करोड़पति लड़की ||10 साल बाद बकरी चराने वाले || गरीब दोस्त का कर्ज चुकाने पहुंची’
सृष्टि की कहानी – बचपन की दोस्ती, कर्ज और इंसानियत का असली अर्थ
सृष्टि, जिसकी उम्र अभी 23 साल है, एक सफल बिजनेसवुमन है। उसकी शादी एक ऐसे परिवार में हुई है, जो पूरी तरह बिजनेस माइंडेड है। शादी के बाद सृष्टि भी बिजनेस करने लगी और आज उसके बिजनेस अच्छे से चल रहे हैं।
एक दिन सृष्टि को बिहार के मधुबनी में अपने बिजनेस के सिलसिले में एक व्यक्ति से मीटिंग करनी थी। सुबह-सुबह वह वहां पहुंची, मीटिंग सक्सेसफुल रही और वह खुश होकर वापस लौट रही थी। लेकिन रास्ते में खाली खेतों के पास उसकी नजर एक लड़के पर गई, जो बकरियां चरा रहा था।
उसे देखकर सृष्टि अचानक अपने पुराने दिनों में खो गई। उसे किसी की याद आ गई।
सृष्टि ने ड्राइवर काका से कहा, “काका, गाड़ी रोको। हमें कहीं और जाना है।”
ड्राइवर ने गाड़ी रोकी और पूछा, “बेटी, कहां जाना है?”
सृष्टि बोली, “फलाने गांव की तरफ चलो, आधे घंटे का सफर है।”
ड्राइवर हैरान था, क्योंकि शादी के बाद सृष्टि पहली बार उस जगह जा रही थी, जिसका उसने कभी जिक्र नहीं किया था।
ड्राइवर सोचने लगा, आखिर ऐसा क्या है वहां?
गाड़ी मोड़ दी गई।
रास्ते में सृष्टि ढेर सारी बातें सोच रही थी और मुस्कुरा रही थी।
ड्राइवर काका ने पूछ ही लिया, “मालकिन, अगर आपसे कुछ पूछूं तो बुरा तो नहीं मानेंगी?”
सृष्टि बोली, “पूछो काका, क्या पूछना है?”
काका ने पूछा, “आप उस जगह पर क्यों जा रही हो और इतनी खुश क्यों हो?”
सृष्टि मुस्कुराई और बोली, “इसके पीछे लंबी कहानी है, सुनो।”
10 साल पहले…
“आज से करीब 10 साल पहले, जब मैं 13 साल की थी, अपने ननिहाल गई थी। मेरे पिता शहर में रहते थे, लेकिन मुझे गांव जाना बहुत पसंद था।
वहां मैं अपने मामा के लड़के के साथ खेतों में खेलने जाती थी।
वहीं एक लड़का था – विकास – जो बकरियां चराता था।
हम तीनों मिलकर खूब खेलते थे।
वहां अमीर-गरीब का कोई भेदभाव नहीं था।
धीरे-धीरे हम तीनों की दोस्ती हो गई।
मैं रोज उसके साथ खेलने जाती थी।
एक दिन खेलते-खेलते मेरे कान की बाली कहीं खो गई।
वह बाली मेरे पिता ने मेरे 12वें जन्मदिन पर गिफ्ट की थी।
मां बहुत गुस्सा करती, क्योंकि वह बाली सोने की थी।
मैं परेशान होकर रोने लगी।
मामा का लड़का और विकास भी परेशान हो गए।
तीनों मिलकर बाली ढूंढने लगे, लेकिन नहीं मिली।
मैं फूट-फूटकर रोने लगी, डर था कि घर जाऊंगी तो मां डांटेंगी।
विकास ने मुझे चुप कराया, “कोई बात नहीं, चुप हो जाओ। इसका कोई समाधान मिल जाएगा।”
लेकिन मैं चुप नहीं हुई।
तभी विकास बोला, “मेरे पास पैसे हैं, उनसे तुम्हारे लिए दूसरी बाली बनवा देंगे। किसी को पता भी नहीं चलेगा।”
मैं चुप हो गई, लेकिन विकास ने झूठ बोला था। उसके पास पैसे नहीं थे।
विकास घर गया, अपने पिता के बचाए हुए पैसे – ₹2000 – निकालकर ले आया।
वह पैसे मुझे और मामा के लड़के को दे दिए, “जाकर नई बाली खरीद लो।”
मैं बहुत खुश हुई, विकास को गले लगा लिया, “तुम मेरे सच्चे दोस्त हो।”
हम दोनों ज्वेलर के पास गए, मामा का लड़का 17 साल का था।
उसने पैसे देकर मेरे लिए नई बाली बनवा दी।
बाली पहनकर मैं खुश होकर घर चली गई।
शाम को विकास घर गया तो उसके पिता को पता चल गया कि पैसे गायब हैं।
पिता ने विकास की पिटाई की, “पैसे कहां खर्च किए?”
