ममता की कहानी: एक शिक्षक और छात्र का अनमोल रिश्ता
क्या एक शिक्षक और छात्र का रिश्ता सिर्फ कक्षा तक ही सीमित होता है या क्या यह एक ऐसा पवित्र बंधन है जो समय की सीमाओं को तोड़कर जिंदगी के हर मोड़ पर हमारी राह रोशन करता है? यह कहानी है एक ऐसी ही शिक्षक और उसके छात्र की जो हमें सिखाती है कि शिक्षा सिर्फ ज्ञान देना नहीं बल्कि इंसानियत की बुनियाद रखना भी है।
यह कहानी है ममता की। एक ऐसी टीचर की जिसने एक गरीब बच्चे में अपने भविष्य की उम्मीद देखी और उसकी सेवा में अपना सब कुछ लगा दिया। दिल्ली के एक पौश इलाके में स्थित सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल अपनी शानदार इमारतों, वातानुकूलित कक्षाओं और महंगी फीस के लिए मशहूर था। यह एक ऐसा शिक्षण संस्थान था जहां सिर्फ समाज के उच्च वर्ग के बच्चे ही शिक्षा प्राप्त कर पाते थे।
हर सुबह स्कूल के गेट पर चमकती हुई महंगी गाड़ियां बच्चों को छोड़ने आती और शाम को वही गाड़ियां उन्हें वापस ले जाती थीं। स्कूल की लॉबी में संगमरमर का फर्श, दीवानों पर कलाकृतियां और हवा में परफ्यूम की धीमी सुगंध घुल जाती थी। यहां के छात्र अपने महंगे बैग और नए गैजेट्स के साथ अपने सामाजिक स्थिति का एक अदृश्य प्रदर्शन करते थे। स्कूल के हर कोने में पैसों की गर्मी और सुविधाओं का दिखावा साफ झलकता था।
लाइब्रेरी में आयातित किताबें, प्रयोगशाला में अत्याधुनिक उपकरण और खेल के मैदान पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं सब कुछ यह साबित करता था कि यह स्कूल सिर्फ पैसे वालों के लिए था। यहां के टीचर्स को भी बेहतरीन वेतन मिलता था। लेकिन उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे नियमों का कड़ाई से पालन करेंगे और स्कूल की प्रतिष्ठा को बनाए रखेंगे।
इसी स्कूल में ममता शर्मा पिछले 15 साल से गणित पढ़ा रही थी। उनकी उम्र लगभग 45 साल थी। उनके चेहरे पर समय की कुछ रेखाएं खींची थीं, लेकिन उनकी आंखों में एक अनोखी चमक और उनके व्यवहार में एक सहज दयालुता थी। ममता के लिए शिक्षण सिर्फ एक पेशा नहीं था बल्कि एक साधना थी। वे हर बच्चे को सिर्फ एक छात्र नहीं बल्कि एक भविष्य की उम्मीद मानती थीं। उनका मानना था कि ज्ञान एक ऐसी रोशनी है जिस पर किसी का एकाधिकार नहीं हो सकता और यह सभी तक पहुंचनी चाहिए। चाहे वो अमीर हो या गरीब।
लेकिन उनकी यह सोच अक्सर स्कूल के कठोर नियमों और प्रिंसिपल मिसेज रॉय के व्यवहार से टकराती थी। मिसेज रॉय एक सख्त और व्यावसायिक महिला थीं जिनके लिए सेंट जोसेफ कॉन्वेंट एक शिक्षा का मंदिर नहीं बल्कि एक मुनाफे वाला व्यवसाय था। स्कूल के हर नियम को वह व्यापारिक दृष्टि से देखती थीं और भावनाओं के लिए उनके मन में कोई जगह नहीं थी। उनका मानना था कि स्कूल को चलाना एक कठिन व्यापार है और इसमें कोई भी भावनात्मक कमजोरी बर्दाश्त नहीं की जा सकती।
