कहानी: समय का खेल

परिचय

मुंबई की रात, सन्नाटा और एक रहस्य। इस कहानी में हम एक साधारण टैक्सी ड्राइवर, कृष्णा की बात करेंगे, जो एक अजीब सी घटना का हिस्सा बन जाता है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि कभी-कभी एक आम आदमी भी बड़े बदलाव ला सकता है।

घटना का आरंभ

रात के 11:47 बजे थे, जब कृष्णा ने एक बुजुर्ग आदमी को अपनी टैक्सी में बैठाते हुए कहा, “अंकल, हॉस्पिटल तक नहीं जाऊंगा।” बुजुर्ग लगभग 75 साल का था और उसके हाथ में एक अजीब सा काला सूटकेस था, जिससे टिक टिक की आवाज आ रही थी। यह आवाज कृष्णा को परेशान कर रही थी।

परिचय

मुंबई की रात, सन्नाटा और एक रहस्य। इस कहानी में हम एक साधारण टैक्सी ड्राइवर, कृष्णा की बात करेंगे, जो एक अजीब सी घटना का हिस्सा बन जाता है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि कभी-कभी एक आम आदमी भी बड़े बदलाव ला सकता है।

घटना का आरंभ

रात के 11:47 बजे थे, जब कृष्णा ने एक बुजुर्ग आदमी को अपनी टैक्सी में बैठाते हुए कहा, “अंकल, हॉस्पिटल तक नहीं जाऊंगा।” बुजुर्ग लगभग 75 साल का था और उसके हाथ में एक अजीब सा काला सूटकेस था, जिससे टिक टिक की आवाज आ रही थी। यह आवाज कृष्णा को परेशान कर रही थी।

“क्यों भाई? इमरजेंसी है मेरी,” बुजुर्ग ने कहा, उसकी आवाज में घबराहट थी।

“अंकल, रात में हॉस्पिटल एरिया में जाना रिस्की है। आजकल वहां अजीब घटनाएं हो रही हैं,” कृष्णा ने स्टीयरिंग व्हील को कसकर पकड़ा।

“कैसी घटनाएं?” बुजुर्ग ने पूछा, उसकी आंखों में चमक थी।

“कुछ नहीं अंकल, आप कोई और टैक्सी ले लीजिए,” कृष्णा ने कहा और डोर अनलॉक किया। बुजुर्ग धीरे से उतरा, लेकिन उतरते समय उसका सूटकेस खुल गया और एक डिजिटल टाइमर दिखाई दिया, जिस पर 1:13 मिनट और 27 सेकंड लिखा था। नंबर्स तेजी से कम हो रहे थे।

कृष्णा ने देखा, लेकिन बुजुर्ग ने तुरंत सूटकेस बंद कर दिया। “कुछ नहीं बेटा, मैं पैदल ही चला जाऊंगा,” वह तेजी से अंधेरे में गायब हो गया। कृष्णा परेशान हो गया। वह टाइमर क्या था और वह नंबर्स क्यों कम हो रहे थे?

सुबह की खबर

अगली सुबह, कृष्णा की नींद अपने नेबर विक्रांत की आवाज से खुली। “यार कृष्णा, न्यूज़पेपर देख, बहुत बड़ी खबर है।” विक्रांत एक्साइटेड था।

कृष्णा ने आंखें मलते हुए न्यूज़पेपर लिया। हेडलाइन पढ़कर उसके हाथ कांपने लगे। “रात 1:00 बजे हॉस्पिटल एरिया में ब्लास्ट। पांच लोग घायल। एक व्यक्ति लापता।” कृष्णा का दिल जोर से धड़कने लगा।

वह टाइमर 01:13:27 यानी 1 घंटा 13 मिनट में कुछ होने वाला था। अगर बुजुर्ग रात 11:47 पर उसकी गाड़ी से उतरा था, तो वह 1:00 बजे तक हॉस्पिटल पहुंच गया होगा।

