त्याग और प्रेम की मिसाल: सूरज और चंदा

बिहार के एक छोटे से गांव रामपुर में, जहाँ ना पक्की सड़कें थीं, ना बिजली की पूरी व्यवस्था, और ना ही बड़े-बड़े स्कूल, वहीँ एक फूस की छत वाला कच्चा सा घर था। इस घर में रहते थे रामदीन, उनकी पत्नी शांति, बेटा सूरज और बेटी चंदा। गरीबी उनकी किस्मत में थी, लेकिन उनके घर में प्यार और अपनापन कभी कम नहीं हुआ। सूरज और चंदा सिर्फ भाई-बहन नहीं बल्कि एक-दूसरे की परछाई थे।

रामदीन खेतों में मजदूरी करते थे, और रात को चौकीदारी भी। उनका सपना था कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनें, ताकि उन्हें अपनी तरह मजदूरी न करनी पड़े। सूरज का सपना था इंजीनियर बनकर अपने गांव के लिए पक्का पुल बनाना, ताकि बरसात में गांव का शहर से संपर्क ना टूटे। चंदा डॉक्टर बनना चाहती थी, ताकि गांव की औरतें इलाज के अभाव में दम न तोड़ें।

दोनों भाई-बहन पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। गांव के मास्टर जी अक्सर कहते, “रामदीन, तुम्हारे बच्चे हीरे हैं, इन्हें आगे बढ़ाओ।” लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। एक साल गांव में हैजे की महामारी फैली। इलाज के अभाव में रामदीन और शांति दोनों दुनिया छोड़ गए। सूरज और चंदा अनाथ हो गए। अब उनकी दुनिया में बस एक-दूसरे का ही सहारा था।

घर की सारी जिम्मेदारी 17 साल के सूरज पर आ गई। उसने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और मजदूरी करने लगा, ताकि चंदा की पढ़ाई जारी रह सके। चंदा ने 10वीं में जिले में टॉप किया। पूरे गांव ने खुशी मनाई। मास्टर जी ने सलाह दी कि अब चंदा को आगे की पढ़ाई के लिए शहर भेजना चाहिए। सूरज जानता था कि शहर में पढ़ाई के लिए पैसे चाहिए, हॉस्टल, किताबें, फीस—यह सब उसकी क्षमता से बाहर था।

फिर भी, सूरज ने हार नहीं मानी। वह गांव के जमींदार ठाकुर हरनाम सिंह के पास कर्ज मांगने गया। ठाकुर ने शर्त रखी—या तो अपने बाप-दादा की जमीन गिरवी रख दो, या मेरे यहाँ बंधुआ मजदूर बन जाओ। सूरज ने बहन के सपने के लिए अपनी आज़ादी गिरवी रख दी और ठाकुर के यहाँ मजदूरी करने लगा।

सूरज ने चंदा को शहर के हॉस्टल में दाखिला दिलवा दिया। जब चंदा जा रही थी, वह रो रही थी, “भैया, तुम अपना ख्याल रखना।” सूरज ने मुस्कुराकर कहा, “तू सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देना, बाकी सब मैं देख लूंगा।”

अब सूरज की ज़िन्दगी में बस मेहनत और तकलीफ थी। दिन भर खेतों में मजदूरी, रात को चौकीदारी, और जो थोड़ा-बहुत बचता, वह चंदा को भेज देता। वह हर खत में चंदा से झूठ बोलता कि गांव में उसकी दुकान है और सब अच्छा चल रहा है। वह नहीं चाहता था कि उसकी बहन उसकी तकलीफ जाने।

उधर, चंदा भी जानती थी कि उसका भाई उसके लिए कितनी मेहनत कर रहा है, लेकिन उसे यह नहीं पता था कि सूरज बंधुआ मजदूरी कर रहा है। दो साल बाद, चंदा ने 12वीं में राज्य में टॉप किया और उसे मेडिकल कॉलेज में स्कॉलरशिप मिल गई। लेकिन मेडिकल की पढ़ाई के खर्चे बहुत थे—फीस तो माफ हो गई, लेकिन किताबें, हॉस्टल, बाकी खर्चे कैसे होंगे?