एक दिन 10वीं कक्षा में एक नया छात्र आया जिसका नाम दीपक था। दीपक एक साधारण परिवार से था जिसके पिता एक सरकारी दफ्तर में चपरासी थे। उसका दाखिला एक सरकारी योजना के तहत हुआ था। लेकिन इसमें फीस में कोई छूट नहीं थी। दीपक के पिता ने किसी तरह से पहली तिमाही की फीस जमा कर दी थी। लेकिन उन्हें पता था कि आगे की फीस जमा करना उनके लिए लगभग असंभव होगा।
दीपक स्कूल के बाकी बच्चों से बिल्कुल अलग था। उसके कपड़े साफ जरूर थे लेकिन पुराने थे और बाकी छात्रों के महंगे यूनिफार्म के बीच फीके नजर आते थे। वो हमेशा सहमा हुआ और डरा हुआ रहता था। लंच ब्रेक में जहां बाकी बच्चे एक दूसरे के साथ हंसते खेलते या महंगे कैंटीन में जाते, दीपक अपना टिफिन लेकर कक्षा के एक कोने में अकेला बैठा रहता था। उसके टिफिन में अक्सर सिर्फ सूखी रोटी और अचार होता था जबकि बाकी बच्चे पिज्जा और बर्गर खाते थे।
ममता ने दीपक में एक अद्भुत प्रतिभा देखी। वे कक्षा में बहुत ही एकाग्र रहता और गणित के प्रति उसकी समझ इतनी गहरी थी कि वह कठिन से कठिन सवाल भी चुटकियों में हल कर देता था। एक दिन ममता ने कक्षा में एक बहुत ही जटिल बीजगणित का सवाल दिया जिसे कोई भी छात्र हल नहीं कर पाया। बाकी छात्रों ने हार मान ली और कहा कि यह सवाल बहुत मुश्किल है। ममता ने दीपक से पूछा, “दीपक, क्या तुम इसे हल करने की कोशिश करोगे?” दीपक धीरे से अपनी जगह से उठा और बोर्ड के पास गया।
उसके हाथ कांप रहे थे लेकिन उसके दिमाग में सवाल का हल साफ था। उसने बहुत ही कम समय में सवाल को हल कर दिया और सही उत्तर लिख दिया। पूरी कक्षा ने उसे तालियां बजाकर सराहा। ममता को दीपक पर गर्व हुआ। लेकिन ममता को महसूस होता था कि इतनी प्रतिभा के बावजूद भी दीपक के चेहरे पर हमेशा एक उदासी छाई रहती है।
एक दिन जब कक्षा खत्म हो गई और बाकी छात्र चले गए तो ममता ने देखा कि दीपक अभी भी अपनी जगह पर बैठा हुआ है। उसके हाथ में एक लिफाफा है जिसे वह बार-बार देख रहा है। ममता उसके पास गई और प्यार से पूछा, “दीपक, क्या हुआ? तुम इतने परेशान क्यों लग रहे हो?” दीपक ने अपनी नजरें झुका ली और उसकी आंखों में आंसू भर आए। उसने कहा, “मैम, मेरी फीस की आखिरी तारीख आज है। यह स्कूल का नोटिस है। मेरे पिताजी के पास इतने पैसे नहीं हैं।”
यह सुनकर ममता का दिल बैठ गया। वह जानती थी कि अगर फीस जमा नहीं हुई तो दीपक को स्कूल से निकाल दिया जाएगा और उसके माता-पिता का सपना टूट जाएगा। उन्होंने तुरंत प्रिंसिपल के पास जाने का फैसला किया। प्रिंसिपल मिसेज रॉय के ऑफिस में पहुंचकर ममता ने पूरी बात बताई। “मिसेज रॉय, दीपक एक बहुत ही प्रतिभाशाली छात्र है। उसका गणित में कोई सानी नहीं है। अगर हम उसकी फीस माफ कर दें तो वह हमारे स्कूल का नाम रोशन कर सकता है। उसके माता-पिता बहुत गरीब हैं।”
मिसेज रॉय ने अपने चश्मे को ठीक करते हुए अपनी ठंडी और कठोर आवाज में कहा, “ममता, स्कूल कोई चैरिटी नहीं है। यह एक व्यापार है। हम यहां ज्ञान बेचते हैं। मुफ्त में नहीं देते। अगर हमें हर गरीब बच्चे की फीस माफ करनी पड़ी तो यह स्कूल एक दिन बंद हो जाएगा। तुम जानती हो कि स्कूल को चलाने के लिए कितने खर्चे होते हैं?”