कृष्णा ने आगे पढ़ा। “पुलिस के अनुसार ब्लास्ट का कारण अभी साफ नहीं है। बम स्क्वाड की टीम जांच कर रही है। एक आईटी विटनेस ने बताया कि ब्लास्ट से पहले एक स्टार ऐप की शुरुआत हुई थी। बुजुर्ग व्यक्ति को हॉस्पिटल की तरफ जाते देखा था।”

संदेह और डर

कृष्णा के होश उड़ गए। क्या वह बुजुर्ग टेररिस्ट था? क्या उसके सूटकेस में बम था? लेकिन फिर वह क्यों ब्लास्ट में खुद भी फंस गया? कृष्णा ने न्यूज़ पर फोकस किया। “लापता व्यक्ति की आइडेंटिटी अभी कंफर्म नहीं हुई है। हॉस्पिटल के सिक्योरिटी कैमरास भी ब्लास्ट के कारण डैमेज हो गए हैं।”

विक्रांत बोला, “यार, इतना बड़ा ब्लास्ट और कोई पता नहीं कि कैसे हुआ। पुलिस तो कह रही है कि यह एक्सीडेंट नहीं था।” कृष्णा चुप रहा। वह कुछ नहीं बोल सकता था। अगर वह पुलिस को बताता है, तो वह भी सस्पेक्ट बन जाएगा।

फोन कॉल

दोपहर को कृष्णा अपनी गाड़ी लेकर निकला, लेकिन उसका दिमाग परेशान था। हर ट्रैफिक सिग्नल पर वह रुकता और सोचता कि क्या करें? तभी उसका फोन बजा। अननोन नंबर था।

“हेलो कृष्णा भाई,” आवाज Familiar लगी। “कौन बोल रहा है?”

“मैं इंस्पेक्टर रावत हूं, मुंबई पुलिस से। आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।” कृष्णा का गला सूख गया।

“जी जी बोलिए। आप कल रात कहां थे? 11:00 से 12:00 बजे के बीच?”

“मैं… मैं ड्यूटी पर था। टैक्सी चला रहा था। कोई पैसेंजर था आपके साथ?”

कृष्णा झिझका। “जी, एक पैसेंजर था लेकिन…”

“पुलिस स्टेशन आ जाइए।” अचानक लाइन कट हो गई।

पुलिस स्टेशन

कृष्णा के हाथों से फोन गिर गया। अब क्या होगा? पुलिस को पूरी बात बताना होगी। पुलिस स्टेशन पहुंचकर कृष्णा को इंस्पेक्टर रावत के कैबिन में बिठाया गया। रावत एक सीरियस लुकिंग ऑफिसर था जिसकी आंखों में तेजी थी।

“कृष्णा, आपके टैक्सी के रजिस्ट्रेशन नंबर से हमें पता चला है कि कल रात आप हॉस्पिटल एरिया के नजदीक थे।”

“जी सर। लेकिन मैं वहां नहीं गया था।”

“तो फिर आप कहां गए थे और आपका पैसेंजर कौन था?”

कृष्णा ने पूरी कहानी बताई। बुजुर्ग आदमी के बारे में, सूटकेस के बारे में, टाइमर के बारे में। इंस्पेक्टर रावत ध्यान से सुन रहा था।

“आपको उस बुजुर्ग का चेहरा स्पष्ट याद है?”

“जी हां, सर। अगर फोटो दिखाएं तो पहचान जाऊंगा।”

इंस्पेक्टर ने अपने ड्रॉर से कुछ फोटो निकाले। “इनमें से कोई दिख रहा है आपको?”

