कलेक्टर पूजा और उसके मरे हुए पति की रहस्यमयी कहानी

नागपुर शहर में एक बड़ी चोरी का केस सुलझाते-सुलझाते कलेक्टर पूजा बेहद थक चुकी थी। शाम हो गई थी, लेकिन पूजा का दिमाग अब भी केस में उलझा था। उसने अपने ड्राइवर से कहा, “चलो, कहीं आसपास अच्छी कड़क चाय मिलती हो वहां ले चलो।” ड्राइवर ने बताया कि पास में एक फेमस चाय की टपरी है।

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शाम के समय टपरी पर भीड़ थी। पूजा ने खुद चाय पीने का फैसला किया और ड्राइवर के साथ टपरी पर गई। चाय पीने के बाद पूजा अपनी गिलास खुद धोने लगी, क्योंकि उसकी आदत थी कि वह अपना झूठा बर्तन किसी से धुलवाती नहीं थी। तभी उसकी नजर बर्तन धोने वाले एक आदमी पर पड़ी। जैसे ही पूजा ने उसका चेहरा देखा, उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। वह आदमी कोई और नहीं, बल्कि पूजा का पति विशाल था… जिसे 15 साल पहले मरा हुआ मान लिया गया था।

विशाल ने पूजा को पहचाना नहीं, लेकिन पूजा उसकी शक्ल और पीठ पर पुराने टांके के निशान देखकर समझ गई कि यह वही है। पूजा ने उसे गले लगा लिया, उसकी आंखों से आंसू बह निकले। भीड़ हैरान थी कि आखिर कलेक्टर साहिबा एक बर्तन धोने वाले को क्यों गले लगा रही हैं।

पूजा ने विशाल से सवाल किए, “तुम इतने साल कहां थे? मुझे पहचान क्यों नहीं पा रहे हो?” विशाल ने टूटे हुए स्वर में सच्चाई बताई—उसने जानबूझकर एक्सीडेंट का नाटक किया था ताकि पूजा अपने सपनों को पूरा कर सके। उसके माता-पिता पूजा को पढ़ने नहीं देते थे, इसलिए विशाल ने खुद को मरा हुआ दिखाकर पूजा को आज़ाद कर दिया, ताकि वह कलेक्टर बन सके। विशाल ने पूजा की हर सफलता को दूर से देखा, लेकिन कभी सामने आने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।

पूजा फूट-फूटकर रोने लगी। उसने कहा, “मेरी जिंदगी का खालीपन अब तक नहीं भरा था। अब तुम मुझे कभी छोड़कर नहीं जाओगे।” पूजा और विशाल फिर से एक हो गए। मरा हुआ पति एक बर्तन धोने वाले के रूप में मिला, लेकिन प्यार और त्याग की यह अनोखी कहानी सबके दिलों में बस गई।

सीख:
यह कहानी बताती है कि सच्चा प्यार और त्याग किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है। पूजा ने अपने सपनों को पूरा किया और विशाल ने उसके लिए अपनी पहचान तक खो दी। अंत में दोनों फिर मिल गए, और जिंदगी ने एक नई शुरुआत की।

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