ममता ने उन्हें समझाने की कोशिश की। “मिसेज रॉय, यह सिर्फ एक बच्चे की बात नहीं है। यह हमारे स्कूल की साख की बात है। अगर हम ऐसे छात्रों का समर्थन नहीं करेंगे, तो हमारी शिक्षा का क्या मतलब है? हमें ऐसे हीरे को नहीं खोना चाहिए।” लेकिन मिसेज रॉय अपनी बात पर अड़ी रही। “दीपक की फीस माफ नहीं होगी। अगर वह कल तक फीस जमा नहीं करता है तो उसे स्कूल छोड़ना पड़ेगा। यह नियम है और नियम सभी के लिए समान होते हैं।”
ममता निराश होकर बाहर आ गई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वह जानती थी कि दीपक को बचाना है। उसी दिन शाम को उन्होंने अपने पति से बात की। उनके पति एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे और उनकी सैलरी भी सीमित थी। “मैं कल दीपक की फीस अपनी सैलरी से भर दूंगी,” ममता ने अपने पति से कहा। उनके पति ने कहा, “लेकिन ममता, हमारी भी अपनी जिम्मेदारियां हैं। हमारे बच्चों की पढ़ाई, घर का खर्चा, तुम्हें पता है कि हमारी कितनी मुश्किल से बचत हो पाती है। तुम हर बार किसी ना किसी के लिए अपनी सैलरी क्यों दे देती हो? हमें भी भविष्य के लिए सोचना है।”
ममता ने अपने पति को समझाया, “वह सिर्फ एक बच्चा नहीं है। वह एक सपना है। मुझे उसमें अपना भविष्य दिखता है। उसकी आंखों में मैंने वो भूख देखी है जो उसे आगे बढ़ने के लिए मजबूर करती है। अगर आज मैंने उसकी मदद नहीं की तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी। मुझे लगता है कि भगवान ने मुझे एक जरिया बनाया है।”
उनके पति ने ममता की आंखों में वह दृढ़ संकल्प देखा और वह कुछ नहीं कह पाए। उन्होंने चुपचाप सिर हिला दिया। अगले दिन ममता ने अपनी सैलरी से दीपक की पूरी साल की फीस भर दी। उन्होंने यह बात किसी को नहीं बताई। ना दीपक को ना ही प्रिंसिपल को। जब दीपक कक्षा में प्रवेश किया तो ममता ने मुस्कुराते हुए कहा, “दीपक, तुम्हारी फीस जमा हो गई है। अब सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।”
दीपक ने आश्चर्य से पूछा, “लेकिन मैम, किसने?” ममता ने उसे बीच में ही रोक दिया। “यह जरूरी नहीं है। बस तुम यह वादा करो कि तुम कभी हार नहीं मानोगे और अपनी पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दोगे।” दीपक ने अपनी आंखों में नमी लिए ममता की तरफ देखा और अपने मन में एक गहरा संकल्प लिया। वो जान गया था कि ममता मैम ने ही उसकी फीस भरी है।
उस दिन से दीपक ने अपनी पढ़ाई में अपनी पूरी जान लगा दी। वो हर परीक्षा में अव्वल आता, हर प्रतियोगिता में जीतता। वह जानता था कि यह सिर्फ उसकी मेहनत नहीं बल्कि ममता मैम के विश्वास का परिणाम है। धीरे-धीरे दीपक और ममता का रिश्ता एक शिक्षक और छात्र से बढ़कर एक मां और बेटे का रिश्ता बन गया। ममता हर कदम पर दीपक के साथ थी।
वो उसे अपनी किताबें देती। उसे अपने घर बुलाकर पढ़ाती और उसे हर मुश्किल में सहारा देती। वो लंच ब्रेक में उसके साथ बैठती और उससे उसके परिवार के बारे में पूछती। दीपक के पिता ममता के इस व्यवहार से बहुत प्रभावित थे। वह कई बार ममता से मिलने आए और उनका धन्यवाद करने की कोशिश की। लेकिन ममता ने हमेशा नम्रता से कहा, “अंकल, यह तो मेरा फर्ज है। आप बस दीपक की पढ़ाई में उसकी मदद कीजिए।”
