब भी 800 होते हैं। आपके ₹200 वापस लीजिए।”
राहुल ठिटक गया। रानी उठकर पास आई और उसकी हथेली पर नोट रख दिए।
“भीख नहीं चाहिए साहब। भीख ना मांगनी पड़े इसलिए दुकान लगाई है।”

राहुल ने उसकी आंखों में देखा। कुछ देर चुप रहने के बाद बोला, “तुम्हारा पति कुछ नहीं करता क्या?”
रानी हल्की मुस्कान के साथ बोली, “पति से आठ साल पहले तलाक हो गया था साहब।”
राहुल चौंक गया। वो बिना कुछ बोले आगे बढ़ गया, लेकिन चलते-चलते अचानक बोला, “तुम जैसी खुद्दार औरत के साथ तुम्हारे पति ने जरूर कुछ गलत किया होगा, तभी रिश्ता टूट गया।”
रानी पीछे से जवाब देती बोली, “नहीं साहब, पति अच्छा था, बस दिन खराब थे।”

राहुल अब वहां रोक नहीं सका, तेजी से अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया। लेकिन जाने से पहले मुड़कर देखा। रानी अपनी दुकान समेट रही थी, शायद उसकी आज की कमाई हो गई थी, इसलिए अंधेरा होने से पहले ही घर जा रही थी। राहुल का मन किया कि उसके पीछे जाए, यह देखने कि वह कहां रहती है और प्रीति को देखने की बेचैनी भी बढ़ गई थी।
रानी ने तलाक के बाद किसी से शादी नहीं की, यह बात भी उसके दिल में खटक रही थी।

रानी अपनी सब्जी के झोले को कंधे पर डालकर घर की ओर चल पड़ी। राहुल भी धीरे-धीरे उसके पीछे हो लिया, काफी फासला बनाकर ताकि वह उसे देख ना पाए। उसके मन में एक ही सवाल गूंज रहा था—रानी कानपुर में कैसे आई? उसका घर तो गांव में था, वहां उसके दो भाई थे। उन्होंने बहन को अकेला कैसे छोड़ दिया? तलाक के वक्त तो बड़े उछल रहे थे। लेकिन उसे एक तसल्ली जरूर हुई, रानी आज भी उसे बुरा नहीं मानती थी।

राहुल धीरे-धीरे चलते हुए भी खुद को भारी महसूस कर रहा था। आंखों में आंसू आ गए थे। उसे वो रात याद आई जब रानी ने कहा था—“आप मेरे स्वाभिमान की रक्षा कर लेना। बाकी आपके साथ रहकर मैं सब कुछ सह लूंगी।” लेकिन मैं उसकी इज्जत की रक्षा नहीं कर पाया था।
राहुल के सामने उसकी भाभी रानी को अक्सर जलील करती थी, मगर वह चुपचाप खड़ा सुनता रहता था। रानी खुद्दार थी, बिना गलती के सर झुकाना उसे बिल्कुल पसंद नहीं था। एक दिन अपमान सहते-सहते वो मायके चली गई। फिर राहुल ने भाभी की बातों में आकर उसे तलाक का नोटिस भेज दिया। यह उसकी सबसे बड़ी गलती थी।

राहुल अपने भाई और भाभी की बहुत इज्जत करता था, इसलिए उसने पत्नी से ज्यादा भाभी पर भरोसा किया। चार साल उसकी शादीशुदा जिंदगी बहुत अच्छी चली, लेकिन पांचवें साल से झगड़े शुरू हो गए। रानी को सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती थी, जब भाभी किसी बात पर प्रीति को थप्पड़ जड़ देती थी। इस बात पर रोज झगड़े होते।
रानी अलग होने का दबाव बना रही थी, मगर राहुल को यह बिल्कुल पसंद नहीं था। उसका भाई और भाभी पुश्तैनी दुकान का बंटवारा नहीं चाहते थे, वे चाहते थे कि राहुल उनके साथ ही काम करता रहे। मगर जब उसे और रानी को पैसों की जरूरत होती तो भाभी से मांगने पड़ते। रानी यह बर्दाश्त नहीं कर पाई।