कृष्णा ने फोटो देखे। सारे बुजुर्ग लोगों के फोटो थे, लेकिन उनमें से कोई भी वह नहीं था जो उसकी गाड़ी में बैठा था।

“नहीं सर, इनमें से कोई नहीं है।”

इंस्पेक्टर परेशान हो गया। “यह स्ट्रेंज है। हमारे पास सभी सस्पेक्ट्स की लिस्ट है। लेकिन आपका डिस्क्रिप्शन किसी से मैच नहीं कर रहा।”

नया सबूत

तभी इंस्पेक्टर का फोन बजा। “जी क्या? कहां मिला है? ठीक है, हम आते हैं।” फोन रखकर उसने कृष्णा से कहा, “चलिए, कुछ नया एविडेंस मिला है।”

पुलिस स्टेशन से निकलकर वे सीधे हॉस्पिटल गए। वहां फॉरेंसिक टीम काम कर रही थी। एक ऑफिसर ने इंस्पेक्टर रावत से कहा, “सर, हमें ब्लास्ट साइट के पास से एक अजीब चीज मिली है।”

उसने एक प्लास्टिक बैग दिया जिसमें एक डायरी थी जो थोड़ी जली हुई थी। इंस्पेक्टर ने डायरी खोली। पहले पेज पर साफ लिखा था, “यदि आप यह डायरी पढ़ रहे हैं, तो मैं शायद मर चुका हूं।” कृष्णा के रोंगटे खड़े हो गए।

“आगे क्या लिखा है सर?”

इंस्पेक्टर ने पेज टर्न किया। “मेरा नाम डॉ. अशोक वर्मा है। मैं पिछले 20 साल से कैंसर रिसर्च कर रहा हूं। मैंने एक ऐसी मेडिसिन बनाई है जो कैंसर को 48 घंटे में ठीक कर सकती है। लेकिन कुछ लोग इसका गलत इस्तेमाल करना चाहते हैं। वे मुझसे इसका फार्मूला मांग रहे हैं ताकि वे ब्लैक मार्केट में बेच सकें। मैंने मना कर दिया है। अब वे मुझे जान से मारने की धमकी दे रहे हैं।”

इंस्पेक्टर आगे बढ़ता गया। “अगर मुझे कुछ हो जाता है तो फार्मूला मेरे सूटकेस में है। एक सीक्रेट कंपार्टमेंट में लेकिन सूटकेस को खोलने के लिए कोड चाहिए। कोड है 2847। यह मेडिसिन ह्यूमैनिटी के लिए है। किसी को भी फ्री में देनी चाहिए।”

सच का खुलासा

कृष्णा शॉक्ड था। “सर, का मतलब वह बुजुर्ग डॉक्टर था और वह बम नहीं, मेडिसिन लेकर जा रहा था।”

“लगता तो यही है, लेकिन फिर ब्लास्ट कैसे हुआ और डॉक्टर वर्मा कहां गए?” तभी हॉस्पिटल के सिक्योरिटी गार्ड अर्जुन आया।

“सर, मैंने कल रात कुछ देखा था।”

“क्या देखा था?” इंस्पेक्टर ने पूछा।

“सर, एक बुजुर्ग आदमी आया था हॉस्पिटल में। उसके साथ तीन से चार लोग थे ब्लैक क्लोथ्स में। वो लॉक डॉक्टर साहब से कुछ मांग रहे थे। डॉक्टर साहब ने मना कर दिया। फिर फाइट शुरू हुई।”

अर्जुन नर्वस था। “आगे क्या हुआ?”

“सर, डॉक्टर साहब भागने की कोशिश कर रहे थे। उन लोगों ने उन्हें पकड़ा। फिर एक आदमी ने कुछ फेंका। बहुत बड़ी आवाज आई। मैं डर कर भाग गया।”

मिस्ट्री का समाधान

अब सब कुछ स्पष्ट हो रहा था। डॉक्टर अशोक वर्मा कोई टेररिस्ट नहीं था। वह एक ब्रिलियंट साइंटिस्ट था जिसने कैंसर की मेडिसिन बनाई थी। कुछ क्रिमिनल्स उसका फार्मूला चुराना चाहते थे। जब उसने मना किया, तो उन्होंने ब्लास्ट करके उसे मार दिया।