जब दीपक ने 12वीं की परीक्षा में स्कूल में टॉप किया तो प्रिंसिपल मिसेज रॉय ने सबके सामने उसे सम्मानित किया। लेकिन ममता जानती थी कि असली सम्मान तो दीपक की मेहनत और उनके विश्वास का है। दीपक का सपना था एक काबिल वकील बनने का। लेकिन फिर से गरीबी उसके रास्ते में आ गई। लॉ स्कूल की फीस इतनी ज्यादा थी कि उसके पिता कभी भी उसे नहीं भर सकते थे।
जब ममता को यह पता चला तो उन्होंने फिर से उसकी मदद करने का फैसला किया। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी की बचत, अपने सोने के गहने सब कुछ बेच दिए और दीपक की लॉ स्कूल की फीस भर दी। उनके पति ने इस बार बिना कोई सवाल किए उनका साथ दिया। दीपक ने अपनी आंखों में आंसू लिए ममता की तरफ देखा और कहा, “मैम, मैं आपका यह एहसान कभी नहीं चुका पाऊंगा।”
ममता ने उसे गले लगाया और कहा, “यह एहसान नहीं है। यह तो मेरा प्यार है। बस तुम यह वादा करो कि जब तुम एक बड़े वकील बन जाओगे, तो तुम कभी किसी गरीब और बेसहारा इंसान को निराश नहीं करोगे। तुम हमेशा सच का साथ दोगे।” दीपक ने अपनी मैम से वादा किया और उस दिन से वह एक नए जोश के साथ अपनी पढ़ाई में जुट गया।
साल बीतते गए। ममता शर्मा बूढ़ी हो चुकी थी। उनके बाल सफेद हो गए थे और उनके चेहरे पर झुर्रियां आ गई थीं। उनके पति का निधन हो चुका था और वे अब अपने उसी छोटे से घर में अकेली रहती थीं। उनके बच्चे अब बड़े हो चुके थे और विदेशों में अपनी जिंदगी बसा चुके थे। उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता था। लेकिन उनके चेहरे पर आज भी वही शांत मुस्कान थी।
उन्हें दीपक की याद आती थी, लेकिन उन्हें पता था कि वे अपनी जिंदगी में सफल हो गया होगा। उधर दीपक एक बहुत ही काबिल और मशहूर वकील बन चुका था। उसका नाम पूरे देश में जाना जाता था। उसने एक बहुत बड़ी लॉ फर्म खोल ली थी और वे गरीबों और बेसहारा लोगों की कानूनी लड़ाई मुफ्त में लड़ता था।
उसने अपने जीवन में बहुत पैसा कमाया था लेकिन वे कभी अपनी जड़ों को नहीं भूला। वे जानता था कि आज वह जो कुछ भी है वह सिर्फ ममता मैम की वजह से है। एक दिन दीपक ने अपने मन में एक गहरा संकल्प लिया। उसने फैसला किया कि वह अपनी ममता मैम को ढूंढेगा और उन्हें उनके सारे एहसानों का बदला देगा।
उसने अपने स्टाफ को अपनी मैम को ढूंढने का काम सौंपा। कई महीनों की तलाश के बाद उन्हें ममता का पता मिला। दीपक तुरंत ममता से मिलने के लिए दिल्ली के लिए रवाना हो गया। ममता अपने घर में अकेले बैठी थी। जब उनके घर की घंटी बजी। ममता ने धीरे-धीरे दरवाजा खोला। सामने एक लंबा चौड़ा और सूट बूट पहना हुआ आदमी खड़ा था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी।
“मैम, आप मुझे पहचानती हैं?” उस आदमी ने पूछा। ममता ने अपनी जुली आंखों से उसे पहचानने की कोशिश की। “मुझे लगता है कि मैंने तुम्हें कहीं देखा है।” उस आदमी की आंखों में आंसू आ गए। “मैम, मैं दीपक हूं। आपका वही छात्र जिसे आपने अपनी सैलरी से फीस भर के पढ़ाया था।”
यह सुनकर ममता का दिल धड़कना बंद हो गया। दीपक वह सिर्फ इतना ही कह पाई। दीपक ने ममता के पैरों पर झुककर उन्हें छुआ और रोने लगा। “मैम, आज मैं जो कुछ भी हूं वह सिर्फ आपकी वजह से हूं। आपने मुझे सिर्फ पढ़ाया ही नहीं बल्कि जिंदगी दी।” ममता ने उसे गले लगाया और कहा, “तुम कितने बड़े हो गए हो। तुम एक बहुत बड़े वकील बन गए हो। मुझे तुम पर बहुत गर्व है।”
