हर माँ के लिए कसम
कहते हैं ना, जब किसी माँ की दुआ लगती है तो बेटा आसमान छू लेता है। लेकिन जब वही माँ तन्हा और बेबस होकर आँसू बहाती है, तो ज़मीन तक हिल जाती है।
दिल्ली का एक बड़ा सरकारी अस्पताल। सुबह का वक्त था। भीड़ से भरा गलियारा, मरीजों की लंबी कतार, डॉक्टरों की भागदौड़ और चारों तरफ लोगों की चिल्लाहट। इसी भीड़ में, एक 75 साल की बुजुर्ग माँ स्ट्रेचर पर लेटी थी। चेहरे पर झुर्रियाँ, बाल सफेद, शरीर कमजोर और काँपता हुआ। हाथ में बस एक पुराना कपड़े का थैला।
स्ट्रेचर को धकेल रहे थे दो वार्ड बॉय और एक नर्स। उन्हें उस माँ की हालत की परवाह नहीं थी। मोबाइल पर बातें करते हुए वे स्ट्रेचर को इतनी तेज़ी से धकेल रहे थे कि वह किसी टूटी-फूटी गाड़ी की तरह उछल रहा था।
माँ ने काँपती आवाज़ में कहा,
“बेटा, ज़रा धीरे… दर्द हो रहा है।”
नर्स ने आँखें तरेरकर झिड़क दिया,
“चुपचाप लेटी रह। यहाँ रोज़ सैकड़ों आते हैं। कोई तेरी खास नहीं है।”
भीड़ देख रही थी, पर कोई आगे बढ़कर बोलने की हिम्मत नहीं कर पाया।
अचानक स्ट्रेचर का पहिया अटक गया और ज़ोर का झटका लगा। बुजुर्ग माँ धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ीं। उनकी पीठ से दर्द भरी चीख निकली।
“मुझे उठाओ बेटा… कोई तो उठाओ।”
वह हाथ जोड़ती रहीं, लेकिन नर्स और वार्ड बॉय उल्टा उन पर चिल्लाने लगे—
“नाटक मत कर! तेरी उम्र के लोग ऐसे ही परेशान करते हैं। खुद गिरी और अब इल्ज़ाम हम पर लगा रही है।”
भीड़ में अफसोस भरी नज़रें थीं, पर कोई पास नहीं आया। बुजुर्ग माँ वहीं फर्श पर काँपती रहीं। आँखों से आँसू बहते रहे। उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा,
“काश मेरा बेटा यहाँ होता…”
बेटे का आगमन
ठीक उसी समय अस्पताल के गेट पर अचानक सायरन गूंजा। चार–पाँच काली गाड़ियाँ तेजी से अंदर घुसीं। हथियारबंद सुरक्षाकर्मी उतरे। भीड़ सहम गई।
कुछ ही पल बाद एक लंबा चौड़ा शख्स तेज़ कदमों से गलियारे में दाखिल हुआ। सफेद शर्ट, गहरी पैंट और आँखों में आग। उसके साथ बड़े अधिकारी और पुलिस अफसर भी थे।
जैसे ही उसने अपनी माँ को फर्श पर गिरा देखा, उसकी साँसें थम गईं। वह भागकर माँ को उठाता है, काँपती आवाज़ में बोलता है—
“माँ! यह किसने किया? किसने तुम्हें गिराया?”
माँ ने बेटे का चेहरा देखा, आँसू भरी आँखों से हल्की मुस्कान दी और कहा—
“तू आ गया ना… अब सब ठीक है।”
बेटे की आँखों से आँसू छलक पड़े। उसकी आवाज़ पूरे अस्पताल में गूँज उठी—
“यह मेरी माँ है। लेकिन आज जो हुआ, वह सिर्फ मेरी माँ के साथ नहीं, हर गरीब और बेबस माँ के साथ होता है इस अस्पताल में। और अब यह बंद होगा, आज और अभी से।”
पहचान
भीड़ सन्न थी। लोग फुसफुसाने लगे—
“अरे, यह तो DIG राजीव वर्मा हैं… सख्ती और ईमानदारी के लिए पूरे राज्य में मशहूर!”
राजीव ने धीरे से अपनी माँ को उठाकर सुरक्षाकर्मी से कहा—
“व्हीलचेयर लाओ। मेरी माँ को इज्ज़त से बैठाओ।”
माँ को बैठाकर राजीव उनके सामने घुटनों पर बैठ गया। हाथ थामकर बोला—
“माँ, मैं कसम खाता हूँ, इस अस्पताल का हाल बदल दूँगा। किसी माँ को अब तुम्हारी तरह तड़पना नहीं पड़ेगा।”
दोषियों से सामना
राजीव खड़ा हुआ। उसकी आवाज़ और सख्त हो गई।
“वार्ड बॉय और नर्स कहाँ हैं, जिन्होंने मेरी माँ को गिराया? सामने आओ!”
