रेलवे स्टेशन की गुड़िया: एक बिछड़ी बेटी की कहानी
लखनऊ के भीड़भाड़ वाले रेलवे स्टेशन पर शाम का वक्त था। प्लेटफार्म नंबर तीन पर एक छोटी सी बच्ची, फटे पुराने कपड़े पहने, नंगे पैर, और धूल से सना चेहरा लिए बैठी थी। उसके हाथों में जूते पॉलिश करने का डिब्बा और ब्रश था। आंखों में मासूमियत, लेकिन पैरों में टूटी-फूटी चप्पल। वह हर आने-जाने वाले से कहती, “साहब, जूते पॉलिश करा लो, सिर्फ ₹5 लगेंगे।” लोग उसे देखते, कुछ दुत्कार देते, कुछ बिना सुने आगे बढ़ जाते। मगर बच्ची हर ठोकर खाकर भी मुस्कुराने की कोशिश करती थी।
उसका नाम था सोनू। स्टेशन ही उसका घर था, फर्श उसका बिस्तर और आसमान उसकी छत। सोनू सुबह से रात तक मेहनत करती, कभी-कभी पूरे दिन में सिर्फ 5 या ₹10 ही कमा पाती। उन्हीं पैसों से वह स्टेशन के बाहर वाले ठेले से बासी ब्रेड या ठंडा समोसा खरीदकर खा लेती। उसके लिए यही बहुत था, क्योंकि उसके पास कोई मां नहीं थी जो खाना बना सके, कोई बाप नहीं था जो उसकी देखभाल कर सके।
जब कोई पूछता, “बेटी तेरा घर कहां है?” तो सोनू बस इतना कहती, “मुझे याद नहीं। बस इतना याद है कि मैं बहुत छोटी थी और रोते-रोते यहां आ गई थी।” हर रात जब ट्रेनें खाली हो जातीं, स्टेशन सुनसान हो जाता, सोनू किसी कोने में सिकुड़ कर बैठ जाती। आसमान की तरफ देखकर फुसफुसाती, “मां-पापा, आप कहां हो? मैं अकेली हूं।” लेकिन उस मासूम आवाज़ का जवाब सिर्फ सीटी बजाती ट्रेनें देती थीं।
इसी शहर में करोड़पति अरुण मल्होत्रा का बंगला था। अरुण अपने बंगले में बैठे थे, हाथ में एक पुरानी तस्वीर थी — एक नन्ही बच्ची की तस्वीर। वह तस्वीर उनकी खोई हुई बेटी अनाया की थी। सालों पहले एक बरसात की रात अरुण और उनकी पत्नी संध्या अपनी बेटी को हमेशा के लिए खो बैठे थे। अरुण के पास दौलत थी, शोहरत थी, लेकिन दिल खाली था। हर रात वह भगवान से यही दुआ मांगते, “हे भगवान, मेरी बेटी को वापस लौटा दो।”
एक दिन अरुण किसी मीटिंग के सिलसिले में स्टेशन पहुंचे। जैसे ही वह प्लेटफार्म पर आए, उनकी नजर उस छोटी बच्ची पर पड़ी। धूल से सना चेहरा, बिखरे बाल, फटे कपड़े, लेकिन आंखों में कुछ ऐसा था जिसने उनका दिल रोक दिया। बच्ची उनकी ओर बढ़ी और मासूमियत से बोली, “साहब, जूते पॉलिश करा लो, सिर्फ ₹5 लगेंगे।” अरुण पहले तो चौंके, फिर झुककर उसके चेहरे को गौर से देखने लगे। उनके दिल ने जैसे कहा — यह आंखें मैंने कहीं देखी हैं। यह मासूमियत बिल्कुल अनाया जैसी है।
अरुण ने उससे पूछा, “बेटी, तू यह काम क्यों कर रही है? तेरे मां-बाप कहां हैं?” सोनू ने पल भर को उसकी आंखों में देखा, फिर धीरे से बोली, “मुझे नहीं पता साहब, मैं जब से याद कर सकती हूं यहीं हूं। स्टेशन ही मेरा घर है।” अरुण का दिल जैसे किसी ने मुट्ठी में भींच लिया। उन्होंने अपनी जेब से कुछ नोट निकालकर सोनू के हाथ में रख दिए, “यह रख ले बेटी और आज आराम कर ले।” सोनू ने पैसे लौटा दिए, “नहीं साहब, मैं भीख नहीं लेती। अगर पैसे देने हैं तो जूते पॉलिश करा लो। मेहनत का पैसा चाहिए, यूं ही नहीं।”