दीपक ने ममता को अपने साथ ले जाकर सोफे पर बैठाया। उसने अपनी पुरानी तस्वीर दिखाई जिसमें वे अपने पुराने स्कूल की यूनिफार्म में थे। ममता की आंखों में आंसू आ गए। “मैम, अब से आप मेरे साथ रहेंगी। आप मेरे लिए सिर्फ एक टीचर नहीं बल्कि मेरी मां हैं।” ममता की आंखों से आंसू नहीं रुक रहे थे। वे अपने बेटे को देखकर खुश थीं। लेकिन वे भी जानती थीं कि अब वे बूढ़ी हो चुकी हैं और किसी के लिए बोझ नहीं बनना चाहतीं।
“नहीं बेटा, मैं यहां अकेली खुश हूं। मेरा जीवन अब खत्म होने वाला है। तुम अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो।” दीपक ने ममता का हाथ पकड़ा और कहा, “मैम, आप मेरे लिए बोझ नहीं हैं। आप तो मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी दौलत हैं। आपने मेरे लिए क्या कुछ नहीं किया है। आपने अपनी सैलरी से मेरी फीस भरी। आपने अपने गहने बेचकर मुझे लॉ स्कूल में दाखिला दिलाया। आज अगर मैं इस मुकाम पर हूं तो वह सिर्फ आपकी वजह से है।”
ममता ने अपनी आंखों से बहते आंसू पोंछते हुए कहा, “तुम्हारी यही सफलता मेरे लिए सबसे बड़ा इनाम है।” दीपक ने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं मैम, असली इनाम तो अभी बाकी है।” अगले ही दिन दीपक ममता को अपने साथ लेकर उनके पुराने स्कूल सेंट जोसेफ कॉन्वेंट में पहुंचा। स्कूल में आज भी वही प्रिंसिपल मिसेज रॉय थीं जो अब और भी बूढ़ी हो चुकी थीं।
जब उन्होंने दीपक को देखा तो वे हैरान रह गईं। “दीपक, तुम यहां क्या कर रहे हो?” दीपक ने मुस्कुराते हुए कहा, “मिसेज रॉय, मैं यहां अपनी मां को लेने आया हूं और हां, अब से मैं आपके स्कूल की कानूनी लड़ाई लडूंगा।” मिसेज रॉय ने हैरान होकर पूछा, “तुम्हारी मां?” दीपक ने ममता की ओर इशारा करते हुए कहा, “हां, यह है मेरी मां ममता मैम। इन्होंने मेरी फीस अपनी सैलरी से भरी थी जब आपने मुझे स्कूल से निकालने का फैसला किया था। मैं आज आपके स्कूल को एक कानूनी नोटिस देने आया हूं। जिसके अनुसार आपके स्कूल की आधी कमाई एक ऐसे ट्रस्ट में जाएगी जो गरीब और बेसहारा बच्चों की शिक्षा का खर्चा उठाएगा। क्योंकि मेरी मां ने मुझे सिखाया है कि शिक्षा सिर्फ अमीरों के लिए नहीं बल्कि सभी के लिए है।”
यह सुनकर स्कूल के सारे टीचर्स और स्टूडेंट्स हैरान रह गए। ममता की आंखों में खुशी के आंसू थे। वे जानती थीं कि आज उनका सपना पूरा हो गया है। दीपक ने ममता को अपने साथ लिया और कहा, “अब हम अपने घर चलेंगे, मां।” ममता ने दीपक को गले लगाया और कहा, “तुमने मुझे एक बार फिर से जिंदगी दी है।”
उस दिन ममता एक साधारण टीचर से एक महान मां बन गई और दीपक एक साधारण छात्र से एक ऐसा इंसान बन गया जिसने अपनी मां के सपनों को पूरा किया। तो दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची शिक्षा सिर्फ किताबी ज्ञान तक ही सीमित नहीं होती बल्कि इंसानियत की नींव पर खड़ी होती है। अगर आप भी मानते हैं कि ममता मैम ने जो किया वह सही था तो इस वीडियो को लाइक करें। कमेंट में बताएं कि आपको इस कहानी का कौन सा हिस्सा सबसे अच्छा लगा। इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि यह कहानी हर दिल तक पहुंचे और ऐसी ही प्रेरणादायक कहानियों के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना ना भूलें।
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