राहुल रानी के पीछे-पीछे। रानी ने रास्ते में एक मेडिकल स्टोर से कुछ दवाइयां ली और एक तंग गली में मुड़ गई। राहुल निश्चित दूरी बनाकर उसके पीछे-पीछे चल रहा था। कुछ देर बाद वो शहर के बाहरी इलाके की एक बस्ती में पहुंची। राहुल की सांसें भारी हो गईं। एक टूटा-फूटा सा घर, जिसके बाहर चौक में दो खाट पड़ी थी। एक खाट पर प्रीति लेटी थी—बिल्कुल कमजोर, बीमार और सूखी हुई सी। दूसरी खाट पर एक बुजुर्ग महिला लेटी थी। राहुल पहचान गया—वह रानी की मां थी, यानी उसकी सास।

रानी घर में घुसी तो उसकी मां धीरे-धीरे उठकर बैठ गई। प्रीति भी उठ गई। वह पहले से बड़ी हो गई थी, लेकिन बहुत कमजोर और बीमार लग रही थी। राहुल की आंखें नम हो गईं। उसे याद आया, जब प्रीति छोटी थी तो हर वक्त उसकी गोद में चिपकी रहती थी। आज वो उससे इतनी दूर थी, इतनी अलग। राहुल खुद को रोक नहीं पाया। उसका दिल किया कि दौड़कर जाए और प्रीति को सीने से लगा ले। लेकिन नहीं, वह लाख चाहकर भी घर के अंदर नहीं जा सकता था।
कुछ देर तक वही खड़ा रहा, प्रीति को देखता रहा और उसकी आंखों से आंसू बहते रहे। फिर धीरे-धीरे वह वहां से लौट आया।

राहुल के दिल में गुस्से का तूफान था। भाभी ने उसके हंसते-खेलते घर को बर्बाद कर दिया था। तलाक के समय भाभी ने बड़े गर्व से कहा था, “चिंता मत कर, जल्दी ही तुम्हारी दूसरी शादी कर दूंगी।”
आठ साल बीत गए, शादी तो क्या, अब तक राहुल अकेला ही जी रहा था।

अब हर शाम रानी की दुकान पर
अब राहुल हर रोज शाम को रानी की दुकान पर जाने लगा। रुमाल से चेहरा ढक कर वो वहां जाता। ढेर सारी सब्जियां और फल खरीदता ताकि रानी प्रीति का अच्छे से ख्याल रख सके। लेकिन वह खुद को बेनकाब करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था।
रानी के सामने जाने के ख्याल से ही दिल जोर-जोर से धड़कने लगता। राहुल जितनी सब्जी लाता, उसमें से जितनी जरूरत होती रख लेता, बाकी सब आवारा पशुओं को खिला देता।

कुछ दिन बाद राहुल का भाई दुकान पर हिसाब लेने आया। “बचत के पैसे कहां गए?”
राहुल शांत स्वर में बोला, “खर्च हो गए।”
भाई भड़क उठा, “इतने सारे पैसे कहां खर्च कर दिए?”
राहुल ने आंखें उठाकर देखा और धीमे से बोला, “काम था, खर्च हो गए।”
भाई गुस्से से चिल्लाया, “आज तक तुमने तो कभी बेवजह खर्च नहीं किया, अब अचानक इतने पैसे क्यों उड़ा रहे हो?”
राहुल ने पहली बार हिम्मत करके कहा, “गुस्सा क्यों हो रहे हो भाई, कमाई भी तो मैंने ही की थी, इसलिए खर्च भी मैंने कर दिए, मेरी भी कुछ जरूरतें हैं।”
“तेरी जुबान कैसे खुल गई?”
राहुल ने ठंडी आवाज में जवाब दिया, “मैं जुबान नहीं लड़ा रहा भाई, बस एक बात कह रहा हूं, मैं कमाता हूं तो खर्च भी कर सकता हूं।”
फिर राहुल ने सीधा भाई की आंखों में देखा और कहा, “यह घर और दुकान जो आपने मेरे नाम पर खरीदी थी, अब मुझे सौंप दो।”
भाई चौंक गया, “क्या मतलब?”
राहुल ने बिना हिचकिचाए कहा, “आपके पास पुश्तैनी घर और बड़ी दुकान है, जिसकी कीमत इस दुकान से कहीं ज्यादा है, उसे आप रखिए, लेकिन यह छोटा सा घर और दुकान मुझे दे दीजिए, अब मैं अकेला जीना चाहता हूं।”
भाई सन्न रह गया, फिर जोर से हंसते हुए बोला, “तू कैसी बातें कर रहा है, मैं तुझे अकेले कैसे छोड़ सकता हूं, अभी तो तेरी शादी करानी है, तेरा फिर से घर बसाना है।”
राहुल बिना बोले उसे देखता रहा। अब उसे किसी और के फैसले की जरूरत नहीं थी। वो खुद तय करेगा कि उसकी जिंदगी कैसे चलेगी।
“अब मेरी झूठी फिक्र करना बंद करो।”
राहुल की आवाज में अब दर्द के साथ गुस्सा भी था।
“आप और भाभी ने मिलकर मुझे मेरी बीवी से अलग कर दिया, मेरा बसता हुआ घर उजाड़ दिया। आठ साल हो गए मेरी शादी टूटे हुए, लेकिन आपने कभी मेरी शादी की बात भी नहीं चलाई। क्यों? क्योंकि आप दोनों मेरी शादी करवाना ही नहीं चाहते थे। आपको तो फ्री में एक नौकर मिल गया था और साथ में मेरी प्रॉपर्टी भी।”

