गांव के गंवार लड़के पर दिल हार बैठी… दिल्ली की लड़की, फिर जो हुआ
शीर्षक: गाँव का हीरा – पिंकू और दीपिका की सच्ची मोहब्बत
कहते हैं ना, सच्ची मोहब्बत की खुशबू वहाँ भी महसूस हो जाती है जहाँ लोग उसे सबसे कम तलाशते हैं। दिल्ली की लड़की दीपिका जब अपनी सहेली हर्षिता की शादी में शामिल होने के लिए बिहार के गाँव पहुँची, तो पूरा माहौल बदल गया। शादी का घर पहले से रिश्तेदारों से भरा था – बुआ, मौसी, मामा, चाचा सब जुटे थे। लेकिन दीपिका के कदम रखते ही सबकी नजरें उसी पर टिक गईं। शहर की लड़की, गोरा रंग, मासूम मुस्कान और आत्मविश्वास भरी चाल। औरतें तक कह उठीं – भाभी, इसे तो हमारी बहू बना दो, दहेज की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। गाँव के लड़के तो जैसे उसके आगे बिछ से गए – कोई अंग्रेजी बोलकर रब झाड़ता, कोई गाने सुनाता, कोई स्टाइल दिखाता। दीपिका हँसकर सबका जवाब देती, मगर भीतर से उसे सब बनावटी लगता।
धीरे से उसने हर्षिता से कहा, “तेरे गाँव के लड़के बहुत इज्जत देने वाले हैं। दिल्ली के तो बस धोखा देने वाले होते हैं।” हर्षिता ने हँसकर जवाब दिया, “शायद तेरी वजह से सब आज शरीफ बन गए हैं।”
इसी शोरगुल के बीच आँगन में आया गाँव का सबसे साधारण लड़का – पिंकू। उसके कपड़े मिट्टी से सने थे, चेहरा धूप से काला पड़ा था, पैरों में पुराने जूते। लोग उसे देखकर कोई ध्यान नहीं देते थे, सबकी नजरें दीपिका पर थीं। मगर पिंकू की नजर जब उस पर पड़ी, उसने बिना झिझके मुस्कुराकर कहा, “नमस्ते गुड़िया जी।” दीपिका ठिटक गई, “मेरा नाम दीपिका है।” पिंकू सहजता से बोला, “हाँ, पर हमारे गाँव में कोई भी सुंदर लड़की दिखे तो उसे हम प्यार से गुड़िया कहते हैं।” दीपिका के चेहरे पर हल्की झुँझलाहट आई, उसने मन ही मन सोचा कितना गंवार है। मगर उसकी आँखों की सादगी उसे कुछ पल के लिए रोक गई।
रात को डीजे बज रहा था, सब रिश्तेदार नाच रहे थे। दीपिका और हर्षिता आँगन के एक कोने में बैठी थीं। तभी पिंकू पास आकर बोला, “यह कैसी खुशी है? कल हर्षिता की विदाई होगी। चाचा-चाची अकेले हो जाएंगे। मुझे तो यह जश्न से ज्यादा दर्द जैसा लगता है।” उसकी बात सुनते ही हर्षिता की आँखें भर आईं। दीपिका चिढ़कर बोली, “तुम्हें तो हर जगह मातम ही दिखता है। लोग खुशी मना रहे हैं और तुम दुख की बातें कर रहे हो।” पिंकू ने धीमी आवाज में जवाब दिया, “खुशियाँ वही हैं जहाँ अपने हो, बाकी सब शोर है।” दीपिका ने चेहरा घुमा लिया, मगर उसके दिल में एक अजीब सी हलचल उठी। उसने सोचा, यह लड़का बाकी सबकी तरह नहीं है। शायद इसे गंवार कहकर मैं गलत कर रही हूँ। उसे अंदाजा भी नहीं था कि यही लड़का उसकी जिंदगी की सबसे गहरी मोहब्बत और सबसे बड़ी सीख बनने वाला है।