लेकिन अभी भी यह मिस्ट्री थी कि डॉ. वर्मा का बॉडी कहां है? और वह सूटकेस कहां गया जिसमें मेडिसिन का फार्मूला था? कृष्णा का दिमाग चकरा रहा था। डायरी की बातें अभी भी उसके कानों में गूंज रही थीं। “यह दवा इंसानियत के लिए है। किसी को भी फ्री में मिलनी चाहिए।”

उसका दिल बैठ गया। इतने बड़े रहस्य में वह अनजाने में फंस चुका था। इंस्पेक्टर रावत ने डायरी बंद की और अपनी टीम को आदेश दिया, “डॉ. वर्मा का बॉडी चाहिए और वह सूटकेस चाहिए। पूरे शहर में नाकाबंदी कर दो। यह कोई मामूली केस नहीं है।”

कृष्णा की हिम्मत

कृष्णा खड़ा होकर बोला, “सर, एक बात बता सकता हूं?”

रावत ने उसकी ओर घूर कर देखा। “क्या?”

“जब वह अंकल उतरे थे ना, उनके चेहरे पर डर तो था लेकिन उनके कदम बहुत तेज थे, जैसे उन्हें पता हो कि कोई उनका पीछा कर रहा है।”

रावत ने तुरंत नोट किया। “मतलब किसी ने उन्हें पहले से ट्रैक कर रखा था।”

तभी एक कॉन्स्टेबल दौड़ते हुए आया। “सर, सीसीटीवी सर्वर का बैकअप हम रिकवर कर पाए हैं। थोड़ा फटा हुआ है लेकिन शायद कुछ दिखे।”

सब लोग फॉरेंसिक वैन की तरफ भागे। स्क्रीन पर फुटेज चलने लगी। रात 12:53 का टाइम दिखा रहा था। कैमरा हिल रहा था लेकिन फुटेज में कुछ दिखा, डॉ. वर्मा का चेहरा, वही बुजुर्ग, वही सूटकेस। उनके आसपास काले कपड़ों में चार लोग थे हथियार लिए।

एक आदमी ने उनका हाथ पकड़ रखा था। दूसरा सूटकेस छीनने की कोशिश कर रहा था। फिर अचानक एक फ्लैश कैमरा काला। कृष्णा ने देखा। उसका दिल धड़कने लगा। “यही है सर। यही अंकल मेरी टैक्सी में थे।”

किडनैपिंग का खुलासा

रावत बोला, “तो यह किडनैपिंग थी और ब्लास्ट शायद उन लोगों ने छुपाने के लिए किया।” तभी एक और शख्स कमरे में आया। “एटीएस ऑफिसर मेहरा, रावत, यह केस अब हमारी टीम संभालेगी।”

ब्लैक शैडो गैंग का हाथ है। रावत चौंका। “ब्लैक शैडो?”

मेहरा ने गहरी आवाज में कहा, “इंटरनेशनल क्रिमिनल नेटवर्क है। यह लोग रेयर डिस्कवरीज चुराते हैं और अरबों में बेचते हैं। लगता है डॉ. वर्मा का फार्मूला इनके निशाने पर था।”

कृष्णा ने डरते हुए पूछा, “सर, अब क्या होगा?”

मेहरा ने उसकी ओर देखा। “तुम्हें हमारी मदद करनी होगी। तुम आखिरी व्यक्ति हो जिसने डॉक्टर को जिंदा देखा।”

कृष्णा के रोंगटे खड़े हो गए। क्या वह इस खतरे में पड़ने को तैयार था? मगर उसके मन में डॉक्टर वर्मा का चेहरा घूम रहा था। उस सूटकेस का टिकिंग टाइमर घूम रहा था।

“मैं तैयार हूं,” कृष्णा ने धीरे से कहा।

अंतिम संघर्ष

उसी वक्त मेहरा का फोन बजा। उसने कॉल रिसीव किया। “क्या लोकेशन ट्रेस की? ठीक है, हम आ रहे हैं।” सबकी नजरें मेहरा पर थीं।

