नेहा और अभिषेक: जबलपुर अस्पताल की वो रात

भूमिका

जबलपुर के एक बड़े अस्पताल में उस रात अचानक एंबुलेंस का सायरन गूंजा। डॉक्टर, नर्सें और वार्डबॉय भागते हुए इमरजेंसी गेट की ओर दौड़े। स्ट्रेचर पर दर्द से कराहती एक गर्भवती महिला थी – उसका चेहरा पसीने से भीगा, आंखों में डर और होठों पर चीखें। “बचाइए मुझे, मेरी जान जा रही है!” उसके आसपास अफरातफरी थी।

इसी भीड़ में एक डॉक्टर अपनी ड्यूटी निभाने के लिए आगे बढ़ा। जैसे ही उसकी नजर स्ट्रेचर पर पड़ी, वह ठिठक गया। आंखें फैल गईं, दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी आंखों से आंसू बह निकले। ये कोई और नहीं, उसकी तलाकशुदा पत्नी नेहा थी, जिसे वह वर्षों पहले खो चुका था।

नेहा का बचपन और परिवार

नेहा शर्मा जबलपुर के एक प्रतिष्ठित परिवार में पली-बढ़ी। उसके पिता राजेश शर्मा सरकारी विभाग में उच्च अधिकारी थे। नेहा उनकी इकलौती संतान थी, इसलिए उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं हुई। उसकी हर छोटी-बड़ी ख्वाहिश झट से पूरी कर दी जाती। महंगे खिलौने, सुंदर कपड़े, बढ़िया स्कूल – सब कुछ उसकी झोली में था।

ज्यादा लाड-प्यार ने नेहा को जिद्दी बना दिया। उसे जो चाहिए, वह उसी वक्त चाहिए – यही उसकी आदत बन गई। पढ़ाई में औसत, लेकिन शौक बड़े थे। कॉलेज पहुंचते-पहुंचते उसकी दुनिया और बड़ी हो गई – महंगे रेस्टोरेंट्स, लेट नाइट पार्टी, नए फोन, ब्रांडेड कपड़े, और दोस्तों का बड़ा झुंड।

शादी का फैसला

नेहा के ग्रेजुएशन के बाद राजेश शर्मा ने सोचा – अब बेटी की शादी कर देनी चाहिए। नेहा ने पहले तो मना किया, लेकिन पिता के समझाने पर मान गई – बशर्ते शादी के बाद भी वह अपनी पढ़ाई और शौक जारी रख सके। राजेश ने अपने पुराने मित्र रमेश वर्मा के बेटे अभिषेक से रिश्ता तय किया। अभिषेक एक साधारण किसान परिवार से था, लेकिन उसका सपना बड़ा था – डॉक्टर बनने का।

शादी धूमधाम से हुई। नेहा को लगा, यहां भी सब उसकी मर्जी से होगा। मगर ससुराल का माहौल बिल्कुल अलग था। यहां सादगी थी, सीमित आमदनी थी, और एक संयुक्त परिवार का अपनापन था।

ससुराल में संघर्ष

नेहा को यहां की सादगी रास नहीं आई। महंगे शौक, ब्रांडेड कपड़े, लेट नाइट पार्टी – इन सबकी जगह अब खेत-खलिहान, सुबह जल्दी उठना, और घर के कामों ने ले ली थी। अभिषेक के माता-पिता ने समझाया – “बेटी, हमारे संसाधन सीमित हैं, थोड़ा साधारण जीवन जीना सीखो।”

नेहा को यह सब बोझ लगने लगा। वह अक्सर मायके जाकर शिकायत करती – “पापा, आपने मेरी शादी ऐसे घर में क्यों कर दी?” राजेश शर्मा कभी बेटी की बात मान लेते, कभी उसे समझाते।

अभिषेक दिन-रात पढ़ाई में लगा रहता, ताकि डॉक्टर बन सके। लेकिन नेहा के ताने, उसकी शिकायतें, और उसके महंगे शौक घर में तनाव का कारण बनते गए।