अरुण सन्न रह गए। इतनी छोटी बच्ची और इतनी बड़ी बातें। वह देर तक उसे देखते रहे। उनके मन में सवाल उठ रहे थे — क्या यह मेरी बेटी हो सकती है? नहीं, यह कैसे मुमकिन है? लेकिन दिल की गहराई में कहीं उम्मीद की एक किरण जाग चुकी थी। उन्होंने अपने सहायक से कहा, “इस बच्ची पर नजर रखना। मुझे इसके बारे में सब जानना है।”
उस रात अरुण अपने कमरे में देर तक तस्वीरें देखते रहे। अनाया की बचपन की तस्वीरें सामने थीं — गोलगोल आंखें, मासूम मुस्कान। उन्हें याद आया स्टेशन पर मिली बच्ची की आंखें। नहीं, यह इत्तेफाक नहीं हो सकता। अरुण का दिल मानने को तैयार नहीं था कि यह बच्ची कोई अजनबी है।
दूसरी ओर सोनू अपने छोटे से कोने में बैठी थी। पैसे गिने — पूरे दिन में सिर्फ ₹30 बने थे। उसमें से आधे उसने खाने पर खर्च कर दिए, बाकी पैसे एक पुराने डिब्बे में रख दिए जिसमें वह रोज थोड़ा-थोड़ा जमा करती थी। उसका सपना था, एक दिन मैं पढ़ाई करूंगी और कोई बड़ा काम करूंगी। लेकिन उसे यह कहां पता था कि उसकी असली पहचान उससे कहीं बड़ी है।
कुछ दिनों बाद अरुण फिर से स्टेशन पर आए। वह बच्ची फिर वहीं कर रही थी — लोगों के जूते चमका रही थी। इस बार अरुण ने अपने जूते आगे बढ़ा दिए। सोनू झुककर उन्हें चमकाने लगी। अरुण उसे गौर से देख रहे थे। हर बार जब सोनू झुककर ब्रश चलाती, उसके बालों की लटें चेहरे पर गिरतीं। वो नजारा अरुण के दिल को चीर देता। उन्होंने धीरे से पूछा, “बेटी, तेरा नाम क्या है?”
सोनू ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, “सोनू।” अरुण ठिठक गए। झ सोनू — अनाया को भी हम प्यार से यही बुलाते थे। उनकी आंखें भर आईं। दिल की धड़कन तेज हो गई। उन्होंने कांपते होठों से पूछा, “बेटा, तुम्हारा नाम सोनू है, किसने रखा यह नाम?” बच्ची ने मासूमियत से मुस्कुरा कर जवाब दिया, “पता नहीं साहब, जब से होश संभाला है सब मुझे सोनू ही कहते हैं। किसी ने असली नाम कभी नहीं बताया।”
यह सुनते ही अरुण के पैरों तले जमीन खिसक गई। उनके कानों में मानो किसी ने बम फोड़ दिया हो। वो उसी पल अतीत की गहराई में खो गए — सालों पहले की यादें ताजा हो गईं। अरुण और संध्या के घर खुशियां ही खुशियां थीं। अरुण उस वक्त अपनी मेहनत से करोड़ों की कंपनी खड़ी कर रहे थे। घर में उनकी पांच साल की बेटी अनाया सबकी जान थी। उसकी मासूम हंसी, तुतलाती बातें पूरे घर को रोशन कर देती थीं।
एक शाम अरुण बिजनेस मीटिंग के लिए बाहर गए थे। संध्या अनाया को लेकर मंदिर गई थी। मंदिर के बाहर भीड़भाड़ थी। संध्या ने पलट कर देखा — अनाया उसके बगल में थी। लेकिन अगले ही पल वह कहीं गायब हो गई। संध्या चीख-चीखकर रोने लगी। लोग इकट्ठा हो गए। पुलिस को बुलाया गया, लेकिन बच्ची का कोई सुराग नहीं मिला। उस हादसे ने अरुण और संध्या की दुनिया उजाड़ दी। अरुण को लगा जैसे सारी दौलत, सारी शान बेकार हो गई। वह रोज अपनी बेटी को खोजने की कसम खाते रहे। पुलिस ने कहा शायद बच्ची का अपहरण हो गया। लेकिन सालों तक खोजने के बाद भी अनाया का कोई पता नहीं चला। धीरे-धीरे जिंदगी आगे बढ़ी, पर उस हादसे ने उनके रिश्ते में भी दरार डाल दी। संध्या को लगता था कि अरुण ने सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया, अरुण को लगता था कि भगवान ने अन्याय किया। इसी कशमकश में दोनों अलग हो गए।