“हमें एक सिग्नल मिला है। ब्लास्ट साइड से करीब 10 किमी दूर एक पुराना वेयरहाउस। वहीं पर कोई एक्टिविटी डिटेक्ट हुई है।” सब लोग वहां पहुंचने लगे।

रास्ते में बारिश शुरू हो गई। माहौल और डरावना हो गया। कृष्णा पुलिस की जीप में बैठा था। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।

वेयरहाउस के बाहर अंधेरा था। कुछ टिमटिमाते बल्ब। मेहरा ने अपनी टीम को इशारा किया। “सावधान रहना। यह लोग बहुत खतरनाक हैं।”

वे अंदर दाखिल हुए। पुरानी लोहे की गंध, टूटी फूटी मशीनें और बीच में एक टेबल जिस पर वही काला सूटकेस रखा था। पर वहां कोई नहीं था।

“सूटकेस!” कृष्णा चिल्लाया। मेहरा ने टीम को चेक करने को कहा। तभी पीछे से आवाज आई, “मूव एंड यू डाई।”

मुठभेड़

चारों तरफ से काले कपड़ों में लोग घेर चुके थे। हथियार उनकी तरफ ताने हुए। एक लंबा आदमी जिसका चेहरा मास्क से ढका था, आगे आया। “हम जानते थे पुलिस आएगी लेकिन हमने सोचा नहीं था कि टैक्सी वाला भी आएगा।” उसकी आवाज ठंडी थी।

“डॉक्टर वर्मा कहां है?” मेहरा ने कड़क आवाज में पूछा।

मास्क वाला हंसा। “वह हमारे पास हैं और उनकी दवा भी। अब यह फार्मूला अरबों में बिकेगा।”

कृष्णा से रहा नहीं गया। “तुम पागल हो? वह दवा लोगों की जान बचाने के लिए है। बेचने के लिए नहीं।”

मास्क वाला हंसा। “दुनिया का नियम है। सबसे कीमती चीज वही होती है जो सबसे महंगी बिके।”

अचानक गोली चली। पुलिस और गैंग के बीच मुठभेड़ शुरू हो गई। गोलियों की आवाज, चीखपुकार, धुआं भर गया। कृष्णा एक पुराने शटर के पीछे छिप गया।

उसने देखा मास्क वाला सूटकेस लेकर भाग रहा है। कृष्णा के भीतर ना जाने कहां से हिम्मत आई। वह उसके पीछे दौड़ पड़ा।

बारिश में फिसलते हुए अंधेरे में भागते हुए मास्क वाला एक वैन में बैठने ही वाला था कि कृष्णा ने छलांग लगाई और पैर पकड़ लिया। दोनों गिरे। सूटकेस उनके बीच गिरा। टिकिंग की आवाज तेज हो गई।

कृष्णा ने देखा टाइमर पर 0:12:45। “यह टाइमर क्यों चल रहा है?” कृष्णा चीखा।

मास्क वाला गुर्राया, “अगर इसे खोले बिना कोड के छुए, तो वो उड़ जाएगा।”

अंतिम क्षण

कृष्णा का दिमाग सुन। तभी मेहरा और पुलिस वहां पहुंच गए। मास्क वाला भाग निकला। लेकिन सूटकेस कृष्णा के हाथ में आ गया।

“इसे मत खोलो। बम स्क्वाड को बुलाओ,” मेहरा चिल्लाया। सूटकेस को एक स्पेशल कंटेनर में रखा गया। मेहरा ने कृष्णा की पीठ थपथपाई। “तुम्हारी हिम्मत से यह हमारे पास है। लेकिन डॉक्टर अभी भी उनके पास हैं।”

कृष्णा हाफ रहा था। उसके कपड़े बारिश से भीग गए थे। उसका मन बार-बार सोच रहा था। “क्या डॉ. वर्मा जिंदा है? क्या उन्हें बचाया जा सकता है?”