सूरज फिर ठाकुर के पास गया, लेकिन ठाकुर ने मना कर दिया। सूरज टूट गया। उसी रात, उसे अपनी माँ की सोने की नथनी मिली। वह उसकी माँ की आखिरी निशानी थी। सूरज ने वह नथनी बेच दी और पैसे चंदा को भेज दिए। साथ में एक खत लिखा, “मुझे बंबई में नौकरी मिल गई है, अब मैं हर महीने पैसे भेजूंगा।”

यह भी एक झूठ था। सूरज बंबई जा रहा था, लेकिन मजदूरी करने। उधर, चंदा ने भी जवाब में झूठ लिखा कि उसे अस्पताल में नर्स की नौकरी मिल गई है, अब वह पैसे भेजेगी। असल में, उसने पढ़ाई छोड़ दी थी और लोगों के घरों में काम करने लगी थी, ताकि वह अपने भाई को पैसे भेज सके।

इस तरह दोनों भाई-बहन एक-दूसरे से दूर, एक-दूसरे की खुशी के लिए, अपने-अपने सपनों की कुर्बानी देकर, झूठी उम्मीदों के सहारे जी रहे थे। वक्त बीतता गया। बीस साल गुजर गए। सूरज अब 37 साल का हो गया था, बंबई में मजदूरी करते-करते थक गया था। वह गांव लौट आया, शादी नहीं की, अपनी पूरी जवानी बहन के नाम कर दी। गांव वालों से कहता, “मेरी बहन बहुत बड़ी डॉक्टर है।”

चंदा भी 35 साल की हो गई थी, शादी नहीं की, लोगों के घरों में काम करती। अपनी सहेलियों से कहती, “मेरे भैया बंबई में बड़े बिजनेसमैन हैं।” दोनों हर महीने एक काल्पनिक पते पर पैसे भेजते, एक-दूसरे की खुशी के लिए।

एक दिन चंदा की सहेली ने बताया कि उसका भैया अब गांव लौट आया है और मजदूरी कर रहा है। चंदा को जैसे बिजली का झटका लगा। उसे सारा सच समझ आ गया। वह तुरंत अपने गांव जाने का फैसला करती है।

उधर, गांव में खबर फैलती है कि एक बड़ी डॉक्टरनी गांव आ रही है। सूरज सोचता है, “मेरी चंदा आ रही है।” वह पूरे गांव को दावत देता है, अपनी झोपड़ी सजाता है। आखिरकार, बस आती है और उससे उतरती है एक साधारण सी, थकी हुई औरत—चंदा। सूरज उसे पहचान नहीं पाता। दोनों एक-दूसरे को देखते हैं, और फिर दौड़कर गले लग जाते हैं। 20 साल का सारा दर्द, त्याग, झूठ, आंसुओं के सैलाब में बह जाता है। गांव के सारे लोग रो पड़ते हैं।

दोनों ने एक-दूसरे को अपने-अपने संघर्ष की सच्चाई बताई। मास्टर जी ने दोनों के सिर पर हाथ रखकर कहा, “दुनिया में सबसे बड़ा धर्म और दौलत भाई-बहन का प्यार है। तुम दोनों हारे नहीं, जीते हो।”

इसके बाद, सूरज और चंदा ने मिलकर अपनी टूटी झोपड़ी को घर बनाया। चंदा ने सिलाई-कढ़ाई का केंद्र खोला, सूरज उसमें मदद करता। वे अमीर नहीं थे, लेकिन अब वे साथ थे, और यही उनकी सबसे बड़ी दौलत थी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि भाई-बहन का रिश्ता त्याग, बलिदान और निस्वार्थ प्रेम की नींव पर खड़ा होता है। अपने सपनों को कुर्बान कर देना, किसी अपने के सपनों को पूरा करने से भी बड़ा सुख है।

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