विकास ने कुछ नहीं बताया।
सृष्टि और मामा का लड़का दूर खड़े होकर यह सब देख रहे थे।
विकास ने कभी नहीं बताया कि उसने पैसे सृष्टि को दिए।
पिटाई के बाद पिता ने उसे छोड़ दिया।
विकास दर्द सहकर चुपचाप बैठा रहा।
सृष्टि को बहुत बुरा लगा।
उसने ठान लिया – “जब मेरे पास पैसे होंगे, विकास को जरूर लौटा दूंगी, ताकि उसके ऊपर से चोर होने का कलंक मिट सके।”
लेकिन सृष्टि भी बच्ची थी, उसके पास पैसे नहीं थे।
धीरे-धीरे समय बीत गया।
सृष्टि बड़ी हुई, शादी के योग्य हुई, माता-पिता ने शादी कर दी।
सृष्टि अपने पति के साथ जिंदगी बिताने लगी।
ससुराल का परिवार बिजनेस करता था, सृष्टि को भी बिजनेस मिल गया।
वह मेहनत करके बिजनेस को ऊंचाइयों तक ले गई।
काका – उसका ड्राइवर – हमेशा उसके साथ था।
सृष्टि कभी सलाह लेती थी तो काका से ही लेती थी।
इसी वजह से आज वह पूरी कहानी काका को सुना रही थी।
विकास का गांव, पुराने रिश्ते
सृष्टि बोली, “जब रास्ते में बकरी चराने वाले को देखा, तो मेरा ननिहाल याद आ गया।
वहां विकास रहता था।
आज मैं उससे मिलना चाहती हूं, उसका कर्ज चुकाना चाहती हूं।”
काका भी विकास को देखना चाहता था।
गाड़ी दौड़ाई गई, सृष्टि ने रास्ता बताया और वे विकास के घर पहुंचे।
विकास का घर पहले जैसा ही था – गरीब, टूटा-फूटा।
इतनी बड़ी गाड़ी देखकर पड़ोसी बाहर निकल आए।
सृष्टि गाड़ी से उतरी।
एक पड़ोसी से पूछा, “यह विकास का घर है?”
पड़ोसी सिर हिलाता रहा, सृष्टि की तरफ देखता रहा – अमीर कपड़े, बड़ी गाड़ी।
सृष्टि सीधे दरवाजे पर पहुंची, खटखटाया।
अंदर से दो मासूम बच्चे निकले – एक 8 साल का, एक 6 साल की बच्ची।
सृष्टि समझ गई, ये विकास के बच्चे हैं।
पूछा, “बेटा, तुम्हारे पापा कहां हैं?”
बच्चे मासूमियत से बोले, “पापा तो नहीं हैं।”
पड़ोसियों में से एक व्यक्ति आया, “मैडम, इनके पापा की मौत काफी दिन पहले हो चुकी है। अब बच्चों को मां पालती है।”
सृष्टि के पैरों तले जमीन खिसक गई।
जिस दोस्त का कर्ज चुकाने आई थी, वह अब इस दुनिया में नहीं रहा।
गांव वाले बच्चों की मां को बुलाते हैं, जो खेतों में मजदूरी कर रही थी।
जब उसे पता चला कि कोई अमीर महिला उसके पति के बारे में पूछ रही है, वह दौड़ती हुई आई।
सृष्टि से पूछा, “हां जी बहन जी, आप कौन हो और मेरे पति से क्या काम है?”
सृष्टि दुखी थी, बोली, “आप मुझे नहीं जानतीं, लेकिन आपके पति मुझे जानते थे।
इसी गांव में मेरा ननिहाल था।
बचपन में आपके पति के साथ खेलती थी।
एक बार मेरी बाली खो गई थी, विकास ने पैसे दिए थे।
वह पैसे लौटाने आई हूं।”
महिला हैरान थी – इतनी अमीर होकर भी बचपन के पैसे लौटाने आई है!