मां बनने की खबर और रिश्ता टूटना

कुछ महीनों बाद नेहा को पता चला कि वह गर्भवती है। ससुराल में सब खुश थे – शायद बच्चे के आने से नेहा बदल जाएगी। लेकिन नेहा मायके लौट गई। दोस्तों के साथ घूमना, महंगे रेस्टोरेंट्स में जाना – वह अपनी पुरानी दुनिया में लौट गई।

धीरे-धीरे उसके दोस्त भी दूर होने लगे – “नेहा, अब तुम प्रेग्नेंट हो, तुम्हारे साथ घूमने में अजीब लगता है।” नेहा अकेली पड़ गई। उधर अभिषेक ने डॉक्टर बनने का सपना पूरा कर लिया, लेकिन उसके दिल में नेहा के लिए दर्द बाकी था।

आखिरकार, नेहा ने तलाक की अर्जी डाल दी। अभिषेक ने बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन नेहा नहीं मानी। कोर्ट में तलाक हो गया। नेहा मायके में रहने लगी, लेकिन अब उसकी जिंदगी खाली थी।

किस्मत का करिश्मा: अस्पताल की रात

समय बीता। नेहा की प्रेगनेंसी अंतिम दौर में थी। एक रात अचानक उसे तेज दर्द उठा। पिता ने एंबुलेंस बुलाई, अस्पताल पहुंचे। इमरजेंसी में ड्यूटी पर वही डॉक्टर था – अभिषेक वर्मा।

अभिषेक ने नेहा को देखा, अतीत की यादें आंखों में तैर गईं, लेकिन फर्ज बड़ा था। उसने तुरंत इलाज शुरू किया। जांच में पता चला – नेहा के शरीर में खून की कमी है, उसका ब्लड ग्रुप रेयर है, और ब्लड बैंक में उपलब्ध नहीं।

अभिषेक आगे बढ़ा – “मेरा ब्लड ग्रुप मैच करता है, मेरा खून ले लीजिए।” सब हैरान रह गए – जिसे नेहा ने ठुकरा दिया, वही उसकी जान बचाने को तैयार था। अभिषेक ने खून दिया, ऑपरेशन हुआ, और कुछ देर बाद बच्चे की रोने की आवाज गूंज उठी। नेहा ने स्वस्थ बेटे को जन्म दिया।

पछतावा और माफी

नेहा को होश आया, तो महिला डॉक्टर ने बताया – “अगर आपके पति समय पर खून न देते, तो आप और बच्चा दोनों नहीं बचते।” नेहा की आंखों से आंसू बह निकले। उसने अभिषेक को देख कर कहा – “मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया। मुझे माफ कर दो। मुझे और मेरे बच्चे को अपने साथ ले चलो।”

राजेश शर्मा भी रो पड़े – “बेटा, हमने अपनी बेटी को बहुत बिगाड़ दिया। इसकी जिंदगी तुम्हारे हाथ में है।”

अभिषेक का दिल पिघल गया। उसने कहा – “मैं तुम्हें फिर से स्वीकार करता हूं, लेकिन अब तुम्हें भी जिम्मेदारी समझनी होगी।” नेहा ने सिर झुका लिया – “अब मैं सब समझ गई हूं।”

नई शुरुआत

कुछ दिन बाद नेहा, अभिषेक और उनका बेटा घर लौटे। अभिषेक के माता-पिता ने नेहा को गले से लगा लिया। नेहा ने खुद को पूरी तरह बदल लिया – अब उसका ध्यान सिर्फ परिवार, पति और बेटे पर था।

धीरे-धीरे परिवार फिर से खुशहाल हो गया।

सीख

यह कहानी सिर्फ नेहा और अभिषेक की नहीं, हर उस घर की है जहां रिश्तों में अहंकार और गलतफहमियां दरार डाल देती हैं। अगर पति-पत्नी एक-दूसरे को समझें, त्याग करें, तो कोई रिश्ता नहीं टूटता। पैसे और शौक असली पहचान नहीं, असली पहचान है – प्यार, संयम और इंसानियत।

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जय श्री राम।