राहुल का बड़ा भाई अब चुप था। उसके चेहरे पर कोई जवाब नहीं था। राहुल आगे बढ़कर बोला, “अगर पापा मेरी शादी करवा कर नहीं मरे होते, तो शायद आप लोग मेरी शादी भी नहीं होने देते।”
उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन गुस्से से भरे हुए।
“अब मैं खुद अपनी शादी करूंगा और आप दोनों भगवान के लिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।”
वो थोड़ा रुका और ठंडी आवाज में बोला, “और अगर मुझसे फिर कोई चालबाजी करने की कोशिश की तो मैं गांव जाकर अपनी प्रॉपर्टी में हिस्सा लेकर रहूंगा।”
राहुल के भाई को अब समझ आ गया कि उसकी चालाकी पकड़ में आ चुकी है। अब उसकी और उसकी बीवी की यहां एक भी नहीं चलने वाली थी। वह कुछ नहीं बोला और चुपचाप वहां से निकल गया।

अब राहुल पूरी तरह भाई और भाभी के चंगुल से आजाद हो चुका था। राहुल को अब बस रानी और प्रीति की याद सता रही थी। वो दोपहर होते ही रानी की दुकान पर पहुंच गया।
रानी आज ढंग के कपड़े पहनकर बैठी थी, लेकिन उसकी आंखों में चिंता और उदासी साफ झलक रही थी।
राहुल ने धीरे से पूछा, “आपकी बेटी अब कैसी है?”
रानी ने उसकी आंखों में देखा और गहरी आवाज में बोली, “क्यों, वो आपकी बेटी नहीं है?”
राहुल चौंक पड़ा। रुमाल से मुंह ढका था, फिर भी रानी ने उसे पहचान लिया था।
रानी ने गहरी नजरों से उसकी आंखों में झांका और कहा, “रोज-रोज उसका हालचाल पूछने चले आते हो, लेकिन उससे मिलने की हिम्मत नहीं होती। फिर उसने तंज कसते हुए पूछा, क्या आपके भाई और भाभी ने मना किया है कि अपनी बेटी से मत मिलो?”
राहुल ने सिर झुका लिया। धीमे से बोला, “मैंने भैया और भाभी से सारे रिश्ते तोड़ दिए हैं।”
फिर रुमाल हटाकर अपनी भरी हुई आंखों से रानी को देखा।
“बहुत मन करता है उससे मिलने का।”
रानी की आंखें नम।
रानी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “मिल लो। मैंने कब मना किया है? रिश्ता मुझसे टूटा है, बेटी से तो नहीं।”

राहुल ने धीरे से पूछा, “तुमने मुझे कैसे पहचाना?”
रानी ने हल्के से आह भरी और बोली, “पत्नी रही हूं ना तुम्हारी, पीछे की चाल देखकर पहचान लिया। पहले दिन ध्यान नहीं दिया, लेकिन दूसरे दिन समझ गई थी। फिर उसने राहुल की आंखों में देखा और कहा, जब भी तुम प्रीति के बारे में पूछते हो, तुम्हारी आंखों में जो दर्द होता है वह सिर्फ एक पिता की आंखों में ही हो सकता है। अपना चेहरा तो छुपा लिया, मगर बेटी से मिलने की तड़प छुपा नहीं पाए।”

रानी ने पर्स से एक कागज निकाला और कहा, “यह घर का पता है, वहां चले जाओ, प्रीति से मिलो, मैं शाम तक घर आऊंगी।”
राहुल ने कागज नहीं लिया, धीमे से बोला, “नहीं, तुम साथ चलो तभी मैं उससे ठीक से बात कर पाऊंगा।”
उसकी आवाज कांप रही थी।
“जब मुझसे दूर गई थी तब बहुत छोटी थी, अब शायद वो मुझे पहचाने भी ना।”
रानी की आंखों में आंसू। उसने जल्दी से आंसू पोंछ लिए और ठंडी आवाज में कहा, “शादी की एल्बम आज भी मेरे पास है, रोज तुम्हारी तस्वीर देखती है, तुम्हें जरा भी नहीं भूली।”