अगले दिन सुबह गाँव का नजारा हमेशा से अलग था। शादी का घर मेहमानों से खचाखच भरा था, हर ओर हलचल थी। महिलाएँ गीत गा रही थीं, बच्चे इधर-उधर भाग रहे थे। दीपिका भी अपने लिए नया अनुभव ले रही थी। उसे गाँव का खुला आँगन, मिट्टी की सौंधी खुशबू सब अच्छा लग रहा था। लेकिन गर्मी उसे परेशान किए जा रही थी। उसने हर्षिता से कहा, “यार, यहाँ रात भर नींद ही नहीं आई। इतनी गर्मी थी कि जी घबरा गया।” तभी वहीं खड़ा पिंकू हँसते हुए बोला, “गर्मी थी तो मेरे घर आ जाती। ठंडी हवा मिलती।” दीपिका ने तुरंत तंज कसा, “हाँ हाँ। तेरे घर आकर भैंस की पूँछ की हवा खाती। यहाँ तो कम से कम बदबू नहीं थी।” उसकी बात सुनकर सब हँस पड़े। पिंकू भी हल्की मुस्कान लिए चुप हो गया। लेकिन उसके चेहरे पर कोई बुरा मानने का भाव नहीं था। दीपिका को लगा कि शायद उसने ज्यादा बोल दिया। मगर दिल से वह मानती थी कि यह लड़का अलग है। उसका सादापन, उसकी बेबाकी उसे परेशान भी करती थी और आकर्षित भी।
शाम का वक्त था। तभी गाँव में खबर आई कि हर्षिता के पिता रामनाथ जी और उनकी पत्नी सड़क हादसे में घायल हो गए हैं। उनकी बाइक किसी से टकरा गई थी। और उससे भी बड़ा सदमा यह कि उनके पास जो जेवर और नकदी थी, सब लुट गया। शादी के घर का माहौल एक झटके में बदल गया। जहाँ कल तक ढोल-नगाड़ों की आवाज थी, वहाँ आज सन्नाटा था। हर कोई माथा पकड़ कर बैठा था – अब शादी कैसे होगी? रामनाथ जी पलंग पर पड़े कराह रहे थे, पैर में प्लास्टर चढ़ा था। उनकी पत्नी का हाथ टूटा हुआ था। उन्होंने रिश्तेदारों से मदद माँगी – भाई थोड़ा-थोड़ा सब मिलाकर दे दो, बेटी की शादी रुकनी नहीं चाहिए। लेकिन कोई आगे नहीं आया। कोई बोला, “हम तो बस आशीर्वाद देने आए हैं।” किसी ने 101 रुपए थमा दिए, किसी ने कंधे उचका दिए।
दीपिका यह सब देख रही थी। उसका दिल काँप उठा। शहर में उसने बहुत दिखावा देखा था, मगर यहाँ गाँव में रिश्तेदारों का असली चेहरा पहली बार सामने आ रहा था। सब खुशियों में तो शरीक थे, मगर मुसीबत में कोई आगे नहीं आया। तभी शाम ढले पिंकू घर आया। सब लोग दुखी बैठे थे। उसने सीधा रामनाथ जी से कहा, “चाचा, आप चिंता मत करो। कल हर्षिता को मेरे साथ बैंक भेज देना। बड़े पैसे निकालने हैं, ठीक से गलती हो सकती है। हर्षिता पढ़ी-लिखी है, वह सही से भर देगी।” रामनाथ जी ने थकी आँखों से पूछा, “बेटा, कितना पैसा है तेरे पास? हमें कम से कम 5-6 लाख की जरूरत है।” पिंकू ने गंभीर आवाज में कहा, “चाचा, जितना भी कमी है पूरा मैं दूँगा। शादी जैसे तय हुई है वैसे ही होगी। चाहे दिन हो या रात, मैं आपके साथ खड़ा हूँ।”
यह सुनते ही हर्षिता और दीपिका की आँखों में आँसू छलक आए। दीपिका ने पहली बार मन ही मन माना, जिसे मैं गंवार समझ रही थी, वही असली हीरा है।