अरुण की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। उन्होंने कांपते हाथों से बच्ची का चेहरा पकड़ लिया, “बेटा, क्या तुम्हारे पास कोई पुरानी तस्वीर है? कोई याद, कोई निशानी?” सोनू ने धीरे से सिर झुका लिया, “साहब, मेरे पास कुछ नहीं है, बस यह पायल है। यह मेरे पैरों में बचपन से है, किसी ने कभी उतारी नहीं।” अरुण ने तुरंत उसके पैर देखे। जैसे ही नजर पड़ी — वो वही चांदी की पायल थी जो उन्होंने अपनी बेटी अनाया के पहले जन्मदिन पर खुद बनवाकर पहनाई थी। उनकी सांसें थम गईं, आंखें चौड़ी हो गईं। दिल जैसे सीने से बाहर निकलने को था, “हे भगवान, यह मेरी अनाया है!”
अरुण फूट-फूटकर रोने लगे। बच्ची हैरानी से उन्हें देख रही थी। अरुण जमीन पर घुटनों के बल बैठ गए, आंसुओं से उनका चेहरा भीग चुका था। कांपती आवाज में कहा, “बेटा, तू मेरी अनाया है। मेरी खोई हुई गुड़िया। देख, यह पायल तेरे पैरों में मैंने खुद पहनाई थी। तू मेरी बेटी है बेटा।” बच्ची की मासूम आंखों में उलझन थी। वह धीरे-धीरे पीछे हट गई, “नहीं साहब, आप गलती कर रहे हो। मैं अनाया नहीं हूं। मैं तो बस सोनू हूं। रेल के डिब्बों में जूते चमका कर ही पेट भरती हूं। मेरी तो कोई मां-बाप भी नहीं है।”
यह सुनते ही अरुण का दिल और भी टूट गया। उन्होंने हाथ जोड़कर कहा, “बेटा, तू मुझे पहचान नहीं रही, लेकिन मैं तुझे अपनी रग-रग से पहचानता हूं। तेरे चेहरे की मासूमियत मेरी आंखों में बसी हुई है।” भीड़ धीरे-धीरे इकट्ठा होने लगी। लोग तमाशा देखने लगे। कोई कह रहा था, “अरे, यह तो करोड़पति साहब हैं और रो रहे हैं एक जूते साफ करने वाली बच्ची के लिए।” कोई कह रहा था, “शायद सच में यह उनकी खोई हुई बेटी हो।”
लेकिन बच्ची डर गई। उसने हाथ छुड़ाया और कांपती आवाज में बोली, “नहीं, मुझे जाने दो। आप भी सब जैसे हो। पहले सब प्यार जताते हैं, फिर मारते-पीटते हैं। मुझे अपने हाल पर छोड़ दो।” यह सुनकर अरुण के दिल पर किसी ने हजारों छुरियां चलाईं। उनकी आंखें सुन्न हो गईं। उन्होंने बच्ची का चेहरा थामने की कोशिश की, मगर बच्ची तेजी से भागकर स्टेशन की भीड़ में गुम हो गई। अरुण जमीन पर बैठ गए, उनके होठों से बस एक ही नाम निकल रहा था — “अनाया, अनाया।”
उस रात अरुण चैन की नींद नहीं सो पाए। बार-बार वही चेहरा उनकी आंखों में घूमता रहा — वो मासूम मुस्कान, वो पायल, वो नाम सोनू। उनके मन में कोई शक नहीं रहा — वो बच्ची मेरी अनाया ही है। अब चाहे पूरी दुनिया मुझे पागल कहे, लेकिन मैं उसे वापस घर लाकर रहूंगा।