राहुल ने फिर विनती की, “नहीं, तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हारे साथ ही मिलना चाहता हूं।”
रानी झुझला गई, “क्यों गरीब के पेट पर लात मार रहे हो? धंधे का टाइम है, अगर दुकान बंद कर दी तो कुछ भी नहीं बिकेगा।”
राहुल बिना सोचे बोल पड़ा, “सारा सामान मैं खरीद लूंगा, लेकिन तुम मेरे साथ चलो, प्लीज।”
रानी का दिल धड़क उठा। उसने तंज कसा, “क्यों? तुम्हारी दूसरी पत्नी यहां आने से मना करती है क्या?”
राहुल की आंखों में दर्द छलक आया, “मैंने दूसरी शादी नहीं की, ना जाने क्यों।”
यह सुनकर रानी के दिल को थोड़ी राहत मिली। वो बिना कुछ कहे दुकान बाजू वाले को संभालने के लिए बोलकर राहुल के साथ गाड़ी में बैठ गई।

रास्ते में रानी ने राहुल से पूछा, “तुम इस शहर में क्या कर रहे हो?”
राहुल ने सारी कहानी सुना दी, “अब मैं हमेशा के लिए यहीं रहूंगा, भाई भाभी से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया है।”
रानी को सुनकर अजीब लगा। वह सोचने लगी, “काश यह रिश्ता पहले टूट गया होता, तो आज हम दोनों साथ होते, हमारा तलाक नहीं हुआ होता।”

थोड़ी देर बाद राहुल ने धीमे से पूछा, “तुम यहां कैसे आई?”
रानी का चेहरा उतर गया।
“भैया और भाबियों के ऊपर बोझ बन गई थी।”
धीरे-धीरे उसने अपनी दर्द भरी कहानी सुनाई।
“शुरू में सब ठीक था, लेकिन फिर असलियत सामने आने लगी। भाई पहले साथ था, लेकिन बाद में भाबियों की सुनने लगा। तुम्हें तो पता है, कुत्तों की तरह फेंकी हुई रोटियां मैं नहीं खा सकती थी। यह घर मेरे मामा का है, वे दिल्ली में रहते हैं, इसलिए मां के पास इसकी चाबी थी, हम यहां रहने आ गए।”

राहुल का आखिरी सवाल।
थोड़ी देर चुप रहने के बाद राहुल ने हिम्मत करके पूछा, “एक बात कहूं?”
रानी ने हल्की आवाज में कहा, “क्या?”
राहुल ने डरते हुए पूछा, “क्या आज भी मेरी याद आती है?”
रानी चुप रही, उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया, राहुल नहीं देख पाया, रानी की आंखों में आंसू आ गए थे।
रानी बाहर देखते हुए बोली, “अब किसी की याद नहीं आती, सुबह से शाम तक बस यही सोचती हूं कि रोटी कैसे कमाऊं।”

राहुल ने जब रानी का जवाब सुना, तो उसका दिल मायूस हो गया। रास्ते भर वह चुप ही रहा। रानी रास्ता बताती गई और वह गाड़ी चलाता रहा। उसे यह बताने की जरूरत ही नहीं पड़ी कि वह पहले भी इस गली में आ चुका है, छुप-छुप कर अपनी बेटी की झलक देखने।

जैसे ही घर के अंदर कदम रखा, राहुल का दिल अंदर से तड़प उठा। घर की हालत बहुत खराब थी, दीवारों का प्लास्टर झड़ चुका था, दरवाजे पुराने और जर्जर थे। रानी उसे अंदर ले गई।
कमरे के पास पहुंचकर रानी बोली, “प्रीति, देखो कौन आया है?”
प्रीति अब ठीक हो चुकी थी। वो बाहर आई और सामने खड़े राहुल को टुकुर-टुकुर देखने लगी।
तभी रानी की मां भी बाहर आ गई।
प्रीति ने राहुल को देखा और तुरंत अपनी मां से लिपट गई।
रानी मुस्कुरा कर बोली, “डरो मत बेटा, यह तुम्हारे पापा हैं।”
प्रीति के मासूम होठ हिले, “पापा, मगर यह गंदे पापा हैं, इन्होंने आपको बहुत रुलाया है।”