अगले दिन अखबारों में फिर खबर थी। “ब्लैक शैडो गैंग और मुंबई पुलिस में मुठभेड़, सूटकेस बरामद। लेकिन वैज्ञानिक का कोई सुराग नहीं।”

कृष्णा घर पर बेचैन बैठा था। तभी उसका फोन फिर बजा। अनजान नंबर। उसने कांपते हाथों से रिसीव किया।

“एक कमजोर सी आवाज आई। ‘कृष्णा, मैं डॉ. वर्मा बोल रहा हूं। मेरे पास समय बहुत कम है।’”

कृष्णा खड़ा हो गया। “अंकल, आप कहां हैं?”

लाइन पर शोर था। फिर आवाज आई, “पुराने बंदरगाह, गोदाम नंबर सात। जल्दी आओ वरना देर हो जाएगी।” लाइन कट गई।

कृष्णा का दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने तुरंत मेहरा को फोन किया। “सर, डॉक्टर जिंदा है। उन्होंने मुझे लोकेशन दी है।”

मेहरा चौंका। “तुम अकेले मत जाना। हम आ रहे हैं।”

कृष्णा बोला, “सर, उनके पास टाइम नहीं है। मैं निकल रहा हूं।”

अंतिम दौड़

बारिश अब तूफान में बदल चुकी थी। अंधेरा, बिजली कड़क रही थी। कृष्णा अपनी टैक्सी लेकर पुराने बंदरगाह की तरफ भागा।

रास्ते में बार-बार उसे वह टिकिंग सूटकेस, डॉक्टर की कमजोर आवाज और मास्क वाले की ठंडी हंसी याद आ रही थी। बंदरगाह सुनसान था। टूटी हुई नावें, जंग लगे कन।

कृष्णा गोदाम नंबर सात के पास पहुंचा। दरवाजा थोड़ा खुला था। अंदर अंधेरा। उसने धीरे से कदम रखा। अचानक दरवाजा बंद हो गया।

अंधेरे में वही मास्क वाला सामने खड़ा था और उसके पीछे रस्सियों में बंधे डॉ. वर्मा। उनके मुंह पर पट्टी।

मास्क वाला बोला, “तुम बहुत बहादुर हो कृष्णा, लेकिन यहीं तुम्हारा सफर खत्म होगा।” उसने पिस्तौल तानी। कृष्णा का दिल रुक सा गया।

बाहर पुलिस की गाड़ियों की आवाज आ रही थी लेकिन क्या वे समय पर पहुंचेंगे? मास्क वाला ट्रिगर दबाने ही वाला था कि गोदाम के अंदर अंधेरा था। बारिश की बूंदें टीन की छत पर धमक रही थीं।

मास्क वाले का चेहरा बिजली की चमक में एक पल के लिए साफ दिखा। उसकी ठंडी आंखें मौत का इशारा कर रही थीं। डॉ. वर्मा रस्सियों में बंधे हुए, उनकी आंखों में डर और उम्मीद दोनों थी।

मास्क वाला फुसफुसाया, “कृष्णा, तूने बहुत दिमाग लगाया लेकिन अब खेल खत्म।”

अंत की ओर

उसने ट्रिगर दबाने के लिए उंगली टेढ़ी की ही थी कि उसी वक्त गोदाम की खिड़की के शीशे टूटे और एटीएस टीम अंदर घुस आई। मेहरा सबसे आगे था।

“हथियार नीचे रखो!” गोलियों की गूंज से गोदाम हिल उठा। कृष्णा ने मौके का फायदा उठाया और लोहे की छड़ उठाकर मास्क वाले की बंदूक पर जोर से मारा।

गोली ऊपर की ओर चली गई। छत में छेद हुआ। मास्क वाला पीछे गिरा लेकिन तुरंत संभल कर उठ गया। उसकी ताकत अजीब थी।

उसने कृष्णा को पकड़ कर दीवार से दे मारा। कृष्णा के सिर से खून निकला लेकिन उसने हार नहीं मानी। मेहरा और उसकी टीम गैंग के बाकी लोगों से भिड़ रही थी।

