राजू और राधिका: एक अनोखी प्रेम कहानी
राजू एक गरीब परिवार से था, जहाँ दो वक्त का खाना भी मुश्किल से मिलता था। उसके मां-बाप अपनी जरूरतें कम करके राजू की पढ़ाई पर खर्च करते थे। उनकी एकमात्र ख्वाहिश थी कि राजू पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने। राजू मेहनती और खामोश था, उसकी किताबें उसके सबसे अच्छे दोस्त थीं। वह दिन-रात पढ़ता, सवाल हल करता और हर इम्तिहान में अव्वल आता।
10वीं कक्षा उसके लिए जिंदगी का टर्निंग पॉइंट थी। उसने कसम खाई कि बेहतरीन नंबर लाएगा ताकि अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल सके। उसकी मेहनत रंग लाई और इम्तिहान में उसने 500 में से 450 नंबर हासिल किए। जब उसने स्कूल के नोटिस बोर्ड पर अपना नाम देखा तो उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। उसके उस्ताद ने उसे बुलाकर मुबारकबाद दी और कहा, “तुमने स्कूल का नाम रोशन किया।”
घर पहुंचकर मां-बाप की खुशी देखकर उसकी मेहनत सार्थक लगी। यह एक नए सफर की शुरुआत थी, जहाँ सपने हकीकत की ओर बढ़ रहे थे। कॉलेज में दाखिला लेने के बाद, राजू को एक मशहूर कॉलेज से मेरिट पर दाखिले की खबर मिली। उसकी आंखें चमक उठीं, लेकिन फीस की चिंता उसे सताने लगी। कॉलेज महंगा था, और 50% रियायत के बावजूद रकम ज्यादा थी। तभी सरकार से स्कॉलरशिप मिली, जिसने उसकी राह आसान की।
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कॉलेज का पहला दिन आया। राजू साफ कपड़ों में बैग कंधे पर लटकाए कॉलेज की शानदार इमारत की ओर बढ़ा। क्लास में पहुंचा तो प्रोफेसर राधिका की नजर उस पर ठहर गई। राधिका ने सभी छात्रों से परिचय कराया, लेकिन उसकी आंखें बार-बार राजू को तलाश रही थीं।
पहले दिन क्लास खत्म होने पर राधिका ने राजू को रोका और कहा, “तुम वही हो ना जिसने 450 नंबर लिए?” राजू ने सहमति में सिर हिलाया। राधिका ने मजाक में पूछा, “किस्मत या मेहनत?” राजू ने शर्माते हुए कहा, “मेहनत और मां-बाप की दुआएं।” राधिका ने मुस्कुराकर प्रस्ताव दिया, “मैं कुछ बच्चों को प्राइवेट पढ़ाती हूं। तुम फ्री में पढ़ सकते हो।”
राजू ने अगले दिन हामी भर दी। राधिका ने एक और सुझाव दिया, “हॉस्टल का किराया बचाने के लिए मेरे घर रह लो। मैं तुम्हें कॉलेज लाऊंगी ले जाऊंगी।” राजू ने तुरंत हां कर दी। राधिका उसे अपने घर ले गई। राजू हैरान था—इतना बड़ा घर और राधिका अकेली।
धीरे-धीरे राधिका और राजू की नजदीकियां बढ़ने लगीं। एक दिन मजाक नोकझोंक में बदल गया जब राधिका ने राजू को करीब खींचकर उसके होठों पर चुंबन दे दिया। राजू ठिठक गया, लेकिन जवानी के जोश में वह भी खुद को नहीं रोक सका।
कुछ महीने बाद, राधिका ने परेशान होकर राजू को बुलाया और कहा, “मुझे लगता है मैं गर्भवती हूं।” राजू सन्न रह गया। दोनों ने तय किया कि शादी ही एकमात्र रास्ता है। राधिका ने कहा, “मेरा कोई नहीं जो रोके। मैं तुमसे शादी करना चाहती हूं।”
राजू ने मां को सब बताने का वादा किया, लेकिन वह हफ्ते भर लौट नहीं सका। राधिका ने फैसला किया कि अब इंतजार नहीं करेगी और डॉक्टर से मिलने का समय लिया। उसी रात राजू दरवाजे पर दस्तक देकर आया। उसने बताया कि उसके पिता की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी और उनका निधन हो गया।
राजू की मां ने शादी को मंजूरी दे दी, और राधिका की उदासी खुशी में बदल गई। दोनों ने शादी करने का फैसला किया। समाज की बातों और उम्र के फासले को पीछे छोड़कर, राजू और राधिका ने एक नई शुरुआत की।
राजू ने पढ़ाई जारी रखी, और राधिका ने उसे हर कदम पर साथ दिया। उनका बच्चा इस रिश्ते की निशानी बना। एक गलती ने उन्हें नया सबक सिखाया और उनकी मेहनत और प्यार ने उन्हें एक नई दिशा दी।
यह कहानी न केवल संघर्ष और मेहनत की है, बल्कि यह प्रेम, जिम्मेदारी, और एक-दूसरे का साथ निभाने की भी है। राजू और राधिका ने साबित कर दिया कि सच्चा प्यार हर मुश्किल को पार कर सकता है।
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