सुबह होते ही अरुण स्टेशन की ओर निकल पड़े। रात भर की बेचैनी ने उनकी आंखों को सूजा दिया था, मगर दिल में एक अजीब सी ताकत थी। भीड़भाड़ वाले प्लेटफार्म पर चारों तरफ नजर दौड़ाते रहे — कहां गई वो? कुछ देर बाद उन्होंने देखा, वही बच्ची कोने में बैठी थी। अरुण की आंखों में चमक आ गई। वो दौड़कर उसके पास पहुंचे, “अनाया बेटा!” बच्ची ने झटके से सिर उठाया, चेहरे पर डर और गुस्सा दोनों थे, “फिर आप आ गए? क्यों पीछा कर रहे हो मेरा? मैंने कहा ना, मैं आपकी बेटी नहीं हूं।”
अरुण ने उसके सामने हाथ जोड़ लिए, “बेटा, एक बार मेरी बात मान ले। अगर तू मेरी अनाया नहीं निकली तो मैं कसम खाता हूं तुझे दोबारा परेशान नहीं करूंगा। बस मुझे सच जानने दे।” बच्ची चुप हो गई। उसकी मासूम आंखों में एक अजीब सी थकान थी। “सच कौन सा सच? मुझे तो अपना असली नाम तक नहीं पता। जिन लोगों ने मुझे पाला, उन्होंने बस यही कहा कि मुझे रेलवे प्लेटफार्म पर अकेला पड़ा पाया था। शायद मेरे मां-बाप मुझे छोड़कर चले गए।”
यह सुनकर अरुण की आंखों में फिर आंसू आ गए, “नहीं बेटा, तेरे मां-बाप तुझसे बहुत प्यार करते थे। तुझे कभी छोड़ नहीं सकते थे। तू गुम हो गई थी और आज तक मैं तुझे ढूंढ रहा हूं।” भीड़ फिर से इकट्ठा होने लगी। लोग फुसफुसा रहे थे, “यह करोड़पति तो सच में पागल हो गया लगता है।” नहीं भाई, देख उसकी आंखें। कोई बाप झूठे आंसू ऐसे नहीं बहाता।
अरुण ने बच्ची से धीरे से कहा, “अगर तू चाहती है तो हम टेस्ट करवा सकते हैं। डीएनए टेस्ट से सब साबित हो जाएगा और अगर तू मेरी बेटी नहीं निकली तो मैं तुझसे कभी कुछ नहीं कहूंगा। लेकिन अगर तू मेरी अनाया निकली तो मैं तुझे इस नरक से निकालकर अपने घर ले जाऊंगा।” बच्ची के दिल में हलचल मच गई। वह चुपचाप अरुण की तरफ देखती रही। उसने जिंदगी भर किसी को अपना कहने का सुख नहीं पाया था। पर उसके मन में डर भी था — कहीं यह आदमी झूठा निकला तो कहीं उसे धोखा देकर बेच न दे।
वह धीरे से बोली, “अगर मैं आपके साथ गई और आप झूठे निकले तो मैं फिर कहां जाऊंगी?” अरुण ने उसका चेहरा थामकर कहा, “बेटा, मैं तुझे भगवान की कसम खाकर कहता हूं, मैं तुझे कभी धोखा नहीं दूंगा। अगर तू मेरी बेटी नहीं भी निकली, तो भी मैं तुझे अपनी बेटी बनाकर रखूंगा।” यह सुनते ही बच्ची की आंखें भर आईं। उसने जिंदगी में पहली बार किसी की आवाज में सच्चाई और दर्द महसूस किया। कांपती आवाज में कहा, “साहब, मुझे नहीं पता कि मैं सच में आपकी बेटी हूं या नहीं। पर पहली बार किसी ने मुझे अपनेपन से देखा है।”
अरुण ने उसका हाथ थाम लिया, “अनाया, चाहे तू मानो या ना मानो, पर मेरा दिल कह रहा है कि तू ही मेरी खोई हुई बेटी है। चल मेरे साथ। सच्चाई का पता हम दोनों मिलकर लगाएंगे।” बच्ची धीरे-धीरे सिर झुका कर मान गई। अरुण उसे अपनी कार तक ले गए। भीड़ अब भी खड़ी थी, कुछ लोग दुआएं दे रहे थे, कुछ शक की निगाह से देख रहे थे।
कार में बैठते ही बच्ची खिड़की से बाहर देखने लगी। उसकी आंखों में डर भी था और एक अजीब सी उम्मीद भी। रास्ते भर अरुण उसे देखते रहे, उनकी आंखों में सिर्फ एक ही ख्वाहिश थी — जल्द ही यह साबित हो जाए कि वह सच में उनकी अनाया है।