अगली सुबह गाँव की गलियों में लोग फुसफुसा रहे थे – अब शादी रुकेगी, इतना बड़ा नुकसान हो गया है। कोई कह रहा था, इतना पैसा कहाँ से आएगा? लेकिन दीपिका के मन में सिर्फ एक ही ख्याल गूंज रहा था – पिंकू की बात। कल उसने जिस विश्वास से कहा था, “मैं हूँ चाचा के साथ,” उसकी गूंज उसके दिल को छू गई थी।
सुबह-सुबह पिंकू अपनी पुरानी सी बाइक लेकर हर्षिता के दरवाजे पर आ खड़ा हुआ। आवाज दी, “चल हर्षिता, बैंक जाना है।” दीपिका तुरंत बोली, “मैं भी चलूँगी।” पिंकू ने बिना कुछ कहे मुस्कुराकर हामी भर दी। तीनों बाइक पर बैठकर बैंक पहुँचे। पिंकू ने चेकबुक खोली और हर्षिता को दिया, “6 लाख लिख दो।” हर्षिता का हाथ काँप रहा था, दीपिका उसकी मदद करने लगी। चेक पास होते ही कैश काउंटर से नोटों की गड्डियाँ मेज पर रखी गईं। पिंकू ने नोट समेटे और धीरे से हर्षिता के हाथ में रखे, “लो, चाचा को देना। उनकी बेटी की शादी धूमधाम से होगी।” फिर उसने एक और चेक निकाला और उस पर 1 लाख लिखा। नोट निकालकर हर्षिता के हाथ में दिया और बोला, “यह तेरा है। शादी में तू खुद से भी कुछ खरीद सके ताकि कभी लगे नहीं कि तेरा दूल्हा और घरवाले अकेले सब कर गए।” हर्षिता रो पड़ी, “पिंकू, तू तो फरिश्ता निकला।” दीपिका की आँखें भी भीग चुकी थीं। उसने काँपते स्वर में कहा, “कल जब अंकल ने तुझसे पैसे माँगे थे, तब तूने मना कर दिया था। तब तो तू कंजूस लग रहा था।” पिंकू मुस्कुराया, “वो इसलिए क्योंकि मुझे गुस्सा आ गया था। लग रहा था इतने बड़े-बड़े खर्चे क्यों हो रहे हैं? पर सच यह है कि मैं हमेशा इनके लिए खड़ा हूँ। मेरे पास जो कुछ है, उन्हीं आशीर्वादों की वजह से है।”
दीपिका बस उसे देखती रह गई। कल तक जो लड़का उसे गंवार लगता था, आज उसकी नजरों में वही सबसे बड़ा इंसान था। बैंक से लौटते वक्त बाइक पर पीछे बैठी दीपिका हवा में उड़ते अपने दुपट्टे को थाम रही थी, लेकिन उसके दिल में एक अजीब सी हलचल थी। सामने बैठे इस लड़के की सादगी, उसकी जिम्मेदारी और उसका साफ दिल उसे खींच रहा था।
गाँव लौटकर जैसे ही पिंकू ने पैसे रामनाथ जी के हाथ पर रखे, वे फूट-फूट कर रो पड़े, “बेटा, तेरा यह एहसान जिंदगी भर याद रहेगा।” पिंकू ने उनका सिर पकड़ कर कहा, “चाचा, यह सब आपका ही दिया है। पहली बार आपने ही मुझे दो भैंस दिलवाई थी। उसी से आज मेरी दुनिया खड़ी हुई है। यह पैसा कोई उधार नहीं, यह तो आपका ही है।” उस पल दीपिका को महसूस हुआ कि जिंदगी में असली अमीरी रुपयों में नहीं, बल्कि दिल की सच्चाई और रिश्तों की कदर में होती है। और शायद पहली बार उसका दिल सचमुच पिंकू के लिए धड़क उठा।
शादी की तैयारियाँ फिर से रफ्तार पकड़ने लगी थीं, लेकिन अब हालात बदल चुके थे। हर छोटा-बड़ा काम पिंकू खुद संभाल रहा था। बाजार से सब्जी लानी हो या मेहमानों के लिए इंतजाम करना, पंडित से बात करनी हो या रिश्तेदारों को समझाना – वह हर जगह खड़ा था। दीपिका हर बार हैरान होती, जिसे सब गंवार समझते हैं, वही आज इस शादी की जान बन गया है।