गोलियां, धुआं, चीखें, चारों तरफ अफरातफरी थी। मास्क वाला डॉ. वर्मा के पास दौड़ा। “कोई भी इसे बचा नहीं सकता।”

उसने फिर से सूटकेस उठाया और एक बटन दबा दिया। सूटकेस से बीप की आवाज आने लगी।

“डॉ. वर्मा!” चीख पड़े। “यह सिर्फ दवा नहीं, यह टाइम बम भी है। अगर कोड 2847 नहीं डाला तो सब खत्म।”

सबके चेहरे का रंग उड़ गया। टाइमर पर 0:49:9।

“मेहरा चिल्लाया। बम स्क्वाड को बुलाओ।” लेकिन टाइम कम था।

मास्क वाला हंस रहा था। “तुम सबके साथ यह शहर उड़ेगा और फार्मूला मेरा होगा।”

उसी वक्त कृष्णा ने पूरी ताकत से मास्क वाले पर झपट्टा मारा। दोनों जमीन पर लौटने लगे। लड़ाई बेहद खतरनाक हो गई।

मास्क वाले ने कृष्णा का गला दबाया। कृष्णा की सांस रुक रही थी। उसने पास पड़ी एक लोहे की चैन उठाकर मास्क वाले के हाथ में लपेट दी और जोर से खींचा।

मास्क वाला दर्द से चीखा। तभी मेहरा ने मौका देखकर उसे गोली मारी। मास्क वाला गिर पड़ा। उसका मास्क हट गया।

चेहरा देखकर सब चौंक गए। वह कोई विदेशी एजेंट था। ब्लैक शैडो गैंग का इंटरनेशनल हेड।

“टाइमर अब 01:00:00!” डॉ. वर्मा कांपते हुए बोले, “कोड डालो 2847 वरना हम सब मारे जाएंगे।” लेकिन सूटकेस मास्क वाले के पास था और लॉक्ड था।

कृष्णा ने कांपते हाथों से सूटकेस खोला। डिजिटल कीपैड चमक रहा था। पसीना टपक रहा था। दिल तेजी से धड़क रहा था।

“0:40” उसने जल्दी से “2847” दबाया। एक सेकंड को लगा कि सब खत्म हो जाएगा। फिर अचानक टाइमर रुक गया।

सन्नाटा छा गया। सूटकेस अनलॉक हुआ। अंदर बम भी था और एक गुप्त कंपार्टमेंट में फार्मूला भी।

डॉ. वर्मा की आंखों से आंसू निकल पड़े। “तुमने मेरी जान ही नहीं, पूरी इंसानियत को बचा लिया।”

मेहरा ने राहत की सांस ली। “कृष्णा, तुम हीरो हो। अगर तुम नहीं होते तो यह मिशन खत्म हो जाता।”

नया जीवन

बाहर बारिश थम चुकी थी। पुलिस ने बचे हुए गैंग के लोगों को गिरफ्तार किया। डॉ. वर्मा को अस्पताल ले जाया गया। उनकी दवा अब सरकार की सुरक्षा में थी ताकि यह सबको फ्री में मिल सके।

कुछ दिनों बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉ. वर्मा और कृष्णा को सम्मानित किया गया। वर्मा बोले, “यह टैक्सी ड्राइवर नहीं, मेरे लिए भगवान का फरिश्ता है। जिस दवा के लिए मैंने जिंदगी लगा दी, आज वह सही हाथों में है।”

सब ने ताली बजाई। कृष्णा मुस्कुराया। उसकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल चुकी थी।

उसे अब समझ आया कि कभी-कभी एक आम आदमी भी पूरी दुनिया बदल सकता है।

रहस्य का संकेत

लेकिन वहीं दूर से, किसी खंडहर में एक अंधेरी आंखें सीसीटीवी पर यह सब देख रही थीं। एक आवाज आई, “खेल खत्म नहीं हुआ। अगला वार जल्द होगा।”

स्क्रीन बंद हो गई।

निष्कर्ष

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