जैसे ही कार अस्पताल के गेट पर रुकी, बच्ची ने धीमे से अरुण का हाथ पकड़ लिया, “अगर मैं आपकी बेटी निकली तो आप मुझे कभी छोड़ोगे तो नहीं?” अरुण की आंखें भर आईं। उन्होंने उसका माथा चूमकर कहा, “बेटा, अगर तू मेरी अनाया निकली तो मैं तुझे कभी अपनी नजरों से दूर नहीं जाने दूंगा। और अगर तू मेरी अनाया नहीं भी निकली, तब भी तुझे बेटी बनाकर रखूंगा।”
बच्ची की आंखों से फिर से आंसू छलक पड़े। वह पहली बार दिल से मुस्कुराई। अरुण ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “अब जो भी होगा, हम साथ मिलकर झेलेंगे।” अस्पताल में टेस्ट के लिए सैंपल दिए गए। अरुण का दिल धड़कनों से बाहर निकल रहा था। घड़ी की हर सुई उनके लिए सदियों जैसी लग रही थी। आखिरकार रिपोर्ट हाथ में आई। डॉक्टर ने फाइल खोली, मुस्कुराया और कहा, “मिस्टर अरुण, बधाई हो। यह बच्ची सचमुच आपकी ही बेटी है।”
यह सुनते ही अरुण की आंखों से झरझर आंसू बह निकले। उन्होंने बच्ची को कसकर गले से लगा लिया, “अनाया, मेरी गुड़िया, तू सच में मेरी बेटी है!” बच्ची भी रोते हुए उनके सीने से लिपट गई, “पापा, सच में मेरे पापा!”
उसी समय अरुण ने सबसे पहला काम किया — संध्या को फोन किया। सालों की नाराजगी और दूरी सब भूलकर बस यही कहा, “संध्या, अनाया मिल गई है। हमारी बेटी मिल गई।” फोन पर सन्नाटा छा गया, फिर सिर्फ रोने की आवाज आई। संध्या की आंखों से बरसों का दर्द पिघल कर बह निकला।
कुछ ही देर में संध्या अस्पताल पहुंच गई। जैसे ही उसने अनाया को देखा, वो पागलों की तरह दौड़ पड़ी, “अनाया, मेरी बच्ची!” मां-बेटी का गले मिलना देखकर पूरा अस्पताल भावुक हो उठा। अनाया अपनी मां की गोद में सिसक-सिसक कर रो रही थी, “मम्मा, मुझे लगा आप मुझे छोड़ गई थी।” संध्या ने रोते हुए उसके माथे पर चुंबन दिया, “नहीं गुड़िया, हम तो तुझे हर दिन ढूंढ रहे थे। जिंदगी ने हमें जुदा कर दिया था, लेकिन भगवान ने हमें फिर से मिला दिया।”
परिवार का पुनर्मिलन — अरुण, संध्या और अनाया तीनों बरसों बाद एक साथ खड़े थे। लोगों की भीड़ ताली बजा रही थी, कोई दुआएं दे रहा था। अरुण ने आकाश की ओर देखा और धीमे से कहा, “धन्यवाद भगवान, तूने हमें फिर से एक कर दिया।” अनाया ने दोनों का हाथ कसकर पकड़ लिया, “अब हम कभी अलग नहीं होंगे। है ना पापा?” अरुण और संध्या दोनों ने एक साथ कहा, “कभी नहीं बेटा, कभी नहीं।”
कभी-कभी जिंदगी हमें परखती है, बिछड़ाकर आंसू देती है। पर सच्चा प्यार और अपनेपन का रिश्ता कितना भी टूटा हो, वक्त के साथ फिर जुड़ जाता है। अरुण, संध्या और अनाया की कहानी यही साबित करती है कि खून के रिश्ते और दिल का प्यार किसी भी दूरी, किसी भी गलतफहमी से बड़े होते हैं।
दोस्तों, अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो, तो वीडियो को लाइक कर दीजिए और आप हमारी वीडियो को भारत के किस कोने से देख रहे हो, यह कमेंट में जरूर बताना।
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