राहुल की आंखें भर आई। जिस डर से वह अकेले नहीं आना चाहता था, वही हुआ। उसने प्रीति के पैर छूने की कोशिश की, लेकिन वो पीछे हट गई, “दूर रहो हमसे, अब हमारा तुमसे कोई रिश्ता नहीं है।”
राहुल घुटनों के बल बैठ गया, उसकी आंखों में दर्द था। उसने कांपते हाथों से बेटी को अपनी बाहों में बुलाया, लेकिन प्रीति वहीं खड़ी रही।
रानी ने उसकी पीठ थपथपाई, “जाओ बेटा, पापा से मिलो।”
बस इतना सुनते ही प्रीति दौड़कर राहुल के गले लग गई।
राहुल उसे कसकर भींच लिया, “माफ कर दो मेरी गुड़िया, बहुत बड़ी गलती कर दी मैंने।”
वो फफक पड़ा।

फिर वो गाड़ी की ओर भागा और डिग्गी खोलते हुए बोला, “देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं।”
थैली में चॉकलेट, बिस्किट, खिलौने, कपड़े—हर चीज थी जिससे प्रीति खुश हो जाए।
वो खिलखिलाने लगी।
रानी चुपचाप खड़ी देख रही थी, उसका दिल जोर से धड़क रहा था।
क्या इसमें मेरे लिए भी कुछ होगा?
लेकिन जब थैली खाली हो गई तो उसकी आंखों में हल्की मायूसी उतर आई।
प्रीति खुशी से उछल रही थी और रानी बस खामोश।

जब लौटने लगे तो रानी कार में चुपचाप बैठ गई।
राहुल ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “एक बात पूछूं क्या? अगर तुम्हारे लिए कुछ लाता तो तुम लेती?”
रानी ने उसे तिरछी नजरों से देखा और फिर उदास होकर बोली, “जब लाते तब देखते, अब छोड़ो यह सब।”
राहुल झट से बोला, “लाया हूं।”
रानी का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने अपनी बेचैनी छिपाते हुए कहा, “लाओ, दे दो, अब इतने प्यार से लाए हो तो मना कैसे कर सकती हूं?”
राहुल ने अपनी जेब से कुछ निकाला और अपनी मुट्ठी में छुपा लिया।
फिर धीरे-धीरे रानी के हाथ में रख दिया।
जैसे ही रानी ने हाथ खोला, उसकी सांसे थम गई।
वो एक मंगलसूत्र था।

रानी स्तब्ध रह गई।
राहुल ने गाड़ी किनारे रोक दी और कांपती आवाज में कहा, “मना मत करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।”
रानी ने मंगलसूत्र को मुट्ठी में कसकर पकड़ लिया, उसकी आंखें नम हो गईं।
राहुल की आवाज कांप रही थी, “मैंने बहुत देर कर दी रानी, लेकिन अब तुम्हारा हाथ कभी नहीं छोडूंगा। हम फिर से नया संसार बसाएंगे, जहां प्रीति को अच्छी परवरिश मिलेगी, जहां अम्मा का बुढ़ापा सुकून से बीतेगा।”

रानी की आंखों में आंसू छलक पड़े।
उसने मंगलसूत्र वापस करने के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन राहुल ने हाथ जोड़ लिए।
रानी ने एक गहरी सांस ली और धीरे से बोली, “अपने हाथों से पहना दो।”
राहुल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
कांपते हाथों से उसने मंगलसूत्र उठाया और रानी के गले में डाल दिया।
रानी ने उसका हाथ थाम लिया और मुस्कुराकर कहा, “अब दुकान नहीं जाना, अपने घर ले चलो।”
राहुल ने गाड़ी मोड़ी, प्रीति और अम्मा को अंदर बिठाया और खुशी-खुशी अपने घर की ओर रवाना हो गया।
आज वह मकान सच में एक घर बनने जा रहा था।

सीख:
राहुल और रानी की कहानी हमें सिखाती है कि रिश्ते में अहम, दूसरों की बातों में आकर किए गए फैसले, और समय पर न समझ पाने की गलती – सब कुछ जीवन को बदल सकते हैं। लेकिन अगर इंसान सच्चे दिल से अपने रिश्तों को सुधारना चाहे, तो देर से ही सही, सबकुछ फिर से ठीक हो सकता है।
प्यार, माफी और साथ – यही असली परिवार है।

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जय हिंद!