दोनों काँपते हुए आगे आए। राजीव की आँखें उनमें धँस गईं।
“तुम लोग मरीजों को इंसान नहीं समझते? याद रखो, आज यह मेरी माँ थी। कल किसी और की माँ होगी। जिसे तुमने धक्का दिया, वह सिर्फ एक औरत नहीं, हर माँ की इज्ज़त है।”
नर्स बुदबुदाई—
“साहब, गलती हो गई… माफी मांगते हैं।”
राजीव गरजा—
“यह गलती नहीं, अपराध है। और अपराध का हिसाब अभी होगा।”
उसने आदेश दिया—
“इन दोनों को तुरंत सस्पेंड करो। इनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज होगी।”
अस्पताल का मैनेजर
अस्पताल का मैनेजर दौड़ता हुआ आया, पसीने से तरबतर।
“साहब, माफ कीजिए। हम तुरंत सुधार करेंगे।”
राजीव ने उसे घूरकर कहा—
“सुधार अब नहीं, अभी होगा। हर गरीब, हर बुजुर्ग को यहाँ इज्ज़त और इलाज मिलेगा। वरना यह अस्पताल ताला बंद कर दूँगा।”
भीड़ में तालियाँ गूँज उठीं।
माँ की नसीहत
माँ ने बेटे का हाथ दबाया। कांपती आवाज़ में बोलीं—
“बेटा, अब बस गुस्सा छोड़ दे। तेरा गुस्सा देखकर मुझे डर लगता है।”
राजीव झुककर पैर छूने लगा—
“माँ, यह गुस्सा तेरे लिए नहीं है। यह गुस्सा उस व्यवस्था के लिए है जिसने तुझे गिराया। अब यह गुस्सा पूरे सिस्टम को बदल देगा।”
मीडिया की गूंज
इतने में बाहर कैमरों की फ्लैश चमकने लगी। मीडिया अंदर आ गई। रिपोर्टर माइक बढ़ाकर बोले—
“यह वही अस्पताल है, जहाँ DIG साहब की माँ को स्ट्रेचर से गिराया गया। देखिए कैसा शर्मनाक नजारा!”
कैमरों ने सब कैद कर लिया। पूरा देश लाइव देख रहा था।
भीड़ में खड़े बुजुर्ग ने कहा—
“आज पहली बार कोई बड़ा अफसर जनता का दर्द अपना दर्द समझा है।”
एक और औरत रोते हुए बोली—
“काश हर बेटा अपनी माँ के लिए ऐसे खड़ा हो, तो कोई और माँ यूँ न गिरे।”
राजीव ने कैमरों की ओर देखा और कहा—
“आज मेरी माँ गिरी है, कल आपकी माँ भी गिर सकती है। यह लड़ाई सिर्फ मेरी माँ की नहीं, हर माँ की है। जो सिस्टम इज्ज़त नहीं दे सकता, वो इलाज भी नहीं दे सकता।”
सुधार की शुरुआत
मैनेजर ने तुरंत घोषणा की—
“अब से हर मरीज के लिए अलग वार्ड बॉय होगा। स्ट्रेचर की जांच होगी। बुजुर्गों के लिए विशेष सुविधा होगी।”
राजीव ने रोका—
“यह सब आज से नहीं, अभी से लागू होगा। और इस अस्पताल की मॉनिटरिंग मैं खुद करूंगा।”
तालियाँ गूँज उठीं। लोगों की आँखों में उम्मीद की चमक थी।
माँ की कसम
माँ ने हाथ उठाया। कमजोर आवाज़ में बोलीं—
“बेटा, वादा कर, तू सिर्फ अपनी माँ के लिए नहीं, हर माँ के लिए लड़ेगा।”
राजीव की आँखें भर आईं। उसने माँ का हाथ चूमा और कहा—
“माँ, यह मेरी कसम है। अब कोई माँ अस्पताल की लापरवाही से जमीन पर नहीं गिरेगी।”
भीड़ भावुक हो उठी। कैमरे उस पल को कैद कर रहे थे। एक माँ और उसके बेटे की कसम, जो पूरे सिस्टम को बदलने जा रही थी।
संदेश
यह कहानी सिर्फ एक अफसर और उसकी माँ की नहीं, बल्कि हर उस माँ की है जो अस्पतालों और सिस्टम की लापरवाही से अपमानित होती है। राजीव ने जो कसम खाई, वह हमें याद दिलाती है कि असली बेटा वही है जो अपनी माँ की नहीं, हर माँ की इज्ज़त बचाए।
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