एक दिन हर्षिता मजाक में बोली, “दीपिका, अब तुझे मानना पड़ेगा कि हमारा पिंकू किसी से कम नहीं।” दीपिका ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “हाँ, अब मुझे लग रहा है कि असली हीरे तो ऐसे ही लोग होते हैं, जो अपने वक्त पर सबके काम आते हैं।”
अगले दिन पिंकू ने दोनों सहेलियों को अपने डेयरी फार्म पर ले जाने का न्योता दिया। दीपिका पहले तो झिझकी – भैंसों के बीच जाना, बदबू आएगी। मगर जब पिंकू ने बाइक पर बैठाकर उन्हें वहाँ पहुँचाया तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। साफ-सुथरे बाँधे गए जानवर, चमकती हुई गाय और भैंस, एकदम व्यवस्थित फार्म और चारों तरफ हरे-भरे पौधे। तालाब में सोलर पंप से पानी भर रहा था, बकरियाँ उछल-कूद कर रही थीं, मुर्गियाँ दाना चुग रही थीं। यह सब देखकर दीपिका दंग रह गई। उसने धीरे से कहा, “मैंने तो सोचा था गाँव का मतलब गंदगी और बदबू। लेकिन यहाँ तो सब कुछ इतना अच्छा, इतना आधुनिक है।” पिंकू मुस्कुराया, “गाँव में मेहनत करो तो शहर से बेहतर जिंदगी जी सकते हो।” दीपिका पहली बार बिना कुछ कहे देर तक उसकी तरफ देखती रही। उस साधारण से चेहरे पर सच्चाई और मेहनत की चमक थी, जो उसे भीतर तक भा रही थी।
फार्म देखने के बाद वे लोग उसके घर पहुँचे। अंदर कदम रखते ही दीपिका को एक और झटका लगा। एक बड़ा कमरा जिसमें एसी, बड़ा टीवी, आरामदायक सोफा और दीवारों पर ट्रॉफियाँ सजी हुई थीं। दीपिका हैरान होकर बोली, “यह सब तुम्हारे घर में?” हर्षिता हँसते हुए बोली, “हाँ, यही हमारा गंवार। और देख कितनी लग्जरी जिंदगी जी रहा है।” तभी पिंकू की माँ कमरे में आई और बोली, “बेटा, यह सब उसने अपनी होने वाली पत्नी के लिए बनवाया था। लड़की ज्यादा पढ़ी-लिखी थी, बोली, गाय-भैंस पालने वाले से शादी नहीं करूँगी। और रिश्ता टूट गया। तब से यह सब यूँ ही पड़ा है।” दीपिका स्तब्ध रह गई। उसके दिल में कसक सी उठी। उसने सोचा, जिसे मैंने गंवार कहा था, असल में वही सबसे सच्चा और जिम्मेदार है। और शहर के पढ़े-लिखे लड़के, जिन पर मैंने भरोसा किया, वह तो बस धोखेबाज निकले।
उसी पल दीपिका को एहसास हुआ कि मोहब्बत का असली मतलब है साथ निभाना, चाहे हालात कैसे भी हों। उस रात जब वे तीनों हँसी-ठहाके कर रहे थे, दीपिका अनजाने में पिंकू को देखती रही। और पहली बार उसके दिल ने कहा, अगर कोई मुझे जिंदगी भर खुश रख सकता है तो वह यही लड़का है।
शादी का दिन आखिरकार आ ही गया। घर फिर से रोशनी, बैंड-बाजे और रिश्तेदारों के चहक से गूंज उठा। सबके चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन हर किसी की जुबान पर एक ही नाम था – पिंकू। लोग कहते नहीं थक रहे थे, अगर यह लड़का ना होता तो शादी कभी पूरी ना हो पाती। दीपिका सब सुनती रही और चुप रही। मगर उसके दिल की धड़कनें तेज हो चुकी थीं। उसे समझ आने लगा था कि मोहब्बत का मतलब सिर्फ दिखावे का प्यार नहीं, बल्कि किसी के साथ हर सुख-दुख में खड़ा रहना है। और वही पिंकू था।
