सारिका और आरिश: एक अनोखी प्रेम कहानी
लखनऊ के राजेंद्र नगर में एक पुरानी लेकिन प्रसिद्ध लॉ फर्म में 27 साल की वकील सारिका शर्मा काम करती थीं। उनकी तेज बुद्धि और प्रभावशाली दलीलों के कारण अदालत में हर कोई उनकी तारीफ करता था। लेकिन सारिका की जिंदगी आसान नहीं थी। पिता का निधन बचपन में हो गया था, मां बीमार थीं, और भाई विदेश में पढ़ाई कर रहा था। इस वजह से सारिका पर घर की जिम्मेदारियों का भारी बोझ था।
एक दिन, जब सारिका अपने चेंबर से घर लौट रही थीं, उन्होंने एक 14 साल के लड़के आरिश को सड़क पर भीख मांगते देखा। उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक और दर्द था। सारिका ने उसे खाना देने का फैसला किया और धीरे-धीरे उनके बीच एक अनोखा रिश्ता विकसित हुआ। आरिश की मासूमियत ने सारिका की जिंदगी में खुशियों की एक नई किरण भर दी।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, आरिश ने सारिका से कहा, “दीदी, अगर मेरे पास पैसे होते, तो मैं पढ़ाई करता और बड़ा आदमी बनता।” सारिका की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने आरिश को अपने घर बुलाना शुरू किया, ताकि वह अच्छा खाना खा सके और पढ़ाई कर सके। उनकी मां ने भी आरिश को पसंद किया और कहा, “खुदा ने इसे हमारे घर भेजा है। इसे अपनाओ।”
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एक दिन, जब सारिका की मां की तबीयत बहुत खराब हो गई, उन्होंने सारिका से कहा, “मैं ज्यादा दिन नहीं रहूंगी, लेकिन तुम इस बच्चे को अपनी जिंदगी में जगह दे लो।” सारिका ने मां की बात को गंभीरता से लिया। समाज की बातें और ताने उन्हें डराने लगे, लेकिन उन्होंने ठान लिया कि वे आरिश को अपनाएंगी।
कुछ दिनों बाद, सारिका ने आरिश से शादी करने का फैसला किया। इस फैसले ने पूरे समाज को हिला कर रख दिया। अखबारों में खबरें छपीं, और लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। लेकिन सारिका ने अपनी बात पर कायम रहते हुए कहा, “मैंने इस बच्चे को एक जिंदगी दी है। अगर यह जुर्म है, तो मैं इसकी सजा भुगतने के लिए तैयार हूं।”
शादी के अगले दिन, जब सारिका और आरिश ने अपनी नई जिंदगी शुरू की, तो मोहल्ले में विरोध और समर्थन दोनों का माहौल बन गया। कुछ लोग सारिका की हिम्मत की तारीफ कर रहे थे, जबकि कुछ ने उन पर ताने कसे। लेकिन सारिका ने इन सबका सामना करते हुए आरिश की पढ़ाई और भलाई की जिम्मेदारी उठाई।
एक दिन, जब आरिश स्कूल से लौट रहा था, कुछ बदमाशों ने उसे धमकाया। सारिका ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन पुलिस ने उनकी बात को हल्के में लिया। इससे सारिका और आरिश के बीच का रिश्ता और मजबूत हुआ। सारिका ने आरिश की सुरक्षा के लिए हर संभव कदम उठाने का फैसला किया।
सारिका ने समाज में अपनी लड़ाई जारी रखी और आरिश को पढ़ाई में मदद की। उन्होंने आरिश को समझाया कि डरने की जरूरत नहीं है। आरिश ने कहा, “बीवी जी, मैं अब डरता नहीं हूं। मैं बड़ा आदमी बनकर दिखाऊंगा।” इस मासूमियत ने सारिका को हिम्मत दी।
अंततः, अदालत में मामला पहुंचा। सारिका ने खुद अपनी पैरवी करते हुए कहा, “मैंने एक बच्चे को घर दिया है। अगर इसे जुर्म माना गया, तो इंसानियत को क्या कहा जाएगा?” जज ने कहा कि यह मामला साधारण नहीं है और फैसला अगली तारीख पर सुनाया जाएगा।
जब अदालत का फैसला आया, तो सारिका को बताया गया कि उनकी शादी कानूनी तौर पर मान्य नहीं है, लेकिन उन्हें आरिश की तालीम और परवरिश की जिम्मेदारी सौंपी गई। सारिका ने आरिश को कानूनी तौर पर अपना बेटा बना लिया।
सारिका की यह कहानी न केवल एक वकील की है, बल्कि एक ऐसी औरत की है जिसने समाज की सोच को चुनौती दी और एक बच्चे की जिंदगी बदल दी। यह कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो सच और इंसानियत के लिए लड़ता है। सारिका और आरिश ने मिलकर यह साबित किया कि प्यार और इंसानियत की जीत हमेशा होती है।
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