कोई सबूत भी नहीं कि पैसे दिए थे या नहीं।
महिला समझ गई, सृष्टि अच्छी इंसान है।
घर के अंदर वेलकम किया।
सृष्टि घर के अंदर गई, विकास का फोटो दीवार पर लगा था।
पूछा, “उसकी मौत कैसे हुई?”
महिला बोली, “वह एक कंपनी में काम करते थे।
एक दिन मशीन की चपेट में आकर उनकी मौत हो गई।
कंपनी से कुछ पैसा मिला, लेकिन वह कब तक चलता?
अब मैं मजदूरी करके बच्चों का पालन करती हूं।”
सृष्टि ने पूछा, “विकास के माता-पिता?”
महिला बोली, “काफी पहले उनकी भी मौत हो गई।”
सृष्टि ने घर देखा – साफ था कि ये लोग मुसीबत में हैं।
उसने बच्चों को पास बुलाया, पूछा – “कौन सी क्लास में पढ़ते हो?”
बच्चे बोले, “पढ़ते थे, लेकिन पापा की मौत के बाद पढ़ाई बंद हो गई।
मां थोड़ा बहुत घर पर पढ़ा देती है।
पैसे नहीं हैं, स्कूल नहीं जाते।”
सृष्टि की आंखों में आंसू आ गए।
काका भी रो पड़ा।
सृष्टि का संकल्प – मदद और बदलाव
सृष्टि सोचने लगी – सिर्फ पैसे लौटाने से काम नहीं चलेगा।
मुझे इस परिवार के लिए कुछ करना होगा।
सृष्टि ने विकास की पत्नी से पूछा, “कितना कमाती हो?”
महिला बोली, “₹200 रोज मिलते हैं, महीने का ₹6000।
घर चल जाता है, बच्चों की फीस नहीं दे पाती।”
महिला फूट-फूटकर रोने लगी।
सृष्टि ने उसे सहारा दिया, “चिंता मत करो, तुम मेरे दोस्त की पत्नी हो।
मैं तुम्हारे लिए कुछ करूंगी।”
महिला बोली, “मदद नहीं चाहिए।”
सृष्टि ने कहा, “बचपन में तुम्हारे पति ने मेरी मदद की थी, अब मैं तुम्हारी मदद करना चाहती हूं।
पैसा नहीं दूंगी, राह दिखाऊंगी।”
महिला चुप हो गई।
सृष्टि वहां से चली गई, लेकिन अगले दिन नए जोश के साथ लौटी।
सबसे पहले बच्चों का अच्छे स्कूल में एडमिशन कराया।
कहा, “खर्चा मैं दूंगी।
लेकिन पहले तुम्हें पैसे कमाने लायक बनाऊंगी।”
महिला बोली, “मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं।”
सृष्टि मुस्कुराई, “पढ़ाई नहीं, काम करने का तरीका मायने रखता है।
कल इसी जगह आ जाना।”
अगले दिन महिला सिलाई सेंटर पहुंची।
सृष्टि ने उसे सिलाई सीखने के लिए लगा दिया।
कहा, “अच्छी तरह सिलाई सीख लो, फिर तुम्हारा सिलाई सेंटर खुलवा दूंगी।”
कुछ ही दिनों में महिला ने काम सीख लिया।
सृष्टि ने पैसे लगाकर उसके लिए अच्छा सिलाई सेंटर खुलवा दिया।
अब वह महंगे डिजाइनर सूट सिलती है, बड़े घरों के कस्टमर आते हैं, खूब पैसा कमाती है।
महिला ने सृष्टि के पैसे लौटाने की सोची।
सृष्टि ने मना कर दिया, “यह तुम्हारे पति का कर्ज था, मैंने चुकाया।
पैसे बच्चों के फ्यूचर के लिए रखो।”
सृष्टि आज भी विकास की पत्नी और बच्चों से मिलने जाती है।
रिजल्ट के समय पूछती है, खिलौने और कपड़े देती है, उनका ख्याल रखती है।
सृष्टि के पति को जब यह सब पता चला, वे भी गर्व महसूस करने लगे।
कभी-कभी बच्चों के साथ मिलने आते हैं, इस परिवार से उनका अलग सा बॉन्ड बन गया है।
गांव वाले भी खुश हैं, सृष्टि की वाहवाही करते हैं।
तो दोस्तों, यह थी सृष्टि की कहानी –
बचपन की दोस्ती, कर्ज और इंसानियत की मिसाल।
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