रात आई और हर्षिता की विदाई का वक्त भी। घर का आँगन जो कल तक गीतों और हँसी से गूंज रहा था, आज सुना हो गया। दीपिका के लिए भी अगले दिन दिल्ली लौटने का समय आ गया था। मगर उसके दिल में एक कसक रह गई थी – जैसे कुछ अनकहा बाकी हो।
सुबह जब वो अपना सामान बाँध रही थी, तभी पिंकू धीरे से आँगन में आया और बोला, “तो आज लौट रही हो, गुड़िया जी?” दीपिका ने उसकी ओर देखकर हल्की मुस्कान दी, “हाँ, पर इस बार एक शर्त है।” पिंकू ने हैरानी से पूछा, “कैसी शर्त?” दीपिका ने उसकी आँखों में गहराई से झाँका और धीरे से कहा, “तुम्हारी शादी में आऊँगी लेकिन दुल्हन बनकर।” यह सुनते ही पिंकू जैसे पत्थर की मूर्ति बन गया। उसकी आँखों में नमी भर आई, होंठ काँपने लगे। वो बमुश्किल बोल पाया, “दीपिका, क्या सचमुच तू वही कह रही है जो मैं सोच रहा हूँ?” दीपिका की पलकों से आँसू ढलक पड़े। उसने उसका हाथ थाम लिया, “हाँ पिंकू, मैंने देर से समझा मगर अब साफ दिख रहा है। सच्चा साथी वही होता है जो मुश्किल वक्त में हाथ थाम ले, और वह सिर्फ तुम हो।” पिंकू की आँखों से आँसू बह निकले, उसका स्वर काँप रहा था। “मुझे तो हमेशा लगता था कि मैं गंवार हूँ, और शहर की लड़कियाँ मेरे जैसे को कभी अपनाएँगी ही नहीं।” दीपिका ने सिर झुकाकर जवाब दिया, “गंवार वो नहीं होता जो गाय-भैंस पालता है, गंवार वो होता है जो औरत की इज्जत ना कर सके, जो रिश्तों की जिम्मेदारी ना उठा सके। और तुम, तुम तो सबसे बड़े इंसान हो पिंकू।”
उस पल मानो पूरी फिजा ने उनकी मोहब्बत का आशीर्वाद दे दिया। दोनों की आँखों में आँसू थे, लेकिन दिलों में सुकून था। पलकें भीगी थीं मगर मुस्कान सच्ची थी। जैसे दोनों के दिलों को अब उनका ठिकाना मिल गया हो।
2 साल बाद – जून 2025
वही गाँव फिर से सजा। बैंड-बाजा गूंज रहा था, आँगन रोशनी से जगमगा रहा था। लेकिन इस बार दुल्हन दीपिका थी और दूल्हा पिंकू। सात फेरों के वक्त सबकी आँखें नम हो गईं और लोग कहने लगे – जिसे लोग गंवार समझते थे, वही निकला सबसे बड़ा हीरा। और शहर की लड़की जो सबको दूर लगती थी, वही इस गाँव की रानी बन गई।
सीख: यह कहानी हमें यही सिखाती है कि असली अमीरी पैसों और दिखावे में नहीं, बल्कि सच्चाई, जिम्मेदारी और दिल से निभाए गए रिश्तों में होती है। असली प्यार चेहरों और सजावट में नहीं, बल्कि उस इंसान की सच्चाई और जिम्मेदारी में है जो हर हाल में साथ निभाए।
क्या आप भी पिंकू जैसे इंसान को अपना जीवन साथी चुनते?
आपका जवाब शायद किसी की सोच बदल दे और नई राह दिखा दे।
जय हिंद।
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